• Oct 15, 2025

देवी दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में से एक देवी बहुला मंदिर पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के केतुग्राम में अवस्थित है जो एक प्राचीन और सांस्कृतिक स्थल है। ऐतिहासिक और धार्मिक परिप्रेक्ष्यों से समृद्ध और संपन्न यह मंदिर बंगाली संस्कृति का द्योतक है। श्रद्धालुओं के लिए विशेष पूजा अनुष्ठान और उपासना के दिव्य केंद्र के रूप में प्रसिद्ध यह शक्तिपीठ पराशक्ति का उच्च स्थान है जहां का भव्य वातावरण हर किसी को दैविक सुख शांति प्रदान करती है। बहुला देवी शक्तिपीठ से जुड़ी और भी तथ्यों को विस्तार से जानते हैं।

समस्त शक्तिपीठों से जुड़ी ऐतिहासिक कहानी

भगवान शिव और देवी सती का विवाह उनके पिता राजा दक्ष की मर्जी से नहीं हुआ था इस कारण वे भगवान शिव से नाखुश थें। एक बार राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ समारोह का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने भगवान शिव और देव सती को छोड़कर सारे देवी देवताओं को आमंत्रित किया। इस बात से दुखी देवी सती कारण जानने के उद्देश्य से अकेले ही यज्ञ समारोह में पहुंच गई। जहां उन्हें भगवान शिव के प्रति अत्यंत कटु और अपमानजनक शब्दों का सामना करना पड़ा, जिसे वे सहन न कर सकीं और अंततः उन्होंने यज्ञ समारोह की वेदी में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। 

इस घटना की जानकारी जब भगवान शिव को हुई तब उनके प्रकोप से भंयकर प्रलय का आगाज़ हुआ। इस क्रोध में उन्होंने देवी सती के शव को लेकर तांडवीय नृत्य शुरू कर दिया। जिससे धरती पर हाहाकार हो गया, इस से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने देवी सती के शव के 51 टुकड़े कर भारतीय उपमहाद्वीप में बिखेर दिए जिससे 51 शक्तिपीठों की स्थापना हुई। देवी सती के अंग या आभूषण जहां भी गिरे वहां शक्तिपीठों की स्थापना हो गई। जिनकी संरक्षक देवता भैरव भगवान शिव के ही अंश है, जिनकी उपस्थिति प्रत्येक शक्तिपीठ में देखी जाती है।

बहुला शक्तिपीठ की उत्पत्ति से संबंधित पौराणिक कथा

बहुला शक्तिपीठ के बारें में कहते है कि यहां देवी सती की बायीं भुजा गिरी थी और इससे यह स्थान देवी बहुला के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस मंदिर से संबंधित अभिलेख 9वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व के हैं जिसे पाल वंश के राजाओं ने हिंदू मंदिर का आकार दिया था। इस मंदिर का जीर्णोद्धार कई बार हो चुका है। वर्तमान स्वरूप 18वीं शताब्दी से बना हुआ है।

बहुला देवी मंदिर की वास्तुकला एवं संस्कृति

इस मदिर की बनावट और शैली बंगाली रीति रिवाजों से प्रेरित है, जिसका संरचना अनुपम और अद्वितीय है। गुलाबी ईंटो से बनी इस मंदिर की इमारत अपने पास की इमारतो से अधिक ऊंची है। मंदिर में मौजूद जटिल नक्काशी और प्रतिमाएं हिंदू धर्मग्रंथों की कहानियों का जीवंत चित्रण करती हैं। मंदिर की दीवारों पर सजे चमकीले रंग से परिसर की शोभा और भी ज्यादा बढ जाती है। 

बहुला शक्तिपीठ का मुख्य मंदिर वर्गाकार आयोजना का है जिसका शिखर उच्च है और उस पर एक कलश स्थापित है। संपन्नता और सुख समृद्धि का द्योतक यह शिखर देवी बहुला का प्रतिनिधित्व करता है। मंदिर के अग्रभाग में एक मंडप है जिसका रास्ता अंदर मौजूद गर्भग्रह की ओर जाता है, यहां चांदी के सिंहासन पर विराजमान देवी बहुला का भव्य दर्शन होता है, जिनकी प्रतिमा बेहद मनमोहक है। 

