गंडकी चंडी या मुक्तिनाथ शक्तिपीठ के नाम से प्रसिद्ध यह शक्तिपीठ नेपाल के मस्तंग जिले में अवस्थित शक्तिशाली शक्तिपीठ है जिसकी समुद्री तल से ऊंचाई करीब 3700 मीटर है जो हिंदू धर्म के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर की विशेषता है कि यह हिन्दू धर्म के साथ ही बौद्ध धर्म के लिए भी महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है क्योंकि यहां हिन्दू मंदिर के साथ ही बौद्ध गोम्पा भी शामिल है। गंडकी नदी के तट पर मौजूद यह मंदिर देवी सती के किस अंग के गिरने से महत्वपूर्ण शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है और क्या है इसकी विशेषताएं, विस्तार से जानते हैं इस आर्टिकल में।
राजा दक्ष की पुत्री देवी सती ने भगवान शिव से विवाह किया था। भगवान शिव के वैरागी व्यक्तित्व से राजा दक्ष अप्रसन्न रहते थे। एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ समारोह का आयोजन कराया और उसमें भगवान शिव और देवी सती को छोड़कर समस्त देवताओं और भगवान विष्णु और ब्रहमा को बुलाया। इस बात की जानकारी जब देवी सती को हुई तब वे दुखी होकर कारण जानने के उद्देश्य से यज्ञ समारोह में बिना बुलाए ही पहुंच गईं इस पर उन्हें भगवान शिव के प्रति घोर अपमान का सामना करना पड़ा और इससे आहत होकर उन्होनें यज्ञ कुंड में अपने प्राण त्याग दिए।
इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी जब भगवान शिव को हुई तब उन्होंने देवी सती के शव को लेकर ब्रहांडीय तांडव नृत्य करना आरंभ कर दिया जिससे चारो ओर हाहाकर मचने लगा। इस पर भगवान विष्णु ने परिस्थिति को संभालने के लिए देवी सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागों में विभाजित कर दिया और विभिन्न स्थानों पर गिरा दिया, इससे जहां जो अंग गिरे वहां एक नियत शक्तिपीठ की स्थापना हुई।
नेपाल के मस्तंग जिले में गंडकी नदी के किनारे इस स्थान पर देवी सती का दायां गाल गिरने से यह माता का भव्य और शक्तिशाली शक्तिपीठ बन गया, जिसे गंडकी चंडी के नाम से जाना जाता है और यहां भैरव भगवान के रूप में चक्रपाणि के रूप में स्थापित है, जिनके हाथ में चक्र है। अन्य किंवदंती के अनुसार कहते हैं कि यहा माता सती का सिर गिरा था। विशेष सिद्धियों की प्राप्ति के लिए आध्यात्मिक साधना करने के लिए श्रद्धालु माता के शक्तिपीठ का रूख करते हैं, क्योंकि शक्तिपीठों की शक्ति की बराबरी किसी अन्य स्थान से नहीं है, यह अतुलनीय है।
शक्तिपीठ गंडकी चंडी नेपाल के प्रसिद्ध स्थान पर स्थित है जहां मुक्तिनाथ के नाम से भगवान विष्णु के अद्भुत दर्शन करने का लाभ प्राप्त होता है।
मुक्तिनाथ मंदिर में 108 जलधाराएं बहती हैं जो बैल मुखी रूप से निकलकर बहती है, जिससे यह जल शुद्ध हो जाता है। मंदिर परिसर के चारों ओर बहती ये जल धाराएं हिंदू धर्म के पवित्र कुंडो के जल की तरह माना जाता है, यहां भक्त शीत तापमान मेंं भी स्नान करते हैं जो बहुत ही अनोखा अनुभव प्रदान करता है।
