• Jul 25, 2025

रामेश्वरम्, दक्षिणी समुद्र किनारे भगवान शिव की दिव्य उपस्थिति को प्रमाणित करता अद्भुत तीर्थ है जो स्वयं त्रेता युग में भगवान श्री राम द्वारा बनाया गया शिवलिंग है, जो भगवान शिव के प्रति प्रभु श्री राम की अनन्य भक्ति और समर्पण को दर्शाता है। रामेश्वरम्, भारत के प्रमुख चार धामों में से भी एक है जिसके बारें में हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों स्कंद पुराण, शिवपुराण मे भी जिक्र मिलता है। चार धामों की तीर्थयात्रा के बाद गंगाजल लेकर रामेश्वरम् में अभिषेक करना, फिर यहां से थोड़ी सी रेत लेकर गंगा जी में प्रवाहित करने से माना जाता है कि तीर्थयात्रा सफल संपूर्ण हुई है। रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग के बारें में और विस्तार से समझते हैं इस ब्लॉग में

रामेश्वरम तीर्थस्थल स्थानः

तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में अग्नि तट क्षेत्र में शंख आकार के द्वीप पर लगभग 15 एकड़ क्षेत्रफल में बना यह तीर्थस्थल रामायण काल से संबधित है।

1. कहा जाता है कि रावण वध पश्चात् ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त होने के लिए प्रभु श्री राम, लक्ष्मण और माता सीता ऋषि अगस्त्य के कहने पर यहां पहुंचे और शिवलिंग की पूजा की। शिवलिंग की स्थापना और शुभ मुहूर्त के बारें में जानकर प्रभु श्रीराम ने हनुमान जी को शिवलिंग लाने के लिए कैलाश भेजा। हनुमान जी को देर लगते देख माता सीता ने शुभ मुहूर्त की गरिमा को समझते हुए अपने हाथों से शिवलिंग बनाकर प्रतिष्ठित कर दिया।

कैलाश से लौटने के बाद हनुमान जी द्वारा लाए गए शिवलिंग को प्रभु श्रीराम ने प्रतिष्ठित किए हुए शिवलिंग के बगल में ही स्थापित कर दिया।

प्रभु श्री राम के निर्देश पर श्रीहनुमान द्वारा लाए गए शिवलिंग आदि विश्वेश्वर की पूजा पहले की जाती है और इस शिवलिंग की प्रथम पूजा प्रभु श्री राम द्वारा सबसे पहले होने के कारण इसे रामेश्वरम् नाम से जाना जाता है।

2. अन्य कथा के अनुसार, रावण जब सीता मां को अपहरण कर ले गया, तब लंका पर चढाई करने के उद्देश्य से राजा सुग्रीव और हनुमान की मदद से सेना तैयार कर ली। लेकिन प्रभु श्री राम परम शिव भक्त थे, भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु उन्होंने इसी स्थान पर शिवलिंग का निर्माण किया और षोडशोपचार रूप से पूजा कर स्तुति की जिस पर भगवान शिव प्रसन्न होकर यहां प्रकट हुए और प्रभु श्री राम की इच्छानुसार इसी स्थान पर बस गए और राम जी को विजयी होने का आशीर्वाद दिया।

भगवान शंकर के आशीर्वाद फलस्वरूप प्रभु श्रीराम विजयी हुए, जो भी कोई प्राणी रामेश्वर में ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर, पवित्र गंगा जल का छिड़काव करता है वह मोक्ष प्राप्त करते हुए भगवान शिव का प्रिय बन जाता है।

रामेश्वरम में मौजूद कुंडो की विशेषताएंः

रामेश्वरम अपने प्रसिद्ध 22 कुंडो के लिए बहुत प्रसिद्ध स्थान है, जहां स्नान करना या इन कुंडो के दर्शन करना अत्यंत पवित्र माना जाता है। भगवान राम द्वारा रावण को मारने के बाद ब्रह्महत्या पाप से उऋण करने हेतु समुद्र देवता ने 22 पवित्र कुंडो की स्थापना की जिनके बारें में कहा जाता है कि उनमें अलौकिक शक्तियों का समावेश है।

