• Oct 25, 2025

झारखंड के देवघर में अवस्थित देवी सती के जयदुर्गा स्वरूप को समर्पित यह स्थान 51 शक्तिपीठों में से एक है। जहां बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की दिव्य महिमा और देवी शक्तिपीठ की शक्तिशाली ऊर्जा का सुखद संयोग देखने को मिलता है। प्यार और समर्पण की भावनाओं को साकार रूप देता यह शक्तिपीठ इसीलिए हरद पीठ या स्नेही पीठ भी कहलाता है। पवित्र शक्तिपीठों में इस शक्तिपीठ का स्थान अतुलनीय है क्योंकि भगवान शिव स्वयं ज्योतिर्लिंग रूप में भैरव का अवतार हैं। यहां की धरती बेहद पावन और धार्मिक है जहां इतनी सारी विशेषताएं हैं, आइए, इन्हीं सारे पहलुओं को और भी विस्तार से जानते हैं। 

समस्त शक्तिपीठों से जुड़ा पौराणिक इतिहास

माता सती राजा दक्ष की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी थीं, जिन्होनें विवाह अपनी मर्जी से किया था और इस बात से राजा दक्ष बिल्कुल खुश नही थे क्योंकि भगवान शिव के पास राजसी सुख नहीं है। इसी बात से नाखुश राजा दक्ष ने यज्ञ समारोह का आयोजन किया जिसमें उन्होनें संसार के समस्त देवी देवताओं को आमंत्रित किया किन्तु अपनी पुत्री सती और जामाता भगवान शिव को नहीं बुलाया। इस बात से दुखी सती नंदी पर सवार होकर राजा दक्ष के यज्ञ समारोह में इस बात का कारण जानने पहुंची तो उन्हें भगवान शिव के प्रति कटु वचनों और घोर अपमान का सामना करना पड़ा। इससे आहत सती ने उसी यज्ञ कुंड में प्राणों का बलिदान दे दिया। 

इस घटना की जानकारी जब भगवान शिव को हुई तब उन्होंने माता सती का शव लेकर समस्त लोकों में विचरण करना शुरू कर दिया, जिसकी कोई अवधि निश्चित नहीं थीं। ऐसी अवस्था में सृष्टि में हाहाकार मच गया जिससे चितिंत होकर भगवान शिव ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शव के 51 टुकड़े किए जो जहां गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। ऐसे में माता के अग और आभूषणों के गिरने से भारतीय उपमहाद्वीप में 51 शक्तिपीठों की स्थापना हुई। 

जयदुर्गा शक्तिपीठ की उत्पत्ति कहानी 

कहते हैं इस स्थान पर देवी सती का हृदय गिरने से जयदुर्गा शक्तिपीठ की स्थापना हुई हैं। यहां देवी सती के प्रेम स्वरूप हृदय का दाह संस्कार होने से भी यह धरती चिताभूमि के नाम से भी जानी जाती हैं। 

इस मंदिर का निर्माण कब हुआ यह किसी को नही पता है एक अनुमान के अनुसार इस मंदिर को 8वीं सदी का माना जाता है क्योंकि इसी समय गुप्त सम्राट आदित्यसेन गुप्त के समय से बैद्यनाथ मंदिर परिसर की बहुत प्रसिद्धि हुई है। 

माना जाता है कि इस मंदिर के अग्रभाग के महत्वपूर्ण भागों का निर्माण गिद्धौर के राजाओं के पूर्वज पूरन मल ने सन् 1596 में कराया था। 

जयदुर्गा शक्तिपीठ की वास्तुकला और संस्कृति 

बैद्यनाथ जयदुर्गा शक्तिपीठ के कई नाम हैं जो यहां की विशेषताओं के बारें में विस्तार से समझाते हैं। इस मंदिर की वास्तुकला और संस्कृति बेहद आकर्षक और भव्य है, इस मंदिर की उपस्थिति बाबा बैद्यनाथ धाम के ठीक सामने ही है और यह दोनो मंदिर लाल धागों से बेहद खूबसूरती के साथ एक दूसरे के साथ जुड़े रहते हैं।

श्वेत रंग के मंदिर भवन में ग्रेनाइट पत्थर के मंच पर मां जय दुर्गा और मां पार्वती की दो मूर्तियां स्थापित हैं। यह मंदिर लगभग 72 फीट ऊंचा हैं। मंदिर के चारों ओर और भी बहुत से मंदिरों की स्थापना है। 

यह पूरा मंदिर परिसर श्वेत रंग के मंदिरों और दीवारों से सुशोभित है जो अत्यंत सादगी और खूबसूरती से रंगा हुआ है। देवी मां के इन मंदिरों में मां छिन्नमस्तिका के साथ ही अन्य देवी रूपों की स्थापना भी है जहां इनके दर्शन विशेष का लाभ ले सकते हैं। 

