राजस्थान का एक शहर जो दिल्ली के नजदीक होने की वजह से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल है, अरावली की पहाड़ियों के मध्य बया यह क्षेत्र अलवर नाम से जाना जाता है। प्राचीन कई नामों से प्रसिद्ध यह शहर अपनी ऐतिहासिकता, किले, स्मारक स्थल, वन्य क्षेत्र, झीलों और मनमोहक दृश्यों के लिए विश्व भर में ज्ञात है। अलवर को राजस्थान का सिंह द्वार भी कहा जाता है। राजस्थानी संस्कृति को सहेजता यह शहर पर्यटन हेतु किन स्थानों के लिए लोकप्रिय है? जानिए इस आर्टिकल में
महाराजा बख्तावर सिंह और उनकी रानी मूसी की याद में बने इस स्मारक को छतरी या देवल कहा जाता है, जिसे राजा विनय सिंह ने बनवाया था। यह स्मारक मरणोपरांत यादों के रूप में बनवाया जाता था। यहां मूसी महारानी और राजा बख्तावर सिंह के चरण चिन्हों के निशान अंकित है, मान्यता है कि इन चिन्हों के धुले हुए पानी को यदि रोगी को लगाया जाए तो वह ठीक हो जाता है। मूसी महारानी अपने राजा की चिता पर उनके साथ सती हो गई थी। आकर्षक वास्तुकला, विभिन्न मान्यताएं पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींच ही लेती हैं।
स्थानः सिटी पैलेस रोड, मोहल्ला लडिया, अलवर, राजस्थान
उपयुक्त समयः सुबह 9 बजे से शाम 4ः30 बजे तक, शनिवार से गुरूवार (शुक्रवार बंद)
राजस्थानी वास्तुकला की छाप लिए इस महल को राजा बख्तावर सिंह ने बनवाया था, जिसे सिटी पैलेस के साथ ही विनय विलास पैलेस के नाम से भी जानते हैं। विशाल क्षेत्रफल पर बने इस महल की शोभा देखते बनती है, व्यवस्थित रूप से इस पैलेस का निर्माण किया गया है। महल के कई प्रवेश द्वार हैं जिनके अलग अलग नाम हैं, द्वारों के बाहर ठाकुर जी का मंदिर है। मुख्य प्रवेश द्वार और पैलेस की ऊंचाई राजपूतों के उच्च गौरव और सम्मान का परिचायक है। इस समय यहां पैलेस का एक हिस्सा सरकारी कामों और शेष संग्रहालय के रूप में कार्य करता है, जहां जाकर आप भारत का गौरवशाली इतिहास देख सकते हैं।
स्थानः फोर्ट के पास, अलवर, भारत
समयः सुबह 9 बजे से शाम 4ः30 बजे तक, शनिवार से गुरूवार (शुक्रवार बंद)
राजस्थान का बहुप्रसिद्ध भानगढ का किला जिसका निर्माण, 17वीं शताब्दी में मुगल सेनापति मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने करवाया था, जो सरिस्का अभयारण्य की हद और अरावली पर्वतमाला पर बना हुआ है। इस किले को लेकर कई किंवदंतियां प्रचलित हैं जो सुनने में बहुत रोचक लगती हैं और इसे प्रेतबाधित बताती हैं। इस किले में प्रमुख गोपीनाथ मंदिर, केशवराय मंदिर और मंगला मंदिर स्थित है।
स्थानः राजगढ तहसील, भानगढ, अलवर, राजस्थान
समयः प्रत्येक दिन सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक।
बाला किले को अलवर किले और कुंवारा दुर्ग के रूप में भी जाना जाता है। किंवदंती है कि अरावली पर्वतमाला पर स्थित यह किला राजपूतों द्वारा बनवाया गया था और इसका पुनर्निमाण 1521 ई. के आसपास हसन खान मेवाती ने करवाया था। इस किले में 6 दरवाजे हैं, जिसे पोल के नाम से जानते हैं। विशाल मैदान के साथ यहां कई महल मंदिर और तालाब हैं जो यहां के गौरवशाली इतिहास की कहानी बयां करते है। इसके अन्दर दो महलों को महाराजा सूरजमल ने बनवाया गया था , साथ ही एक तालाब सूरज कुंड और दरवाजा सूरज पोल भी बनवाया था।
