ब्रजेश्वरी या वज्रेश्वरी शक्तिपीठ कांगड़ा जिले के नगरकोट में अवस्थित है जो बहुत शक्तिशाली और चमत्कारी स्थानों में से एक है। धर्मशाला के निकट यह मंदिर भारतीय उपमहाद्वीप में स्थापित 51 शक्तिपीठों में से एक है, जिसकी अलौकिक अनुभूति स्त्री शक्ति की आराधना और साधना से और भी ज्यादा बलवती होती है। हिमाचल प्रदेश की यह जगह अपने विशेष तथ्यों, इतिहास और जीवंत ऊर्जा से श्रद्धालुओं के लिए बहुत प्रसिद्ध स्थान है, आइए जानते हैं इस शक्तिपीठ के बारें में और भी ज्यादा विस्तार से इस आर्टिकल में।
भगवान शिव और देवी सती की कहानी से ही इन शक्तिपीठांं की स्थापना हुई है। देवी सती राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री थी जिन्होनें अपनी मर्जी से वैरागी भगवान शिव से विवाह किया था, इस बात से उनके पिता दक्ष नाराज़ थे क्योंकि भगवान शिव राजसी ठाठ बाट से नहीं रहते थे। एक बार राजा दक्ष ने विशाल भव्य यज्ञ समारोह का आयोजन करवाया जिसमें समस्त देवी देवताओं को प्रेमपूर्वक न्यौता दिया। लेकिन उन्होंने दुर्भावना वश भगवान शिव और पुत्री सती को बुलावा नहीं भेजा। यह बात देवी सती को बुरी लगी और कारण जानने के उद्देश्य से राजा दक्ष के यज्ञ समारोह में बिना बुलाए ही पहुंच गई। वहां पहुंचकर न बुलाने का उद्देश्य पूछने पर माता सती को भगवान शिव के प्रति अपमानजनक शब्द और घोर निंदा सुननी पड़ी, इससे आहत होकर सती ने उसी यज्ञ कुंड वेदी में खुद को अग्नि में अर्पित कर प्राणों की आहुति दे दी।
इस घटना से जब भगवान शिव अवगत हुए उन्हें अत्यधिक क्रोध आया और उनके रौद्र स्वरूप वीरभद्र का जन्म हुआ जिसने यज्ञ समारोह में जाकर सब तहस नहस करना शुरू कर दिया और राजा दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद राजा दक्ष की पत्नी के अनुनय विनय पर राजा दक्ष को भगवान शिव ने बकरे का सिर जोड़ कर फिर से जीवित कर दिया। लेकिन देवी सती के विलाप में वे उनका मृत शव लेकर चहुंओर विचरण करने लगे। भगवान शिव के क्रोध और दुख को समाप्त करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर के 51 टुकड़े किए और उन्हें भारतीय उपमहाद्वीप में बिखेर दिया। जहां जहां देवी सती के अंग या आभूषण गिरे वहां वहां नियत विशिष्ट देवी का उद्भव हुआ और यह स्थान शक्तिपीठ नाम से जाना जाने लगा। इसी तरह 51 देवी शक्तिपीठों की स्थापना हुई जिन्हें शक्ति और ऊर्जा का केंद्र कहा जाता है।
कहते हैं कि ब्रजेश्वरी देवी शक्तिपीठ में माता सती का बायां वक्ष गिरा था, जिसे वज्र की भी संज्ञा दी गई इसीलिए इस शक्तिपीठ को ब्रजेश्वरी या व्रजेश्वरी शक्तिपीठ नाम से जाना गया
शक्तिपीठों की रक्षा के लिए प्रत्येक शक्तिपीठ मे भगवान शिव के ही अवतार के रूप में भैरव भगवान की स्थापना है। हर शक्तिपीठ में जिनके नाम अलग अलग है। ब्रजेश्वरी देवी के इस मंदिर में लाल भैरव की स्थापना है जिनका मंदिर यहीं अवस्थित है।
यहां देवी शक्ति के तीन प्रतिविम्ब है जो पिंडी रूप में स्थापित है जिन्हें ब्रजेश्वरी देवी, भद्रकाली और एकादशी देवी के नाम से जाना जाता है।
कहते हैं कि ब्रजेश्वरी देवी मंदिर की स्थापना सबसे पहले नगरकोट में पांडवों ने की थी जिसका उद्देश्य लोगों की सुरक्षा करना था और अपने खोये हुए साम्राज्य को दोबारा पाने के लिए देवी की आराधना करना था। पांडवों ने इस मंदिर को अमूल्य रत्नों, पत्थरों, हीरे जवाहरात, सोने चांदी और अन्य बेशकीमती धातुओं से इस मंदिर की भव्य आधारशिला रखी थी।