जयदुर्गा शक्तिपीठ मंदिर दर्शन समय 

मंदिर दर्शन का प्रातःकालीन समय : सुबह 4 बजे से दोपहर 3ः30 मिनट तक 

मंदिर दर्शन का सायंकालीन समय ः शाम 6 बजे से रात 9 बजे तक 

जयदुर्गा शक्तिपीठ में मनाए जाने वाले उत्सव, त्यौहार एवं अनुष्ठान 

जयदुर्गा शक्तिपीठ में श्रावणी मेला, दुर्गापूजा, नवरात्रि और महाशिवरात्रि को विशेष अनुष्ठान मनाए जाने का रिवाज है। 

श्रावणी मेला : सावन भर बाबा बैद्यनाथ धाम में भक्तांं की भारी भीड़ देखने को मिलती है जिसमें वे कांवड़ लाकर भोले बाबा पर अर्पित करते हैं और माता जयदुर्गा के दर्शन करते हैं। इस दौरान यहां विशाल मेले का आयोजन होता है। कांवड़ यात्रा मे पवित्र नदियों का जल लेकर भगवान शिव पर अर्पित करते हैं। भक्तजन यहां सुल्तानगंज से लेकर देवघर तक कांवड़ यात्रा करते हैं जो भारत की सबसे कठिन तीर्थ यात्राओं मे गिनी जाती है। 

आश्विन व चैत्र नवरात्रि : आश्विन नवरात्रि के समय मंदिर में देवी जयदुर्गा और अन्य देवियों को समर्पित विशेष अनुष्ठान और पूजा पाठ किया जाता है जिसमेंं कलश रखने की भी परंपरा निभाई जाती है। जयदुर्गा को समर्पित यह उत्सव इतना विशाल और भव्य होता है कि इसकी धूम के चर्चे देश विदेशो तक में होते हैं। यहां का उज्जवल त्यौहार नवरात्रि देवी दुर्गा का प्रिय त्यौहार होता है जिसमें नौ दिनो तक लगातार प्रत्येक दिन किसी न किसी विशेष देवी की आराधना साधना का दिन होता है। 

दीवालीः हिंदूओं के मुख्य पर्व दीवाली पर यहां दीपों की कतारें बहुत ही प्यारी लगती हैं, जगमग करती दीपों की कतारें और प्रकाशमय वातावरण से जनमानस का जीवन भी सुखद और आनंदमय हो जाता है। इस दौरान मंदिरों में भक्त दीप जलाने आते हैं और माता जयदुर्गा व बाबा शिव से सद्कामना, समृद्धि की मनोकामना मांगते हैं। 

महाशिवरात्रिः महाशिवरात्रि पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह दिन को मनाने के लिए विशेष माना जाता है। इस दिन भोर से ही भगवान शिव पर जलाभिषेक और पंचोपचार पूजा का विधि विधान शुरू हो जाता है। पूरे दिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है और बोल बम के जयकारों से मंदिर परिसर गुंजाएमान रहता है। आध्यात्मिक दृष्टि से यह दिन बेहद खास होता है जब भक्त व्रत उपासना करते हुए भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करते हैं। 

जयदुर्गा शक्तिपीठ से जुड़े रोचक तथ्य 

जयदुर्गा शक्तिपीठ को बाबा बैद्यनाथ धाम या बाबा धाम से भी जाना जाता है। 

कहते हैं यहीं माता सती का हृदय गिरा था और माता सती का अंतिम संस्कार इसी स्थान पर किया गया था इसलिए इसे चिता भूमि नाम से भी जाना जाता है। शिव पुराण के 38वेंं अध्याय में बैद्यनाथ चिताभूमौ उल्लेख से स्पष्ट रूप से पता भी चलता है। 

अधिकांश शक्तिपीठों में मां काली की स्थापना है लेकिन इस शक्तिपीठ में देवी दुर्गा और मां पार्वती की उपस्थिति यह सिद्ध करती है कि वे संसारं की रक्षा के साथ ही भक्तों को प्रेमसुधा से सिंचित भी करती हैं। जो इस शक्तिपीठ को अद्वितीय बनाता है। 

बाबा बैद्यनाथ मंदिर ज्योतिर्लिंग के शिखर से माता जयदुर्गा मंदिर के शिखर पर कलावा या लाल रेशमी धागों की डोर बंधी रहती है, इसको लेकर मान्यता है कि यह इनके प्रेम, प्यार और साथ का प्रतीक है इसलिए जो भी विवाहित जोड़े यहां लाल धागों से दोनों शिखरों को जोड़ते हैं, उनका वैवाहिक जीवन सुखद और शांतिपूर्ण ढंग से बीतता है। 

इस ज्योतिर्लिंग की विशेषता है कि यहां भक्त स्वयं ही इस पर जलाभिषेक पर कर सकते हैं और अन्य पूजा पाठ अनुष्ठान का लाभ ले सकते हैं।

बाबा बैद्यनाथ जयदुर्गा शक्तिपीठ में उपचारात्मक शक्तियां निहित हैं, कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों को यहां पूजा अर्चना करने से इस रोग से मुक्ति मिलती है। 

