• Sep 30, 2025

परम पावन 51 शक्तिपीठों के दिव्य मंदिर और उनसे जुड़ी हर एक किंवदंती और रोचक तथ्य, आश्चर्यजनक और विशेष हैं। इन मंदिरों की उत्पत्ति, नाम, कारण और इनसे जुड़ी पौराणिक कहानी का इतिहास इन शक्तिपीठों और इनसे जुड़ी हर एक कथा को और भी ज्यादा आकर्षक बनाता है, यहां इन मंदिरों की एक संपूर्ण सूची और उनकी संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है।

मंदिरों प्रतिष्ठानों की दिव्यता और ऊर्जा हमेशा ही उच्च कोटि की होती है, ऐसे में यह शक्तिपीठ ऊर्जा का स्त्रोत और शक्ति वहन करते हैं या यूं कहें कि इन शक्तिपीठों से ही संसार में सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो रहा है। भारतीय उपमहाद्वीप आध्यात्मिक केंद्रों, पवित्र मंदिरों और तीर्थस्थलों से भरपूर स्थान है, जिसमें इन 51 शक्तिपीठों की महिमा सर्वोपरि है जहां इनके बारे में देवी पुराण में और अधिक विस्तार से बताया गया है। आइए, जानते इन शक्तिपीठों के बारें में 

51 शक्तिपीठों की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कहानी

51 शक्तिपीठों की उत्पत्ति और इनसे जुड़ी मान्यताओं के चिन्ह हिंदू धर्म ग्रंथों शिव पुराण, देवी भागवत पुराण और कालिका पुराणों में निहित है। 

इन धर्मग्रंथों के अनुसार माना जाता है कि देवी सती महाराज दक्ष प्रजापति की पुत्री थी जो देवी दुर्गा का अवतार थीं, इन्होंने भगवान शिव से विवाह के लिए घोर तपस्या की थी जिसके फलस्वरूप इनका विवाह भगवान शिव से हुआ था लेकिन इनके इस विवाह से महाराज दक्ष स्वीकृत नहीं थे क्योंकि उनका मानना था कि भगवान शिव के पास राजसी ठाट बाट जैसी जीवनशैली नहीं है। 

कुछ समय बाद महाराज दक्ष ने एक विशाल भव्य यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु मुख्य देवताओं सहित सभी छोटे बड़े देवताओं को आमंत्रित किया लेकिन भगवान शिव और देवी सती को नहीं बुलाया, ऐसे में जब देवी सती को इस बारें में पता चला तो उन्हें अत्यंत दुख हुआ और कारण जानने के लिए बिना बुलाए ही राजा दक्ष के यज्ञ में जाने का निर्णय लिया। उनके वहां पहुंचने पर, राजा दक्ष ने सभी के सामने सार्वजनिक रूप से भगवान शिव के बारें में भला बुरा कहकर उनका उपहास किया, इस बात से देवी सती क्रोधित और लज्जित हुई और अपने पति के लिए सुने हुए अपशब्दों की चोट से आहत होकर उसी यज्ञ कुंड में बैठकर अपने प्राण समर्पित कर दिए।

इस घटना और देवी सती की मृत्यु के बारें में जब भगवान शिव को पता चला, तो उनके क्रोध की सीमा नहीं रही जिससे उनका तीसरा नेत्र खुल गया और भगवान शंकर के वीरभ्रद अवतार ने दक्ष के यज्ञ को तहस नहस कर दिया, इसके साथ ही घमंडी राजा दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद देवताओं के अनुनय विनय पर भगवान शंकर ने राजा दक्ष को बकरे का सिर लगा कर जीवन दान दे दिया। लेकिन भगवान शिव देवी सती की मृत्यु के शोक में डूब गए। 

