डाकिन्यं भीमाशंकरम्, अर्थात् डाकिनी क्षेत्र में अवस्थित भीमाशंकर मंदिर, जो पुणे की सह्याद्रि पर्वत रेंज में स्थित है, बारह ज्योतिर्लिंग में से प्रमुख है। भगवान शंकर के स्वयंभू ज्योतिर्लिंगों के रूप में प्रसिद्ध भीमाशंकर महादेव इतने कृपालु हैं कि सिर्फ अपने भक्तों का ही नहीं वरन् शरण में आए प्रत्येक जीव का कल्याण करते हैं, इससे संबंधित कई पौराणिक कहानियां हिन्दू धर्म ग्रंथों में पढने और सुनने को मिलती हैं। इनके इतिहास और विशेषताओं के साथ पौराणिक मान्यताओं को सहेजते विशेष ज्योतिर्लिंग भीमाशंकर के बारें में और विस्तार से जानते हैं, जो सावन में भगवान शिव के भीमाशंकर मंदिर दर्शन अभिलाषा को दिशा प्रदान करेगा।
भीमाशंकर मंदिर कहां हैः
महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 125 किमी दूर एक पहाड़ पर अवस्थित है, जो खेड़ से लगभग 50 किमी उत्तर पश्चिम में भोरगिरी गांव में स्थित प्राचीन तीर्थस्थल लगभग 3,250 फीट की ऊंचाई पर अवस्थित है, जो सिर्फ महाराष्ट्र का नहीं वरन् पूरे भारत देश का प्रमुख धार्मिक स्थल बनता जा रहा है। हाल ही में वन्यजीव अभयारण्य के अन्तर्गत घोषित हो जाने के कारण भीमाशंकर का महत्व और बढ गया है, जो पश्चिमी घाट के प्रमुख हिस्से के रूप में कई विविध जीव जंतु और वनस्पतियो से संपन्न इलाका है, यहां पाई जाने वाली दुर्लभ मालाबार विशालकाय गिलहरी ‘‘शेकरू’’ आकर्षण का प्रमुख केंद्र है।
भीमाशंकर मंदिर उत्पत्ति से जुड़ा इतिहासः
- भीमाशंकर मंदिर के पीछे की कहानी त्रेतायुग से संबंधित बताई जाती है, जिसके अनुसार त्रिपुरासर नाम का दैत्य भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था, जिसने भोलेनाथ की तपस्या कर उनसे अमरता का वर मांगना चाहा, इस पर भगवान शिव ने उसकी मनोकामना कुछ इस तरह पूरी की, उन्होंने उससे कहा- तुम न नर से मरोगे, न नारी से। इस वरदान की वजह से उसने खुद को अमर समझ लिया और तीनो लोकों में उत्पात मचा दिया, जिससे परेशान सभी देवतागण भगवान शंकर के पास गए और उनसे दैत्य को समाप्त करने की प्रार्थना की, भगवान शंकर ने त्रिपुरासर का वध करने का निश्चय कर लिया और इसके लिए माता पार्वती से भी विनती की गई, युद्ध के लिए 4 वेद, चार स्तंभ, चंद्रमा, सूर्य चक्र, संत नाग धनुष और बाण पर विष्णु की स्थापना की गई। तीनों देवताओं और श्री आदिशक्ति पार्वती सभी ने पंचतत्वों जल, वायु, धरा, आकाश और पाताल की स्तुति कर आवाह्न किया, मां पार्वती के इसी स्वरूप की पूजा ‘‘कमलजा माता’’ नाम से भीमाशंकर क्षेत्र में की जाती है। भगवान शिव और माता पार्वती मिलकर अर्धरूप में एकाकार हुए और कार्तिक पूर्णिमा के दिन श्रीक्षेत्र भीमाशंकर में त्रिपुरासुर का संहार किया।
- यह युद्ध कार्तिक प्रतिपदा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक चला था, आखिरी दिन कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरासुर के अंत से युद्ध समाप्त हुआ और समस्त मानवजाति के कल्याण हेतु भीमाशंकर क्षेत्र में स्वयंभू शिवलिंग के रूप में निवास स्वीकार किया।
- दैत्य के साथ रहने वाली शाकिनी और डाकिनी भगवान शिव के शरणागत हुईं, जिन्हें भगवान शिव ने वरदानस्वरूप अपने नाम से पहले उनके नाम लेने का विधान बनाया इसीलिए डाकिन्याम् भीमशंकरम् कहा जाता है। ज्योतिस्वरूप भगवान शंकर की महिमा निराली है, इसी कालक्रम के कारण कार्तिक पूर्णिमा के दिन आज भी दिव्य भव्य उत्सव मनाया जाता है।
