• Oct 10, 2025

बांग्लादेश के चटगांव में सीताकुंड के पास स्थित भवानी चंद्रनाथ शक्तिपीठ हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार बेहद शक्तिशाली और पवित्र स्थल है, जिसकी गिनती 51 शक्तिपीठों में होती है। इसकी ऊंचाई समुद्र तल से करीब 310 मीटर है, जो देवी मां और भैरव भगवान की गौरवमयी उपस्थिति से भक्तों को आकर्षित करती है। अपनी तरह का यह ऐसा शक्तिपीठ है जिसके नाम में भगवान भैरव के नाम की महिमा भी शामिल है, इसे चंद्रनाथ शक्तिपीठ नाम से भी जानते हैं। भगवान शिव और देवी दुर्गा की छवियों को साकार स्वरूप में बोध कराता यह शक्तिपीठ और किन मायनों में बेहद खास है, जानते हैं इस आर्टिकल में।

शक्तिपीठों से जुड़ी पौराणिक कहानी

राजा दक्ष के यज्ञ समारोह में उनकी पत्नी देवी सती के सामने भगवान शिव की अनुपस्थिति में उनका अपमान होने से देवी सती इतनी आहत हुईं कि उन्होंने उसी यज्ञ कुंड में अपने तपोबल की अग्नि प्रज्वलित कर खुद को समाप्त कर देती हैं। इस दुखद घटना से भगवान शिव गुस्से में आकर तांडवीय नृत्य करते हुए देवी सती के शव को लेकर घूमने लगते हैं इस वजह से ब्रह्माडीय संतुलन बिगड़ने लगता है। इन परिस्थितियांं से रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को बांटना शुरू कर दिया। इनके शरीर अंगों के गिरने से विभिन्न जगह शक्तिपीठों की स्थापना हुई।

चंद्रनाथ शक्तिपीठ से संबंधित पौराणिक मान्यता

भवानी चंद्रनाथ शक्तिपीठ में माता सती की दाहिनी भुजा गिरने से इस शक्तिपीठ की स्थापना हुईं। जितने भी शक्तिपीठ हैं, उनमें उनकी रक्षा के लिए भगवान शिव का प्रतिरूप भगवान भैरव की भी स्थापना है। इसी तरह इस शक्तिपीठ में भी भगवान भैरव के रूप में चंद्रनाथ हैं जो भगवान शिव का ही एक अवतार हैं। इनकी गरिमा और प्रतिष्ठा के कारण ही इस मंदिर को भगवान भैरव चंद्रनाथ के नाम पर ही इस शक्तिपीठ को जाना जाता है।

इसके पीछे और एक कहानी सुनने को मिलती है, स्थानीय लोगों के अनुसार भगवान शिव ने स्वयं कलयुग में इस चंद्रशेखर पर्वत पर आने का वचन दिया था, जिसे साक्षात् भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है इसीलिए इसे चंद्रनाथ शक्तिपीठ नाम से जाना जाता है।

चंद्रनाथ शक्तिपीठ की समय सारिणी

रोज मंदिर दर्शन का समय : सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक , शाम 4 बजे से रात 8 बजे

मंदिर बंद होने का समयः रात 8 बजे

पवित्र उत्सवों और अनुष्ठानों के समय मंदिर के समय मेंं परिवर्तन संभव है।

चंद्रनाथ शक्तिपीठ की वास्तुकला एवं संस्कृति

चंद्रनाथ शक्तिपीठ एक पहाड़ी की चोटी पर बना विशेष शक्तिपीठ है जो वास्तव में सिर्फ शक्तिपीठ न होकर भगवान शंकर के निवास का प्रमुख स्थान है। यहां दो स्थापित दो प्रतिमाएं देवी भवानी सती की है और दूसरी भगवान शिव की है, जिन्हें चंद्रशेखर कहा जाता है।

मंदिर की संरचना उच्च कोटि की संगमरमर से बनी है जिसमें विशेष कलाकृतियों के समूह देखने में अनुपम छवि प्रस्तुत करते हैं। इस मंदिर के बारें मे ज्ञात होता है कि इसका निर्माण 11वीं शताब्दी के दौरान हुआ है

इस मंदिर की वास्तुकला में नक्काशियों का खूबसूरती से समागम किया गया है जिसमें प्रतिमाओं के साथ हिंदू और बौद्ध धर्म की डिजाइन्स के तत्वो का सम्मिश्रण देखने को मिलता है। 

इस मंदिर को बनाने में पत्थर, संगमरमर, लकड़ी और धातुओं का प्रयोग हुआ है। जिसमें देवताओं की छवियां और मंदिर के अग्रभाग में हिंदू पौराणिक कहानियों के चित्रण देखने में आकर्षक प्रतीत होते हैं। 

इस मंदिर के वास्तुकला ले आउट में विभिन्न हॉल और इनसे घिरा मुख्य गर्भग्रह आकर्षण देखने को मिलता है। 

