• Jul 25, 2025

जय श्री केदार, उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग में मंदाकिनी नदी के किनारे गढवाल हिमालयी क्षेत्र में अवस्थित भगवान शिव का अलौकिक ज्योतिर्लिंग जो उत्तराखंड के चार धामों और पंच केदारों में से भी एक, सदियों से भगवान शिव की महिमा के गुणगान कर रहा है। निर्मल शांत वातावरण के बीच राहत की ठंडक प्रदान करता यह मंदिर बेहद खास है। ऐतिहासिक मान्यताओं के साथ ही यहां वर्तमान में भी विशेष चमत्कारों की विस्तृत श्रृंखला देखने को मिलती हैं। भगवान शिव के कैलाश जैसा प्रतीत होता यह क्षेत्र भोलेनाथ की साक्षात् उपस्थिति को प्रतिविंबित करता है, जहां बहुत से रोचक तथ्यों, पौराणिक कथाओं और विशेषताओं का संग्रह है, विस्तार से जानते हैं यहां की खासियतों के बारे में जिसे जानकर आपकी केदारनाथ यात्रा की योजना को सार्थक दिशा मिलेगी।

केदारनाथ मंदिर की खुलने और बंद होने की तारीख

केदारनाथ वर्ष में लगभग 6 माह खुलता है और अन्य 6 महीनों में भारी बर्फबारी के कारण बंद रहता है। मई से अक्टूबर माह के दौरान केदारनाथ के पट ज्योतिषीय गणना के आधार पर खोले जाते हैं, इस समय अंतराल में आप केदारनाथ भगवान के दर्शन कर सकते हैं और शुभ मुहूर्त के अनुसार पट बंद भी किए जाते हैं। साल 2025 में क्या है केदारनाथ मंदिर पट के खुलने और बंद होने की तिथियां आइए जानते हैं।

केदारनाथ मंदिर पट खुलने की तारीखः  2 मई 2025 
केदारनाथ मंदिर पट बंद होने की तारीखः 23 अक्टूबर 2025 

केदारनाथ मंदिर से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं

केदारनाथ को लेकर अति प्राचीन कथाओं में सुनने को मिलता है कि यहां भगवान विष्णु की प्रार्थना पर भगवान शिव ने केदार क्षेत्र में रहने का वरदान दिया, जहां केदार नाम के राजा राज्य करते थे और महान शिव भक्त थे, इन्हीं की करूण विनती सुन महादेव ने इस क्षेत्र की रक्षा करने का वरदान प्रदान करते हुए केदार क्षेत्र के रक्षक स्वरूप में केदारनाथ में बस गए।

कहते हैं इस स्थान पर पांडवों ने महादेव की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था दरअसल महाभारत युद्ध जीतने के पश्चात् पांचो पांडव जाने अंजाने में कुरूक्षेत्र में हुए पापों का पश्चाताप् करना चाहते थे इसलिए उन्होंने शासन सत्ता सौंपकर देवी द्रौपदी के साथ भगवान महादेव की शरण के में जाने के लिए निकल पड़े पर किसी कारणवश भगवान शिव उन्हें सहज दर्शन देने के इच्छुक नहीं थे, ऐसे में पांडवों से बचने के लिए भगवान शिव ने एक वृषभ यानी बैल का रूप धर लिया और एक स्थान पर चरने लगे, जो भगवान शिव की इस दिव्य उपस्थिति के कारण छिपी हुई काशी यानी गुप्तकाशी नाम से जाना जाता है, जहां पांडवों में से भीम ने उन्हें पहचान लिया कि बैल के रूप में यह भगवान शिव हैं इसलिए उन्होंने बैल की पूंछ और पिछले पैरांं को पकड़ लिया, लेकिन बैल रूप में शिव अन्तर्धान हो गए और पांच अलग अलग जगह टुकड़ों में प्रकट हुए, इन स्थानों को सामूहिक रूप से पंच केदार नाम से जाना जाता है।

एक किंवदंती यह भी सुनने में आती है कि भीम के बैल के पकड़ने और उसे रोकने के कारण बैल पांच टुकड़ों में फट गया और अलग अलग स्थानों में इनके पांच मंदिरों का निर्माण हुआ, इन्हीं में से एक केदारनाथ भगवान ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई जिसे पांडवों ने ही तैयार करवाया था, यहां उन्होंने जप तप यज्ञ आदि कार्य संपन्न किए अंत में स्वर्गारोहिणी के मदद से स्वर्ग गमन किया।

पंच केदार महिमा और विशेषताएं

पंच केदारों में पहले केदार के रूप में केदारनाथ ज्योतिर्लिंग स्वयं ही हैं बाकी चार अन्य मंदिर इस तरह से है- तुंगनाथ, रूद्रनाथ मंदिर, मध्यमहेश्वर और कल्पेश्वर

मध्यमहेश्वरः

उत्तर भारतीय हिमालयी शैली का प्रतिनिधित्व करता यह मंदिर एक ऊंचे टीले के ठीक नीचे हरे भरे घास के मैदान में स्थित है काले पत्थरों से बनाया गया है जहां दो अन्य छोटे मंदिर भी हैं एक शिव के अर्धनारीश्वर रूप को, दूसरा माता पार्वती को समर्पित है। कहते हैं कि पांडवों में से भीम ने यहां मंदिर निर्माण करवाया था। मंदिर के दाहिनी ओर माता सरस्वती की भी प्रतिमा स्थापित है। यह दूसरे पंच केदार के रूप में पूजा होती है।

