हिमाचल प्रदेश के उना जिले में अवस्थित चिंतपूर्णी शक्तिपीठ देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक देशभर के श्रद्धालुओं और माता के भक्तों के लिए परम पावन धाम है जहां सच्चे मन से अरदास करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। चिंतपूर्णी माता का नाम इसीलिए चिंतपूर्णी पड़ा क्योंकि वह यहां आने वाले भक्तों की सभी चिंताएं और कष्ट दूर कर देती हैं।
चिंतपूर्णी माता को छिन्नमस्तिका मां के नाम से भी जाना जाता है, जिनका दिव्य और अनोखा स्वरूप भक्तों के मन में कौतूहल का संचार करता है। मइया के विभिन्न नाम और रूपों की कहानी को साक्षात् प्रदर्शित करता यह शक्तिपीठ वर्ष भर दर्शनार्थियों की लंबी कतारों से सजा रहता है।
समस्त शक्तिपीठों की उत्पत्ति की कहानी देवी सती से जुड़ी हुई है जब वे बिना बुलाए ही अपने पिता दक्ष के यज्ञ समारोह में पहुंची और उन्होंने जब भगवान शिव और उन्हें न बुलाए जाने का कारण पूछा तो महराज दक्ष ने भगवान शिव का घोर अपमान किया और अपशब्द कहे। ऐसे में आहत सती मां ने उसी यज्ञ कुंड में आत्मबल की अग्नि में आत्मदाह कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। यह बात जब भगवान शिव को पता लगी तो अत्यधिक क्रोध में आकर वे तांडव नृत्य करते हुए माता सती का शव लेकर समस्त लोकों में विचरण करने लगे जिससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा, इस कारण भगवान विष्णु ने माता सती के 51 टुकड़े कर दिए जो भारतीय उपमहाद्वीप में गिरे और जहां जहां ये अंग गिरे, वहां देवी के उतने ही नव स्वरूपों का जन्म हुआ, जहां इनकी विशेष मान्यता है और इनके दिव्य नामों की विशेष श्रृंखला से जाना जाता है।
जब भगवान विष्णु ने देवी सती के मृत शरीर को विभाजित कर गिराना शुरू किया, उस समय देवी के पैरों का हिस्सा इसी स्थान पर गिरा था, इसलिए इसे शक्तिपीठ की संज्ञा दी जाती है।
मान्यता अनुसार यहां माता श्रद्धालुओं की सभी चिंताओं का हरण कर लेती हैं इसलिए इन्हे चिंतपूर्णी मां कह कर पुकारते हैं।
यह मंदिर लगभग 940 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जो सोला सिंघी पर्वत श्रेणियों की सबसे ऊंची चोटियों में से एक है।
इस मंदिर का स्थापना का श्रेय पंडित माई दास को जाता है जिन्होंने लगभग 16वीं शताब्दी के दौरान यहां इस मंदिर का निर्माण कार्य कराया था। किंवदंती अनुसार मंदिर निर्माण का आदेश इन्हें स्वयं देवी द्वारा स्वप्न के माध्यम से दिया गया था।
इस समय के मंदिर के निर्माण की संरचना लगभग 15वीं या 16वीं शताब्दी का ही प्रतीत होता है जिसमें मुख्य मंदिर शामिल है जिसमें गर्भग्रह की चौकोर संरचना है। मंदिर के शीर्ष पर कमलाकृति का एक सुदंर अलंकृत किया हुआ सोने की गुबंद है जिसके शीर्ष पर एक कलश रखा हुआ है। मंदिर के चारों ओर संगमरमर की जालियां हैं जिनकी खूबसूरती और शोभा मंदिर आने भक्तों को प्यारी लगती है। मंदिर के पीछे बरगद के पेड़ की उपस्थिति मंदिर की दिव्यता को और भी ज्यादा बढाता है, यहां भक्त मन्नत का धागा बांधते हैं, जिससे उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
भक्तों द्वारा मंदिर में प्रचलित भेंटों में से एक सात सुपारी, एक नारियल और एक लाल झंडा होता है जिसे मौली जिसे बहुरंगी सूती धागा भी कहते हैं, बांधा जाता है।
इस मंदिर में आज भी माईदास के वशंज ही पूजा करते हैं, वर्तमान में यहां माई दास के वशंजों की 26वीं पीढी पुजारी रूप में है।
एक बार ससुराल जाते समय देवी दुर्गा के अनन्य भक्त माई दास बरगद के एक पेड़ के नीचे आराम करने बैठे और उनकी आंख लग गई। इसी समय उन्हें स्वप्न में कन्या रूप में देवी मां ने दर्शन देते हुए कहा कि इसी स्थान पर रहकर पूजा करें। वापसी करतें समय माई दास उसी पेड़ के नीचे बैठ कर ध्यान करने लगे, उसी वक्त मां दुर्गा साक्षात् रूप में प्रकट हुईं और माई दास को कृतार्थ किया।
उन्होनें माई दास को बताया कि बरगद के पेड़ के नीचे एक पिंडी मिलेंगी, जिसकी पूजा नियमित की जाएगी। भक्त माई दास ने अपना पूरा जीवन मां को समर्पित कर दिया, पिंडी रूप में मां की स्थापना कर वहीं झोंपड़ी बनाकर उनकी पूजा शुरू कर दी। जहां कुछ वर्षों बाद मां की कृपा से भक्तों ने मां का छोटा सा मंदिर बनवा दिया। जो बाद में धीरे धीरे विस्तारित होता गया।