विदेशी आक्रांताओं ने इस मंदिर और सुंदरता को नष्ट कर दिया, जीर्णोद्धार के बाद मंदिर पुनः सुंदर और शानदार दिखाई देने लगा।
सबसे पहले इसकी बहुमूल्य धन संपति के कारण इसे महमूद गजनवी ने लूट का शिकार बनाया और इस मंदिर को खंडहर में तब्दील कर दिया। इसके बाद फिर इस मंदिर को पुनः स्वरूप मे ढाला गया जिसे अन्य मुस्लिम आक्रमणकारी जैसे फिरोजशाह तुगलक और अन्य मुगलों ने इस पर कई बार आक्रमण कर निशाना बनाया। लेकिन आस्था और विश्वास के बेजोड़ परिणाम और मंदिर की विशेष दिव्यता की वजह से इसे पुर्नस्थापित किया जाता रहा।
प्राकृतिक आपदा विनाशकारी भूकंप की वजह से भी सन् 1905 में इस मंदिर को जबरदस्त हानि हुई थी लेकिन फिर इस मंदिर उसकी भव्य विशाल वास्तुकला का वैभव और दिव्यता के साथ उसी तरह स्थापित किया गया।
इतनी सारी चुनौतियों को पार करने के बाद भी यह मदिर अपने गौरवशाली इतिहास और दिव्य उपस्थिति के कारण आज भी प्रसिद्ध और जीवंत है।
वर्तमान में इस मंदिर की वास्तुकला हिंदू और मुगल शैलियों का मिश्रण हैं जो समय के साथ कई बार पुर्नस्थापित किया गया है। मौलिक नागर शैली में निर्मित यह मंदिर बहुत विशेष है, जिसकी ख़ासियतें आकर्षित करती हैंः गर्भग्रह की बनावट और उस पर गगनचुंबी शिखर की स्थापना दिव्यता का समर्थन करती है। हिंदू देवी देवताओं से जुड़ी भव्य नक्काशियों की झलक और वृहद प्रवेशद्वार की भव्यता और स्तंभों की ऐतिहासिकता शानदार बारीक शिल्पकला का प्रतिनिधित्व करती है।
इस मंदिर के केंद्र में गर्भग्रह का निर्माण है जहां ब्रजेश्वरी देवी विराजमान है जिन्हें अनमोल गहनों, आभूषणों, पुष्पों और विशेष रूप से माखन के अनूठे लेप से सुसज्जित किया जाता है। माखन लेप का कारण चिकित्सीय गुणों की विवेचना करना है।
मुख्य केंद्रित गर्भग्रह के चारों ओर बहुत सारे छोटे मंदिर हैं जो इन देवी देवताओं पर केंद्रित हैं
भगवान लाल भैरवः शक्तिपीठ के रक्षक भगवान
भगवान हनुमानः भक्त शिरोमणि हनुमान जी जो बुद्धि बल प्रेम भक्ति और शक्ति के अवतार हैं।
अन्य मंदिर : क्षेत्रीय देवी देवताओं की पूजा की जाती है जिन्हें यहां के सरंक्षक आराध्य माना जाता है।
मंदिर परिसर में विशाल प्रांगण है जहां भक्तजन आराधना, प्रार्थना, ध्यान और सम्मुख आरती के लिए एकत्रित होते हैं। जिनकी दीवारों और खंभों पर वैदिक शिलालेख और प्रतिमाओं का चित्रण देखने को मिलता है। यहां अंकित चित्रण पौराणिक कथाओं पर आधारित होते हैं जिनसे मां ब्रजेश्वरी की महिमा समझने में आसानी होती है।
मंदिर के उच्च शिखर की विशाल अवस्थिति हो या मंदिर प्रांगण की समरसता हो, मुख्य गर्भग्रह की दिव्य शांति श्रद्धालुओं के लिए और भी ज्यादा विशेष हो जाती है जब वे आध्यात्मिकता की खोज पर दिव्य शांति की खोज पर हों।
कांगड़ा स्थित इस मंदिर में आरती और दर्शन समय के विशेष नियम है जहां यह समय समय से पालन किये जाते हैं। शक्तिपीठ में दिन भर में नियमानुसार पांच बार आरती की जाती है। जिसमें सबसे पहले देवी को जगाने के लिए आरती की जाती है, स्नान कराने के बाद मंगला आरती, दोपहर विश्राम के लिए द्वार बंद करने से पहले आरती, संध्या आरती और शयन आरती की जाती है।
मंगला आरती (प्रातःकालीन दिनचर्या दर्शन की शुरूआत) : सुबह 5 बजे जो माता के स्वागत का प्रतीक होती है।
इसके बाद देवी का श्रृंगार किया जाता है जिन्हें बहुमूल्य आभूषणों, दिव्य ताजे पुष्पों और अन्य साज सज्जा से सजाया जाता है, इन्हें भोग प्रसाद अर्पित किया जाता है। मंदिर दिन में आधे घंटे के लिए बंद किया जाता है जिससे पहले आरती की जाती है।