चंद्रनाथ शक्तिपीठ से जुड़े रोचक तथ्य 

राजमाला पुस्तक में लिखा है कि यह मंदिर लगभग 800 सालों पहले गौर के प्रसिद्ध आदिसुर के वंशज, राजा विश्वम्भर सूर ने समुद्र मार्ग से चंद्रनाथ पहुंचने का प्रयास किया था। 

निगमकल्पतरू में कवि जयदेव के चंद्रनाथ में कुछ समय तक रहने के संकेत मिलते हैं। 

कहा जाता है कि त्रिपुरा के शासक धन्य माणिक्य ने चंद्रनाथ भगवान की मूर्ति को त्रिपुरा लाने का प्रयास किया था, जिसमें वे असफल रहे। 

चंद्रनाथ शक्तिपीठ में मनाए जाने वाले उत्सव एवं अनुष्ठान

देवी दुर्गा के शक्तिपीठों में नवरात्रि उत्सव की रौनक और उत्साह देखने लायक होता है। जहां उमंग और उल्लास की बयार बहते हुए सभी भक्तों के तन मन को पवित्र करती है। ऐसे में लगने वाले मेले और भक्तो की अपार भीड़ इन उत्सवों को और भी ज्यादा महत्व प्रदान करती है। 

इस शक्तिपीठ में महाशिवरात्रि पर्व पर विशेष धूम होती है जहां मनमोहक वातावरण में मंदिर में विशेष पूजा अर्चना का अनुष्ठान संपन्न किया जाता है। 

चंद्रनाथ शक्तिपीठ में सीताकुंड मेले का भव्य आयोजन किया जाता है जो हर साल फाल्गुन में चतुर्दशी तिथि को संपन्न किया जाता है। इस दिन यहां विशाल जन समारोह होता है जहां देश विदेश से साधु संत, ग्रहस्थ व बच्चे शामिल होते हैं। यह आयोजन पूर्णिमा तिथि तक जारी रहता है। 

चंद्रनाथ शक्तिपीठ के आसपास या बांग्लादेश घूमने वाले स्थान 

सीताकुंड नेचर पार्कः चंद्रनाथ शक्तिपीठ के नजदीक ही यह इको पार्क अवस्थित है, इसकी हरियाली, विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधे और तरह तरह के जीव जंतुओ को भी देख सकते हैं इसी पैदल यात्रा के रास्ते चंद्रनाथ शक्तिपीठ की यात्रा पर निकल सकते हैं। यहां शांति से परिपूर्ण वातावरण, विभिन्न तरह के अंसख्य पक्षियों के दर्शन भी कर सकते हैं। इसके अलावा यहां से बंगाल की खाड़ी के मनोरम नजारों का आनंद ले सकते हैं। यह पार्क पारिस्थितिकी तंत्र की महत्ता में उपयोगी भूमिका निभाता है, जहां सिर्फ धरती ही नहीं बल्कि समुद्री जीवन की भी अहमियत है। मनोरंजन और धार्मिकता का सुखद संयोग पेश करता सीताकुंड नेचर पार्क पर्यटकों को विभिन्न तरह के आकर्षणों के लिए अपनी ओर आकर्षित करता है, जो जैव विविधता के लिए भी मशहूर है। 

सोहोसधरा झरना : चटगांव सीताकुड स्थित सोहोसधारा झरना देखने में बहुत शानदार है जिसकी ऊपर से गिरती हुई जलधारा कई सारी धाराओं में विभक्त होती हुई प्रतीत होती है। इसी कारण इसे सोहोसधारा झरना कहते हैं। साफ स्वच्छ पानी और हरियाली के आंगन में पत्थर पर गिरती हुई जलधाराएं पर्यटन की दृष्टि से बेहद आकर्षित करती है। चंद्रनाथ शक्तिपीठ के दर्शन करने के बाद इस झरने की शोभा को निहार सकते हैं। 

भवानी मंदिरः बांग्लादेश में भवानी शक्तिपीठ या अर्पणा शक्तिपीठ के दर्शनों हेतु भी जा सकते हैं जो शेरपुर में स्थित है जहां देवी काली की ही पूजा होती है। इस मंदिर में आप किसी उत्सव या अनुष्ठान में भाग ले सकते हैं जहां शाखा पुकुर पवित्र तालाब की झलक और महत्ता मनमोहक है। 

जगन्नाथ मंदिरः बांग्लादेश के कोमिला में स्थित यह मंदिर स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है जिसका निर्माण 16वी ंशताब्दी के आसपास हुआ था। इस मंदिर को सतरोरत्न या सत्रह रत्न मंदिर भी कहते हैं। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां विराजित हैं इसके अलावा इस मंदिर में सत्रह तरह के बहुमूल्य रत्नों की शोभा देखने को मिलती है इसी कारण इसे उक्त नामों से भी जाना जाता है। इन रत्नों के बारें में कहा जाता है कि कोई भी इन्हें चुरा नहीं पाता है। 

