ग्वालियर, ऐसा नगर जो बुंदेलखंड संस्कृति को खुद में संजोए, कई संगीत घरानों का घर है और इस वजह से भारत की संगीत नगरी के रूप में जाना जाता है। यह मध्य प्रदेश के अन्तर्गत आने वाला प्रमुख खेल, सांस्कृतिक, औद्योगिक और राजनीतिक केंद्र है। ग्वालियर, इनोवेशन ईकोसिस्टम प्रबंधन के तहत आने वाले 7 नए स्टार्टअप सेंटर्स में से भी एक है। ऐतिहासिक नगरी ग्वालियर स्वतंत्रता संग्राम में भी अपनी उपस्थिति स्वर्णाक्षरों में अंकित कराता यह कला, संस्कृति, तकनीक और संगीत परंपराओं से समृद्ध शहर है, जिसके नाम कई उपलब्धियां दर्ज हैं, पर्यटन के क्षेत्र में भी अतुलनीय है और अविस्मरणीय है। ग्वालियर के प्रमुख 10 विशेष आकर्षक पर्यटन स्थलों के बारें में विस्तार से जानते हैं इस आर्टिकल में
यह 6वीं शताब्दी की पहाड़ी पर बने रक्षा किले के रूप में प्रसिद्ध है जो इसकी अभेद्यता को प्रदर्शित करता है। इसे कई और उपाधियां भी मिली हुईं हैं, प्रथम मुगल सम्राट बाबर ने इसे इसकी भव्य बनावट के कारण ‘‘हिंद के किलों में मोती’’ की संज्ञा से नवाजा, साथ ही यह भारत का जिब्राल्टर भी कहलाता है। इसके शिलालेख और स्मारक बताते हैं कि यह अति प्राचीन किला कई राजवंशों का शासन देख चुका है और इस महल में सबसे मजबूत शासन पकड़ सिंधिया राजवंश की रही है। इसमे 6 मुख्य महल हैं जिसमें मान मंदिर, विक्रम महल, कर्ण, शाहजंहा, जहांगीर और गूजर पैलेस शामिल है। ऐतिहासिक रूप से अति प्रसिद्ध इस मंदिर में शून्य संबंधित दूसरा रिकार्ड जो पत्थर के शिलालेख में दर्ज लगभग 1500 साल प्राचीन है, पाया जाता है।
ग्वालियर के महाराजा जयाजीराव सिंधिया ने इसे 1874 में बनवाया था जिसका एक प्रमुख भाग आज इनके नाम से संग्रहालय के रूप में जाना जाता है। यूरोपीय वास्तुकला को प्रदर्शित यह किला बेहद सुंदर प्रतीत होता है, पैलेस में कई शैलियों का संयोजन है, इसकी पहली मंजिल टस्कन, दूसरी इटैलियन और तीसरी कोरिंथियन है। भीतरी पैलेस की सजावट सोने के सामानों से की गई है, जहां विशाल झूमरें भी सुसज्जित हैं।
दिलचस्प और रोचक नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर अपने नाम के कारण श्रद्धालुओं के बीच बहुत प्रसिद्ध मंदिर है जो भगवान शिव और विष्णु को समर्पित मंदिर अति प्राचीन मंदिर है जो 11वीं शताब्दी के समय बनाया गया है। यह मंदिर विशिष्ट वास्तुकला संजोए मूर्तिकला, चित्राकंन और अलंकृत स्तंभों से सुशोभित मंदिर है। जहां भगवान शिव और विष्णु दोनों की सजी हुई मूर्तियां हैं। सास बहू मंदिर के बारे में कहा जाता है कि किसी राजा की मां और पत्नी दोनों ही धार्मिक स्वभाव की महिलाएं थीं जिनमे से एक भगवान शिव और दूसरी भगवान विष्णु की भक्त थीं उनकी इच्छा अनुसार राजा ने दोनों भगवानों को समर्पित मंदिर का निर्माण करवाया जिस वजह से इस मंदिर का नाम सास बहू मंदिर नाम पड़ गया।
भारतीय प्रसिद्ध संगीतज्ञ जो मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में नवरत्नों में से एक थे, जिनके राग मल्हार गायन में इतनी शक्ति होती थी कि सूखे में बारिश करवा दें और इतनी अधीरता से वह गाते थे कि दिये अपने आप जल जाएं, ऐसे चमत्कारिक संगीतज्ञ का मकबरा ग्वालियर में अवस्थित है। यहीं पर सूफी संत मुहम्मद गौस खां की समाधि भी है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को बखूबी गाते तानसेन की स्मारक मुगल स्थापत्य कला वास्तु अनुसार बनाया गया है। जहां हर साल नवंबर के महीन में अखिल भारतीय संगीत समारोह का आयोजन किया जाता है।
बुंदेले हरबोलो के हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी, रानी झांसी कही गईं उक्त पंक्तियां एकदम सटीक बैठती हैं। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों से कट्टर लोहा लेती रानी झांसी चाहती थीं कि अंग्रेज उन तक तो क्या उनके मृत शरीर तक भी न पहुंच पाएं क्योंकि वो उसका इस्तेमाल करके आम जनता के सामने गलत उदाहरण पेश करना चाहते थे, इस वजह से घायल अवस्था में वह ग्वालियर तक अपने घोड़े पर सवार पहुंचती हैं और खुद को अग्नि को समर्पित कर देती हैं तब से ग्वालियर में उनकी इस समाधि को पर्यटक दूर दूर से उन्हें नमन करने आते हैं और उनकी प्रेरणादायक वीरता से सीख लेते हैं।