परिसर में भगवान शिव के भैरव अवतार को समर्पित एक छोटा सा मंदिर भी है जिसकी रंगाई लाल ईटों से बनी है। इसके शिखर पर भगवान शिव का अस्त्र त्रिशूल भी स्थापित है। मंदिर की जटिल नक्काशी और मूर्तियों की बनावट दैवीय प्रभाव से सजा हुआ है। 

इस मंदिर परिसर में एक पवित्र कुंड की मौजूदगी है जो चारों ओर से पत्थर की दीवारो से घिरा हुआ है। इस कुंड तक जाने के लिए सीढियों का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस कुंड के जल में उपचारात्मक शक्तियां हैं जहां स्नान करने से रोग और व्याधियां ठीक हो जाती है। 

बहुला देवी मंदिर में दर्शन समय

  • मंदिर खुलने का प्रातःकालीन समय : सुबह 6 बजे 
  • मंदिर बंद होने का रात्रिकालीन समयः रात 10 बजे 

बहुला देवी मंदिर में मनाए जाने वाले उत्सव, अनुष्ठान एवं त्यौहार

बहुला देवी मंदिर में उत्सवों की धूम देखते बनती है। जहां आसपास की जगहों से और दूर दराज से पर्यटक दर्शन करने आते हैं। इन अनुष्ठानों में नवरात्रि, दुर्गा पूजा, दीवाली और अन्य वार्षिक मेले प्रसिद्ध है। 

चैत्र व आश्विन नवरात्रिः साल मे आने वाले दो बार नवरात्रि त्यौहार पर यहां विशाल मेले का आयोजन होता है जहां मां के दर्शनों की भारी भीड़ जुटती है। इस दौरान यहां हवन, पूजा पाठ आदि अनुष्ठान किए जाते हैं। मेले में स्थानीय गतिविधियों से लेकर हस्तशिल्प से जुड़ी वस्तुएं खरीद सकते हैं। जहां विशाल झूले और मनोरंजन आदि की व्यवस्था से लेकर स्ट्रीट फूड स्टॉल लगाए जाते हैं। 

दुर्गापूजाः नवरात्रि की पंचमी तिथि से लेकर नवमी तक दुर्गा पूजा का विशेष त्यौहार मनाया जाता है जहां दुर्गा पूजा बहुत धूमधाम से की जाती है इस दौरान यहां प्रकाशमय वातावरण और रात्रि जागरण जैसे सफल अनुष्ठान आयोजित करते हैं। 

दीपावलीः दीपावली की रात में पश्चिम बंगाल में दीपों के त्यौहार पर काली पूजा की जाती है जिसमें वे नए नए वस्त्र और आभूषण देवी मां को समर्पित करते हैं। मां के सामने उनके पसंदीदा भोग को अर्पित किया जाता है। 

बहुला देवी मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य 

बहुला देवी शक्तिपीठ में श्रद्धालुओं के मुख से इनकी महिमा का वर्णन सुनने को मिलता है। देवी बहुला की कृपा से किसी को वर्षों बाद संतान प्राप्ति हुई तो किसी अंधे व्यक्ति को यहां कुंड के जल में स्नान करने के बाद आंखो की ज्योति मिलीं।

किसी युवा को लाइलाज बीमारी से राहत मिली तो किसी को यहां दिवालिया होने की कगार पर भी धन संपदा का वरदान मिला। कारोबार में लाभ होना शुरू होने लगा। 

यहां आने वाले लाखों करोड़ों भक्तों की अरदास को मां बहुला ने फलित किया है और भक्त यहां से प्रसन्न होकर लौटते हैं। 

बहुला देवी मंदिर के आसपास घूमने वाले स्थल

गढ जंगलः पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले में अवस्थित यह स्थान प्राकृतिक अभयारण्य है जिसकी सुदंरता यहां आने वाले पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। यह पर्णपाती वनों की हरियाली भरे नजारें और प्राकृतिक वन्य जीवांं की उपस्थिति आकर्षित करती है। पक्षियों की चहचहाहट, हवाओं की सरसराहट और पर्यटकों की कदमो की आहट से यह जगल गुलज़ार रहता है। मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र और जमीन से जुड़े आदिवासियों के स्वदेशी जीवन को करीब से देखना चाहते हैं तो गढ जंगल का भ्रमण करें।