22 कुंड और इनके विशेष गुणः

  • 1. महालक्ष्मी तीर्थम्ः सुख समृद्धि
  • 2. सावित्री तीर्थम्ः दुख शोक को हरता है
  • 3. गायत्री तीर्थम्ः शांति प्रदान करती हैं।
  • 4. सरस्वती तीर्थम्ः ज्ञान, बुद्धि और तेज का प्रतीक
  • 5. सेतु माधव तीर्थम्ः मोक्ष प्रदायी
  • 6. गंधमादन तीर्थम्ः शुद्धिकरण
  • 7. गवय तीर्थमः विषयों पर काबू करना
  • 8. कवच तीर्थमः सुरक्षा प्रदायी
  • 9. नाला तीर्थमः शक्ति प्रदान करने वाला
  • 10. नीला तीर्थमः मन को शुद्धता प्रदान करने वाला
  • 11. अग्नि तीर्थमः पापों को भस्म करने वाला
  • 12. ब्रह्महथी विमोचन तीर्थमः गंभीर पापों से मुक्ति देने वाला
  • 13. सूर्य तीर्थमः सकारात्मकता और तेज प्रदान करने वाला
  • 14. चंद्र तीर्थमः मानसिक और भावनात्मक शांति प्रदायी
  • 15. गंगा तीर्थमः पवित्रता प्रदायी
  • 16. यमुना तीर्थमः शांति प्रदायी
  • 17. गया तीर्थमः आत्माओं और पुरखों को मुक्ति
  • 18. शिव तीर्थमः भगवान शिव का आशीर्वाद
  • 19. सत्यमृत तीर्थमः सत्य रूपी अमृत का ज्ञान देने वाला
  • 20. सर्व तीर्थमः सभी तीर्थ जलों का स्त्रोत
  • 21. कोडी तीर्थमः साहस, ताकत प्रदान करने वाला
  • 22. राम तीर्थमः भगवान राम को समर्पित पवित्र कुंड

रामेश्वरम मंदिर की वास्तुकला विशेषताएं

मंदिर की शुरूआत 12वीं शताब्दी के अंत तक साधारण सी संरचना के साथ एक प्राचीन मंदिर से हुई थी। पहली चुनाई वाला ढांचा श्रीलंका के पराक्रम बाहु द्वारा तैयार करवाई गई थी। मंदिर द्रविड़ शैली को प्रदर्शित करता है जिसमें कुछ अंश विमान पल्लव काल से भी हैं। इस हिंदू मंदिर का गलियारा सबसे लम्बा है और मंदिर के अंदर बड़े हॉल है जो पांच फीट से अधिक ऊंचे चबूतरों और ऊंचे स्तंभों पर टिके हैं।

विशाल और विस्तृत मंदिर के रूप में यह ज्योतिर्लिंग अवस्थित है जो विशिष्ट शैली की स्थापत्य कला का प्रतीक है, विशाल द्वीप पर स्थापित इस मंदिर का मुख्य द्वार कई मंजिलो के साथ बहुत ऊंचे आकार का है। इसका भव्य ढांचा, नक्काशी, प्रतिमाएं और उर्ध्व शिखर लोगों को आश्चर्यचकित कर देता है। ईश्वर की समीपता का दिव्य एहसास कराता यह ज्योतिर्लिंग मन की सारी कमजोरियों को दूर कर देता है।