बेसुध होकर वे माता सती का पार्थिव शरीर लेकर समस्त लोकों में विचरण करने लगे। भगवान शिव की ऐसी हालत की वजह से और संसार के कल्याण के लिए भगवान विष्णु ने माता सती के पार्थिव शरीर को धीरे धीरे अपने सुदर्शन चक्र से काटना शुरू किया, ऐसे में जहां जहां इन अंगों का गिरना हुआ, कालांतर में वहीं वहीं शक्तिपीठों की स्थापना हुई। इसी क्रम में भारतीय उपमहाद्वीप में 51 शक्तिपीठों की स्थापना हुई जहां देवी सती के अंग या आभूषण गिरे थे। 

माता सती का दूसरा जन्म राजा हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप मे हुआ, जिनका विवाह शंकर जी से हुआ। 

51 शक्तिपीठों की महिमा

देवी दुर्गा के इन 51 शक्तिपीठों की महिमा निराली है जो एक अलौकिक आध्यात्मिक यात्रा है, जहां दर्शन मात्र से भी बहुत ज्यादा यह एक मां और संतान के रिश्ते जैसा मार्मिक स्पर्श है। जो भी श्रद्धालु इन शक्तिपीठों पर श्रद्धा और भक्ति के साथ आते हैं उन्हें मां दुर्गा की कृपा से ज्ञान, बल, वृद्धि, यश और धन की कमी नहीं होती है, इन सब से भी बढकर देवी दुर्गा की उपासना आत्मबल और आत्मविश्वास बढाने मे सहायक होती है। 

  • जीवन में आसुरी शक्तियों यानी नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। 
  • ग्रह दोषों और कुंडली के अन्य दोषों से मां दुर्गा मुक्ति दिलाती हैं।
  • तपबल से साधना करने पर एकाग्रता और तेज़ बढता है। 
  • कुछ लोग देवी के मंत्रों से इन शक्तिपीठो पर इच्छित साधना या मंत्रों की सिद्धि प्राप्त करते हैं।
  • देवी की कृपा, भक्ति और भीतरी सुख शांति का आभास होता है। 
  • जीवन में आध्यात्मिक लाभ होने के साथ ही समस्त भौतिक सुखों की प्राप्ति भी होती है। 
  • 51 शक्तिपीठों की कृपा से व्यक्ति मृत्यु के बाद देवीलोक को जाता है। 

मां सती के 51 शक्तिपीठों के नाम, स्थान और अंग 

1. मां कामाख्या/कामरूप कामाख्या/कामाख्या देवालय : असम राज्य की राजधानी गुवाहाटी के कामरूप क्षेत्र में कामाख्या शक्तिपीठ अवस्थित है, यहा माता सती के योनि भाग की पूजा की जाती है, जहां से निकटतम हवाई अड्डा लोकप्रिय गोपीनाथ बारदोलोई इंटरनेशनल एयरपोर्ट, गुवाहाटी है व नजदीकी रेलवे स्टेशन गुवाहाटी है। कामाख्या मंदिर संबंधित अंबुबाची मेला विश्व प्रसिद्ध है। 

2. भ्रामरी देवी/जनस्थान शक्तिपीठ : महाराष्ट्र के नासिक शहर में इस जगह पर देवी सती की ठोड़ी गिरी थी, इन्हें यहां भ्रामरी माता के नाम से पूजा जाता है। इस मंदिर के निकट ओज़र हवाई अड्डा है व करीबी रेलवे स्टेशन नासिक रोड रेलवे स्टेशन है। यह शक्तिपीठ त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग से लगभग 3 किमी दूरी पर स्थित है। 

3. देवी बहुलाः बहुला शक्तिपीठ के नाम से प्रसिद्ध यह जगह पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले से तकरीबन 10 किमी दूरी पर अजेय नदी के तट पर स्थित है, मान्यता है कि यहां माता सती का बायां हाथ गिरा था। इस मंदिर से निकट एयरपोर्ट वर्धमान हवाई अड्डा है और नजदीकी रेलवे स्टेशन बर्धमान रेलवे स्टेशन है। 

