मंगल चंद्रिका या मंगल चंडिका देवी शक्तिपीठ हिंदू देवी सती के मुख्य शक्तिपीठों में से एक धार्मिक ऊर्जा व पौराणिक महत्व के किस्से बयां करता है, इस आध्यात्मिक स्थल की गिनती 51 शक्तिपीठों में से होती है जहां, हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, देवी सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। प्रत्येक शक्तिपीठ की अपनी विशेषता है ऐसे ही मंगल चंद्रिका शक्तिपीठ जैसे पवित्र स्थान की अद्वितीय ख़ासियत हैं। जहां मंगल शब्द भलाई का प्रतीक है, जबकि चंडिका या चंद्रिका देवी मां का उग्र स्वरूप है जिसे ज्यादातर सुरक्षा और आसुरी शक्तियों के दमन से जोड़ा जाता है। ये दोनों प्रतीक स्वरूप तत्व मिलकर सुरक्षा प्रदान करते हुए बुराई पर विजय का द्योतक है, जो शक्तिशाली आध्यात्मिक संबंध का निर्माण करता है, सौहार्द, ज्ञान और दिव्य ऊर्जा से भक्तो को अभिसिचित करता यह शक्तिपीठ ख़ास है।
हिंदू पौराणिक कहानियों में कहा जाता है कि राजा दक्ष अपनी पुत्री सती और जामाता भगवान शिव को न बुलाए जाने के कारण अत्यंत दुखी देवी सती ने अकेले ही यज्ञ में इस बात का कारण जानने के लिए पहुंच गई। देवी सती के वहां पहुंचने और न बुलाए जाने के कारण पूछने पर राजा दक्ष ने भगवान शिव और उनके पति का भरपूर अपमान किया और अपशब्द कहे, पति निंदा सुनने पर देवी सती ने अपने पतिव्रता धर्म का पालन करते हुए अपनी जीवनलीला यज्ञकुंड की अग्नि में समाप्त कर ली
सती की मृत्यु से दुखी और क्रोधित हुए महादेव ने मृत शव को लेकर ब्रहांड में तांडव और विचरण करना शुरू कर दिया। सृष्टि और महादेव के असंतुलन की वजह से भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से पार्थिव शरीर के टुकड़ों को भारतीय उपमहाद्वीप में गिराना शुरू किया, जहां जहां ये अंग के टुकड़े गिरे वहां वहां प्रतिष्ठित शक्तिपीठों की स्थापना के साथ एक नई विशिष्ट देवी का उदय हुआ।
मान्यता है कि मंगल शक्तिपीठ में देवी सती की दाहिनी कलाई गिरी थी, जिसकी विशेषता है कि यहां आध्यात्मिक साधना और शक्ति प्राप्त करने वाले भक्त जन यहां आते हैं, जहां माता अपनी शक्तियों से समस्त संसार को प्रदीप्तिमान कर रही हैं। कल्याण करने वाली चंडिका माता सदैव अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।
यह शक्तिपीठ मंदिर पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले में गुस्कुरा के निकट उजनी गांव में अवस्थित हैं जिसकी नजदीकी कोग्राम नतुनहाट से भी है, इस शक्तिपीठ को कपिलाम्बर पश्चिम बंगाल नाम से भी जानते हैं।
मंगल चंडिका शक्तिपीठ उजनी शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है, जिसकी सादगी मन मोह लेती है, पीले रंग से रंगा देवी का यह भवन किसी विशेष वास्तुकला का परिचय नहीं देता है, लेकिन मंदिर प्रांगण के सुंदर वृक्षों की कतारें और उनकी छाया से उपवन जैसा आनंद प्राप्त होता है। गर्भग्रह में उपस्थित दो मूर्तियों में एक देवी मां मंगल चंद्रिका की है और दूसरी भगवान शिव के प्रतिरूप में कपिलाम्बर भैरव की है जिनकी यहां पूजा अर्चना की जाती है।
सीधा सादी सरल इमारतों से बना यह मंदिर और प्रांगण के विशाल प्राचीन वृक्षों की छवि यहां आने वाले दर्शकों का ध्यान विशेष रूप से अपनी ओर आकर्षित करती है।
