• Oct 06, 2025

कालीघाट शक्तिपीठ भारत के सबसे प्राचीन और आध्यात्मिक तीर्थस्थलों में से एक है जो अपने नाम के अनुरूप काली जी की प्रतिमा और घाट यानी गंगा किनारे अवस्थित है। पवित्र नदी के तट पर बसा यह शक्तिपीठ कई बार बना और विस्तारित हुआ है, जो हिन्दू तांत्रिक परंपरा में दस महाविद्याओं में से एक और कालीकुला पूजा परंपरा में सर्वोच्च स्थान पर है। देवी भागवत पुराण, कालिका पुराण और शक्ति पुराण स्तोत्रम में इस शक्तिपीठ की महिमा के बारें में बताया गया है जहां वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। दक्षिणायनी शक्तिपीठ से मशहूर इस मंदिर के बारें में विस्तार से जानते हैं।

शक्तिपीठों से जुड़ी पौराणिक कथा

देवी सती द्वारा बिना बुलाए अपने पिता राजा दक्ष के यहां यज्ञ समारोह में जाना और राजा दक्ष द्वारा उनके पति यानी भगवान शिव का अपमान किया जाने से दुखी देवी सती ने उसी यज्ञ समारोह की वेदी में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। इस बात से क्रोधित भगवान शिव तांडवीय नृत्य करते हुए देवी सती का शव लेकर घूमने लगे। इस घटना से सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा, इस कारण भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से मां सती के शव के भाग किए जो भारतीय उपमहाद्वीप में जहां जहां गिरे, वहां वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई और हर जगह किसी अधिष्ठात्री देवी का उदय हुआ, इस तरह भारतीय उपमहाद्वीप में 51 शक्तिपीठों की उपस्थिति दर्ज होती है।

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कालीघाट शक्तिपीठ से जुड़ी पौराणिक कहानी

देवी सती के मृत शरीर का जो भाग जहां गिरा वहां उसी अनुरूप एक विशेष शक्ति का उदय हुआ। इसी तरह माना जाता है कि कालीघाट शक्तिपीठ में देवी सती के दाहिने पैर का अगूंठा गिरा हुआ है। यह गंगा किनारे नदी तट पर गिरने से यहां मां काली शक्तिपीठ का उदय हुआ जिसे काली क्षेत्र नाम से भी जानते हैं। यह शक्तिपीठ पूर्वी भारत के चार आदिशक्तिपीठों में से एक है जहां लाखों करोड़ों भक्त दर्शन करने आते हैं।

कालीघाट शक्तिपीठ मंदिर की वास्तुकला व संस्कृति

पश्चिम बंगाल में अवस्थित यह शक्तिपीठ अपनी वास्तुकला और पांरपरिक बंगाली शैली के लिए मशहूर है जहां टेराकोटा, मोड़दार कंगनी और खूबसूरत जटिल नक्काशी के दीदार होते हैं। इस मंदिर में नट मंदिर, जोर बांग्ला, सोस्थी ताला, हरकथ ताला, रामकृष्ण मंदिर, कुंडपुकर पवित्र कुंड है। 

मंदिर का अग्रभाग टेराकोटा पैनलों से सुशोभित है जिन पर हिंदू धर्म की ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं का जिक्र देखने को मिलता है, जिनका चित्रण देवी काली पर सजीव एकदम सजीव प्रतीत होता है।

मुख्य मंदिर की संरचना पश्चिम बंगाल की अटचला शैली से प्रभावित है जिसमें आठ ढलानदार छतों का एक ही शिखर पर समाप्त होना विशेष लगता है 

