महाराष्ट्र में अवस्थित जनस्थान शक्तिपीठ नासिक शहर का प्रतिष्ठित स्थान है जिसे भ्रामरी शक्तिपीठ भी कहा जाता है। 51 शक्तिपीठों में से एक धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण यह शक्तिपीठ अपनी दिव्यता और आध्यात्मिकता के लिए जाना जाता है, इस शक्तिपीठ में मां भुवनेश्वरी की आराधना की जाती है जिन्हें तीनों लोकों की स्वामिनी कहा जाता है। जनस्थान शक्तिपीठ की दिव्यता और भव्यता से प्रभावित होकर भगवान राम लक्ष्मण और माता सीता ने भी वनवास काल में यहां समय बिताया है जो रामायणकालीन समय से इसकी संबंद्धता प्रकट करता है। शांत वातावरण और दैवीय अनुभूति को साकार करता यह शक्तिपीठ अपनी शक्तिशाली आध्यात्मिक संपन्नता के लिए जाना जाता है।
भारतीय उपमहाद्वीपों में बसे 51 शक्तिपीठों की पौराणिक कथा देवी सती और भगवान शिव से जुड़ी हुई है। माता सती ने भगवान शिव से अपनी इच्छानुसार विवाह किया था। जिससे उनके पिता दक्ष प्रजापति नाखुश थे क्योंकि उनका मानना था कि भगवान शिव के पास दैवीय सुख संपन्नता का अभाव है।
इस कारण राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन तो किया पर देवी सती और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। इस बात की जानकारी जब देवी सती को हुई तो वह कारण जानने के लिए बिन बुलाए ही अपने पिता के यज्ञ समारोह में चली गईं। कारण पूछने पर वहां उन्हें अपमान का घूंट पीना पड़ा और अपने पति भगवान शिव के लिए अपशब्द सुनने पड़े। इस घटना से आहत होकर देवी सती ने यज्ञ की अग्नि में अपने प्राणो की आहुति दे दी। यह सब जब भगवान शिव को ज्ञात हुआ तब वे बदहवास होकर उनके शव के साथ समस्त लोकों में विचरण करने लगे।
ऐसी परिस्थिति में भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शव के टुकड़े किए। जितने टुकड़े जहां गिरे, वहां एक विशेष देवी का प्रादुर्भाव हुआ और वह स्थान शक्तिपीठ कहलाए। इस तरह भारतीय उपमहाद्वीप में 51 शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
जनस्थान शक्तिपीठ नासिक शहर के वाणी गांव में अवस्थित है। मान्यता है कि यहां देवी सती की ठोड़ी गिरी थी। इस दिव्य घटना से यह स्थान परम पवित्र हो गया और यहां मां भ्रामरी देवी का प्रार्दुभाव हुआ। पौराणिक रूप से महत्वपूर्ण इस स्थान पर भगवान राम ने भी सपरिवार समय बिताया है। जो पंचवटी नाम से जाना जाता है। हर एक शक्तिपीठ में सुरक्षा दृष्टि से भैरव भगवान की उपस्थिति है, यहां वत्सनाभ भैरव की पूजा की जाती है, इसलिए यहां शिव और भगवान विष्णु को मानने वाले संप्रदायों के लिए पूजनीय स्थल है।
देवी भुवनेश्वरी का एक नाम भ्रामरी भी है जिनकी उपासना सप्तश्रृंगी रूप में की जाती है क्योंकि देवी के चारों ओर सात पहाड़ियों की चोटियां हैं।
इस शक्तिपीठ में प्रतिदिन मां का स्नान, ध्यान किया जाता है और मां की आरती, पुष्पार्चन और देवी सूक्त का पाठ किया जाता है। मां भ्रामरी को प्रतिदिन नए वस्त्र और नए आभूषण पहनाए जाते हैं।
जनस्थान शक्तिपीठ में यूं तो हर दिन मां का ध्यान वंदन किया जाता है लेकिन विशेष तिथियों और दिनो में इनकी विशेष आराधना की जाती है। मंगलवार, शुक्रवार, अमावस्या और पूर्णिमा तिथियों में मंदिरों की भव्यता और कई गुना बढ जाती है।
शक्तिपीठों मेंं नवरात्रि उत्सव की धूम देखने लायक होती है जब साल में दो बार आने वाली नवरात्रि उत्सव और मेले की चमक चैत्र और आश्विन माह में होने वाली नवरात्रि उत्सव श्रद्धालुओं को और भी ज्यादा आकर्षित करती है, इन दिनों इस शक्तिपीठ में श्रद्धालुओ की अत्यधिक भीड़ होती है।