4. मंगल चंद्रिका : माता सती की दाईं कलाई यहां गिरी थी, पश्चिम बंगाल के कपिलाम्बर में स्थित है। यहां माता मंगल चंद्रिका रूप में पूज्य हैं। निकटतम हवाई अड्डा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस एयरपपोर्ट है व नजदीकी रेलवे स्टेशन गरिया है। 

5. जोगड्या शक्तिपीठः श्री जोगद्या शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के बर्द्धमान शहर के क्षीरग्राम में अवस्थित है जहां माता सती के दाएं पैर का अंगूठा गिरा था। एक अन्य किंवदंती अनुसार यहां जो भद्रकाली मां की मूर्ति है वह रामायण काल की है जब अहिरावण ने भगवान राम और लक्ष्मण का अपहरण किया था और माता काली का वह उपासक था। जब भगवान हनुमान इन दोनों को बचा कर लाए थे तब उन्होंने अहिरावण की पूज्य मूर्ति को यही स्थापित कर दिया था, इसे आज जोगद्या शक्तिपीठ नाम से जानते हैं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस एयरपोर्ट नजदीक है व निकटतम रेलवे स्टेशन बर्धमान जंक्शन है। 

6. मां कालिका/कालीघाट शक्तिपीठः यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में अवस्थित है, यहां देवी सती के बाएं पैर का अंगूठा गिरा था, कालीघाट नाम से प्रसिद्ध इस जगह के निकट सुभाष चंद्र बोस एयरपोर्ट है व सबसे करीबी रेलवे स्टेशन हावड़ा है। 

7. ललिता/अलोपी माता/प्रयाग शक्ति पीठः उत्तर प्रदेश की संगम नगरी यानी प्रयागराज में माता सती के हाथ की अंगुली गिरी थी, इस वजह से इसे कई नामों से भी पुकारा जाता है। प्रयागराज पहुंचने के लिए नजदीकी प्रयागराज एयरपोर्ट है और सबसे करीबी रेलवे स्टेशन प्रयागराज जंक्शन है। 

8. विशालाक्षी/मणिकर्णिका शक्तिपीठः उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में गंगा नदी किनारे माता सती के कान के आभूषण गिरे थे, इस वजह से इसे शक्तिपीठ कहते हैं, इस तीर्थस्थल के पास ही मणिकर्णिका घाट भी है। इसका निकटतम एयरपोर्ट लाल बहादुर शास्त्री शक्तिपीठ है और वाराणसी जंक्शन नजदीकी रेलवे स्टेशन है। 

9. अपर्णा/भबनीपुर शक्तिपीठः यह शक्तिपीठ बांग्लादेश में अवस्थित है, यहां देवी सती के बाएं पैर की पायल गिरी थी इसी वजह से यहां इनकी पूजा अर्पणा या अर्पण के रूप में की जाती है। बांग्लादेश जाने के लिए ढाका एयरपोर्ट पहुंचकर आप इन शक्तिपीठों के दर्शन कर सकते हैं। 

10. भवानी-चंद्रनाथ मंदिरः यह स्थान बांग्लादेश के चटगांव जिले के सीताकुंड में अवस्थित है जहां माता सती का दाहिना हाथ गिरा था। ढाका एयरपोर्ट के माध्यम से इस तीर्थस्थान पर पहुंचे और दर्शन करें। 

11. त्रिस्त्रोता मां भ्रामरी शक्तिपीठः पश्चिम बंगाल के सालबड़ी गांव में तिस्ता नदी के तट पर अवस्थित त्रिस्त्रोता मां भ्रामरी शक्तिपीठ में माता सती का बायां पैर गिरा था, यहां माता की मूर्ति को भ्रामरी कहा जाता है। इस शक्तिपीठ तक पहुंचने के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस निकटतम हवाई अड्डा है और करीबी रेलवे स्टेशन जलपाईगुड़ी है। फलाकाटा गांव के लिए सड़क मार्ग द्वारा भी यहां पहुंच सकते हैं। 

