बर्फ के आंगन में प्रतिष्ठित भगवान भैरव का भव्य मंदिर केदारनाथ के पास ही अवस्थित है, भगवान भैरव के ज्यादातर मंदिरों को प्रतिष्ठित ज्योतिर्लिंगों के आस पास रक्षक के रूप में अवस्थित देखा जाता है, जहां इनके दर्शनों की मान्यता, भगवान शिव के प्रमुख ज्योतिर्लिंगों से पहले या बाद में मानी जाती है, और इन्हीं संपूर्ण दर्शनों के साथ तीर्थ यात्रा सफल मानी जाती है। यहां इनकी उपस्थिति के कई मायने हैं जिनमें से सबसे प्रसिद्ध मान्यता है कि यह केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के रक्षक यानी क्षेत्रपाल हैं। भगवान भैरव को महादेव का ही उग्र स्वरूप माना जाता है।
केदार घाटी के पास स्थित यह मंदिर क्यों हैं इतना खास, क्या है इसकी पौराणिक मान्यताएं और यहां आप कैसे पहुंच सकते हैं, आइए जानते हैं इस ब्लॉग में
उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में अवस्थित केदारनाथ मंदिर के पास लगभग 500 मीटर की दूरी लिए एक छोटी सी पहाड़ी पर अवस्थित भैरव मंदिर गढवाल मण्डल के अन्तर्गत आता है। जहां इनकी पूजा भुकुंट भैरव के रूप में की जाती है। केदारनाथ मंदिर और भैरव मंदिर के मध्य से मंदाकिनी नदी का बहाव अति मनोरम दृश्य प्रदान करता है। जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 3650 मीटर है, केदारनाथ मंदिर के खुलने के दिनों में इस मंदिर के दर्शनों को जाया जाता है।
स्थानीय रीति रिवाज़ के अनुसार भगवान केदारनाथ को अति सर्दी के कारण प्रतीक रूप से उखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में स्थानांतरित कर दिया जाता है, तब माना जाता है कि इस क्षेत्र की रक्षा भगवान भुकुंट भैरव ही करते हैं और विषम परिस्थितियों सें जब कड़ी सर्दी में यह मंदिर बंद रहता है तब इस क्षेत्र को नकारात्मक शक्तियों के साथ ही प्राकृतिक आपदाओं से भी बचाते हैं।
यह मंदिर खुले परिसर में अवस्थित है जहां बर्फीली तेज हवाओं के चलते यहां अपने आप बजती घंटियां अलौकिक आकर्षण प्रदान करती हैं। जैसे स्वयं भगवान भैरव यह संकेत दे रहें हों कि वह अनादिकाल से लेकर भविष्य के हर पल में यहां की रक्षा करते रहेंगे।
कहते हैं भगवान भुकुंट भैरव पर के इस मंदिर में सरसों के तेल से भगवान भैरव का अभिषेक किया जाता है, जिससे वह अति प्रसन्न होते हैं, यहां एक छोटी सी शिला पर मंदिर में भगवान भैरव की मूर्ति स्थापित है, जहां भक्तों द्वारा चढाई गई घंटियों, लाल धागे और त्रिशूल देखने को मिलते हैं। विभिन्न ध्वजाओं से सुसज्जित इस मंदिर की शोभा खुली वादियों में आध्यात्मिकता को बढाने में और मदद करती है।
भैरव भुकुंट दर्शनों हेतु केदारनाथ जाने के लिए आप इनमें से किसी भी प्रकार अपनी तैयारी कर सकते हैं।
हवाई यात्रा
नजदीकी हवाई अड्डाः देहरादून स्थित जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है जिसकी गौरीकुंड से लगभग दूरी 250 किमी है। देहरादून से आप कैब या बस की मदद से सोनप्रयाग या गौरीकुंड की यात्रा संपन्न कर सकते हैं जहां से आप ट्रेकिंग या हेलीकॉप्टर की मदद से केदारनाथ पहुंच सकते हैं।
रेल यात्रा
नजदीकी रेलवे स्टेशनः हरिद्वार, ऋषिकेश अथवा देहरादून है, यहां से आप रूद्रप्रयाग या गुप्तकाशी के रास्ते हेलीकाप्टर सेवा से केदारनाथ या सड़क के रास्ते गौरीकुंड तक पहुंचने के बाद ट्रेकिंग कर केदारनाथ धाम को जा सकते हैं।
आप प्रमुख शहरों से भी सीधे बस के माध्यम से गौरीकुंड तक पहुंच सकते हैं।
हरिद्वार या ऋषिकेश से गौरीकुंड की लगभग दूरी 220 किमी है
गौरीकुंड से केदारनाथ का पथ लगभग 16 किमी लंबा है।
भैरव मंदिर के पास ही जगद्गुरू आदिशंकराचार्य की समाधि है जिन्होंने हिंदू धर्मों के विभिन्न आयामों को एक सूत्र में पिरोया और चार धामों को प्रतिष्ठित करवाया। ऐसा कहते हैं कि इस स्थान पर ही आदि शंकराचार्य गुरू स्वयं धरती के अंदर समाहित हो गए थे। इन्होंने ही यहां तपोबल से गर्म पानी के कुंड की स्थापना की जिससे तीर्थयात्रियों को अधिक सर्दी से थोड़ी राहत मिल सके। इस कुंड की अन्य कई विशेषताएं हैं जिसके लिए कहा जाता है कि रोगों व्याधियों से भी राहत प्रदान करता है।
