• Oct 14, 2025

मणिबंध या मणिवेदिका शक्तिपीठ नाम से प्रसिद्ध यह स्थल हिंदू धर्म के पवित्र 51 शक्तिपीठों में से एक है और 27वां शक्तिपीठ और 15वां सिद्धपीठ माना जाता है, जो अजमेर जिले के पास पुष्कर में स्थित है। इस मंदिर को कई नामों से पुकारा जाता है जैसे गायत्री मंदिर या स्थानीय लोग इसे चामुंडा माता मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर के भैरव भगवान सर्वानंद है जो भगवान शंकर के प्रतिरूप हैं। श्रद्धालुगण माता गायत्री की आराधना और ध्यान साधना के लिए इस मंदिर में आते हैं जहां अनुष्ठानों की धूम और पवित्र वातावरण की खुशबू हमेशा बरकरार रहती है। पवित्र नगरी पुष्कर के इस विशेष मंदिर की और क्या विशेषताएं हैं? जानते हैं इस आर्टिकल में। 

शक्तिपीठों की पौराणिक कथा

एक बार भगवान शंकर के ससुर और देवी सती के पिता राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने समस्त देवी देवताओं को आमंत्रित किया किन्तु भगवान शिव और देवी सती को नहीं बुलाया। दुखी सती कारण जानने को यज्ञ समारोह में पहुंची तो उन्हें भगवान शिव के प्रति घोर अपमान औैर कटु शब्दों का आघात सहना पड़ा, जिससे आहत होकर उन्होंने उसी यज्ञ हवन कुंड में स्वयं अपने आत्मबल की तप अग्नि से खुद की जीवनलीला समाप्त कर ली। 

इस घटना के बारें में जब भगवान शिव को ज्ञात हुआ तो हाहाकार मच गया। सबसे पहले तो उन्होंने राजा दक्ष को दंडित किया फिर सभी के अनुरोध करने पर उन्हें क्षमा तो कर दिया लेकिन स्वयं माता सती के मृत शरीर को लेकर समस्त लोकों में तांडवीय विचरण करना शुरू कर दिया, इससे पूरे संसार का संतुलन डांवाडोल होने लगा, इससे बचने के लिए उपाय स्वरूप भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के मृत शरीर के 51 भाग करके भारतीय उपमहाद्वीप में गिरा दिए, जहां जहां इनके अंग या आभूषण गिरे वहां वहां विशेष देवी और उनसे जुड़े शक्तिपीठों की स्थापना हुई। 

मणिबंध शक्तिपीठ की ऐतिहासिक कहानी 

गायत्री या मणिबंध शक्तिपीठ में देवी सती की कलाईयां गिरने से यहां इस भव्य शक्ति ऊर्जा केंद्रों की स्थापना हुई। इन स्थानों को परम पवित्र और खास माना जाता है इसलिए यहां की पूजा अर्चना और सारे अनुष्ठानों की बहुत ज्यादा मान्यता है। गायत्री मंदिर पुष्कर का एक महत्वपूर्ण स्थल है जिसके बारें में कई पौराणिक और आधुनिक कहानियां प्रचलित हैं। सर्वानंद भैरव की उपस्थिति के साथ इस मंदिर का जिक्र स्कंद पुराण में राजराजेश्वरी पुरुहुत मणिवेदिक शक्तिपीठ के रूप में किया गया है। यहां गायत्री मंत्र की साधना या जप करने से बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है।

मणिबंध शक्तिपीठ की वास्तुकला एवं संस्कृति 

हिंदू धर्म से जुड़ी पवित्र नगरी पुष्कर में इस शक्तिपीठ की वास्तुकला और संस्कृति आकर्षित करती है। पुष्कर के उत्तर पश्चिम में गायत्री पहाड़ियों के पास बेहद शांत और सुकून प्रदान करने वाला है जो पत्थरों की मदद से पहाड़ी पर बना हुआ भव्य मंदिर है, जिसमें कई सारे देवी देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं। मंदिर में सर्वश्रेष्ठ जीवंत चित्रण करती हुई भव्य नक्काशियों की शोभा देखने को मिलती है। इस शक्तिपीठ की स्थापत्य एवं वास्तुकला भारत के पौराणिक महत्व को प्रस्तुत करती है और इस मंदिर के दिव्य स्तंभ और भी अधिक आकर्षित करते हैं जो इसकी सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं। यहां सबसे बाईं ओर मां काली की प्रतिमा व दाईं ओर गौरी गणेश की सुदंर सी प्रतिमा है जो अत्यंत प्राचीन, जिनकी बारें में कहा जाता है कि यह त्रेता युग की दिव्य ऊर्जा से ओतप्रोत हैं। 