12. प्रभास/चंद्रभागा शक्तिपीठः प्रभास शक्तिपीठ में माता सती का उदर भाग या आमाशय गिरा था, जो गुजरात के जूनागढ जिले के वेरावल में स्थित है और सरस्वती नदी के तट पर स्थित है, इस स्थान पर माता की मूर्ति को चंद्रभागा कहते हैं व यहां भगवान शिव की पूजा भकरतुंड नाम से की जाती है। चंद्रभागा का अर्थ है चंद्रमा का सिंहासन और शक्ति का प्रतीक। निकटतम हवाई अड्डा केसोड़ है व वेरावल रेलवे स्टेशन यहां से नजदीकी रेल मार्ग माध्यम है। 

13. गंडकी चंडी-मुक्तिनाथ मंदिर : नेपाल के मस्तंग जिले में अवस्थित मुक्तिनाथ शक्तिपीठ नाम से मशहूर इस जगह पर देवी सती का गाल गिरा था इसलिए इसे गंडकी चंडी कहते हैं। मंदिर के चारों ओर बने 108 जलकुंडों में पवित्र स्नान किया जाता है, जहां इनकी आध्यात्मिक और उपचार व शुद्धिकरण शक्ति की महिमा भक्तों को हैरान करती है। इस मंदिर के नजदीक जोमसोम एयरपोर्ट, नेपाल है। 

14. मणिबंध/गायत्री शक्तिपीठः राजस्थान के अजमेर के नजदीक पुष्कर जिले में मणिबंध शक्तिपीठ, गायत्री पहाड़ियों के पास शांत और दिव्य वातावरण प्रदान करता हुआ शक्तिपीठ है जहां माता सती के दो कंगन या कलाई गिरी थी। इस मंदिर में देवी सती की पूजा गायत्री रूप में की जाती है और भगवान शिव सर्वानंद रूप में पूज्य हैं। इस मंदिर में पहुंचने के लिए आप अजमेर आ कर यहां आराम से पहुंच सकते हैं, नजदीकी एयरपोर्ट जयपुर इंटरनेशनल है और करीबी रेलवे स्टेशन अजमेर है। 

15. इन्द्राक्षी शक्तिपीठः श्रीलंका के जाफना जिले में अवस्थित इस शक्तिपीठ में देवी सती की दाएं पैर की पायल गिरी थी। यहां पहुंचने के लिए आपको श्रीलंका के एयरपोर्ट पर पहुंचना होगा। 

16. यशोर/यशोरेश्वरी/जेशोरेश्वरीः बांग्लादेश के खुलना जिले में यशोर जगह पर माता का हाथ गिरा था जहां पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा ढाका में है। भारत से इस स्थान के लिए कुछ बसें भी संचालित की जाती हैं। 

17. बैद्यनाथ/जयदुर्गाः झारखंड में इस स्थान पर देवी सती का ह्नदय गिरा था जो आज जयदुर्गा शक्तिपीठ नाम से जाना जाता है और यह धाम बैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग के सामने ही स्थित है। चितभूमि नाम से प्रसिद्ध इस स्थान पर जाने के लिए निकटतम एयरपोर्ट देवघर एयरपोर्ट है। देवघर जंक्शन नजदीकी रेलवे स्टेशन है। 

18. ब्रजेश्वरी देवी मंदिर/कर्नाटः हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में अवस्थित इस मंदिर में माता सती के दोनो कार गिरे थे, यहां भगवान शिव को अभिरू रूप में पूजा जाता है। इसके नजदीकी एयरपोर्ट व रेलवे स्टेशन क्रमशः गग्गल व पठानकोट है। 