पंचवटीः नासिक में यह स्थान भगवान राम, लक्ष्मण और देवी सीता के वनवास काल में समय बिताने के लिए प्रसिद्ध है। इसी स्थान पर शूर्पनखा जो रावण की बहन थी, लक्ष्मण जी ने नाक और कान काटे थे और माता सीता का अपहरण भी इसी स्थान से हुआ था। भ्रामरी शक्तिपीठ की यात्रा पर आएं तो पंचवटी दर्शन कर सकते हैं।
सोमेश्वर जलप्रपातः नासिक शहर से करीब 7.5 किमी की दूरी पर सोमेश्वर जलप्रपात की छटा देखते बनती है जहां सोमेश्वर मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित प्रसिद्ध मंदिर है। भ्रामरी शक्तिपीठ दर्शनों के बाद भगवान शिव के इस मंदिर में दर्शन आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
सुंदरनारायण मंदिर : नासिक शहर के इस मंदिर को गंगाधर ने लगभग 17वीं शताब्दी में तैयार करवाया था जो भगवान विष्णु को समर्पित है जिसकी वास्तुकला अति मनमोहक है। जनस्थान शक्तिपीठ यात्रा में इस मंदिर की यात्रा भी जोड़ सकते हैं।
सीता गुफा : पंचवटी के निकट इसी स्थान से लंका के राजा रावण ने माता सीता का अपहरण किया था। यह एक गुफा है जहां आज भी लक्ष्मण रेखा के निशान देखने को मिलते हैं। अन्य महत्वपूर्ण अवशेष भी आज यहां दर्शनों हेतु प्राप्त होते हैं।
कालाराम मंदिरः पंचवटी के समीप ही कालाराम मंदिर है जिसकी स्थापना 17वीं शताब्दी के समय गोपिकाबाई ने कराया था जो यहां के पेशवा हुआ करते थे। इस मंदिर की विशेषता है कि इसकी बनावट त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग से मिलती जुलती है। इस मंदिर का निर्माण भी काले रंग के पत्थरों से हुआ है।
पाण्डवलेनि गुफाः इस गुफा के नासिक गुफाएं भी कहते हैं, इसका अन्य नाम पाण्डव या द्रोपदी गुफा भी है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार यहां पांडव वनवास काल में रूके थे और इन्हीं गुफाओं में उन्होंने शरण ली थी। अन्य मतों के अनुसार इन गुफाओं का संबंध भगवान बुद्ध से भी बताया जाता है।
प्रसिद्ध मोदकेश्वर मंदिरः यह प्रसिद्ध मंदिर भगवान गणेश जी को समर्पित है जो बहुत ही प्राचीन और महत्वपूर्ण है। इस मंदिर में भगवान गणपति को उनके प्रिय भोग लड्डू या मोदक के प्रसाद अर्पित करने के रूप में जाना जाता है। यहां के मोदक नारियल और गुड़ से बनाए जाते हैं।
नासिक का निकटतम हवाई अड्डा ओज़र हवाई अड्डा है, जहां से जनस्थान शक्तिपीठ के लिए स्थानीय वाहनों की भरपूर उपलब्धता रहती है।
जनस्थान शक्तिपीठ से नजदीकी रेलवे स्टेशन नासिक रोड है जिसकी मंदिर से लगभग दूरी 7.5 किमी है। जिसे आप आसानी से तय कर मंदिर दर्शन के लिए पहुंच सकते हैं।
नासिक की सड़क मार्ग से बेहतर कनेक्टिविटी की वजह से आप देश के प्रमुख शहरों से आसानी से पहुंच सकते हैं जहां इस शक्तिपीठ के नजदीक में त्रयंबकेश्वर बस स्टेशन है जिसकी लगभग दूरी 3 किमी है।
जनस्थान शक्तिपीठ और इसका आध्यात्मिक महत्व श्रद्धालुओं के लिए परम आस्था का केंद्र है। रामायणकालीन युग से भी प्राचीन यह शक्तिपीठ आज भी भक्तों की सर्व मनोकामनाओं को साकार करता आध्यात्मिक तीर्थस्थल है। नासिक की पावन धरती पर मां गोदावरी नदी के तट पर अवस्थित भुवनेश्वरी या भ्रामरी शक्तिपीठ सदियों से अपने चमत्कारों और विरासतों से भक्तों का कल्याण कर रहा है। बेहद शांत वातावरण में मौजूद यह शक्तिपीठ अपनी अवस्थिति और भौगोलिक विशेषताओं की वजह से और भी ज्यादा विस्मयकारी आकर्षण उत्पन्न करता हुआ शक्तिशाली स्थान है, जहां मां भ्रामरी सदैव अपनी दिव्य उपस्थिति से भक्तो को धन्य करती हैं।