उत्तराखंड का एक खूबसूरत हिल स्टेशन लैंसडाउन जो अपनी प्राकृतिक वादियों, हरियाली और शानदार औपनिवेशिक इतिहास के लिए प्रसिद्ध है, इस जगह ने यह नाम ब्रिटिश वायसराय लैंसडाउन से पाया है। पौढ़ी गढ़वाल क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाला यह स्थान एक कैंट एरिया है और यह पहचान ब्रिटिशर्स के समय से ही है। यह हिल स्टेशन शरद ऋतु के समय अपने यहां होने वाले शरदोत्सव के लिए जाना जाता है, जो बहुत से अन्य विशेष पर्यटन स्थलों के लिए भी जाना जाता है, जिनकी अपनी ख़ासियत है। आइए इनके बारे में इस आर्टिकल में विस्तार से समझते हैं।
उत्तराखंड का यह क्षेत्र लैंसडाउन अंग्रेजो के समय से ही गढ़वाल राइफल्स सैनिकों का अभ्यास स्थल रहा है। इसी समृद्ध इतिहास को खूबसूरती से बयां करता यह युद्ध स्मारक सन् 1923 में भारत के तत्कालीन कमांडर-इन-चीफ लॉर्ड रॉलिंसन द्वारा बनवाया गया था, जो परेड ग्राउंड में स्थित है। गढ़वाल राइफल्स मूल रूप से 1887 में बंगाल सेना की 39वीं रेजिमेंट के रूप में अस्तित्व में आई, इसके बाद से ब्रिटिश भारतीय सेना के हिस्सें में रॉयल गढ़वाल राइफल्स से जानी गई। गौरवशाली गढ़वाल राइफल्स ने दोनों विश्व युद्धों और स्वंतत्रता के बाद लड़े गए युद्धों में बढ़ चढ़कर भाग लिया। इस रेजिमेंट को कई युद्ध पुरस्कारों से नवाजा गया है। लैंसडाउन, एक ओर शांति सुकून और आनंद देने वाला, वहीं दूसरी ओर देशभक्ति की जोश भरी कहानियों के लिए प्रसिद्ध स्थान है।
स्थानः पौढ़ी गढ़वाल, उत्तराखंड
उपयुक्त समयः अप्रैल से जून, सितंबर से नवंबर
दरवान सिंह नेगी, एक ऐसी गढवाली सैनिक जिन्हें भारत में पहले विक्टोरिया क्रॉस से नवाजे जाने वाले भारतीय के रूप में जाना जाता है। यह सर्वोच्च और प्रतिष्ठित पुरस्कार युद्ध में वीरता का परिचय देने वाले ब्रिटिश और राष्ट्रमंडल बलों के जांबाज सैनिकों को दिया जाता है। इन्हीं के नाम पर यह संग्रहालय लैंसडाउन में स्थित है, जहां गढ़वाली रेजिमेंट का गौरवान्वित इतिहास और वीरगाथाएं अपना परिचय दे रही हैं, चाहे प्रथम विश्व युद्ध हो या द्वितीय इनसे जुड़े साक्ष्य यहां मौजूद हैं, साथ ही स्वतंत्रता मिलने के बाद जो भी युद्ध अब तक हुए हैं उनकी गौरवगाथाएं यहां स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं।
स्थानः कोटद्वार पौढ़ी रोड, लैंसडाउन, उत्तराखंड
उपयुक्त समयः अप्रैल से जून, अक्टूबर से नवंबर
भगवान शिव के भक्त यहां आकर इनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, कहा जाता है कि मंदिर में जो शिवलिंग है वह किसी के द्वारा स्थापित नहीं है, अपितु प्राकृतिक रूप से प्रकट हुआ स्वयंभू शिवलिंग है। स्थानीय बातों के अनुसार करीब 500 साल पहले इस पवित्र स्थान पर गायें स्वयं अपने दूध से शिवलिंग पर अभिषेक किया करती थीं, जिसे ऋषियों के ध्यान स्थल से भी जोड़ा गया है। लैंसडाउन के खूबसूरत नज़ारों के बीच मंदिर की धार्मिकता इसकी खूबसूरती को और ज्यादा बढ़ा देती है।
स्थानः आरएमपीजे + एक्स5एच, लैंसडाउन, उत्तराखंड
उपयुक्त समयः फरवरी से मार्च, अक्टूबर से नवंबर