मंदिर के मुख्य कक्षों में भगवान विष्णु की सोने की मूर्ति है, इनके साथ देवी लक्ष्मी, इनका वाहन गरूड़, सरस्वती, मां जानकी, लव कुश और सप्त ऋषियों की धातु मूर्तियां स्थापित है। देवी लक्ष्मी और देवी पृथ्वी की प्रतिमाएं भगवान विष्णु की प्रतिमा के बाएं दाएं खड़ी हैं।
गंडकी शक्तिपीठ को मोक्षप्रदायी माना गया है जहां देवी सती ही गंडकी चंडी के रूप में पूजी जाती हैं। पोखरा नामक पर यह स्थान अति शुभफलदायी है।
गंडकी चंडी शक्तिपीठ बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्र गोम्पा स्थान है, यहां बौद्ध भिक्षु की उपस्थिति में बौद्धों द्वारा रीति रिवाज रस्में पूरी की जाती हैं और स्थानीय पूजा अनुष्ठान के लिए स्थानीय नन की व्यवस्था है।
शक्तिपीठ में भक्तजन विभिन्न पूजा अनुष्ठान आदि कार्य संपन्न करते हैं जहां सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है 108 दिव्य जल कुंडो में स्नान करना इसके बाद मंदिर में प्रवेश और दर्शन करना। जल कुंडो में स्नान करने की परंपरा की शुरूआत इसके उपचारात्मक शक्तियों के कारण चलन में आया, कहते हैं इसमें स्नान करने से रोगों से मुक्ति मिलती है। इसके साथ पवित्र जल में डुबकी लगाने से उनके पापों का भी अंत होता है।
गंडकी चंडी की आराधना करने के साथ ही मुक्तिनाथ नाम से मशहूर भगवान विष्णु की पूजा आराधना करने के साथ भक्त यहां तुलसी विवाह उत्सव बहुत ही हर्षोल्लास से मनाते हैं जहां धूप, दीप नैवेद्य अर्पित किया जाता है।
इस मंदिर में मुख्यतया देवी दुर्गा के त्यौहारों के साथ कार्तिक मास में होने वाली एकादशी, कार्तिक पूर्णिमा और महाशिवरात्रि का पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है।
साल में दो बार नवरात्रि पर्व जो चैत्र और आश्विन माह में मनाया जाता है, इस दौरान मां की पूजा, जलाभिषेक, नए वस्त्र और नए आभूषण चढाये जाते हैं। मंदिर परिसर और बाहर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।
कार्तिक एकादशी और कार्तिक पूर्णिमा को विशाल भव्य समारोह किया जाता है जिसमें खुशिया, उल्लास और उमंग के साथ तुलसी विवाह संपन्न किया जाता है।
राम नवमी, दशहरा, दीपावली और महाशिवरात्रि पर्व पर उत्सव की रौनक देखते बनती है जहां हजारों की संख्या में भक्त दर्शन और अनुष्ठान का लाभ लेने पहुंचते हैं।
गंडकी चंडी शक्तिपीठ की महिमा सर्वश्रेष्ठ है, यहां के बारें में जितना वर्णन किया जाए कम है। भगवान विष्णु और देवी सती के संयुक्त पावन धामों के कारण इसकी महत्ता और भी ज्यादा बढ जाती है। दरअसल कहते हैं कि यहां भगवान विष्णु की जीवाश्म शिला शालिग्राम मिले थे और यहां भगवान विष्णु को अपनी ही भक्त वृंदा के श्राप से मुक्ति मिली थी इसलिए इसे मुक्तिनाथ मंदिर भी कहते हैं। वृंदा ही तुलसी पौधे के रूप में जन्मी थीं जिनका विवाह इसी स्थान पर शालिग्राम शिला से हुआ था, यहां आज भी शालिग्राम का विवाह तुलसी से बड़ी धूमधाम से किया जाता है।