वर्ष 1984 में इसे गजानंद दास बिड़ला द्वारा बनवाया गया लाल बलुआ पत्थर से बना बहुत आकर्षक वास्तुकला में बना मंदिर है जिसमें भगवान सूर्य की दिव्य प्रतिमा स्थापित है। यहा सूर्य गार्डन भी बनाया गया है जिसे तपोवन गार्डन भी कहते हैं। सूर्य मंदिर ओडिशा के कोणार्क सूर्य मंदिर से प्रेरित होकर बनाया गया है जो संरचना में भी समान है।
ग्वालियर चिड़ियाघर की स्थापना 1922 में शाही परिवार सिंधिया द्वारा कराई गई थी जिसे फूल बाग के नाम से भी जाना जाता है, जो जानवरों की विभिन्न दुर्लभ प्रजातियों का घर है साथ ही यहां कई तरह की वनस्पतियों के भी वृक्ष है और फूलों की अद्भुत श्रृंखलाओं के मनोरम नजारें देखने को मिलते हैं। यहां सफेद बाघ जैसी विशेष दुर्लभ और संरक्षित प्रजातियों को भी देख सकते हैं। यह उद्यान आप अकेले आएं या पूरे परिवार के साथ, यहां मनोरंजन का लुत्फ उठा सकते हैं।
गोप पर्वत जैन स्मारक कहा जाने वाला यह पर्वत 14वीं और 15वीं शताब्दी के मध्य बना जैन रॉक कट नक्काशियो का एक समूह है जो ग्वालियर किले के दीवारों के पास स्थित है। जहां जैन प्रतिमा दिगंबर रूप में पद्म आसन में बैठी हुई मुद्रा में उनके तीर्थंकरों को दर्शाते हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि जैन धर्मावलंबियो ने किले को सहारा देने वाली चट्टानों को अपने धर्म की विशेषता दर्शाने के लिए उसे एक महान मंदिर में बनाने का निश्चय किया जो 15वीं शताब्दी के समय की बात है, उस समय किले में तोमर राजवंशों का शासन हुआ करता था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के रिकार्ड में यह आदर्श स्मारक के रूप में संरक्षित है।
इसे ग्वालियर किला संग्रहालय के नाम से भी जाना जाता है। इस महल का निर्माण तोमर राजपूत शासक मान सिंह तोमर ने अपनी पत्नी गुर्जर जनजाति की मृगनयनी के लिए करवाया था, जिनकी अपने लिए अलग महल की मांग थी जिसमे पास की राय नदी से जल आपूर्ति हो। यह हिस्सा अब पुरातात्विक संग्रहालय के रूप में जाना जाता है। इसमें कई ऐसे नायाब कलाकृतियां हैं जिन्हें देखकर भारत के अभूतपूर्व इतिहास की पहचान मिलती है। यहां हिंदू और जैन मूर्तियां, टेराकोटा की चीजें और भित्ति चित्रों को देखा जाता है। यहां का मुख्य आकर्षण हेलियोडोरस गरुड़ स्तंभ का एक टुकड़ा है जो विदिशा से संबंधित है।
आयॅलमैन मंदिर नाम से मशहूर इस मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी के दौरान राजा मिहिर भोज ने करवाया था। इसकी वास्तुकला गजब की आकर्षक है जो यहां आने वाले प्रत्येक दर्शनार्थी का मन मोह लेती है। तेली मंदिर वास्तव में भगवान विष्णु का समर्पित शानदार मंदिर है। इस मंदिर के नाम से कई किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं जो इसके नाम की गुत्थी को सुलझाती हुई प्रतीत होती हैं, कहते हैं कि यह मंदिर तेलियों के दान से बना था इसलिए इसे तेली का मंदिर कहते हैं, अन्य कहावत है कि इसे दक्षिण यानी तेलंगाना के लोगों द्वारा बनाया गया था इसलिए इसका यह नाम पड़ा, कुछ मान्यताएं कहती हैं कि इसका प्रबंध तेलंग ब्राहमण संभालते थे इसलिए इस मंदिर को उन्हीं के नाम से जानते हैं।
ग्वालियर घूमने का सर्वोत्तम समयः ग्वालियर घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च का है जब सुहाने मौसम में पर्यटन आनंद प्रदान करने वाला होता है।
ग्वालियर, एक ऐसा शहर जो बहुत से विशेष मंदिरों, ऐतिहासिक स्मारकों, किलों और स्तंभों की नगरी है। यहां का गौरवशाली इतिहास आज भी जीवंत और उज्जवल हैं, जहां स्वतंत्रता संग्राम की नायिका और महान संगीतज्ञ तानसेन की यादें समायी हुई हैं। तरक्की और तकनीक के क्षे़त्र में भी ग्वालियर अग्रणी शहर की भूमिका में है जो इतिहास और नवाचार के अद्भुत संगम का प्रतीक है। अगर आप भी आधुनिकता के साथ सांस्कृतिक भारत की झलक देखना चाहते हैं तो ग्वालियर शहर इसका सर्वोत्तम उदाहरण है।