भगवान शिव और माता जयदुर्गा के दर्शनों से व्यक्ति का आध्यात्मिक कल्याण होता है, उसके जीवन से नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं और सकारात्मकाता का उदय होता है। 

जयदुर्गा शक्तिपीठ परिसर में या आसपास घूमने योग्य स्थान 

इस मदिर परिसर मे लगभग 22 मंदिर हैं जैसे

  • बाबा बैद्यनाथ
  • नीलकंठ महादेव
  • लक्ष्मी नारायण मंदिर
  • मां काली मंदिर 
  • मांगंगा मंदिर 
  • मां बगलामुखी 
  • नर्वदेश्वर मंदिर
  • मां सरस्वती मंदिर 
  • मां अन्नपूर्णा मंदिर 
  • आनंद भैरव आदि मंदिर 

चंद्रकांत मणिः बैद्यनाथ मंदिर के गर्भग्रह में चंद्रकांत मणि से ही जल सतत रूप में शिवलिंग पर गिरता रहता है जिसके फलस्वरूप लोग यह जल भगवान शिव के आशीर्वाद स्वरूप ग्रहण करते हैं तो उन्हें कुष्ठ रोगों से मुक्ति मिलती है। 

पंचशूलः इस धाम की प्रमुख बात है यहां का पंचशूल, विश्व के जितने भी मंदिर है उनमें त्रिशूल की उपस्थिति देखी जाती है लेकिन बाबा बैद्यनाथ धाम में पंचशूल मंदिर के शिखर पर लगा हुआ है जो एक सुरक्षा कवच का काम करता है। हर साल महाशिवरात्रि से दो दिन पहले पंचशूल उतारें जाते हैं जिन्हें स्पर्श करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। जिन्हें महाशिवरात्रि पर पुनः लगा दिया जाता हैं। 

चंद्रकूपः यह मंदिर परिसर में मुख्य गेट के पास स्थित एक कुआं है जिसकी विशेषता है कि इसे गंगा जल की तरह पवित्र माना जाता है। इसे 16वीं शताब्दी में खुदवाया गया था। 

नौलखा मंदिर, देवघरः कर्नीबाद में बना यह मंदिर नौ लाख मुद्राओं मे बना हुआ राधा कृष्ण को समर्पित मंदिर है जिसका निर्माण पश्चिम बंगाल की रानी चारूशिला ने करवाया था। नौलखा मंदिर अपनी दिव्य वास्तुकला, नक्काशी और भव्य आकर्षण के लिए जाना जाता है। 

तपोवन पहाड़ियां और गुफाएंः तपोवन एक ऐसी जगह है जहां मौलिक रूप से बनी पहाड़ियों और गुफाएं पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। इन गुफाओं को प्राकृतिक और दैवीय आशीर्वाद का स्वरूप माना जाता है। यहां आप ट्रेकिंग और पिकनिक का लुत्फ उठा सकते हैं। 

जयदुर्गा शक्तिपीठ कैसे पहुंचे

हवाई मार्ग से

  • बाबा बैद्यनाथ जयदुर्गा शक्तिपीठ के नजदीक में सिमरा यानी देवघर हवाई अड्डा है जहां से मंदिर की लगभग दूरी 7.5 किमी है। यहां से आप स्थानीय वाहनो से मंदिर पहुंच सकते हैं। 

रेल मार्ग से 

  • शक्तिपीठ से निकटतम रेलवे स्टेशन देवघर जंक्शन है जो मंदिर से लगभग 3 किमी दूरी पर है जिसकी दूरी बहुत ज्यादा नहीं है। आप चाहें तो जसीडीह जंक्शन जिसकी दूरी लगभग 5 किमी है, यहां से भी देवघर स्थित इस मंदिर में दर्शन हेतु जा सकते हैं। 

सड़क मार्ग से 

  • झारखंड राज्य में स्थित इस शक्तिपीठ तक पहुंचने के लिए आप सड़क मार्ग भी चुन सकते हैं। झारखंड राज्य देश के प्रमुख शहरों व राज्यों से बेहतर तरह से जुड़ा हुआ है। 

निष्कर्ष

अंत में, बाबा बैद्यनाथ जयदुर्गा शक्तिपीठ हिंदू धर्म के लिए महान तीर्थस्थल है, जहां भगवान शिव की स्वयंभू उपस्थिति व माता सती के हृदयस्थल की दिव्य चेतना श्रद्धालुओं का हर समय कल्याण करती है। यहां आने वाले हर भक्त को इनकी सूक्ष्म मौजूदगी का उत्कृष्ट आभास स्वयं होता है। जय माता दी और बोल बम के जयकारों से गुजाएंमान वातावरण मंदिर की घंटियों और भक्तजनों की भीड़ से और भी ज्यादा प्रभावशाली असर डालता हैं जिसमें तन मन के साथ ही आत्मा के दृग बिंदु तक उस परम शक्ति का आशीर्वाद रोम रोम में समाहित होता है।

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