इस मंदिर के 108 जल कुंडो में स्नान करने की महती भूमिका है जिन्हें कई जगहो के पवित्र जलों की संज्ञा मिली है जो यहां एक ही स्थान पर देखने को मिलते हैं।
गंडकी नदी के किनारे बना यह शक्तिपीठ, गंडकी नदी के कारण भी महत्वपूर्ण है। गंडकी नदी का शाब्दिक अर्थ है गन्धक यानी विभिन्न बाधाओं को पार करते हुए बहना है, इस नदी की एक और विशेष खासियत है कि असली शालिग्राम केवल इसी गंडकी नदी के किनारे पाए जाते हैं, शालिग्राम जीवाश्म से बना होता है जो प्रागैतिहासिक काल में पाए जाते थे जो मुख्यतः टेथिस सागर में पाया जाता है जहां आज हिमालय पर्वत है।
गंडकी शक्तिपीठ शाक्त, वैष्णव, शैव और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक ही जगह पर समग्र उपयोगिताओं को दर्शाता महत्वपूर्ण स्थल है।
गंडकी चंडी या मुक्तिनाथ शक्तिपीठ की गिनती भगवान विष्णु के स्वयं व्यक्त क्षेत्रों में से एक मानी जाती है जैसे कि श्री रंगम, बद्रीनाथ, तिरूपति, नैमिषारण्य, थोथाद्रि, पुष्कर और श्री मुषणम सात अन्य तीर्थस्थल हैं, मुक्तिनाथ मंदिर आकार में जरूर छोटा है लेकिन इसकी भूमिका और अहमियत कहीं से भी कम नहीं है।
मुक्तिनाथ मंदिर जाने के लिए मानसून के दिनों में यात्रा की उम्मीद न करें क्योंकि इन दिनों वाली पहाड़ी क्षेत्रों की समस्याआेंं से दो चार होना पड़ सकता है। आप मार्च से मई या सितम्बर से अक्टूबर के दौरान इस मंदिर की यात्रा की सुगम योजना बना सकते हैं जो आपको श्रेष्ठ अनुभव प्रदान करेगा।
ज्वाला माई मंदिरः मुक्तिनाथ परिसर में अवस्थित ज्वाला माई एक रहस्यमयी और अखंड ज्योति का चमत्कार हैं जो एक चट्टान से निकलती है। यह ज्योति पृथ्वी से निकलने वाली प्राकृतिक गैस के माध्यम से अनवरत जलती है, जो जगमगाती हुई आकर्षित करती है और आस्था का केंद्र बिंदु है। यह मां गंडकी चंडी देवी का प्रतीक स्वरूप मानी जाती है। यह ज्योति अनादि काल से निरंतर जलती हुई शाश्वत सत्य और उस परम सत्ता का साक्षात् प्रमाण प्रस्तुत करती है, जो न केवल एक दिखने वाली घटना है बल्कि इसके आध्यात्मिक जड़ें बहुत गहरी हैं। इस ज्योति स्थान को हिंदू और बौद्ध दोनों धर्मों के लोग आत्मसाधना और दिव्यता का प्रतीक मानते हैं। धर्म, संस्कृति और विश्वास का उचित मिलन इस स्थान पर देखने को मिलता है।
तातोपानीः हरे भरे जंगलो की हरियाली के बीच तातो पानी एक गर्म झरने का नाम है जो अपने उपचारात्मक शक्तियों के लिए सैलानियो के बीच जाना जाता है। ट्रेकिंग कर रहे पर्यटकों के लिए यहां डुबकी लगाना किसी थेरपी से कम नहीं होता। इन झरनों को आप मुक्तिनाथ ट्रेकिंग के दौरान बेहतर ढंग से देख सकते है और स्नान कर सकते हैं। यह झरना हिंदू और बौद्ध धर्म दोनों के लिए धार्मिक आस्था का गहन बिन्दु भी है, जो अपने अनोखेपन के लिए प्रसिद्ध है।
