श्रीलंका में जाफना जिले में स्थित इन्द्राक्षी शक्तिपीठ की गिनती हिंदू धर्म के महान शक्तिशाली 51 शक्तिपीठों में होती है। यह मुख्य रूप से दिव्य ऊर्जा स्त्रोत के प्रमुख केंद्र हैं जहां से समस्त संसार में शक्ति का संचार होता है। इन्द्राक्षी शक्तिपीठ का पूरा नाम इन्द्राक्षी नागपूशनी शक्तिपीठ है जो नागा यानी सर्प और पूशनी का मतलब है पोषक से मिलकर बना है। इन्द्राक्षी का आशय इन्द्र की आंखों से है। आध्यात्मिक उन्नति और विकास की इच्छा से श्रद्धालु इस शक्तिपीठ में दर्शन करने आते हैं जहां वातावरण अत्यधिक सुकून और आध्यात्मिक संतुष्टि प्रदान करता है। श्रीलंकाई परम्पराओं और रीति रिवाजों को प्रदर्शित करता यह तीर्थ स्थान और किन मायनों में बेहद खास है, आइए जानते हैं इस आर्टिकल में।
भगवान शिव और उनकी पत्नी सती राजा दक्ष की बेटी थी। एक बार राजा दक्ष ने भव्य यज्ञ समारोह का आयोजन किया और उसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया किन्तु भगवान शिव और पुत्री सती को नही बुलाया। इस बात से दुखी सती नंदी पर सवार होकर कारण जानने के उद्देश्य से अकेले ही वहां पहुच गईं। कारण पूछने पर उन्हें भगवान शिव के प्रति तिरस्कार और अपमान का सामना करना पड़ा जिससे आहत होकर उन्होंने यज्ञ कुंड की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।
इस बात की जानकारी जब भगवान शिव को हुई तो रौद्र रूप में उन्होंने मृत सती के शव को लेकर तांडव नृत्य करना आरंभ कर दिया, सृष्टि संतुलन बिगड़ने लगा। इससे चिंतित होकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़ों में विभक्त कर दिया जो भारतीय उपमहाद्वीप में जहां गिरे वहां उक्त शक्तिपीठ की स्थापना हो गई।
श्रीलंका के टॉर्क्सियन राज्य के जाफना जिले में अवस्थित इस शक्तिपीठ में देवी सती की पायल गिरी थी जो पानी के बीचों बीच नैनातिवु द्वीप पर स्थित मंदिर है। कुछ लोगांं का मानना है कि यहां देवी सती की बाईं आंख गिरी थी। पुराणों का जिक्र करें तो यह शक्तिपीठ भगवान इंद्र और नाग वासुकी की कथा से संबंधित है।
इन्द्राक्षी का शाब्दिक अर्थ है इन्द्र की आंखो वाली, जिसके पीछे एक पौराणिक कथा सुनने में आती है। एक बार राजा इन्द्र ने ऋषि पत्नी अहिल्या पर कुदृष्टि डाली थी, जिस पर गौतम ऋषि के श्राप के कारण उनके शरीर पर हजार योनियों के निशान बन गए। इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए राजा इंद्र ने इसी स्थान पर माता भगवती की आराधना की थी। जिससे देवी मां ने प्रसन्न होकर उनके सभी योनियों के निशान को आंखों के निशान में बदल दिया, इस वरदान के बाद राजा इन्द्र सहस्त्राक्ष यानी हजार आंखों वाले कहलाए।
यहां प्रकट होने वाली देवी इंद्राक्षी के नाम से मशहूर हुईं जिसका अर्थ यह है कि जिन्होंने इंद्र को आंखें प्रदान की हों। इंद्राक्षी देवी अपनी चौखट पर आने वाले सभी भक्तों की करूण पुकार सुनती हैं और उनमें नवचेतना का संचार करती हैं। इनकी पूजा आराधना करने से शारीरिक कष्टों और मानसिक समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
नैनातिवु अम्मन द्वीप पर यह मंदिर अवस्थित है और नागपूशनी का शाब्दिक अर्थ है- वे देवी जो नागों का श्रृंगार करती हों जिन्हें सर्पों के आभूषण धारण करती हों। यहां शिव रूपी भैरव शक्ति को नयनार नाम दिया गया है।
देवी की आराधना में पायल आभूषण की बहुत अधिक महत्ता है। तमिल महाकाव्य में शिलापथिकरम में ऐसी ही वस्तु के बारें में लिखा है जिसमें कथा की शुरूआत में और अंत में भी पायल का जिक्र है। कहते हैं कि यहां देवी सती की पायल गिरी थी।