प्रोजेक्ट टाइगर 1974 के समय यह टाइगर रिजर्व अस्तित्व में आया, जो जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का उत्तरी हिस्सा है। रामगंगा नदी पर बने बांध के नाम पर इसका नाम कालागढ़ रखा गया है। शिवालिक पर्वत श्रृंखला में बसा जैव विविधता वाला क्षेत्र कालागढ़ टाइगर रिजर्व बहुत सारी वन्यजीव प्रजातियों का घर है। यहां बाघ, तेंदुआ, भालू और बिल्लियों की कई नस्लें हैं साथ ही हिरण की कई तरह की शानदार नस्लें हैं। पक्षियों की 500 से अधिक प्रजातियां हैं और कई प्रजातियों के औषधीय, विशेष और दुर्लभ वृक्ष भी यहां पाए जाते हैं। यहां कई सारी जैव विविधताएं देखने को मिलती हैं। आप यहां जीप सफारी के माध्यम से भी इस क्षेत्र की शोभा देख सकते हैं।
स्थानः जिम कार्बेट के उत्तरी भाग, मुख्यालय नैनीताल, लैंसडाउन, उत्तराखंड
उपयुक्त समयः नवंबर से जून
यह आर्टिफिशयली रूप से बनाई गई झील है जो गढ़वाली राइफल्स के जवानों द्वारा की गई मदद से तैयार हुई थी। भुल्ला शब्द का गढ़वाली भाषा में अर्थ छोटा भाई होता है। मंत्रमुग्ध कर देने वाले नज़ारों के साथ आप यहां प्यारी बत्तखों के साथ नौकायन का आनंद ले सकते हैं। झील के किनारे पर हरियाली का दृश्य आपका मन अपनी ओर मोह लेगा और आप इस झील की खूबसूरती को और करीब से महसूस कर पाएंगे।
स्थानः कुरा रेंज, लैंसडाउन, उत्तराखंड
उपयुक्त समयः मार्च से जून
निराकार शिव की महिमा बताता यह मंदिर 1800 मीटर की ऊंचाई पर बना है जो प्राकृतिक मनोरम दृश्यों के बीच आध्यात्मिकता की गहराइयों में ले जाता है। पौराणिक कहानियों के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस था जिसने ब्रह्मा जी की तपस्या कर अमरता का वरदान पाने की इच्छा से वरदान मांगा कि मेरी मृत्यु भगवान शिव के पुत्र के हाथों हो, क्योंकि वह जानता था कि उस समय उनकी पत्नी सती अब जीवित नहीं हैं और भगवान शिव वियोग में दुखी हैं। देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती से संपन्न हुआ और उनसे कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ, जिन्होंने ताड़कासुर का वध किया। अपनी मृत्यु के समय ताड़कासुर के प्रार्थना करने पर भगवान शिव उपस्थित हुए और ताड़केश्वर के नाम से यहां बस गए।
स्थानः छुकलीयकल, लैंसडाउन
उपयुक्त समयः अप्रैल से जून, सितंबर से नवंबर
19वीं शताब्दी के अंत में गढ़वाल राइफल्स प्रशिक्षण केंद्र में काम करने वाले ईसाई सैन्य कर्मियों की धार्मिक जरूरतों के चलते इस छोटी चर्च का निर्माण कार्य पूरा हुआ, जो सन् 1895 से शुरू होकर 1896 तक चला था। यहां मौजूद फोटो गैलरी और चिन्ह पुरानी स्मृतियों की ओर ले जाते हैं। इसका रखरखाव भारतीय सेना की गढ़वाल रेजिमेंट द्वारा किया जाता है।
स्थानः कोटद्वार-पौढ़ी रोड, लैंसडाउन, उत्तराखंड
उपयुक्त समयः मार्च से नवंबर
यह ऐसा दृश्य बिंदु है जंहा से पूरे क्षेत्र का दिव्य नजारा दिखता है, ओक, देवदार, चीड़ वृक्षों के घने वन, स्वच्छ नीला आकाश, पंछियों की चहचहाहट, आकर्षक मौसम और हरियाली लिए वातावरण इतना शानदार विहंगम दृश्य होते हैं कि हर पर्यटक का मन मोहित हो जाए। यह स्थान लैंसडाउन की सबसे ऊंचाई पर स्थित है, शानदार शिवालिक पर्वतमाला के साथ विहंगम क्षितिज को देख सकते हैं यहां से आप इन अनुभवों को कैप्चर कर सकते हैं, फोटोज़ क्लिक और वीडियो शूट कर सकते हैं।