गुप्तकाशी में स्थित विश्वनाथ जो भगवान शिव का ही प्रतीक स्वरूप है जिन्हें ब्रह्मांड का स्वामी कहा जाता है। चारों से बंद जगह पर स्थित इस मंदिर के पास ही अर्धनारीश्वर मंदिर भी अवस्थित है। यहां का सबसे मुख्य आकर्षण मणिकर्णिका कुंड है जहां गंगा और यमुना की दो धाराएं आपस में मिलती हैं, गुप्तकाशी गौरीकुंड से लगभग 34 किमी पहले ही पड़ता है, यह उखीमठ के सामने एक पहाड़ पर स्थित जगह है।
हिंदू संस्कृति के महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 1980 मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित है, जहां से गढवाल हिमालय के शांत और खूबसूरत नजारों के दीदार होते हैं। इस मंदिर की वास्तुकला की छाप बद्रीनारायण धाम से काफी मिलती जुलती है। इस मंदिर के बारे मे कहते हैं कि यहां भगवान विष्णु के समक्ष देवी पार्वती और भगवान शिव का विवाह संपन्न हुआ था। जिसमें सारी व्यवस्था भगवान विष्णु ने माता पार्वती के भाई के रूप में ही की थी और भगवान ब्रह्मा ने पुरोहित की सारी व्यवस्था संभाली थी। जहां मंदिर के बाहर मौजूद ब्रह्म शिला पर विवाह चिन्ह भी देखने को मिलते हैं। यहां तीन पवित्र कुंड भी है जिन्हें रूद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्म कुंड के नाम से जानते हैं।
रूद्रप्रयाग के अन्तर्गत ही केदारनाथ मंदिर शामिल है इसी के साथ यहां बहने वाली परम पावन नदियों की धारा से भी यह जिला प्रसिद्ध है। रूद्रप्रयाग में मंदाकिनी नदी का अलकनंदा नदी में शामिल होना बहुत ही मनोरम दृश्य बनाती हैं। केदारनाथ से लगभग थोड़ा ऊपर चोराबारी ग्लेशियर से निकली मंदाकिनी नदी यही अलकनंदा में समाहित होकर आगे बढ जाती है। जिससे यह स्थान दो नदियों पावन मिलन का भी प्रतीक है। नदियों के संगम को हिंदू धर्म में ही बहुत ही पवित्र स्थान माना जाता है।
उत्तराखंड मे केदारनाथ के निकट चोपता घाटी में भगवान शिव के पंच केदारों में से एक केदार मंदिर है जहां इनके सिर की पूजा होती है, तुंगनाथ दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर, नाम से जाना जाता है, जो अत्यधिक ऊंचाई पर अवस्थित मनोहर दृश्योें और सुरम्य वातावरण का भी निर्माण करती है। यहां प्रकृति पसंद करने वाले और आध्यात्मिक ऊर्जा में डूबने वालों के लिए स्वर्ग जैसा स्थान है, साथ ही चोपता घाटी में देवरियाताल झील ट्रेक भी आदर्श घूमने लायक स्थान है। यहां आप चंद्रशिला शिखर जहां भगवान राम ने ध्यान साधना की थी। देवरिया ताल जहां से चौखम्बा चोटियों के भव्य परिदृश्यों का आनंद ले सकते हैं। उखीमठ का ओंकारेश्वर मंदिर जहां केदारनाथ भगवान प्रतीक स्वरूप में शीतकाल में निवास करते हैं, मध्यमहेश्वर मंदिर जो पंचकेदारों में से एक है जहां भगवान शिव के बैल स्वरूप के उदर भाग की पूजा की जाती है। चोपता में वन्यजीवो की दुर्लभ और आकर्षक प्रजातियों को भी यहां के अभ्यारण्यों में देखा जा सकता है जिसे देखकर आप रोमांचक अनुभव प्राप्त कर सकते हैं।
भैरव मंदिर भले ही केदारनाथ मंदिर जितना लोकप्रिय और प्रचलित न हो लेकिन यहां इसकी अवस्थिति और महत्व से कोई इंकार नहीं कर सकता। सर्द वादियों में धार्मिक भावनाओं की नर्म ऊर्जा प्रदान करता यह स्थान किसी दिव्य स्थल से कम नहीं। खुले आकाश के नीचे स्थित भगवान भैरव भुकुंट अपने भक्तों का सदैव कल्याण और रक्षा करते हैं। केदारनाथ में इनकी उपस्थिति मानो ऐसी ही प्रतीत होती है जैसे केदारनाथ की भव्य इमारत को आध्यात्मिक आधार की नींव प्रदान करती कोई मजबूत शिला हो, जिसकी मौजूदगी अनवरत काल से यूं ही दृढ़ प्रतिष्ठित हो।