• Jul 25, 2025

बाबा धाम से प्रसिद्ध यह ज्योतिर्लिंग भक्तों के लिए भगवान शिव के लोकप्रिय धामों में से एक है जहां घने जंगलों के बीच बसे इस धाम की खूबसूरती देखते बनती है। भगवान शिव का एक नाम बैद्यनाथ भी है जो झारखंड के देवघर में स्थित एक विशेष ज्योतिर्लिंग है जहां सावन के मौसम में भक्तों की कांवड़ यात्रा की झलक देखते बनती है जहां कई किलोमीटरों तक की लंबी कतारें भगवान भोलेनाथ की कृपा दृष्टि श्रृंखला की कहानी कहती हैं। आइए, इस मंदिर के कई छुए अनछुए पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करते हैं, जिन्हें जानकर आप भी देवघर बाबा बैद्यनाथ धाम की पवित्रता महसूस करते हुए धार्मिक यात्रा करने को प्रेरित होगें।

बैद्यनाथ मंदिर क्षेत्र से जुड़ी प्राचीन कथाएं

ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि इस मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी के समय आमेर के शासक राजा मान सिंह द्वारा करवाया गया जब गुप्त वंश का शासनकाल था।

देवघर का यह क्षेत्र जहां बाबा बैद्यनाथ निवास करते हैं एक खास पवित्र क्षेत्र है जिसके बारें में कहा जाता है कि यह स्थान हरितकी या केतकी वन के नाम से जाना जाता था, जो पावन प्राकृतिक सुंदरता लिए देवी सती के अति करीबी स्थानों में से एक था, जिसके बारें में शिव पुराण में पढने को मिलता है।

शिव और शक्ति के एक साथ निवास करने और यहां अवस्थित मां पार्वती मंदिर जिसे शक्तिपीठ की संज्ञा दी जाती है। मुख्य बैद्यनाथ धाम से इस मंदिर का लाल धागों से बंधा होना इंगित करता है कि शिव और शक्ति के विवाह रूपी बंधन और एकता को दर्शाता है।

मत्स्यपुराण में यह भूमि ‘‘आरोग्य बैद्यनाथी’’ नाम से जानी जाती है, जहां भगवान शिव माता शक्ति के साथ पीड़ितों को आरोग्य प्रदान कर रोगों से मुक्ति दिलाते हैं।

बैद्यनाथ धाम से जुड़ा पौराणिक इतिहास

बैद्यनाथ धाम के बारें में एक प्राचीन कहानी प्रचलित है जो इस मंदिर की स्थापना से विशेषतया संबंधित है, त्रेता युग में रावण भगवान शिव का एक परम भक्त था, जो अपनी मां की इच्छा पूरी करने और लंका में भगवान महादेव की उपस्थिति को साकार करने के उद्देश्य से रावण ने कैलाश पहुंचकर भगवान शिव की घोर स्तुति कर आशीर्वाद स्वरूप सशर्त एक ज्योतिर्लिंग प्राप्त किया, जो जहां रख दिया जाएगा वहीं स्थापित हो जाएगा।

देवताआेंं को इस बात से चिंता हुई क्योंकि ज्योतिर्लिंग उसके राज्य में स्थापित हो जाएगा तो वह अजेय और निरकुंश शासक बन जाएगा जो उचित नहीं था। इसलिए सभी देवताओं और भगवान विष्णु की योजना अनुसार जब रावण कैलाश से ज्योतिर्लिंग लेकर लौट रहा था, उसी वक्त वरूण देव के प्रभाव से लघुशंका का आभास हुआ, निवृत्त होने के उद्देश्य से वह शिवलिंग को किसी के हाथ में थमाना चाहता था, उसी समय भगवान विष्णु चरवाहे का रूप रखकर वहां पधारे और शिवलिंग को लेकर रावण के आने से पहले वहीं जमीन पर स्थापित कर दिया। रावण ने जब लौटकर देखा तो वह परेशान हो गया और खूब प्रयास करने के बाद भी शिवलिंग वहां से टस से मस न हुआ। बाद में यही ज्योतिर्लिंग स्थान बाबा बैद्यनाथ धाम से मशहूर हुआ।

बैद्यनाथ मंदिर की वास्तुकलाः

श्वेत मंदिर परिसर की चमक बेहद आकर्षक और लुभावनी प्रतीत होती है, कहते हैं कि इस मंदिर को स्वयं विश्वकर्मा जी ने बनाया है। लगभग 72 फीट की ऊंचाई पर पूर्व दिशा की ओर यह मंदिर एक खिले हुए कमल की पंखुड़ियों के समान है जो समृद्धि और शांति का प्रतीक हैं। मंदिर के शिखर पर ऊपर की ओर देखते हुए तीन स्वर्ण पत्र हैं जो गिद्धौर शासक द्वारा दिये गए थे, जिनमें एक पंचसूल जुड़ा है जो भगवान शिव के शस्त्र त्रिशूल के प्रतीक चिन्ह के रूप में है। आठ पंखुड़ियांं की सुंदरता को बिखेरता यह रत्न, मणियों की सौंदर्यरूपी परत को जोड़ता हुआ प्रतीत होता है।