स्थानः बाला किला रोड, अलवर, राजस्थान
समयः प्रत्येक दिन सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक
बाघ अभयारण्य के नाम से मशहूर यह राष्ट्रीय उद्यान पर्णपाती वन, घास के मैदान और चट्टानी पहाड़ियों का सम्मिश्रण है। अरावली पर्वतमाला पर बने इस अभयारण्य का उत्तरी भाग तेंदुए और जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। फ्लोरा और फौना का संगम यह अभयारण्य कई पारिस्थितिकी तंत्रों का स्थान है। इस रिजर्व के केंद्र में 16वीं शताब्दी का कांकवाड़ी किला स्थित है। धार्मिक प्रतीक नीलकंठ मंदिर और पांडुपोल हनुमान जी मंदिर, ऐसा माना जाता है कि यहां पाडंवों ने आश्रय लिया था। रिजर्व के अंदर मौजूद बीजक पहाड़ी पर विराटनगर नाम से तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के एक बौद्ध मठ के कुछ अवशेष हैं। सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान प्रकृति, ऐतिहासिक और आध्यात्मिकता का अनोखा संगम है।
स्थानः अलवर, राजस्थान
समयः सुबह 6 बजे से 9ः30 बजे तक, शाम 3 बजे से 5ः30 बजे तक, गुरूवार से मंगलवार (बुधवार बंद)
अलवर की इस कृत्रिम झील को महाराजा विनय सिंह ने 18वीं शताब्दी में बनवाया था, जो रूपारेल नदी की सहायक नदी पर बांध बनाकर तैयार हुई थी। इसका प्रामाणिक उद्देश्य अलवर जिले को पानी उपलब्ध कराना था। किनारों पर वृक्षों की वृहद श्रृंखला और ऐतिहासिक स्मारक हैं। खूबसूरत झील के दोनों तरफ महल है जो इसकी शोभा को कई गुना बढ़ाते हैं। इस महल को होटल में तब्दील कर दिया गया है, और इसके पास नौकायन का आनंद भी लिया जा सकता है, यह एक पर्यटन प्रसिद्ध स्थल है जहां प्रकृति की खूबसूरती को बेहद संजीदगी से निखारा गया है।
स्थानः अलवर रेलवे स्टेशन से 16 किलोमीटर की दूरी पर, अलवर, राजस्थान
समयः प्रत्येक दिन सामान्यतः सुबह 8 बजे से शाम 7 बजे तक
प्रकृति प्रेमी यहां उबड़ खाबड़ पथरीले रास्तों पर ट्रेकिंग का आनंद लेने के साथ ही ऊंची चट्टानों और हरियाली के सुंदर दृश्य देख सकते हैं। नैसर्गिक रूप से बना यह झरना एक प्राकृतिक आशीर्वाद है जो ऊपर से नीचे गिरने पर एक अद्भुत नजारा पेश करता है, जिसकी सुदंरता बारिश के मौसम में और कई गुना बढ़ जाती है। झरने के साथ ही पहाड़ी के नीचे एक मंदिर स्थित है, गर्भाजी, जिनके नाम पर इस झरने का नाम पड़ा है। इसके अलावा इस जगह का उपयोग मातृभूमि की रक्षा हेतु भारतीय सेना ऊंचाई पर प्रशिक्षण के लिए करती है। यह मानसून के मौसम में अति प्रिय लगता है।
स्थानः सिलिसेढ़ झील के पास 7-8 किमी दूरी पर स्थित, अलवर, राजस्थान
समयः प्रत्येक दिन सुबह 10 बजे से रात 8 बजे तक
जैन तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध यह जगह दिगंबर स्वामी चंद्रप्रभु को समर्पित है, जो पहाड़ी क्षेत्र तिजारा में स्थित है। मंदिर की प्रतिमा कमल की स्थिति में सफेद संगमरमर से बनी हुई है, जिसे सन् 1956 में भूमि से निकाला गया था जो इंगित करता है कि इतिहास में यह जगह जैन तीर्थस्थल ‘देहरा’ था, इस जगह मंदिर की पुनःस्थापना जैनियों व अन्य धर्मों के लिए आस्था का केंद्र है। मंदिर की वास्तुकला में नक्काशी, चित्रकारी और कांच का आश्चर्यजनक काम है। इस मंदिर से थोड़ी दूरी पर लगभग 250 साल पुराना पार्श्वनाथ मंदिर, नवग्रह जैन मंदिर और पद्मावती मंदिर भी अवस्थित है। अलवर जिला जैन धर्म के तीर्थों का मुख्य केंद्र है।