रेतीले द्वीप पर बना यह मंदिर अलौकिक कला का आकर्षण समाहित किये हुए है जो आध्यात्मिक दृष्टि से बेहद प्रभावशाली है। मंदिर में मौजूद स्तंभों पर पत्थरों की सुंदर नक्काशी का आनंद लिया जा सकता है, जिसमें सूंड उठाए हाथी को देखना आकर्षक लगता है, मंदिर परिसर के चारों ओर मज़बूत पत्थर की दीवारें हैं जो लगभग 650 फीट चौड़ी और 12 फीट ऊंचाई की हैं।

प्रभावशाली मूर्तिकला उदाहरण के रूप में यहां सोने से मढे एक स्तंभ के पास लगभग 13 फीट ऊंचे और एक फीट चौड़े एक कभी न टूटने वाले पत्थर पर नदी का चित्रण किया है, जो आध्यात्मिक शांति का द्योतक है।

रामेश्वर मंदिर परिसर के आसपास अन्य प्रमुख आकर्षणः

पर्वतवर्धिनी मंदिर: रामेश्वर मंदिर के पास ही माता पार्वती का प्रमुख मंदिर है जिसे पर्वतवर्धिनी मंदिरके नाम से भी जानते हैं, साथ ही यहां वीरभद्र हनुमान, संतान गणेश जी मंदिर, नवग्रह मंदिर भी है। यहां अवस्थित हर छोटे बड़े मंदिर का अनोखा इतिहास है।

गंधमाधन पर्वतः रामेश्वरम मंदिर से लगभग 2 किमी दूरी पर गंधमाधन पर्वत है, जो रेतीले होने के बाद भी कई ऐसी दुर्लभ वनस्पतियों का घर है जो इसे बहुत विशेष बनाता है, यह पर्वतवन रामेश्वरम के नंदन वन के नाम से जाना जाता है।

रामझरोखा मंदिरः रामझरोखा मंदिर के रूप में स्थित पवित्र मंदिर में भगवान राम के चरणबिन्दुआेंं की छवि वाला एक चक्र स्थापित है जो इस द्वीप की सबसे ऊंचाई पर स्थित है। जहां से रामेश्वरम् लगभग 5 किमी की दूरी पर है जो रामेश्वरम का सबसे ऊंचाई वाला स्थान है, जहां से नीले समुद्र के अद्भुत नज़ारें देखने में बहुत लुभावने प्रतीत होते हैं।

धनुषकोडीः भगवान राम के धनुष के नाम पर इस जगह को जाना जाता है जो रामेश्वरम से लगभग 8 किमी दूर इस द्वीप के पूर्वी छोर पर स्थित है। पंबन द्वीप के दक्षिणपूर्वी सिरे पर स्थित इसी जगह पर भगवान श्रीराम द्वारा बनाया गया पुल मिलने के साक्ष्य मिलते है, जिसे आदम का पुल भी कहा जाता है, कहते हैं कि इसी पुल को पार करते हुए उन्होंने श्रीलंका पर चढाई की थी। यह जगह प्राचीन समुद्र तटों और रामायण काल के होने के साथ ही भूतिया जगह के नाम से भी प्रसिद्ध है।

विलुंडी तीर्थः समुद्र क्षेत्र के बीच में स्थित प्रसिद्ध यह स्थान मीठे जल के तालाब के रूप में रामेश्वरम के नजदीक विशेष तौर पर जाना जाता है, चहुंओर से खारा पानी होने के बाद भी के बाद भी इसका पानी मीठा और शुद्ध हैं जो आश्चर्यजनक है, पौराणिक कथा के अनुसार भगवान राम ने देवी सीता की प्यास बुझाने के लिए अपने धनुष को यहां गाढने से पहले समुद्र में बाण मारा था जिससे मीठे पानी के इस तालाब का जन्म हुआ, भगवान राम के यहां धनुष गाढने की वजह से इसे विलोंडी कहा जाता है।

अरियामन बीचः समुद्रीय नीले पानी में स्वच्छ आकाश की छवि दर्शाता यह बीच रामेश्वरम के निकट लगभग 30 किमी दूर घूमने योग्य स्थानों में से एक है जो अपनी सुंदरता से दर्शकों का मन मोह लेता है। यहां पेड़ों की श्रृंखला के आकर्षक परिदृश्य हैं जहां आप नौका विहार का भी आनंद ले सकते हैं।