स्थानीय कथा के अनुसार नागम नाम का एक सर्प भुवनेश्वरी देवी के इस मंदिर (जिसे राजा इंद्र ने पहले पूजा था) में पूजा करने के लिए अपने मुख में कमल का फूल लेकर पास के ही पुलियंतिवु द्वीप से लेकर नैनातिवु की ओर जा रहा था, तभी गरूड़ नाम के एक बाज ने उसे देखा तो उस सर्प को मारने का प्रयत्न किया। नैनातिवु द्वीप से आधा किलोमीटर दूर उस सर्प ने खुद को देवी की कृपा से एक चट्टान पर लपेट लिया और दूसरी ओर गरूड़ नाम के बाज एक अलग चट्टान पर खड़ा रहा। देवी की दया दृष्टि से उस सर्प की जान बच गई। इसीलिए इन्हेंं नागपूशनी यानी नागों की रक्षा करने वाली देवी भी कहते हैं। गरूड़ रूपी बाज को महाभारत काल में अपनी गलतियों के प्रायश्चित करने हेतु समुद्र की तीन बार यात्रा करनी पड़ी थी।
इस मंदिर की वास्तुकला अति भव्य और आकर्षक है जिसमें करीब 20-25 फीट ऊंचे चार प्रवेश द्वार हैं जिनकी बनावट और वास्तु दक्षिण भारतीय तमिल कला श्रेणी से प्रभावित है। खूबसूरत डिजाइन और माता भुवनेश्वरी को समर्पित यह मंदिर तकरीबन 10 हजार मूर्तियों का संकलन करता है। इस मंदिर का निर्माण तकरीबन 16वीं शताब्दी में हुआ था जिसे पुर्तगालियों ने नुकसान पहुंचाया था।
इस मंदिर मे माता इंद्राक्षी को भुवनेश्वरी देवी भी कहते हैं, जो तीनों लोकों की माता कहलाती हैं। हिंदू तांत्रिक पद्धति में यह दस महाविद्याओं मे एक रूप है जो दिव्य रूप से पूरे संसार को संचालित करती हैं। इन्हें ब्रहांड की सबसे शक्तिशाली देवियों में एक माना जाता है।
मंदिर खुलने का प्रातःकालीन समय : सुबह 6 बजे
मंदिर बंद होने का सायंकालीन समय : शाम 6 बजे
नवरात्रिः चैत्र और आश्विन मास में आने वाले नवरात्रि पर्व के दौरान और भी ज्यादा विशेष वातावरण हो जाता है जहां विशाल भव्य मेले का आयोजन होता है। दिव्य अनुष्ठानों का आरंभ और श्रद्धालुओ की अपार भीड़ देखने को मिलती है। इन दिनों देवी की गुप्त या सर्वसुलभ साधना करने से देवी की सुलभ कृपा शीघ्र ही प्राप्त हो जाती है।
शिवरात्रिः फरवरी या मार्च में होने वाली महाशिवरात्रि पर्व के समय मंदिर की अद्भुत छटा देखते बनती है जब भगवान शिव की विशेष आराधना करने के साथ ही रात्रि जागरण और पूजा का सफल विधान संपन्न किया जाता है।
आदि पूरम उत्सव और तिरुविझा या महोस्तवम उत्सव यहा बहुत धूमधाम से आयोजित किया जाता है जो जून या जुलाई महीनों में मनाया जाता है।
इन्द्राक्षी शक्तिपीठ से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
इन्द्राक्षी शक्तिपीठ संबंधित इन्द्राक्षी स्तोत्र का पाठ करने से गंभीर से गंभीर बीमारियों से मुक्ति मिलती है व अच्छे स्वास्थ्य का वरदान मिलता है।
जिंदगी में किसी भी तरह की मनोकामना के लिए इंद्राक्षी देवी की साधना फलीभूत सिद्ध होती है। चाहे नौकरी हो या व्यवसाय या कोई अन्य कोर्ट संबंधी समस्या हो, समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
व्यक्ति यहां आध्यात्मिक उन्नति और मानसिक शांति प्राप्त करता है।
मविदापुरम कंडास्वामी मंदिर, जाफना: श्रीलंका के जाफना में मविदापुरम मे अवस्थित यह मंदिर करीब 8वीं शताब्दी का बना मंदिर है जो चोल राजाओं ने बनवाया था। इस मंदिर की कहानी बड़ी रोचक है, मदुरै के राजा की बेटी लगातार आंतों के विकार के साथ ही चेहरे की विकृति से परेशान थी इस वजह से उसका चेहरा घोड़े जैसा दिखता था तभी उन्हें एक ऋषि ने कीरीमलाई में मीठे पानी के झरने में स्नान करने की सलाह दी जिसमें स्नान करने के बाद उसकी बीमारी दूर हो गई। इसी कृतज्ञता में उसने हिंदू मंदिर मुरूगन के सम्मान में इस मंदिर का निर्माण कराया। इस मंदिर से जुड़ी और भी कई आश्चर्यजनक कहानियां है साथ ही इसका वास्तुकला इतिहास भी ऐतिहासिक और आकर्षक है।