मुख्य गर्भग्रह मंदिर में देवी काली जी की विशेष पूजा होती है जहां उनकी दिव्य मूर्ति स्थापित है, इनके अलावा वहां कई देवी देवताओं के कई सारे छोटे छोटे मंदिर भी स्थापित हैं। कालीघाट काली मंदिर की वास्तुकला की खूबी है कि वह न केवल देखने में सुंदर आकर्षक है बल्कि काली पूजा से जुड़ी पवित्र परंपराओं, रीति रिवाजों, दिव्य अनुष्ठानों और स्थानीय प्रथाओं को बेहतरी से संचालन करने और पूरक उद्देश्यों को सही दिशा प्रदान करता है। 

मंदिर परिसर के विशाल प्रांगण में भक्त आराधना, प्रार्थना और प्रसाद की इच्छा से एकत्रित हो सकते हैं। बंगाली संस्कृति का परिचय देता यह शक्तिपीठ अपनी विशेष वास्तुकला डिजाइन, समग्र विवरण और धार्मिक चिन्हों की पवित्रता संजोए भक्ति की भावना का उदय करती है। कालीघाट शक्तिपीठ बंगाली स्थापत्य कला और आध्यात्मिक विरासत का संरक्षण करती हुई सदियों से इसकी जीवंतता का प्रमाण दे रही है। 

कालीघाट शक्तिपीठ मंदिर का समय 

कालीघाट शक्तिपीठ में मंदिर सुबह दर्शन समय : सुबह 5 बजे से दोपहर 2 बजे तक 

शाम दर्शन समयः शाम 5 बजे से रात 10ः30 मिनट तक 

नोट : दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक मंदिर के पट बंद रहते हैं।

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कालीघाट शक्तिपीठ में मनाए जाने वाले अनुष्ठान एवं उत्सव 

कालीघाट मंदिर में आरती, पुष्प अर्पित करना, भोग लगाना, फूल और नैवेद्य अर्पित करना, मन्नत का धागा बांधना और अन्न, धन वस्त्र का दान किया जाता है। मां काली की पूजा में दीप जलाएं जाते हैं, घंटियों की मधुर स्वर मन को भाव विभोर करते हैं। 

कालीघाट शक्तिपीठ में वर्ष भर अनुष्ठान और उत्सवों का आयोजन होता रहता है जहां पूरे भारतवर्ष से भक्तजन आते हैं। यहां का सबसे विशेंष समारोह काली पूजा है, जो दीपों के त्यौहार दीवाली के बाद मनाई जाती है। इस समय यहां चारों ओर बिखरी रोशनी और अद्वितीय सजावट मंत्रमुग्ध करती है जिसमें रंग बिरंगी झालर, दीपों और कई तरह के फूलों से सजाया जाता है, जिनकी खुशबू हर किसी को आकर्षित करती है। इस दौरान देवी काली की विशेष पूजा का आयोजन होता है जिनमें भक्त मां के विभिन्न अनुष्ठानों में शामिल होकर उनसे सुख संपत्ति और शांति का आशीर्वाद मांगते हैं।

मां कालिका शक्तिपीठ में मुख्य त्यौहारों और अनुष्ठानों में नवरात्रि पर्व सबसे विशेष है जब देवी दुर्गा के इन नौ दिनों में लगातार यह उत्सव चलता रहता है इस दौरान यहां लगने वाला मेला और नवरात्रि की सप्तमी तिथि को मां काली का दिन बहुत ज्यादा ख़ास होता है। इन मेलो के दौरान शक्तिपीठ के उत्साह, उमंग और भक्ति आनंद में एक अलग ही खुशहाली देखने को मिलती है।

पश्चिम बंगाल में बंगाली संस्कृति के अनुसार बंगाली नववर्ष का पहला दिन पोइला बैशाख, स्नान यात्रा और कई अमावस्या पर यहां विशेष अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। 