19. जंयती/नार्तियांग दुर्गा मंदिरः इस स्थान पर देवी सती की बाईं जांघ गिरी थी जो नर्तियांग शक्तिपीठ नाम से जाना जाता है, इस स्थान पर देवी सती को जयंती और भगवान शिव को क्रमाशीश्वर रूप में माना जाता है। निकटतम हवाई अड्डा और नजदीकी रेलवे स्टेशन गुवाहाटी है। 

20. मां चिंतपूर्णी मंदिर/छिन्नमस्तिका शक्तिपीठः हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में अवस्थित इस शक्तिपीठ में देवी मां के चरण गिरे थे। नजदीकी गग्गल एयरपोर्ट है और सबसे करीबी अंदौरा रेलवे स्टेशन है। 

21. कालमाधव/देवी काली शक्तिपीठः मध्य प्रदेश के अमरकंटक में कालमाधव शक्तिपीठ में शोण नदी के पास देवी सती का बायां नितंब गिरा था जहां ये माता काली के रूप में पूज्य हैं। यहां पहुंचने के लिए नजदीकी एयरपोर्ट जबलपुर है और करीबी रेलवे स्टेशन पेंड्रा रोड है। 

22. मनसा/दाक्षायनी शक्तिपीठः माता का यह शक्तिपीठ तिब्बत में मानसरोवर झील के पास अवस्थित है, इस स्थान पर माता सती का दाहिना हाथ गिरा था, यहां आप कैलाश मानसरोवर यात्रा करने के दौरान जा सकते हैं। 

23. कंकलेश्वरी/कंकालिताला/देवग्रहः इस स्थान पर माता सती का श्रोणि भाग गिरा था जो पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में कोप्पई नदी के तट पर अवस्थित है। यह तीर्थस्थल कंकलेश्वरी शक्तिपीठ नाम से जाना जाता है। यहां पहुंचने के लिए हवाई मार्ग नेताजी सुभाष चंद्र बोस एयरपोर्ट है और रेल मार्ग बोलपुर रेलवे स्टेशन है। 

24. विभाष/कपालिनी शक्तिपीठः पश्चिम बंगाल के पूर्वी मेदिनीपुर जिले में देवी सती का बायां टखना गिरा था, इस स्थान की कोलकाता से लगभग 89 किमी दूर बंगाल की खाड़ी के पास रूपनारायण नदी के तट पर स्थित है। नजदीकी हवाई अड्डा नेताजी सुभाष चंद्र बोस एयरपोर्ट है और रेल द्वारा आने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन तामलुक जंक्शन है। 

25. हिंगलाज/कोट्टरी शक्तिपीठः पाकिस्तान के बलूचिस्तान में अवस्थित यह शक्तिपीठ हिंदू धर्म के लिए आस्था का केंद्र है, इस जगह माता सती का सिर गिरा था। यहां पहुचने के लिए नजदीकी एयरपोर्ट व अनुमति चाहिए। 

26. रत्नावली/कुमारी शक्तिपीठः बंगाल के हुगली जिले में खानकुल कृष्णनगर रास्ते पर अवस्थित इस जगह पर देवी सती का दाहिना कंधा गिरा था, जिसे आनंदमयी शक्तिपीठ के नाम से भी जानते हैं। इस शक्तिपीठ तक पहुंचने के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस हवाई मार्ग है व निकटतम रेलवे स्टेशन हावड़ा है। 

27. श्री शैल/महालक्ष्मी/भैरव गरिबा शक्तिपीठः बांग्लादेश के सिलहट जिले में शैल नामक जगह पर देवी सती के कंठ गिरने से इस शक्तिपीठ की स्थापना हुई जहां नेशनल एयरपोर्ट ढाका से करीब 20 किमी दूरी तय कर पहुंच सकते हैं। 

28. अमरनाथ/महामाया शक्तिपीठः कश्मीर के पहलगाम जिले में अमरनाथ यात्रा करते जाते समय यह शक्तिपीठ माता के कंठ भाग को प्रदर्शित करता है। इस शक्तिपीठ को महामाया शक्तिपीठ नाम से जानते है। निकटतम एयरपोर्ट श्रीनगर एयरपोर्ट है और रेल मार्ग से आने के लिए जम्मू तवी रेलवे स्टेशन नजदीक है। 