स्थानः खंटूला मोहल्ला रोड, तिजारा, अलवर, राजस्थान
समयः प्रत्येक दिन सुबह 5ः30 बजे से दोपहर 11ः30 बजे तक, शाम 6 बजे से रात 9 बजे तक
मुगल और राजपूत की विभिन्न शैलियों से निर्मित यह मकबरा अलवर का एक बहुत प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह मकबरा शाहजहां के मंत्री और अलवर के गर्वनर फतेह जंग के नाम पर बना है, जिनकी मृत्यु वर्ष 1647 में यहीं हुई थी। फतेह जंग राजस्थानी खानजादा शासकों से संबंधित एक पठान योद्धा था। लाल बलुआ पत्थ्र से बनी पांच मंजिला इमारत चौकोर आकृति में बनी हुई है, जिसे एक बड़े आकार की गुबंद सजाया गया है, जिसके चारों कोनों पर अष्टकोणीय मीनारें हैं। पहली मंजिल पर कुरानिक शिलालेख मिलते हैं, साथ ही परिसर की दीवारों पर भित्ति चित्र, प्राचीन लोक कथाओं के विभिन्न दृश्य और भी कई सुंदर दृश्यों का चित्रांकन है।
स्थानः स्टेशन रोड, मुगंस्का, ज्योति नगर, अलवर, राजस्थान
समयः प्रत्येक दिन सुबह 10 बजे से शाम 4ः30 बजे तक
पहाड़ी पर और हरियाली के इर्द गिर्द बना यह मंदिर आध्यात्मिकता के साथ प्रकृति के प्रति प्रेम की भावना को बढ़ा देता है। किंवदंतियों के अनुसार यह मंदिर महाभारत के पात्र राजा नल की कहानी से जुड़ा है, कहते हैं उन्होंने यहां भगवान शिव के शिवलिंग की पूजा कर, पास अवस्थित मौजूद झरने में नहाया था जिससे उनका चर्मरोग ठीक हो गया था जिससे पुराणों में इस प्रसिद्ध तीर्थ का नाम अंकित हो गया। सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के पास स्थित इस तीर्थ में लगभग 200 सीढियां हैं, जो चट्टानों में ही खुदाई करके बनाई गई हैं साथ ही ट्रैकिंग पथ माधोपुर गांव से तय करके भी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है जो लगभग 5 किलोमीटर लंबा रास्ता है। नलदेश्वर तीर्थस्थल साहसिक गतिविधियों के साथ धार्मिकता का शानदार मेल है। प्रकृति के आंगन में दिव्यता का अनुभव कराता यह मंदिर अपने अलौकिक वातावरण के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।
स्थानः प्रतापगढ़ बुर्जा तिराहा रोड, मयूर विहार, मालवीय नगर, अलवर, राजस्थान
समयः प्रत्येक दिन सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे
अलवर, राजस्थान का खूबसूरत शहर जो प्राकृतिक, कृत्रिम, ऐतिहासिक, पौराणिक रूप से अपनी अलग पहचान रखता है। स्वाभाविक रूप से बना अलवर शहर विभिन्न तरह के अनुभवों को खुद में समेटे हुए है, जिसमें राजस्थानी परंपरा, संस्कृति और लोककलाओं का समावेश हैं। जहां की ऐतिहासिक इमारतें, तीर्थस्थल, झीलें, महल, झरनें जिनकी बनावट ना सिर्फ आज बल्कि इनसे जुड़े इतिहास भी खूब रोचक और शानदार हैं। यहां के किलों से जुड़ा किस्सागोई का सिलसिला, इनके बारें में और अधिक जानने की उत्सुकता बढ़ाते हुए पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।