कालीघाट शक्तिपीठ से जुड़े रोचक तथ्य 

कालीघाट मंदिर से जुड़ी सबसे चर्चित कहानी आत्माराम नाम के ब्राह्मण की है जिसे गंगा नदी में मानव पैर के आकार की एक सरंचना मिली, जिसके लिए उसे देवी मां की प्रेरणा मिली थी। ब्राह्मण ने उस संरचना की पूजा शुरू कर दी, फिर उसे रात्रि में स्वप्न आया जिसमें उसे ज्ञात हुआ कि यह संरचना देवी सती के दाएं पैर का अगूंठा है। देवी मां ने उसे वहां मंदिर बनवाने और वहां स्वयंभू शिवलिंग नकुलेश्वर भैरव की खोज करने का आदेश दिया। कुछ समय बाद भैरव नकुलेश्वर शिवलिंग भी मिल गया जिनकी पूजा अर्चना आज इस मंदिर में होती है। 

मां काली की पूजा के लिए मंगलवार और शनिवार विशेष दिन माने जाते हैं इस वजह से इन दिनों मां के इस शक्तिपीठ में बहुत भीड़ होती है। 

कोलकाता के इस कालीघाट शक्तिपीठ में स्वर्गगमन कर चुके लोगों की दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए अनुष्ठान वगैरह संपन्न कराते हैं जिनसे उनके पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहां पीढियों से चली आ रही परंपराओं की तरह ही अनुष्ठान आदि कार्य संपन्न किए जाते हैं। 

कालिका शक्तिपीठ में पुजारियों को ‘‘सेवित’’ कहा जाता है। जिसका अर्थ होता है ‘‘सेवा में’’ 

कहते हैं कि इस मंदिर में स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने आध्यात्मिकता के उच्च शिखर को पाया था, ये तथ्य इस मंदिर की रोचकता को और भी ज्यादा बढा देते हैं। 

19वीं सदी के दौरान यह मंदिर सामाजिक सुधार के केंद्र के रूप में भी जाना गया जब राजा राममोहन रॉय और ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने सती प्रथा और बाल विवाह जैसी कुरीतियों पर रोक लगाने के लिए कालीघाट मंदिर के आध्यात्मिक महत्व का उपयोग किया। यहां के धार्मिक प्रभाव से वह समाज को सकारात्मक दिशा दिखाना चाहते थे। 

कालीघाट शक्तिपीठ कई बंगाली कवियों और कहानीकारों के लिए महत्वपूर्ण रहा है जहां से उन्हें ज्ञान और प्रेरणा मिलती रही है। रविंद्रनाथ टैगोर, बंकिम चंद्र चटर्जी और अन्य लेखन कला से संबंधित दिग्गजों ने इस मंदिर का उल्लेख अपनी रचनाओं में भी किया है। 

बंगाली सिनेमा और टीवी सीरियलो में इस मंदिर की छवि अक्सर दिखाई जाती है जो इसकी सांस्कृतिक प्रसिद्धि और ज्यादा बढाता है। 

कालीघाट शक्तिपीठ के आसपास घूमने योग्य स्थान

विक्टोरिया मेमोरियलः कोलकाता की यह प्रतिष्ठित इमारत तकरीबन 64 एकड़ क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इंडो सरसेनिक वास्तुकला को प्रदर्शित करती इमारत लॉर्ड कर्जन की सोच का साकार रूप है। विक्टोरिया मेमोरियल में लगभग 25 गैलरी हैं जिनमें मूर्तिकला, शस्त्रागार, सेंट्रल हॉल और कोलकाता गैलरी शामिल है। इस संग्रहालय में कई किताबें जैसे विलियम शेक्सपियर की सचित्र रचनाएं, उमर खया, नवाब वाजिद अली शाह की कथक नृत्य और ठुमरी संगीत की पुस्तकें देखने को मिलती हैं। विक्टोरिया मेमोरियल उद्यान में पेड़ पौधों की हरियाली और विभिन्न वैराइटीज को देखा जा सकता है। 