चिंतपूर्णी मां सती देवी के चरण और छिन्नमस्तिका मां जो बिना सिर वाली देवी है, अपना कटा हुआ सिर पकड़े हुए हैं, उनके कटे हुए भाग से रक्त की तीन धार निकलती है जिसकी एक एक धार उनकी सखियां जया और विजया के मुंह की ओर है और एक धार से स्वयं देवी का कटा हुआ मुख रक्त पान करता प्रतीत होता है। देवी की यह छवि मंदिर में देखने को मिलती है, मंदिर के गर्भ ग्रह में एक पिंडी है जिनकी पूजा चिंतपूर्णी मां के रूप में की जाती है।
इनसे जुड़ी पौराणिक कहानी सुनने में आती है कि कई सारे राक्षसों का वध करने के बाद, मां पार्वती अपनी सखियों जया और विजया जिन्हें डाकिनी और वारिणी भी कहा जाता है, इनके साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं। मां पार्वती इस समय बहुत ही प्रसन्न थीं और अत्यधिक प्रेम में उमड़ने की वजह से उनका रंग गहरा हो गया था। इनके साथ में मौजूद जया और विजया भूखी थीं जिन्होंने मां पार्वती से भोजन की व्यवस्था करने को कहा। मां पार्वती ने प्रतीक्षा के साथ थोड़ी देर में भोजन कराने का वादा किया और चल पड़ीं।
थोड़ी देर बाद जया और विजया ने फिर मां पार्वती से विनती की और कहा, आप पूरे संसार की माता है और वे सब उनकी संतान हैं इसलिए शीघ्र भोजन कराने का अनुरोध किया।
ये सुनकर मां पार्वती ने अपने उंगली के नाखून से अपना सिर काट लिया, बिना सिर की गर्दन की रक्त की तीन धाराएं प्रवाहित होने लगी। जिसमें से एक धारा जया, एक धारा विजया के मुख की ओर और एक धारा स्वयं मां के कटे हुए सिर की तरफ प्रवाहित होने लगी जिसे पान कर इन्होंने अपनी भूख मिटाई।
इसी तरह मां अपने भक्तो ंऔर बच्चों की सारी मनोकामनाओं की पूर्ति कर समस्त सांसारिक चिंताआेंं से मुक्ति प्रदान करती है।
| देवी मां स्नान व आरती | सुबह 6ः30 बजे |
| भोग ( दर्शन बंद ) | सुबह 12 से दोपहर 12ः30 बजे |
| शाम स्नान व आरती | शाम 6ः30 से रात 8 बजे तक |
| शयन आरती | रात 10 बजे |
हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में स्थित चिंतपूर्णी मंदिर से लगभग 3 किमी दूरी पर स्थित यह स्थान अपनी नैसर्गिक सुंदरता और खूबसूरती के लिए जाना जाता है, इसके अलावा यहां कई प्रसिद्ध मंदिर जैसे कृष्ण मंदिर, माहिया सिद्ध मंदिर वगैरह भी स्थित हैं। थानीक पुरा में एक अनोखा कुआं है जिसमें नीचे उतरने के लिए लगभग 60 सीढियां हैं। थानीक पुरा का वार्षिक मेला आयोजन कृष्ण जन्माष्टमी के लिए मशहूर है जहां वृहद स्तर पर यज्ञ और भंडारा भी होता है। चिंतपूर्णी मंदिर दर्शन करने आएं तो थानीक पुरा के चाट बाजार का स्वाद जरूर चखें और पास ही मौजूद स्वान घाटी व शिवालिक पहाड़ियों की हरियाली के मनमोहक नजारों का आनंद लें।
चिंतपूर्णी मंदिर से लगभग 5 किमी पश्चिम दिशा में धर्मशाला मंहतन के पास अवस्थित इस मंदिर तक आप मोड़दार सिंगल सड़क से जा सकते हैं।
धर्मशाला पालमपुर नेशनल हाईवे के माध्यम से बनेर नदी के दाएं तट पर कांगड़ा जिले में मौजूद इस मंदिर को देखने जा सकते हैं।
चितपूर्णी मंदिर से लगभग 35 किमी उत्तर पूर्व में मौजूद देवी ज्वालामुखी ज्वलंत मुख वाला शक्तिपीठ है जहां मां सती की जिव्हा गिरी थी। यहां दर्शन करके कृतार्थ हो सकते हैं।
यह मंदिर एक शक्तिपीठ है, जहां माता सती के वक्ष स्थल का कुछ भाग गिरा था, तभी से यह उत्तर भारत के प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक है, चिंतपूर्णी मंदिर से इसकी दूरी लगभग 50 किमी है।
चिंतपूर्णी मां शक्तिपीठ देश और हिमाचल प्रदेश के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है, जहां मां के पिंडी स्वरूप के दर्शन कर आप भी माता का अलौकिक आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं, जिसकी दिव्य अनुभूति में तन और मन के साथ प्रकृति का भी हर कण खिल उठता है। हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत वादियों में आध्यात्मिकता का गहरा एहसास प्रदान करता यह शक्तिपीठ चिंताओं और तकलीफों को मिटाकर नव जीवन और नव चेतना का संचार करता है। जय माता दी