गायत्री या मणिबंध मंदिर में दर्शन का समय 

सुबह दर्शन का समय : प्रातः 6 बजे से दोपहर 12 बजे तक 

शाम दर्शन का समय : शाम 4ः30 बजे से रात 9 बजे तक 

गायत्री शक्तिपीठ में मनाए जाने वाले उत्सव, अनुष्ठान एवं त्यौहार 

पुष्कर राजस्थान राज्य के अजमेर जिले के पास मौजूद अत्यंत पवित्र जिला है। जहां वर्ष भर श्रद्धालुओं और सैलानियों की भीड़ बनी रहती है। मणिबंध शक्तिपीठ में मनाया जाने वाला शारदीय और चैत्र नवरात्रि उत्सव आस्था और संस्कृति का विशाल केंद्र है जिसमें विशेष प्रार्थना, आराधना, जप और अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है, जिसमें भक्तो की भीड़ भारी संख्या में होती है। पुष्कर मेला यहां मनाया जाने वाला विश्वस्तरीय उत्सव समारोह है जिसमें काफी दूर से सैलानियों की अच्छी खासी भीड़ होती है, वैसे तो यह पुष्कर ऊंट मेला के नाम से जाना जाता है जिसमें ऊंट, घोड़े, और जानवरों की उपस्थिति होती है। यहां दुनिया भर से सैलानी मेले और स्थानीय संस्कृति का अनुभव लेने आते हैं। 

गायत्री शक्तिपीठ में महाशिवरात्रि एक विशेष प्रसिद्ध पर्व है जहां मंदिर परिसर में विशेष दिव्य अनुभवों की प्राप्ति होती है, भगवान शिव को समर्पित यह पर्व उनका पसंदीदा त्यौहार है जिसमें भक्त उन पर जल, दूध, दही, शहद और पंच गव्यों से अभिषेक कराते हैं। आज के दिन शिवलिंग में बिल्व पत्र और बेल फल चढाने का रिवाज है, साथ ही सुख शांति और वैवाहिक जीवन में सुखी रहने का आशीर्वाद लेने आते हैं। 

गायत्री जयंती या जेठ दशहरा जो ज्येष्ठ माह में दशमी तिथि को होता है, इस दिन मां गायत्री की जयंती मनाते हुए इस त्यौहार को शानदार और भव्य तरह से यहां मनाते हैं जिसके अन्तर्गत पुष्कर झील में पवित्र स्नान करने के बाद मां के पावन दर्शनों की झलक लेने के साथ ही दिव्य हवन के आयोजन में सम्मिलित होते हैं। गायत्री जयंती को गंगा दशहरा नाम से भी पुकारते हैं। 

मणिबंध शक्तिपीठ से जुड़े रोचक तथ्य 

चामुंडा माता मंदिर के नाम से प्रसिद्ध इस शक्तिपीठ में भगवान गणेश और देवी काली की मूर्ति त्रेता युग की कही जाती हैं। इसीलिए यह राजस्थान में त्रेतायुगीन मंदिरों में गिना जाता है जो सर्वाधिक प्राचीन है। 

श्रद्धालुओं की आस्था है कि यह मंदिर गायत्री साधकों के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान है, यहां कोई भी व्यक्ति गायत्री मंत्र साधना कर सकता है जहां देवी अपने भक्तों को उनकी हर समस्या से निजात दिलाती हैं और उनकी सर्वफल प्रदान करती हैं। 

मणिबंध शक्तिपीठ में पुष्कर मे स्थित है जिसके बारें में कहा जाता है कि यहां ब्रहमा जी का एकमात्र प्रतिष्ठित मंदिर है जिसकी महिमा पुराणों और ग्रंथों में भी बताई गई है। 

पुष्कर में स्थित पुष्कर झील के चारों ओर कई मंदिर और तीर्थस्थल है जिनमें से कई मंदिरों को मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा नष्ट कर दिया गया है। इस मंदिर और पुष्कर झील के बारें में ब्रह्म पुराण में दर्ज है जिसमें इसे सृष्टि की रचना से संबंधित जगह बताया गया है। 

मणिबंध शक्तिपीठ के आसपास घूमने वाले स्थान 

ब्रहमा जी मंदिर पुष्करः ब्रह्मा जी के दुर्लभ मंदिरों में से एक यह मंदिर लगभग 14वीं शताब्दी में बना था। इस मंदिर की प्रसिद्धि और ऐतिहासिकता विश्व स्तर पर प्रसिद्ध है। ब्रह्मा जी के इस मंदिर के बारें में कई स्थानीय और पौराणिक कहानियों के संग्रह सुनने और पढने को मिलते हैं जो यहां को लेकर उत्साह और कौतूहल बढाते हैं। 

पुष्कर ऊंट मेलाः विश्वप्रसिद्ध पुष्कर मेले की विशाल भव्यता और आकर्षण सैलानियों को यहां आकर्षित करता है, यहां मवेशियों के व्यापार होने के साथ ही स्थानीय संस्कृति और रीति रिवाजों को करीब से देखने का मौका मिलता है। मेले में तरह तरह के प्रदर्शन किए जाते हैं। यहां आप ऊंट की सवारी का आनंद लेने के साथ ही विभिन्न उच्च नस्लों के जानवरों को देख सकते हैं। 