बिड़ला मंदिरः भगवान राम और कृष्ण को समर्पित इस मंदिर की संरचना को बनने में करीब 26 सालों का समय लगा। जिसकी भव्यता और आकर्षकता देखते बनती है, सफेद संगमरमर से बना यह मंदिर तकरीबन 44 कट्ठा भूमि पर फैला हुआ है जिसकी छवि ओडिसा के लिंगराज मंदिर से मिलती जुलती है। इस मंदिर में कुछ अंश राजस्थानी वास्तुकला का भी देखने को मिलता है। कालका शक्तिपीठ की यात्रा करते समय इस मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। 

विज्ञान नगरीः साइंस सिटी के नाम से कोलकाता की यह जगह जॉन बर्डन सैंडरसन हाल्डेन एवेन्यू पर स्थित है जिसमें अनेक इंटरैक्टिव विज्ञान और बायोसाइंस की लाइव प्रदर्शनियां लगती हैं। आप यहां ओमनीमैक्स थियेटर में मनोरंजन भी कर सकते है। 

नेहरू तारामंडल : खगोल विज्ञान, खगोल प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष विज्ञान और तारों व ग्रहों से जुड़ी शैक्षिक और मनोरंजनात्मक गतिविधियों का मज़ा ले सकते हैं, इसके अलावा इनकी पौराणिक कथाओं से भी जुड़ी संबद्धता को भी समझ सकते हैं। 

कोलकाता चिड़ियाघरः भारत के सबसे पुराने चिड़ियाघर के रूप में जाना जाता है जहां यह लगभग 46 एकड़ में फैला है। यहां अद्वैत कछुए, भौंकने वाले हिरण और परती हिरण यानी जो देखने में सफेद रंग के होते हैं। इस चिड़ियाघर में एशियाई शेर, बड़ा एक सीगं वाला गैंडा, जिराफ, जेब्रा और हाथी शामिल हैं। इस चिड़ियाघर में आकर्षक पक्षियों का भी एक बेहतर संग्रह है जिनमें से कुछ दुर्लभ प्रायः भी है, जैसे लॉरी, तीतर.... 

कालीघाट शक्तिपीठ कैसे पहुंचे 

हवाई मार्ग से 

कालीघाट शक्तिपीठ से नजदीकी हवाई अड्डा नेताजी सुभाषचंद्र बोस इंटरनेशनल एयरपोर्ट हैं, जहां से आप स्थानीय वाहनों के जरिए कालीघाट शक्तिपीठ पहुंच सकते हैं। 

रेल मार्ग से 

कालीघाट शक्तिपीठ पहुंचने के लिए कोलकाता में मौजूद प्रमुख रेलवे स्टेशन हावड़ा और सियालदह के माध्यम से दर्शन करने जा सकते हैं। निकटतम मेट्रो स्टेशन कालीघाट से कालीघाट शक्तिपीठ की दूरी वॉकिंग डिस्टेंस पर ही है। 

सड़क मार्ग से 

कोलकाता पश्चिम बंगाल की राजधानी होने के साथ ही देश भर के प्रमुख शहरों से भलीभांति जुड़ा हुआ है जहां आप बस, सरकारी या निजी वाहनों के माध्यम से कोलकाता की यात्रा पर जा सकते हैं। 

निष्कर्ष

कालीघाट मंदिर कोलकाता में अवस्थित प्रतिष्ठित शक्तिपीठ है जिसका महत्व प्राचीन मान्यताओं के साथ ही आधुनिकता का भी समायोजन करता है। आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में महानता को दर्शाता यह शक्तिपीठ तांत्रिक और सात्विक शक्तियों को ऊर्जा प्रदान करता है। प्रतिष्ठित शक्तिपीठ भूमि और मां काली के दिव्य स्वरूप से ही पृथ्वी के हर तत्व का सृजन हुआ है जिसकी छवि यहां हर जगह देखने को मिलती है। कालीघाट शक्तिपीठ शक्ति और भक्ति का अनोखा संगम है जहां मां काली की एक ही दिव्य छवि में प्रेम प्यार करूणा दर्शाने वाली मूर्ति के साथ ही रौद्र रूप में बुराई का नाश करने वाली प्रतिमा के भी दर्शन होते हैं।

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