मंदिर परिसर में मुख्य प्रांगण केंद्र में है। गर्भग्रह में स्थापित ज्योतिर्लिंग का व्यास लगभग 5 इंच का माना जाता है जिसके आसपास कई छोटे मंदिर हैं जो अलग अलग देवताओं को समर्पित हैं। यहां गायत्री माता, मां काली के साथ अन्य कई देवी देवताओं के पावन दर्शन कर सकते हैं। समस्त ज्योतिर्लिंग के रक्षक के रूप में काल भैरव और भगवान विष्णु के लक्ष्मीनारायण छवि का अवलोकन कर सकते हैं। मुख्य मंदिर से माता पार्वती मंदिर बिल्कुल सामने अवस्थित है, जिसके शिखर आपस में पवित्र डोरी से बंधे हुए होते हैं।

बैद्यनाथ मंदिर से जुड़ी विशेषताएं

कहते हैं कि यहां ज्योतिर्लिंग होने के साथ ही 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ भी है जिसे पार्वती मां या जय दुर्गा नाम से जानते हैं, इस शक्तिपीठ में माता सती का ह्दृय गिरा था इस वजह से इसे हृदय तीर्थ भी कहते हैं।

उपचार शक्ति से परिपूर्ण यह ज्योतिर्लिंग चिकित्सकों के भगवान के रूप में प्रसिद्ध हैं।

बैद्यनाथ मंदिर दर्शन समय सारिणी

  • सुबह 4 बजे से दोपहर 2 बजे तक
  • शाम 6 बजे से रात 8 बजे तक
  • दर्शन और आरती समय में तिथि, खास पर्व और ऋतु अनुसार कुछ बदलाव संभव है।

बैद्यनाथ का प्रसिद्ध श्रावणी मेलाः

बाबा बैद्यनाथ का प्रसिद्ध सावन का यह मेला भक्तों को विशेष तौर पर लुभाता है, जो एक माह के परम पावन त्यौहार के रूप में मनाया जाता है, इसमें कांवड़ लेकर भक्त जसीडीह शहर से नंगे पांव चलकर गंगा जल से भरा पात्र और भोलेनाथ की मस्ती में झूमते हुए एक पवित्र यात्रा पर निकलते हैं जो माता सती के अवशेषों को भोलेनाथ द्वारा ले जाने के प्रतीकस्वरूप होती है। श्रावणी पर्व मनाते श्रद्धालुगण यहां सजीव और आध्यात्मिक वातावरण की अनुभूति करते हैं जहां वे विशाल अनुष्ठानों का आयोजन करते हैं और भक्ति के रंग में रच बस जाते हैं।

बैद्यनाथ मंदिर के आसपास घूमने हेतु आकर्षणः

नौलखा मंदिर देवघरः

बाबा बैद्यनाथ से यह मंदिर लगभग डेढ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, इस मंदिर का निर्माण कोलकाता की महारानी चारूशिला ने संत बालानंद की शरण में आकर और उनकी सलाह पर बनवाया जिन्होंने आध्यात्मिक शांति की खोज में गृह त्याग कर दिया था। इस मंदिर का नाम इसलिए नौलखा पड़ा क्योंकि उस समय मंदिर बनाने में नौ लाख की राशि खर्च हुई थी। लगभग 45 मीटर ऊंचाई के साथ यह मंदिर ग्रेनाइट और संगमरमर से बना है जिसमें राधा कृष्ण गोपाल और संत बालानंद की प्रतिमाएं स्थापित हैं। प्रवेश द्वार पर रानी चारू शिला की प्रतिमा भी स्थापित है।

बासुकीनाथ मंदिर देवघरः

माना जाता है कि यदि बाबा बासुकीनाथ में जलाभिषेक नहीं किया जाता तो बाबा बैद्यनाथ की तीर्थ यात्रा पूरी नही होती है। बैद्यनाथ धाम से यह मंदिर लगभग 45 किमी दूर दुमका में अवस्थित है, जहां इनकी पूजा के लिए मंदिर की आधिकारिक वेबसाइट के माध्यम से ऑनलाइन नंबर भी ले सकते है और लाइव दर्शन करने के साथ ही दान पुण्य भी कर सकते हैं।