29. महाशिरा शक्तिपीठ/कपाली/गुहेश्वरी मंदिर शक्तिपीठः इस शक्तिपीठ में माता सती के दोनों घुटने गिरे थे जिसे गुह्येश्वरी मंदिर नाम से जानते हैं, नेपाल के एयरपोर्ट या सडक मार्ग से यहां पहुंच सकते हैं। 

30. बकरेश्वर मंदिर/बीरभूम/महिषमर्दिनी शक्तिपीठः बांग्लादेश के बीरभूम जिले में पापरा नदी के तट पर स्थित इस शक्तिपीठ में देवी सती की भौहों के बीच का हिस्सा गिरा था, यहां पहुंचने के लिए ढाका हवाई अड्डे के जरिए पहुंच सकते हैं। 

31. शिवहरकारय करवीपुर शक्तिपीठः पाकिस्तान के कराची में इस स्थान पर देवी सती की आंखे गिरी थी, जो सुक्कुर नामक जगह पर अवस्थित है। कराची एयरपोर्ट के माध्यम से यहां दर्शन हेतु जा सकते हैं। 

32. अवंती महाकाली देवी शक्तिपीठ : मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में शिप्रा नदी के तट के पास भैरव पर्वत पर स्थित इस शक्तिपीठ में देवी सती के ऊपरी होंठ गिरे थे, जहां माता को महाकाली देवी की संज्ञा दी गई, यहा पहुचंने के लिए इंदौर के अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डे या नजदीकी रेलवे स्टेशन उज्जैन रेल मार्ग के रास्ते पहुंच सकते हैं। 

33. नंदिकेश्वरी शक्तिपीठः पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में माता का हार गिरा था, इसी वजह से यह नंदिकेश्वर शक्तिपीठ नाम से जाना जाता है। यहां जाने के लिए नेताजी सुभाषचदं्र बोस हवाई अड्डे से पहुंच सकते हैं और रेल मार्ग से पहुंचने के लिए स्थानीय रेलवे स्टेशन बहुत पास ही है। 

34. सुचिन्द्रम मंदिर या नारायणी शक्तिपीठः इस शक्तिपीठ में देवी सती का ऊपरी दांत गिरा था जहां यह शक्तिपीठ तमिलनाडु सुचिन्द्रम में अवस्थित है और कन्याकुमारी से सुचिन्द्रम जाने के लिए स्थानीय वाहनों की आवश्यकता होती है। यहां से नजदीकी हवाई अड्डा त्रिवेंद्रम है। 

35. अट्टहास/फुलारा शक्तिपीठः पश्चिम बंगाल में इस स्थान पर माता का निचला होंठ गिरा था, जहां पहुंचने के लिए अट्टहास पहुंचना पड़ता है। निकटतम एयरपोर्ट नेताजी सुभाषचदं्र बोस हवाई अड्डा व नजदीकी रेलवे स्टेशन अहमदपुर है। 

36. राकिनी/गोदावरी तीर/सर्वशैल शक्तिपीठः आंध्रप्रदेश के राजमुंदरी क्षेत्र में इस स्थान पर माता का बायां गाल गिरा था जहां भगवान शिव का शिवलिंग कोटिलिंगेश्वर विराजित हैं। यहां पहुंचने के लिए आप हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन से पहुंच सकते हैं। 

37. कन्याश्रम/श्रावणी/सर्वाणी शक्तिपीठः कन्याकुमारी शक्तिपीठ नाम से सुशोभित यह स्थान सती माता की पीठ गिरने के कारण पूजित है जहां पहुंचने के लिए त्रिवेंद्रम हवाई अड्डा नजदीक हैं। 