भीमांशकर मंदिर नाम से जुड़ी किंवदंतियांः
- भगवान शंकर के इस धाम के नाम से जुड़ी पहली किंवदंती यहां उत्पन्न भीमा नदी से है, कहते हैं इसी नदी के नाम की वजह से इस ज्योतिर्लिंग का नाम भीमाशंकर पड़ा है। यह नदी यहां से निकलते हुए दक्षिण पश्चिम दिशा में बहते हुए कर्नाटक के रायचूर जिले में पाई जाने वाली कृष्णा नदी से जा मिलती है।
- भीमाशंकर नाम से जुड़ी अन्य किंवदंती रामायण से संबंधित है, जिसके बारें में शिवपुराण में भी बताया जाता है, कहते हैं राम रावण युद्ध के बाद कुंभकरण का बेटा भीमासुर अपने पिता और कुल के लोगों की मृत्यु का बदला लेने के लिए भगवान राम से प्रतिशोध लेना चाहता था, इसलिए उसने भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या कर उनसे विजयी होने का वर प्राप्त कर लिया, और इसी अहंकार के वशीभूत होकर अत्याचार की सीमा पार करने लगा, फलस्वरूप देवताओं के अनुग्रह पर स्वयं उसके वध करने का निश्चय किया।
- भगवान शिव ने जिस स्थान पर भीमासुर का वध किया, उसी स्थान पर भीमासुर की प्रार्थना पर शिवलिंग के रूप में स्थापित हुए, और अंत समय भीमासुर की प्रार्थना पर इस स्थान को भीमाशंकर नाम से जाना जाने का आशीर्वाद दिया, तभी से यह स्थान भीमाशंकर नाम से प्रसिद्ध है।
भीमाशंकर मंदिर वास्तुकलाः
- भीमाशंकर मंदिर लगभग 3.5 मीटर चौड़ा और लगभग 15 मीटर लंबा है जिसका नजारा अति खूबसूरत होने के साथ ही चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। मंदिर निर्माण शैली को विशेषतः हेमद पंच मंदिर कहते हैं, जिसकी वास्तुकला उत्तरी शैली से मिलती जुलती है।
- जिसमें गर्भग्रह का स्तर सतह से नीचे होता है, भीमाशंकर मे भी इसी तरह से है और गर्भग्रह में जाने के लिए 5 सीढियां हैं, गर्भग्रह के बाहरी शिखर पर मूल शिवरात्रि की छोटी छोटी प्रतिकृतियां चारों दिशाओं में बांधी जाती है।
- मंदिर में प्रवेश करते ही बाईं दिशा में भगवान गणपति और दाईं ओर में ज्योतिर्लिंग के रक्षक के रूप में श्री कालभैरव भगवान की स्थापना है। गुफा में जाने के बाद पवित्र शिवलिंग अवस्थित है, जिसमें एक ऊर्ध्वाधर छिद्र है, शिव और शक्ति के रूप मे स्थापित भीमाशंकर मंदिर में गुफा के आगे भाग पर माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित है।
- स्वयं भू शिवलिंग के रूप में भीमाशंकर शिवलिंग 75 सेमी. चौड़ाई और 100 सेमी. लम्बाई लिए हुए है।
- मंदिर का संपूर्ण निर्माण पत्थर से ही हुआ है, जिसमें चूना का इस्तेमाल नहीं हुआ है। यह पत्थर स्थानीय चट्टानों से ही बनाए गए हैं। भगवान नंदी की प्रतिमा शिवलिंग के सामने विराजमान है, साथ ही मंदिर में भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक कूर्म अवतार स्थापित हैं। दक्षिणी दीवार पर भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति है, पश्चिम में हनुमान और उत्तर में श्रीमहिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा है। पास ही बने शनि मंदिर के पास दीपमाल भी है जो विशेष अवसरों पर दीपों से सुशोभित बहुत खूबसूरत प्रतीत होता है।
- कहते हैं 18वीं शताब्दी के आसपास कई मराठा सरदारों ने उत्तरी भारत में राजस्थान, मालवा आदि क्षेत्रों में अपना साम्राज्य फैलाकर स्थापत्य कला की तकनीक महाराष्ट्र लाए।
भीमाशंकर मंदिर आरती समय सारिणीः
- सुबह 5 बजे से 5ः30 मिनट तक पूजा कार्यक्रम
- सुबह 5ः30 मिनट से दोपहर 12 बजे तक दर्शन और अभिषेकम्