सत्संग आश्रम देवघरः

बाबा बैद्यनाथ से लगभग 3 किमी दूरी पर स्थित इस आश्रम के दर्शन का आनंद ले सकते हैं। यह अनुकूलचंद्र ठाकुर द्वारा बनवाया गया आश्रम हैं जिनका जन्म सन् 1888 में हुआ था। श्वेत पत्थरों से निर्मित मुख्य द्वार की झलक राजसी प्रभाव प्रदान करती है जो एक रेलयात्री पड़ाव भी है। इस आश्रम में अस्पताल, सामुदायिक रसोई, पब्लिशिंग हाउस, केमिकल वर्क्स, स्कूल कॉलेज, संग्रहालयों के साथ अन्य केंद्र जैसे वेद भवन, सत्संग पुस्तकालय, गौशाला आदि और सुविधाएं भी हैं। आश्रम में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए वर्षा जल संचयन प्रणाली अपनाई जाती है।

नंदन पहाड़ देवघरः

शहर के किनारे पर स्थित यह छोटी सी पहाड़ी बाबा बैद्यनाथ से लगभग 3 किमी की दूरी पर है जहां प्रसिद्ध शिव मंदिर और नंदी मंदिर के दर्शनों से अभिभूत हो सकते हैं। इस पहाड़ी से सूर्योदय और सूर्यास्त के नजारें देखने लायक होते हैं जहां प्रकृति की भी अनोखी छटा देखने को मिलती है। इस पहाड़ी से जुड़ी एक किंवदंती सुनने में आती है कि जब रावण कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के दर्शनों के लिए गया तो नंदी भगवान ने उसे रोकने की कोशिश की ऐसे में रावण ने नंदी जी को उठाकर ऐसे फेंका कि वो इस पहाड़ी पर आकर गिरे तब यह पहाड़ी भगवान नंदी के नाम से ही जानी जाती है। यहां मौजूद पार्क में नौकायन और तैराकी का आनंद भी लिया जा सकता है।

तपोवन पर्वत देवघरः

देवघर के बाबा बैद्यनाथ से लगभग 10 किमी की दूरी पर स्थित तपोवन पहाड़ियां अपने प्राकृतिक परिदृश्यों के लिए मशहूर हैं, यहां के लुभावने आकर्षक पेड़ पौधे, चट्टानों के नजारें और दूर दूर तक घास के मैदानों की दृश्यता इसे न केवल प्राकृतिक बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी प्रसिद्ध स्थल बनाते हैं। यहां मौजूद तपोवन गुफाओं मे ध्यान साधना कर सकते हैं, साथ ही यहां से पास स्थित पारसनाथ पहाड़ी जो जैनियों का प्रमुख तीर्थस्थल है उसके दर्शन कर सकते हैं।

रिखिया आश्रम देवघरः

आध्यात्मिक गुरू परमहंस सत्यानंद की तपोभूमि के नाम से प्रसिद्ध यह धरती बाबा बैद्यनाथ के धाम से लगभग 10 किमी की दूरी पर है जहां योग को जीने के अवसर की तरह सीख सकते हैं, बेहतर बात यह है कि यह आश्रम निःशुल्क सुविधाएं प्रदान करता है जहां ध्यान योग के साथ कर्म योग की शिक्षा भी दी जाती है। यहां योग सीखने से ज्यादा जोर योग जीने में विश्वास किया जाता हैं, जहां रोजमर्रा की जिंदगी में तरक्की के नये आयामों को विकसित करने के लिए अपनी भीतरी शक्तियों को पहचानने का ज्ञान प्रदान किया जाता है जिसे समझकर व्यक्ति अपनी असली शक्ति से परिचित होता है। यहां योग व्यक्ति को जीवन जीने की कला सिखाता है।

कैसे पहुंचे बैद्यनाथ धामः

हवाई मार्गः निकटतम हवाई अड्डा देवघर एयरपोर्ट है, इसके अलावा बिरसा मुंडा हवाई अड्डा जो रांची में है और देवघर से इसकी दूरी लगभग 250 किमी है। यहां देश के प्रमुख शहरो से फ्लाइट के माध्यम से पहुंच सकते हैं।

रेल मार्गः निकटतम रेलवे स्टेशन जसीडीह जंक्शन है जो देवघर से लगभग 7 किमी की दूरी पर है।

सड़क मार्गः प्रतिदिन बस सेवाएं झारखंड और पड़ोसी राज्यों को देवघर से अच्छे से जोड़ती हैं जहां प्रमुख बस स्टेशन रांची, कोलकाता, पटना और अन्य शहरों के बस स्टेशन हैं।

निष्कर्षः

बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग भारत की संपन्न धार्मिक मान्यताओं और भक्तों की आस्थाओं का प्रतीक स्वरूप है। भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग और माता भगवती के शक्तिपीठ का अद्भुत संगम है जो दिव्य ऊर्जा का संचार करते हैं और दुनियाभर से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। अद्भुत वास्तुकला और सजीव वातावरण का यह परिसर भारत की धार्मिक प्रतिष्ठा की झांकियां प्रस्तुत करता है जो एक सिर्फ एक तीर्थस्थल नहीं, वरन् आध्यात्मिक स्पंदन और भीतरी खोज की अंतहीन यात्रा है।

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