38. सावित्री/भद्रकाली शक्तिपीठः हरियाणा के कुरूक्षेत्र में स्थित इस स्थान पर देवी सती का टखना गिरा था, इस वजह से यह सावित्री या भद्रकाली शक्तिपीठ नाम से विख्यात है जहां जाने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा व रेलवे स्टेशन क्रमशः चंडीगढ एयरपोर्ट व कुरूक्षेत्र जंक्शन हैं। 

39. रामगिरी/शिवानी शक्तिपीठः उत्तर प्रदेश के चित्रकूट नाम तीर्थस्थल में रामगिरी जगह पर देवी सती का दायां वक्षस्थल गिरा था जिसे शिवानी शक्तिपीठ कहते हैं, कर्वी रेलवे स्टेशन से चित्रकूट पहुंच सकते हैं। 

40. श्रीपर्वत/श्रीसुंदरी शक्तिपीठः भारत के सबसे ऊंचे भाग लद्दाख में स्थित पर्वत पर देवी सती का दाहिना पैर गिरा था, जहां श्रीपर्वत शक्तिपीठ की स्थापना हुई, यहां जाने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन जम्मूतवी है जिसकी लगभग दूरी 700 किमी है और हवाई अड्डा लेह में है। अन्य मान्यता के अनुसार इसे आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में होना बताया जाता है। 

41. ज्वालाजी-अंबिका शक्तिपीठः ज्वाला जी शक्तिपीठ और अपने आश्चर्यजनक चमत्कारों से सबको अंचभित करती देवी सती के इस शक्तिपीठ में उनकी जीभ गिरी थी, जहां इसकी साक्षात् उपस्थिति अनवरत यहां जलती जोत है, जिसे आज तक कोई नहीं बुझा पाया है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में अवस्थित यह देवस्थान कांगड़ा घाटी से करीब 30 किमी दूरी पर है। यहां धर्मशाला के रास्ते भी जा सकते हैं जिसकी दूरी लगभग 60 किमी है। 

42. सुगंधा -सुनंदा शक्तिपीठः बांग्लादेश के बुलिसाल शिखरपुर गांव में अवस्थित इस शक्तिपीठ में माता सती की नाक गिरी थी जहां इस स्थान पर माता की सुनंदा रूप में पूजा की जाती है। बांग्लादेश की राजधानी ढाका में एयरपोर्ट के माध्यम से पहुंचकर स्थानीय वाहनों से इस शक्तिपीठ की यात्रा कर सकते हैं। 

43. त्रिपुर सुंदरी मंदिर/त्रिपुरेश्वरी शक्तिपीठः त्रिपुरा राज्य में अवस्थित इस शक्तिपीठ में माता सती का दाहिना पैर गिरा था, जो राधाकिशोरपुर गांव में है। यहां पहुंचने के लिए अगरतला एयरपोर्ट व रेलवे स्टेशन से करीब 65 किमी की दूरी तय कर पहुंच सकते हैं। 

44. त्रिपुरमालिनी/श्री देवी तालाब शक्तिपीठः यह स्थान पंजाब के जालंधर में कैंट एरिया के पास स्थित है जहां माता सती का बायां वक्षस्थल गिरा था, यह शक्तिपीठ जालंधर रेलवे स्टेशन के नजदीक ही है, जहां हवाई मार्ग से पहुंचने के लिए अमृतसर एयरपोर्ट का रूख कर सकते हैं। 

45. कात्यायनी शक्ति पीठः उत्तर प्रदेश के वृंदावन जिले में माता के केशों के चूड़ामणि गिरने से इस स्थान को कात्यायनी शक्तिपीठ से जाना गया। यहां पहुंचने के लिए मथुरा रेलवे स्टेशन और निकटतम एयरपोर्ट आगरा से जाया जा सकता है। 