मंगल चंद्रिका मंदिर में सुबह 6 बजे से शाम 8 बजे तक मां चंडिका और भगवान शिव के कपिलाम्बर रूप के दर्शन कर सकते हैं।
1. फरवरी-मार्च : इस दौरान मनाया जाने वाला महाशिवरात्रि त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है जहां मंदिर में विशेष पूजा अनुष्ठान और उत्सवों का आयोजन किया जाता है।
2. सितंबर-अक्टूबर : आश्विन मास की नवरात्रि उत्सव की धूम और हर्षोल्लास देखने लायक होता है जिसमें नवरात्रि का यह नौ दिनों का त्यौहार विशेष रूप से सभी को रिझाता है, इस समय मंदिरों में होने वाली भीड़ आमतौर पर अन्य दिनों की अपेक्षा बहुत ज्यादा होती है और यहां लगने वाले मेले समारोह की धूम से हर कोई प्रसन्न नज़र आता है।
3. अक्टूबर-नवंबर : पश्चिम बंगाल में दीवाली पर काली पूजा मनाने की विशेष परंपरा सदियों से चली आ रही है, जिसकी बात करें तो यहां मुख्य दीपावली की पूरी रात्रि देवी काली की विशेष पूजा अर्चना की जाती है जो बहुत अनूठी पंरपरा प्रतीत होती है। दीवाली के दिन स्थानीय भक्तों की भीड़ बहुत ज्यादा होती है। जो आश्चर्यजनक रूप से सुखद अनुभव प्रदान करती है।
मां मंगला चंडिका दर्शन करने हेतु वैसे तो कोई नियत ड्रेस कोड नहीं है लेकिन मंदिरों में दर्शन करते समय मंदिर और सभी भक्तजनों की आस्था का सम्मान करते हुए पूरी आस्तीन को ढकने वाले पांरपरिक वस्त्रों का चयन करना समझदारी है। पुरूषों के लिए धोती कुर्ता या पीतांबर धोती और स्त्रियों के लिए साड़ी या सलवार सूट का चयन उचित प्रतीत होता है।
भारत के पश्चिम बंगाल में लगभग 14 से अधिक शक्तिपीठों के स्थान हैं, जहां उनकी अपनी भिन्न विशेषताएं हैं, जहां एक ही राज्य में कई भौगोलिक और सांस्कृतिक भिन्नताएं देखने को मिलती हैं इसे भारत के छोटे रूप की तरह भी जाना जाता है। पश्चिम बंगाल में पूर्वी भारत की अमिट छाप देखने को मिलती है जहां इसकी समृद्ध संस्कृति और विरासत पश्चिम बंगाल के हर कोनों तक फैली हुई है।
बंगाली व्यंजन, बंगाली नृत्य और बंगाली रंगमंच साहित्य, कला की बेहतरीन छाप यहां देखने को मिलती है, जहां वैश्विक मंच पर इसकी अलग ही प्रस्तुति देखने को मिलती है।
कल्याणेश्वरी मंदिर : पश्चिम बंगाल के आसनसोल में बर्धमान जिले के अन्तर्गत यह जगह लगभग 500 साल पुराना मंदिर है जहां मान्यता है कि यहां निःसंतान दंपतियों को संतान की प्राप्ति होती है। बराकर नदी के तट पर यह पवित्र धार्मिक स्थान है जिसकी दूरी मंगल चंद्रिका मंदिर से बहुत ज्यादा दूरी नहीं है।
इस स्थान से जुड़ी कई आश्चर्यजनक तथ्य भक्तो को और भी ज्यादा आकर्षित करते हैं। इस मंदिर में शाम की आरती नहीं की जाती, सिर्फ एक बार सुबह की आरती ही की जाती है। अष्टधातु की बनी मां काली की मूर्ति ही कल्याणेश्वरी माता है जो अपने भक्तो का कल्याण करती है। गहरी शांति और चेतना प्रदान करता मां काली का यह मंदिर बेहद ही परम पावन है। इस मंदिर के आसपास आप मैथन बांध, नेहरू पार्क, गर पंचकोट, घाघर बुरी चंडी माता मंदिर, पंचेत बांध देख सकते हैं।