पंचमुखी हनुमान मंदिरः रामेश्वरम मंदिर से लगभग 2 किमी दूरी पर स्थित पंचमुखी हनुमान मंदिर, श्री हनुमान जी को समर्पित है, इस जगह उन्होंने अपने पांचों मुखों को प्रकट किया था, इसीलिए यहां पंचमुखी प्रतिमा स्थापित है, मुख्य मुख के आसपास भगवान नृसिंह, आदिवराह, भगवान गरूड़ और भगवान हयग्रीव के मुखों की आकृति है, जो सिंदूर से सजी हुई है। इस मंदिर का प्रमुख आकर्षण यहां ‘‘तैरते पत्थर’’ हैं, जिन्हें भक्तों के दर्शनो के लिए रखा गया है। मान्यता हैं कि इन तैरते पत्थरों का प्रयोग रामसेतु बनाने में किया गया था। इस मंदिर की पौराणिक कथा इस प्रकार है- अहिरावण के राम लक्ष्मण जी को बंधक बनाने के बाद पाताल लोक ले जाकर अचेत अवस्था में बलि हेतु प्रस्तुत ही करने को था तब ही भगवान हनुमान जी ने अपना विशाल पंचमुख रूप धारण कर उन्हें मुक्त कराया था।

कोठंडारामस्वामी मंदिरः रामेश्वरम मंदिर से लगभग 12 किमी दूरी पर स्थित लोकप्रिय दर्शनीय स्थलों में से एक हैं जो लगभग 1000 साल से भी अधिक समय से प्राचीन है, यहां शिकागो सम्मेलन में जाने से पहले विवेकानंद जी द्वारा भगवान राम को समर्पित इस मंदिर में दर्शन किए गए थे जो एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है। इस मंदिर से जुड़े कथानक भगवान राम को ही समर्पित हैं, यहां दीवारों पर मंदिर का इतिहास दर्ज है और देवी सीता, भगवान राम, लक्ष्मण, भक्त हनुमान और विभीषण की मूर्तियों के दर्शन किए जाते हैं।

रामेश्वरम कैसे पहुंचेः

हवाई मार्गः निकटतम एयरपोर्ट मदुरै है, जो रामेश्वरम से 170 किमी की दूरी पर है।

रेल मार्गः निकटतम रेलवे स्टेशन रामेश्वरम है, छोटे होने की वजह से यहां ज्यादा रेलों का आवागमन नहीं है इसलिए मदुरै जंक्शन अति उपयुक्त है।

सड़क मार्गः चेन्नई और मदुरै से यहां के लिए सीधे बस या टैक्सी मिल जाएंगी, इसके अलावा देश के प्रमुख शहरों से भी रामेश्वरम के लिए आसानी से वाहन मिल जाते हैं।

निष्कर्षः

भगवान राम और भगवान शिव के दिव्य संगम को दर्शाता यह ज्योतिर्लिंग एक अद्वितीय तीर्थ है जहां आप त्रेता युग के अनुभवों की सुखद अनुभूति करते हुए हैरान कर देने वाले प्रमुख स्थलों को देख सकते हैं। यह सिर्फ एक तीर्थस्थल ही नहीं उससे भी कहीं ज्यादा बढकर आध्यात्मिक शांति प्रदान और समस्त पापों से मुक्त करने वाला स्थान है। भव्य वास्तुकला के साथ सदियों से दिव्यता को बिखेरता यह ज्योतिर्लिंग सावन माह में श्रद्धालुओं के आकर्षण के केंद्र के रूप में जाना जाता है, जहां दर्शन मात्र से मनुष्य को अलौकिक आनंद की प्राप्ति और मुक्ति मिलती है।

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