वैरावन मंदिरः श्रीलंका के वेलानई द्वीप पर स्थित यह मंदिर हिंदू देवता वैरावर को समर्पित है जिसे अंजनेयार मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, इस मंदिर की स्थापना करीब 2000 साल पुरानी है, इसमे कई देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। वैरावर भगवान शिव के अवतार के रूप में माने जाते हैं, इस मंदिर में एक शांत झील और प्राकृतिक सुदंरता लिए हरे भरे बाग बगीचे भी हैं। यहां गैर हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है। भगवान वैरावर के भोग के लिए थालीकुट्टू एकतरफा प्रसाद चढाने का रिवाज है जहां कार्तिक पूर्णिमा जैसे अवसरों पर विशेष पूजा अनुष्ठान व व्रत रखा जाता है।
गंगारामया मंदिर, कोलंबोः सबसे पुराने बौद्ध मंदिरो ंमें इस स्थान की गिनती होती है जिसका निर्माण 19वीं शताब्दी के अंत में प्रसिद्ध भिक्षुक श्री हिक्काडुवे श्री सुमंगला नायक थेरा ने कराया था। यह मंदिर आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशेष पहचान रखता है। जहां सिर्फ एक मंदिर नहीं वरन् साधना केंद्र, शिक्षा का स्थल और सांस्कृतिक केंद्र भी है। कोलंबो के इस मंदिर में विशेष उत्सव समारोह की धूम विदेशों तक पहुंचती है।
कटारगामा मंदिर, सिंहलीः बौद्ध संरक्षक देवता कटारगामा को समर्पित यह मंदिर श्रीलंका के सिंहली में अवस्थित है जिन्हें हिंदू देवता भगवान मुरुगन के रूप मे पूजते हैं। श्रीलंका का यह स्थान बौद्धों, हिंदुआें, मुस्लिमों और वेड्डा लोगों द्वारा वंदनीय है, जो श्रीलंका के गिने चुने स्थानों में से एक है। पहले यहां आना बहुत कठिन कार्य माना जाता था जो समय के साथ अब बहुत आसान हो गया। यहां मंदिर के पुजारियों को कपूरला रूप में जाना जाता है। मंदिर और आस पास के क्षेत्र को विशेष जादू टोने और श्राप जैसी छिपी हुई विद्याओं के लिए जाना जाता है।
श्रीलंका के एयरपोर्ट कोलंबो इंटरनेशनल पहुंचकर जाफना के लिए स्थानीय परिवहन के माध्यम से पहुंच सकते हैं।
जाफना से कुरीकाडुवान तक स्थानीय बस या टैक्सी ले सकते हैं।
कुरिकाडुवान पहुंचने के बाद नैनातिवु द्वीप के लिए नाव की मदद से पहुंच सकते हैं।
श्रीलंका मे स्थानीय रेलवे और सड़कों की अच्छी व्यवस्था है आप चाहें तो जाफना के लिए रेल या मेट्रो विकल्प भी चुन सकते हैं।
इन्द्राक्षी शक्तिपीठ जिसके कई सारे विभिन्न नाम हैं और उनकी महत्ता भी उतनी ही ज्यादा विशेष है। सृष्टि के आरंभ से ही इस शक्तिपीठ का अस्तित्व है जिसकी उपयोगिता और आध्यात्मिक संपन्नता कई युगों से कायम है। द्वीप पर अवस्थित इस शक्तिपीठ की प्राकृतिक खूबसूरती और इसकी प्राचीन विशेषता इसे और भी ज्यादा प्रसिद्ध बनाती है, जहां शक्ति की आराधना और साधना करने के लिए देश दुनिया से लोग जाते हैं। शांत वातावरण, लहरों और उपवनों के बीच बसा यह तीर्थस्थल अपनी चमत्कारी शक्तियों के लिए श्रद्धालुओं के मध्य लोकप्रिय होने के साथ ही अद्वितीय स्थानों में भी शुमार रखता है। अगर आप भी प्रकृति की गोद व भक्ति की गहराईयों मे जाकर आत्मिक शांति की खोज करना चाहते हैं तो इन्द्राक्षी शक्तिपीठ सर्वोत्तम स्थान है।