जोमसोमः पर्वत श्रृंखलाओं अन्नपूर्णा और धौलागिरी के बीच स्थित जोमसोम प्रसिद्ध स्थल है जो प्राकृतिक खूबसूरती और आध्यात्मिकता के लिए जाना जाता है। जोमसोम में दुम्बा झील का फिरोजा पानी देख सकते हैं जो बौद्ध अनुयायियों के लिए एक पवित्र झील के रूप में है। आसपास के गांव जैसे मार्फा और कागबेनी गांव का भ्रमण कर सकते हैं, मार्फा गांव में सेब के बागानों की सैर करते हुए उनके अनोखे स्वाद से रूबरू हो सकते हैं जो सामान्य सेबों के स्वाद से कहीं अधिक स्वादिष्ट होते हैं। इसी तरह कागबेनी गांव में प्राचीन बौद्ध मठों और तिब्बती संस्कृति की झलक देख सकते हैं। यहां के पारंपरिक भोजन का स्वाद ले सकते हैं जिसमें थकाली सेट जिसमें चावल, दाल का सूप, अचार और मीट करी का बेमिसाल स्वाद चख सकते हैं।
जानकी मंदिरः नेपाल के जनकपुर धाम में देवी सीता के निवास स्थान के रूप में प्रसिद्ध इस महल को निहार सकते हैं जो कोइरी हिंदू वास्तुकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। भव्य उजले रंग जैसे श्वेत पत्थरों से निर्मित यह मंदिर तीन मंजिला सरंचना है जो मिथिला संस्कृति का उत्कृष्ट प्रदर्शन करती है, इस मंदिर की दीवारो पर बनी मधुबनी कलाकारी, रंगीन शीशे, नक्काशी और विभिन्न चित्रकारी से सजे कमरे जिसमें जालीदार खिड़कियां और बुर्ज आकर्षक लगते हैं। इसे साल 2008 में यूनेस्को द्वारा अस्थायी वैश्विक धरोहर में शामिल किया गया था। इस मंदिर के बारें में कथन है कि यहां मां सीता और भगवान श्रीराम का स्वयंवर संपन्न हुआ था। जिसका विवाह मंडप यहां देखने को मिलता है। इस मंदिर को नौ लाखा मंदिर के नाम से भी पुकारा जाता है, जिसका निर्माण इतनी ही मुद्राओं में ओरछा की रानी वृषभानु ने करवाया था, जो प्रभु श्रीराम की अनन्य भक्त थीं।
तिलिचो झीलः नेपाल के जोमसोम में अवस्थित यह झील दुनिया की सबसे ऊंची झीलों में से एक है जो करीब 4900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। सुरम्य ग्रामीण परिवेश, नदियों की उफान, मार्शयांगडी घाटी, मनास्लु और अन्य पहाड़ियों के भव्य परिदृश्यों की सैर कराती यह झील अपनी खूबसूरती से आकर्षित करती है। हरियाली और जंगल की महक के बीच तिलिचो झील की यात्रा किसी धार्मिक यात्रा से कम नहीं है। जहा से प्रकृति और ईश्वर की नजदीकी का भली भांति एहसास होता है।
सारंगकोटः जोमसोम पोखरा में स्थित सारंगकोट एक खूबसूरत हिल स्टेशन है जहां से धौलागिरी और अन्नपूर्णा के साथ कई पहाड़ियों की चोटी के दुर्लभ नजारें दिखते हैं। यहां से पोखरा के शानदार परिदृश्यों के साथ फेवा झील की दृश्यता आकर्षित करती है। सांरगकोट को विश्व के सर्वोत्तम पैराग्लाइडिंग स्थानों में से एक माना जाता है, यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त के मंत्रमुग्ध करते परिदृश्य आकर्षित करते हैं।