पटेंगा बीचः पटेंगा बीच चटगांव का एक बेहद सुंदर समुद्री तट है जिसकी शोभा कर्णफुली नदी और बंगाल की खाड़ी के बीच शानदार परिदृश्य का निर्माण करती है। सूर्योदय और सूर्यास्त के खामोश नजारों की खूबसूरती देखते बनती है। समुद्र किनारे हवा की मंद बयार, समुद्री निशानियां और स्थानीय स्नैक्स का चटपटा स्वाद पर्यटन के मजे को कई गुना बढा देता है। आप यहां पक्षियों और मछुआरों को दैनिक गतिविधियों को देखते हुए रोमांचक अनुभव ले सकते हैं। 

फॉय झीलः मानव निर्मित झील की सुदंरता और आकर्षक परिदृश्य स्थानीय और पर्यटकों दोनों को खूब आकर्षित करता है। यह झील सन् 1924 में बनी थी, जो पहाड़ियो से घिरी हुई अति खूबसूरत लुक देती है। इस झील के किनारे बना मनोरंजन पार्क और प्रचुर वनस्पतियो की उपलब्धता, विविध वन्यजीवों की उपस्थिति से और भी ज्यादा शानदार आकर्षण प्रदान करती है। 

कप्ताई झीलः सन् 1960 में बनी यह मानव निर्मित झील बांग्लादेश की सबसे बड़ी झील है जिसे कर्णफुली नदी पर बनाया गया है। लुढकती पहाड़ियों के सुरम्य नजारों के बीच यह झील हरी भरी हरियाली और साफ स्वच्छ नीले पानी के लिए जानी जाती है। इस झील में आप कई तरह की रोमांचक गतिविधियों का आनंद ले सकते हैं जैसे नौका विहार, मछली पकड़ना या कायाकिंग जैसी कई एक्टीविटीज कर सकते हैं। इस झील की विशेषता है कि यहां कप्टईमुख नाम का पानी से घिरा हुआ शहर भी अवस्थित है जो एक दिलचस्प परिदृश्य बनाता है। पारंपरिक आवासों और स्थानीय हस्तशिल्पों की झलक देता चटगांव अपनी अनोखी जीवन शैली और संस्कृति से रूबरू कराता है। 

नवल बीच: बांग्लादेशी नौ सेना द्वारा प्रंबधित किया जाता नवल बीच अपनी स्वच्छता और सफाई के लिए पर्यटक वर्ग का ध्यान आकर्षित करता है। सुव्यवस्थित वातावरण के साथ ही शांति और एकांत प्रदान करता यह समुद्री तट रेतीले क्षेत्र में हरियाली से ओतप्रोत पहाड़ियों के बीच बहुत ही खूबसूरत परिदृश्यों को प्रस्तुत करता है। यहां प्रवेश करने के लिए अनुमति की आवश्यकता होती है, जहां कुछ स्नैक्स के स्टॉल और मनोरंजन के साधन भी उपलब्ध रहते हैं। अगर आप भी शांत समुद्री लहरों को ध्यान से सुनना चाहते हैं तो इस समुद्री तट का रूख कर सकते हैं। 

चंद्रनाथ शक्तिपीठ कैसे पहुंचे 

हवाई मार्ग से

  • बांग्लादेश के चंद्रनाथ शक्तिपीठ जाने के लिए निकटतम हवाई अड्डा शाह अमानत इंटरनेशनल एयरपोर्ट है जो यहा से लगभग 55 किमी दूरी पर है। 

रेल मार्ग से

  • चंद्रनाथ शक्तिपीठ से नजदीकी रेलवे स्टेशन सीताकुंड रेलवे स्टेशन है जिसकी दूरी लगभग 2.5 किमी है। 

सड़क मार्ग से

  • भवानी चंद्रनाथ शक्तिपीठ से सीताकुंड बस स्टेशन पास ही है जिसकी लगभग दूरी 3 किमी है जहां बस के माध्यम से पहुंच सकते हैं। 

निष्कर्ष

भवानी चंद्रनाथ शक्तिपीठ या चट्टल शक्तिपीठ के नाम से मशहूर यह स्थान अपने अनुयायियों के लिए भगवान शिव और मां गौरी की कृपा एक साथ प्रदान करने वाला परम पवित्र देव स्थान है जो चंद्रशेखर पर्वत पर बना हुआ भव्य प्रतीत होता है। अद्भुत कलाकृतियों और अद्वितीय वास्तुकला का प्रतीक यह मंदिर अनंतकाल से भक्तों के लिए आकर्षण और आध्यात्मिकता का केंद्र रहा है। प्राकृतिक नजारें, हरियाली और शांत दिव्य स्थान के बीचों बीच बसे इस शक्तिपीठ की महत्ता यहां आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु की आत्मा को भीतर तक सुकून की ठंडी छाया प्रदान करती है। देवी दुर्गा और भगवान शंकर के इस दिव्य शक्तिपीठ की भक्तिमय यात्रा कर विशेष अनुभवों का लाभ उठाएं और पराशक्ति की दिव्यता को स्वयं महसूस करें।

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