- दोपहर 12 बजे से 12ः20 मिनट नैवेद्यम पूजा यानी प्रसादम्
- दोपहर 12ः20 से 2ः45 बजे दर्शन और अभिषेकमः
- दोपहर 2ः45 मिनट से 3ः20 मिनट तक पूजा कार्यक्रम
- दोपहर 3ः20 मिनट से शाम 7ः30 मिनट देव दर्शन
- शाम 7ः30 बजे से रात 8 बजे पूजा कार्यक्रम
- रात्रि 8 बजे से 9ः30 मिनट दर्शन कार्यक्रम
- रात 9ः30 मिनट पर मंदिर पट बंद हो जाते हैं।
भीमाशंकर मंदिर में दान करने के लिए ऑफिशियल वेबसाइट पर दी गई जानकारीः
अगर आप भीमाशंकर मंदिर में दान करने हेतु इच्छुक हैं तो मंदिर की ऑफिशियल वेबसाइट shreebhimashankar.com पेज के डोनेशन विकल्प पर जाकर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की राजगुरूनगर शाखा मे एकाउंट नंबर 11587553841, आईएफसी कोड एसबीआईएन 0000410 पर दान दे सकते हैं, आप चाहें तो ऑफिशियल वेबसाइट पर मौजूद बार कोड स्कैन या यूपीआई के माध्यम से भी राशि भेज सकते हैं।
भीमाशंकर के आसपास घूमने योग्य स्थलः
भीमाशंकर मंदिर के आसपास कई प्रमुख स्थल हैं जिनके दर्शन आप कर सकते हैं
- हनुमान झीलः मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर पर एक झील स्थित है, यहां दो मुख्य मंदिर हैं हनुमान और अंजनी माता मंदिर, वर्षों पहले यहां ऋषि जाभल्य का आश्रम हुआ करता था।
- गुप्त भीम और साक्षी विनायक मंदिरः गुप्त भीम की विशेषता यहां की छोटी बड़ी भीमा नदी और एक छोटा झरना है, जो वहां उपस्थित शिवलिंग पर जलाभिषेक करता रहता है। साक्षी विनायक मंदिर भगवान गणेश को समर्पित एक छोटा सा ही मंदिर है जो मुख्य मंदिर भीमाशंकर से लगभग 2 किमी की दूरी पर है, जिनका रास्ता जंगल से होकर जाता है। गुप्त भीम के निकट वैंद्यतीर्थ, टाइगर लॉर्ड और हर हर महादेव मंदिर है।
- मुंबई पॉइंटः भीमाशंकर मंदिर के पास स्थित भीमाशंकर बस स्टैंड से लगभग 100मीटर की दूरी पर, यह प्वाइंट लगभग 3000 फीट की ऊंचाई से कोंकण के मनोरम दृश्यों की अद्भुत श्रृंखला दिखलाई पड़ती है।
- महादेव वनः विस्तृत क्षेत्रफल पर बसा यह उद्यान भीमाश्ांकर बस स्टैंड से लगभग 500मीटर की दूरी पर है, जहां कई तरह के वनों के नजारें देख सकते हैं।
- हॉथोर्न पॉइंटः हनुमान झील से थोड़ी दूरी पर एक छोटी पहाड़ी से कोंकण और कलावंतिन महल के आकर्षक दृश्यों को देख सकते हैं।
- इन सबके साथ ही भीमा नदी जल स्त्रोत, कोंधवाल वॉटरफॉल, श्री भीमाशंकर देवालय अंखड धूना, भाकादेवी, कोटेश्वर महादेव और वनस्पति बिंदु इत्यादि जगहों के दर्शन कर सकते हैं।
भीमाशंकर मंदिर कैसे पहुंचेः
हवाई मार्गः पुणे इंटरनेशनल एयरपोर्ट से भीमाशंकर के लिए वाहन की मदद से पहुंच सकते हैं।
रेल मार्गः निकटतम रेलवे स्टेशन पुणे है, बस या कैब की मदद से भीमाशंकर जा सकते हैं।
स़ड़क मार्गः पुणे नासिक राजमार्ग के रास्ते मंचर होते हुए भीमाश्ांकर मंदिर दर्शन हेतु जाया जा सकता है।
निष्कर्षः
भीमाशंकर मंदिर, भगवान शिव का प्रमुख स्थान जो प्रकृति के खूबसूरत परिदृश्यों के बीच शांत वातावरण और अलौकिक दर्शन का लाभ प्र्रदान करता है। भक्तगण सावन के महीने में हरी भरी पहाड़ियों की भव्य खूबसूरती के साथ भीमाशंकर भगवान के दिव्य दर्शनों के साथ भौतिक और आध्यात्मिक सुख शांति प्राप्त करते हैं, जहां तन और मन दोनों ही जीवंत हो उठते हैं। खुशनुमा वातावरण और धार्मिक अनुभूति के सुखद संगम का ज्योतिर्लिंग शिव भक्तों को अति प्रिय लगता है, जहां भगवान शिव सपरिवार और अन्य देवताओं की आकर्षक प्रतिमाएं मंत्रमुग्ध और भक्ति संचार करती हैं।