चुरूलिया : चुरूलिया साहित्यिक और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है जो बंगाल के विद्रोही कवियों में से एक कावी नजरूल इस्लाम का जन्मस्थान है। इनकी प्रेरक कविताएं और रचनाएं लोगों में हमेशा जागरूकता लाने का काम करती रही हैं। चुरूलिया ऐसा स्थान है जहां हरे भरे खेतों और धान की खुशबू से मन प्रसन्नचित्त रहता है। यहां की हर चीज़ में आप नजरूल साहब की कविता की झलक को महसूस कर सकते हैं। यह जगह अपने गर्मजोशी भरे स्वागत और संस्कृति के लिए जानी जाती है जहां पर्यटक स्थानीय रीति रिवाजों को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं और बंगाली मिठाईयों का अनोखा स्वाद चख सकते हैं। 

राम कृष्ण मिशनः स्वामी विवेकानंद का सफल और अनूठा मिशन राम कृष्ण मिशन उनके प्रेरक कथनों और उसूलों का प्रतीक है। आध्यात्मिक और मानवीय उन्नति के लिए उन्होने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। यह मिशन सभी के कल्याण और ज्ञान में वृद्धि के लिए कार्य करते हैं जहां चिकित्सालय से लेकर मठ, और स्कूलों से लेकर उद्यान और लाइब्रेरी का आनंद ले सकते हैं। यह मिशन शानदार वास्तुकला और अपनी बेहतर प्रंबंधन व्यवस्था के लिए जाना जाता है। 

घागर बरी मंदिर : पश्चिम बंगाल के बर्धमान में स्थित यह मंदिर स्थानीय देवता घागर बरी देवता को ही समर्पित है। इस क्षेत्र में यह मंदिर शांति और सुकून के लिए प्रसिद्ध स्थान है। जटिल नक्काशी और बंगाली संस्कृति का जीवंत चित्रण प्रस्तुत करता यह परिसर न केवल पूजा पाठ के स्थान तक सीमित है बल्कि यह आधुनिक और पारंपरिक शैलियों का अनोखा संगम भी है। आप यहां के बंगाली व्यंजनों के स्वाद को भी आजमा सकते हैं जिसे आप शायद कभी भूल नहीं पाएंगे। इस मंदिर के अलावा आप कल्याणेश्वरी मंदिर और शिव शक्ति धाम के दर्शनों का आनंद ले सकते हैं। 

बहुला देवी मंदिर कैसे पहुंचे 

हवाई मार्ग से 

  • बहुला शक्तिपीठ से नजदीकी हवाई अड्डा नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंटरनेशनल एयरपोर्ट है जो करीब यहां से 180 किमी दूरी पर है जिसे स्थानीय वाहनों की मदद से तय कर सकते हैं। 

रेल मार्ग से 

  • बहुला शक्तिपीठ से निकटतम रेलवे स्टेशन कटवा है जिसकी मंदिर से दूरी लगभग 12 किमी है जिसे आप आराम से टैक्सी या कैब से कर सकते हैं। 

सड़क मार्ग से 

  • बहुला शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले के केतुग्राम में है जो कोलकाता से लगभग 160 किमी की दूरी पर है यहां आप अपनी कार या प्राइवेट, सरकारी बसों के माध्यम से यात्रा कर संपन्न कर सकते हैं। 

निष्कर्ष 

अंत में बहुला शक्तिपीठ दिव्य आध्यात्मिक स्थलों में से एक है, जहां जाना और समय बिताना सुखद आत्मिक क्षणों में से एक है। भक्ति और पारंपरिक शांति की सौगात प्रदान करते इन शक्तिपीठों में सिर्फ सकारात्मक ऊर्जा का संचार ही नहीं होता बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण पड़ावों को पार करने में नई दिशा और रास्तों का ज्ञान भी मिलता है। बहुला शक्तिपीठ में देवी मां की उज्ज्वल प्रतिमा की चमक और उनकी कृपा दृष्टि अपने भक्तो पर सदैव बनी रहती है। जहां आध्यात्मिक शांति से लेकर भौतिक सुख साधनों सहित समृद्धि के नये आयामों को प्राप्त किया जाता है।

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