सांझ ढलने पर शाम की आरती की तैयारी की जाती है जिसमें शंख, घड़ियाल, घंटों की ध्वनि और दीपों की जगमग से पूरा वातावरण दिव्य गुजाएंमान और प्रकाशमय हो जाता है।
दर्शन समयः सुबह 5 बजे से दोपहर 12 बजे तक
दिन की आरतीः दोपहर 12 बजे
दर्शन समयः दोपहर 12ः30 बजे से शाम 7 बजे तक
संध्या आरती समयः शाम 7 बजे से
इसके बाद मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं और माता की शयन आरती सिर्फ पुजारियों की उपस्थिति में ही सपन्न की जाती है।
चैत्र व आश्विन नवरात्रि : चैत्र और आश्विन हिन्दी महीनों में आने वाली नवरात्रि के नौ दिन मंदिर में बेहद खास होते हैं जब दिव्य वातावरण की धूम के साथ ही आकर्षक मेलो और उनकी रौनक से मंदिर की शोभा और भी ज्यादा बढ जाती है। इस दौरान अनुष्ठानों की चमक के साथ ही दरबार की शक्ति चरम पर होती है।
दुर्गा अष्टमी और दशहराः दुर्गा अष्टमी और दशहरा का पर्व मंदिर व्रजेश्वरी में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान रात्रि जागरण, मां का अद्भुत श्रृंगार और पूजा पाठ आदि अनुष्ठान संपन्न किए जाते हैं।
मकर संक्रातिः जनवरी के दूसरे सप्ताह में आने वाले इस पर्व पर मां व्रजेश्वरी को माखन का लेप लगाया जाता है जिसके पीछे ऐतिहासिक कहानी है। इस माखन को बनाने से पहले कई किलो देसी घी को कुएं के ठंडे पानी में 101 बार धोया जाता है। इसके बाद इस माखन को मां की पिंडी स्वरूप में लगाया जाता है और एक सप्ताह बाद प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। इस दौरान मंदिर में भारी सजावट और श्रृंगार किया जाता है। पूरे मंदिर को फूलों से सजाकर तैयार करते हैं और यहां कीर्तन संध्या का आयोजन भक्तों को आकर्षित करता है।
ब्रजेश्वरी मां को माखन प्रसाद अर्पित किये जाने के पीछे पौराणिक कहानी है कि जब मां रक्तबीज और महिषासुर का अंत कर चुकी थीं, उसके बाद वह बहुत थक चुकी थीं और ऐसे में उन्होंने यही विश्राम किया था। मां ने अपने घावों को भरने के लिए अपने शरीर पर मक्खन का लेप लगाया था इसी वजह से इस मंदिर में आज भी इसी परंपरा को धूमधाम से मनाया जाता है।
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार जब भी कोई अप्रिय घटना होने वाली होती है तब मां की मूर्तियों से पसीना निकलने लगता है जिससे लोग सतर्क और सावधान हो जाते हैं और मंदिर में हवन पूजा पाठ आदि अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है जिससे संकट से बचाव हो।
ब्रजेश्वरी मंदिर के निकट गुप्त गंगा, सूरज कुंड, वीरभद्र मंदिर, कांगड़ा किला, जयंती माता, मैक्लोडगंज और पालमपुर की यात्रा कर सकते हैं।
हवाई मार्गः निकटतम हवाई अड्डा गग्गल एयरपोर्ट है जहां से मंदिर की दूरी लगभग 10 किमी है।
रेल मार्गः नजदीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट है जहां से मंदिर की दूरी लगभग 80 किमी रह जाती है।
सड़क मार्गः प्रमुख शहरों से सीधे बस या अपनी कार सड़क रास्ते द्वारा भी पहुचं सकते हैं।
ब्रजेश्वरी शक्तिपीठ अपनी प्रमुख मान्यताओं और पौराणिक महत्वों की वजह से अनोखा स्थान है जिसकी पहुंच सिर्फ तीर्थस्थल तक नहीं है। आत्मिक संतुष्टि और पराशक्ति का दिव्य साक्षात्कार कराता यह शक्तिपीठ भक्तों के लिए सदैव ही सच्चे दरबार की परिभाषा को साकार करता है। यहां आए भक्त दर्शन करने के बाद जब यहां से प्रस्थान करते हैं तो वे अंतर्मन की शक्ति और हिम्मत से भरे हुए होते हैं क्योंकि यहां सिर्फ देखने वाले घाव ही नहीं बल्कि अनदेखे घाव भी ठीक होते हैं।