पशुपतिनाथ मंदिरः नेपाल का प्रसिद्ध मंदिर जो भगवान शिव को समर्पित है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह केदारनाथ का अधूरा भाग है। केदारनाथ में शिव रूपी बैल का पृष्ठ भाग है और पशुपतिनाथ में उसी बैल स्वरूप का अग्रभाग स्थित है। पशुपतिनाथ को सन् 1979 में यूनेस्को द्वारा वैश्विक धरोहरों में स्थान दिया गया है। यह मंदिर सिर्फ आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से ही नहीं वरन् सांस्कृतिक पक्षों में भी महत्वपूर्ण है। नेपाल के परम पावन मंदिरों में पशुपतिनाथ का नाम सबसे पहले आता है, जो नेपाल की वास्तुकला संस्कृति का उत्कृष्ट प्रदर्शन करता है, इस मंदिर में लकड़ी, पत्थर और धातुओं का सम्मिश्रण किया गया है। इस मंदिर में पहुंचने के लिए काठमांडू शहर से मात्र लगभग 3 किमी का सफर तय कर जा सकते है।
गंडकी चंडी शक्तिपीठ, बेहद महत्वपूर्ण पवित्र और आध्यात्मिक स्थल है, जहां कई सारी दिव्य शक्तियों का समागम होता है और गंडकी नदी के तट पर बसा यह स्थान अपने 108 जल कुंडों के कारण और भी ज्यादा ख़ास माना जाता है। धार्मिक पराकाष्ठा पर खरा उतरता गंडकी चंडी शक्तिपीठ श्रद्धालुओं के लिए कई सारे अनुभवों को समाहित करता है जहां आप प्रकृति की गोद में ऊबड़ खाबड़ रास्तों से होकर इस मंदिर तक पहुंच पाते हैं जहां वादियों की ऊंचाईयां आसमान को स्पर्श करती हुई दैवीय शक्तियों का प्रसार करती हैं और आम जन मानस को ईश्वर की साकार उपस्थिति का साक्षात्कार कराती हैं।
प्रश्न 1ः गंडकी चंडी शक्तिपीठ कहां स्थित है?
उत्तर 1ः नेपाल के मस्तंग जिले के पोखरा की मुक्तिनाथ घाटी में स्थित है।
प्रश्न 2ः गंडकी चंडी शक्तिपीठ और किस मुख्य नाम से जाना जाता है?
उत्तर 2ः गंडकी चंडी शक्तिपीठ मुक्तिनाथ मंदिर नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 3ः मुक्तिनाथ मंदिर किस देवता को समर्पित होने के अलावा और किस धर्म के लोग यहां पूजा करते हैं और क्यों?
उत्तर 3ः मुक्तिनाथ मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है जिसे मुक्ति के भगवान कहते हैं, बौद्ध धर्म में इनकी पूजा अवलोकितेश्वर के रूप में की जाती है, इसलिए यह स्थान बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए भी विशेष है।
प्रश्न 4ः गंडकी चंडी शक्तिपीठ में माता सती का कौन सा अंग गिरा था?
उत्तर 4ः इस शक्तिपीठ में माता सती का दायां गाल गिरा था, अन्य किंवदंती के अनुसार कुछ लोग माता सती के सिर गिरने से इसे जोड़ते हैं।
प्रश्न 5ः क्या इस शक्तिपीठ में गंडकी चंडी की कोई प्रतिमा है ?
उत्तर 5ः यह पूरा स्थान ही देवी की उपस्थिति का एहसास कराता है, यहां स्पष्टतया तौर पर देवी गंडकी चंडी की कोई प्रतिमा उपस्थित नहीं है।
प्रश्न 6ः क्या मुक्तिनाथ मंदिर की यात्रा जटिल है?
उत्तर 6ः जी हां, मुक्तिनाथ मंदिर की यात्रा को जटिल रास्तों का भाग माना जाता है।
प्रश्न 7ः गंडकी चंडी शक्तिपीठ में देवी से सबंधित मुख्य आकर्षण क्या है?
उत्तर 7ः शक्तिपीठ के मुख्य आकर्षण में मां गंडकी चंडी से संबंधित दिव्य ज्योति है जो सदियों से जल रही है जिसकी विशेष महिमा है।