स्थानः नेशनल हाईवे 119, लैंसडाउन, बोंडा, उत्तराखंड
उपयुक्त समयः अप्रैल से नवंबर
देवी दुर्गा का यह बहुत प्राचीन सिद्धपीठ है जहां दर्शनार्थी दूर दूर से आते हैं। बहती ठंडी हवाओं के बीच बने इस मंदिर का छटा देखते बनती है, जहां एक पावन धारा शांति से बहती हुई निकलती है और भी बहुत छोटे से झरने मंदिर की शोभा को कई गुना बढ़ाते हैं। मान्यता है कि यहां मनोकामना मांगते हुए यदि लाल कपड़ा बांध दिया जाए तो मन्नत पूरी हो जाती है। माता के मंदिर के पास ही एक छोटी सी गुफा है, जिसमें भगवान शिव को समर्पित एक शिवलिंग है।
स्थानः कोटद्वार से 12 किमी दूर, लैंसडाउन, उत्तराखंड
उपयुक्त समयः अप्रैल से जून, अक्टूबर से नवंबर
ऊंची पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर हरी हरी वादियों के बीच बना वास्तुकला का श्रेष्ठ उदाहरण हैं, जहां से आस पास का परिदृश्य बहुत मनमोहक प्रतीत होता है। यह कालनाथ भैरव भगवान को समर्पित हिंदूओं का प्रसिद्ध मंदिर है, जहां देवता को काली चीज़ों का भोग लगाया जाता है और इसी वजह से यहां मंडुवे का आटा प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। भगवान भैरव को गढ़वाल के रक्षक या द्वारपाल की संज्ञा दी जाती है और भैरव गढ़ या लंगूर गढ़ गढ़वाल के 52 गढ़ों में से एक है।
स्थानः लंगूर रिजर्व वन नियर कीर्तिखल गांव, लैंसडाउन, उत्तराखंड
उपयुक्त समयः अप्रैल से जून, सितंबर से दिसंबर
लैंसडाउन एक बेहद खूबसूरत जगह, यहां झीलें, झरने, उद्यान, संग्रहालय प्रकृति की खूबसूरती के साथ गढ़वाली संस्कृति को बहुत नज़ाकत से प्रस्तुत करते हैं। शहर की हलचल भरी जिंदगी से थोड़ा ब्रेक लेना चाहते हैं तो लैंसडाउन जाने का लुत्फ उठाइए, यहां के शांत वातावरण के साथ मंदिरों की आध्यात्मिकता आपके दिलोदिमाग को तरोताजा और स्फूर्ति से भर देगी।
प्रश्न1ः लैंसडाउन किस देश और राज्य में है?
उत्तर1ः लैंसडाउन भारत देश के उत्तराखंड राज्य का हिस्सा है।
प्रश्न2ः लैंसडाउन में कौन कौन से प्रमुख मंदिर अवस्थित हैं?
उत्तर2ः लैंसडाउन में तारकेश्वर, कालेश्वर, दुर्गा देवी, भैरव गढ़ी और हनुमान गढ़ी मंदिर इत्यादि हैं।
प्रश्न3ः क्या तारकेश्वर मंदिर द्वादश ज्योर्तिलिंगों में गिना जाता है?
उत्तर3ः नहीं।
प्रश्न4ः लैंसडाउन जाना के लिए सबसे उपयुक्त समय कौन सा है?
उत्तर4ः मार्च से जून एवं सितंबर से नवंबर।
प्रश्न5ः क्या लैंसडाउन पर्यटन हेतु सुरक्षित जगह है?
उत्तर5ः जी हां, यहां के स्थानीय निवासी मदद और दोस्ताना व्यवहार रखने वाले हैं और यहां का क्राइम रेट बहुत कम है।
प्रश्न6ः लैंसडाउन से निकटतम रेलवे स्टेशन कौन सा है?
उत्तर6ः कोटद्वार, जो लैंसडाउन से लगभग 40 किमी दूर है।
प्रश्न7ः लैंसडाउन किस संस्कृति को प्रदर्शित करता है?
उत्तर7ः गढ़वाली संस्कृति
प्रश्न8ः लैंसडाउन समुद्रतल से कितनी ऊंचाई पर स्थित है?
उत्तर8ः लगभग 1,700 मीटर (5,580 फीट)
प्रश्न9ः लैंसडाउन मुख्यतः क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर9ः यह एक हिल स्टेशन और गढ़वाली रेजिमेंट का कैण्ट एरिया भी है।
प्रश्न10ः उत्तराखंड की इस जगह का नाम लैंसडाउन किसके नाम पर रखा गया?
उत्तर10ः ब्रिटिश शासन के वायसराय ‘‘लैंसडाउन’’ के नाम पर इस जगह का नाम रखा गया।