रंग जी मदिरः भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर दक्षिण भारतीय शैली पर निर्मित एक अनोखा तीर्थस्थल है, जो अपने अनूठेपन के कारण आकर्षित करता है। इस मंदिर का उत्कृष्ट आकर्षण यहां का प्रवेशद्वार जिसे गोपुरम कहते हैं और अलंकृत जटिल नक्काशी है जिसका बारीक काम सभी को हैरत में डाल देता है। 

सावित्री मंदिरः पहाड़ी के शीर्ष पर अवस्थित यह मंदिर देवी सरस्वती को समर्पित है जो ब्रह्मा जी की पत्नी हैं। यहां से पुष्कर का दुर्लभ और विशेष नज़ारा दिखाई पड़ता है। अपने रोचक पौराणिक इतिहास की वजह से यह मंदिर और भी ज्यादा विशेष प्रतीत होता है। 

गुलाब उद्यानः पुष्कर क्षेत्र अपनी गुलाब की खेती के लिए लोकप्रिय है जहां आप गुलाब के खेतो के शानदार नजारें और इनसे बने दुर्लभ उत्पादों को खरीद भी सकते हैं। खूबसूरत गुलाब के बाग और इनकी खुशबू से गुलज़ार वातावरण बेहद प्रिय लगता है। 

मान महल, पुष्करः उत्कृष्ट वास्तुकला और शानदार पृष्ठभूमि के लिए यह महल जाना जाता है जो पुष्कर झील के किनारें की अवस्थित है। वर्तमान में यह अजमेर राजकीय संग्रहालय के रूप में है जहां आप इस क्षेत्र के सांस्कृतिक और पौराणिक इतिहास के बारें में जान सकते हैं। 

पुष्कर झीलः पुष्कर में मौजूद पुष्कर झील अत्यंत पवित्र स्थान हैं जहां हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्र घाटों की अनगिनत छवियों को निहार सकते हैं। 

आत्मेश्वर मंदिर, पुष्करः भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर अपनी महत्ता और अद्भुत वास्तुकला की वजह से प्राचीन मंदिरों की गिनती में आता है जहां विशाल शिवलिंग के साथ शिव परिवार के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त होता है। 

मणिबंध या गायत्री शक्तिपीठ पुष्कर कैसे पहुंचे

हवाई मार्ग से 

  • अगर आप हवाई मार्ग से पुष्कर जाना चाहते हैं तो सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट हे जहां आप अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जयपुर पहुंचकर लगभग 150 किमी तय करके पुष्कर पहुंच सकते है
  • राष्ट्रीय तौर पर हवाई यात्रा करना चाहते हैं तो किशनगढ एयरपोर्ट अजमेर के नजदीक है जो यहां से लगभग 24 किमी की दूरी पर है। स्थानीय वाहनों की मदद से अजमेर पहुंचकर पुष्कर की यात्रा कर सकते हैं। 

रेल मार्ग से 

  • पुष्कर जाने के लिए अजमेर जंक्शन रेलवे स्टेशन नजदीक हेे जहां से आप स्थानीय वाहनों की मदद से पुष्कर यात्रा कर सकते हैं। 

सड़क मार्ग से 

  • पुष्कर अजमेर, राजस्थान का महत्वपूर्ण शहर है जिसकी सड़क माध्यम से बेहतर कनेक्टिविटी है। देश के प्रमुख शहरो से राजस्थान राज्य की सड़क सुविधा अच्छी होने की वजह से आप कहीं से भी राजस्थान के इस पवित्र शहर की यात्रा की योजना बना सकते हैं। 

मणिबंध शक्तिपीठ में क्या करें और क्या न करें 

  • शालीन वेशभूषा पहनें और मंदिर में गंदगी न करें 
  • जोर जोर से न बोले, शोर न करें क्योंकि यहां लोग गायत्री मंत्र जप साधना भी करते हैं। 
  • प्रसाद का अनादर न करें और मंदिर परिसर में मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करें
  • अनावश्यक और मंदिर में मौजूद देवी देवताओं की प्रतिमाओं की फोटों वगैरह न खींचे। 
  • मौन रहकर कुछ देर ध्यान साधना करने का आध्यात्मिक अनुभव ले सकते हैं। 
  • हवन आदि कार्यक्रम में भाग लें। 
  • स्वयं की साफ सफाई और मंदिर की स्वच्छता बनाएं रखें। 

निष्कर्ष 

गायत्री या मणिबंध शक्तिपीठ धरती पर पवित्र स्थान है जहां प्रवेश करते ही तुरंत दिव्य आध्यात्मिक ऊर्जा का आभास स्वयं होता है। राजस्थान का यह क्षेत्र अपनी क्षेत्रीयता, सांस्कृतिकता और ऐतिहासिक विरासतों के साथ ही धार्मिकता के अद्भुत कीर्तिमान संरचित करता है। मणिबंध शक्तिपीठ सिर्फ एक मंदिर ही नहीं है अपितु इसकी सूर्य सी चमकती आभा हर श्रद्धालु के तन मन को अपनी कांति से सिंचित करती है। पुष्कर के इस भव्य शक्तिपीठ की धार्मिक यात्रा करते हुए यहां की शांति और सुकून के क्षणों का जीवन में आनंद लीजिए। 

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