बिहारीनाथ पहाड़ी : पश्चिम बंगाल में मां मंगल चंडिका देवी मंदिर के पास ही बिहारीनाथ पहाड़ी है जहां यात्री ट्रेकिंग का लाभ लेते हुए पर्वतारोहण का आनंद ले सकते हैं जहां पश्चिम बंगाल के घने जंगल और मनमोहक वातवरण रहता है जहां आप शांति का ख्ूबसूरत एहसास कर सकते हैं, यह स्थान पश्चिम बंगाल की अराकू घाटी के नाम से प्रसिद्ध बिहारीनाथ बांकुड़ा यहां की सबसे ऊंची पहाड़ी है। इस पहाड़ी की उपस्थिति पुरूलिया पहाड़ी और दामोदर नदी के बीच स्थित है जहां छोटे छोटे आदिवासी गांवो के ऊपर स्थित है। हरी भरी हरियाली और घनी सुंदरता के बीच बसा बिहारीनाथ पहाड़ी हिल ट्रेक वर्ष में कभी भी तय किया जा सकता है, जहां स्वच्छ तालाब, चट्टानी चढाई और मीलों से दूर दिखने वाले रास्तों की भव्यता आकर्षित करता है।
वेदगर्भा श्री कंकलेश्वरी काली मंदिर : इस मंदिर के पास तालाब में देवी सती की कमर गिर गई थी, इस वजह से विशेषतौर पर भक्त इस तालाब की पूजा आराधना करते हैं, तालाब के पास ही कंकेलश्वरी मंदिर स्थित है, जहां कोई विशेष प्रतिमा नही है और मां कंकेलश्वरी का एक चित्र है। खेतों की बीच बने इस मंदिर की सुरम्य छटा बेहद आकर्षक लगती है।
देउल पार्क बोनकाटी : नैसर्गिक सुंदरता, विरासत और ऐतिहासिक मनोरंजन गतिविधियां का विलक्षण संगम प्रदान करता देउल पार्क बोनकाटी के सुदरतम स्थानों में से एक है। जहां इसका सबसे प्राचीन मंदिर देउल मंदिर है, यह एक टेराकोटा संरचना हे जिसकी समृद्ध विरासत और प्रकृति से निकटता बहुत आकर्षित करती है। सांस्कृतिक विरासत और आरामदायक स्थान है। देउल पार्क के पास बहती अजय नदी देखने में और भी ज्यादा सुंदर प्रतीत होती है।
सर्वमंगला मंदिरः पश्चिम बंगाल का सर्वमंगला मंदिर बहुत ही प्राचीन और मान्यताओं वाला मंदिर है जहां कहा जाता है कि यह शक्ति की नाभि यानी सभी शक्तियों का केंद्र है। जहां समृद्ध इतिहास, वर्तमान के आश्चर्यों और लोककथाओं से भक्तों के बीच खासा लोकप्रिय है, इसका निर्माण 1702 में हुआ था जिसकी मूर्ति दिव्य स्वप्न में दिखाई दी थी, वह मूर्ति दामोदर नदी की रेत पर मिली थी, जो लगभग उस समय ही लगभग 1000 वर्ष पुरानी थी।
हवाई मार्ग के रास्ते पहुंचने के लिए कोलकाता हवाई अड्डे नेताजी सुभाषचंद्रबोस एयरपोर्ट जो करीब 138 किमी दूरी पर है, स्थानीय वाहनों की उपलब्धता से पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग के रास्ते जाने में नजदीकी रेलवे स्टेशन करीब 20 किमी की दूरी है जिसका नाम गुस्करा रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग से जाने के लिए बस या टैक्सी की मदद से नतुनहॉट बस स्टॉप से लगभग 3 किमी की दूरी तय करके मंगल चंद्रिका मंदिर पहुंच सकते हैं।
मंगल चंडिका शक्तिपीठ की सबसे विशेष बात यही है कि यह सादगी और संपन्नता का संदेश देता ऐसा शांत देवस्थान है जहां की आध्यात्मिक चेतना और ऊर्जा सदियों से भक्तों और इस संसार के प्रत्येक कण को जीवन प्रदान कर रही हैं। यहां की दिव्य मूर्ति की छवि और साथ कपिलाम्बर भैरव की उपस्थिति मंदिर की सार्थकता को और भी ज्यादा बल प्रदान करती है। पश्चिम बंगाल के इस शक्तिपीठ में देवी सती की एकमात्र दाहिनी कलाई ही नहीं बल्कि उनका आशीर्वाद और स्वरूप दोनों ही इस जगह को प्राप्त हुए हैं। 51 शक्तिपीठों में से एक इस शक्तिपीठ के माध्यम से देवी अंबा जीवन में सरल और सादगी भरा जीवन जीते हुए भव्य आंतरिक शक्ति और कल्याण के माध्यम से श्रद्धालुओं का जीवन संवारने में मां की असल भूमिका निभाती हैं।