46. मिथिला शक्ति पीठ : भारत नेपाल की सीमा पर दरभंगा जनकपुर स्टेशन के पास बिहार में यह शक्तिपीठ अवस्थित है जहां देवी सती का बायां कंधा गिरा था। यहां पहुंचने के लिए नेपाल के विराटनगर एयरपोर्ट से करीब 150 किमी दूरी तय कर जा सकते हैं या जनकपुर रेलवे स्टेशन से भी पहुंच सकते हैं। 

47. पंचसागर वाराही शक्तिपीठः माता सती के निचले दांत गिरने की वजह से इस स्थान को वाराही शक्तिपीठ नाम से जानते है जो वाराणसी उत्तर प्रदेश में स्थित है। जहां पहुंचने के लिए वाराणसी रेलवे स्टेशन या लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट के माध्यम से पहुंच सकते हैं। अन्य मान्यता के अनुसार इसे उत्तराखंड हरिद्वार के पास अवस्थित होना बताया जाता है।

48. विमला/किरीतेश्वरी शक्तिपीठः इस मंदिर में देवी सती के माथे के मुकुट गिरने का स्थान बताया जाता है जो पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद किरीटकोना गांव में है। यहां जाने के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस एयरपोर्ट के माध्यम से जा सकते हैं इसके अलावा निकटतम रेलवे स्टेशन मुर्शिदाबाद रेलवे स्टेशन है जहां से स्थानीय वाहनों से इस शक्तिपीठ में दर्शन हेतु जा सकते हैं।

49. बिराजा शक्तिपीठः भारत के ओडिशा राज्य में जाजपुर में अवस्थित इस मंदिर में माता सती की नाभि गिरी थी जहां मंदिर की वास्तुकला और बनावट अद्वितीय है। इस मंदिर में पहुंचने के लिए भुवनेश्वर में स्थित बीजू पटनायक इंटरनेशनल एयरपोर्ट से पहुंच सकते है या जाजपुर क्योंझर रेलवे स्टेशन जो मंदिर से करीब 34 किमी दूरी पर है। इस मंदिर में पहुंचने के लिए स्थानीय वाहनों की उपलब्धता आसानी से मिल जाती है।

50. श्री अम्बिका शक्तिपीठ/विराटः इस स्थान पर देवी सती के पैर के अंगूठे गिरे थे जिस वजह से इन्हें यहां देवी अंबिका कह कर संबोधित करते हैं और भगवान शिव को अमृतेश्वर यानी अमरता प्रदान करने वाले कहा जाता है। यह स्थान जयपुर या भरतपुर से निकट विराट गांव में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट या जयपुर या भरतपुर रेलवे स्टेशन से पहुंच सकते हैं।

51. मां नर्मदा मंदिर-शोण शक्तिपीठः इस शक्तिपीठ में माता सती का दायां नितम्ब गिरा था जिसकी अवस्थिति मध्यप्रदेश के अमरकंटक जिले में नर्मदा के उद्गम स्थल से है। यहां पहुंचने के लिए जबलपुर एयरपोर्ट व पेंड्रा रोड रेलवे स्टेशन नजदीकी हैं।

निष्कर्ष

माता सती के इन 51 शक्तिपीठों की गरिमामय अवस्थिति और आशीर्वाद से श्रद्धालु हमेशा अभिभूत होते हैं जहां इन मंदिरों की विशेषताएं, मान्यताएं और इनकी प्रतिष्ठित जाग्रति हर किसी को चेतना स्वरूप ऊर्जा प्रदान करती है। देवी मां के इन 51 शक्तिपीठों में माता सती के अंग गिरने से विभिन्न शक्तिपीठों की स्थापना और माता के उतने ही दिव्य नामों से इनकी पूजा अलग अलग क्षेत्रों में की जाती है। शक्तिपीठों की ओजपूर्ण उपस्थिति, भक्ति से सराबोर वातावरण व चमत्कारों की विस्तृत श्रृंखलाएं भक्तों को देवी दुर्गा की सजीव उपस्थिति का आभास कराती हैं ।

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