तुंगनाथः

विश्व के सबसे ऊंचे शिव मंदिरों में से एक यह मंदिर पंच केदारों में सबसे अधिक ऊंचा है, जिसका शाब्दिक अर्थ ही चोटियों का स्वामी है, तुंगनाथ जिस पर्वत पर स्थापित है वह मंदाकिनी और अलकनंदा नदी घाटियों का निर्माण करते हैं जो चंद्रशिला के शीर्ष के ठीक नीचे लगभग 3700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पंच केदारों में इसका स्थान तीसरे केदार के रूप में है, इस स्थान पर भगवान शिव की भुजाएं प्र्रदर्शित हुईं थीं। कहते हैं इस स्थान के नजदीक चंद्रशिला शिखर पर प्रभुश्री राम ने भी तपस्या की थी और रावण ने भी यहां रहते हुए भगवान शिव की आराधना की थी।

रूद्रनाथ मंदिरः

लगभग 3600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक प्राकृतिक चट्टानी मंदिर है जो घने वनों के भीतर स्थित है जो पंच केदार में चौथे स्थान पर आता है। रूद्रनाथ में भगवान शिव का चेहरा दिखाई दिया था। सर्दियों के दौरान प्रतीकात्मक छवि को रूद्रनाथ से गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में पूजा के लिए लाया जाता है साथ ही डोली यात्रा उत्सव मनाया जाता है, सबसे पहले वनदेवी की पूजा से शुरूआत की जाती है और पवित्र महीनें सावन की पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन को भव्य वार्षिक मेले का आयोजन भी किया जाता है। इस मंदिर की यात्रा को सबसे कठिन पंच केदार यात्रा में एक माना जाता है।

कल्पेश्वरः

पंच केदार के पांचवे नंबर पर आने वाला कल्पेश्वर भगवान शिव की जटाओें का प्रतीक है जो छोटे से मंदिर में गुफा के माध्यम से पहुंचने का स्थान है, किंवदंती के अनुसार यहां कोई विशेष ऋषि द्वारा अरघ्या मंदिर में कल्प वृक्ष के नीचे ध्यान किया जाता था, जिन्होंने अप्सरा उर्वशी को यहीं बनाया था। इस मंदिर का पूरा नाम अनादिनाथ कल्पेश्वर महादेव है जहां कलेवरकुण्ड नाम का पवित्र तालाब है, इसका जल हमेशा साफ स्वच्छ रहता है जिसे पीकर लोग विभिन्न प्रकार की व्याधियों से मुक्त होते हैं।

केदारनाथ मंदिर की वास्तु और स्थापत्य कलाः

इस मंदिर की उत्पत्ति इतिहास के बारें में कोई ठोस साक्ष्य नहीं है अनुमान के तौर पर इसे 8वीं शताब्दी ईस्वी का माना जाता है जिसके निर्माण में प्रभावशाली व्यक्तित्व, दार्शनिक, धर्मगुरू और अन्य नामों से प्रसिद्ध शंकराचार्य का नाम लिया जाता है जिनकी केदारनाथ मंदिर निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका है। इस मंदिर का पुननिर्माण राजा भोज द्वारा 10वीं शताब्दी के आसपास बताया जाता है।

इस मंदिर का निर्माण बिना किसी जोड़ने वाली सामग्री के इंटरलॉकिंग तकनीक के माध्यम से के भूरे पत्थरों की मदद से निर्मित किया गया है जो हिमालयी वास्तुकला की सरलता को प्रदर्शित करता है। पौराणिक कथाओं का जीवंत चित्रण और प्रतिमाएं इसकी सांस्कृतिक सुंदरता को और ज्यादा बढाने का काम करती हैं।

अत्यधिक ठंड के प्रकोप को झेलती इसकी संरचना और सामग्री की गुणवत्ता इसकी विशेषताओं को स्पष्टतया दर्शाता है।

मंदिर 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है जिसका गर्भग्रह लगभग अतिप्राचीन 8वीं शताब्दी के आसपास का माना जाता है जो अर्घा के पास चार कोनों में सृदृढ पाषाण स्तंभ है, जहां परिक्रमा की जाती है, विस्तृत छत एक ही पत्थर से बनी हुई है। करीब 85 फीट ऊंचा, 187 फुट लंबा और 80 फुट चौड़ाई लिए हुए यह मंदिर आश्यर्च का खजाना है जिसको इतने दुर्गम परिवेश में इतनी खूबसूरती से बनाना बिल्कुल सहज नहीं है।

केदारनाथ मंदिर से जुड़ी अन्य विशेषताएं

  • साल 2013 में आई भीषण बाढ त्रासदी के दौरान भी इस मंदिर की हिफाजत के लिए एक विशाल शिलाखंड अपने आप मंदिर के पीछे आकर सुरक्षित करती रही, जिसे भीम शिला नाम दिया गया। इतनी तबाही के बाद भी मंदिर और यहां मौजूद भक्तों का बाल बांका नहीं हुआ।
  • कहते हैं जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किए बिना बद्रीनाथ के दर्शन करता है तो उसकी तीर्थयात्रा सफल नहीं मानी जाती है
  • विज्ञान के आधार पर माना जाता है कि यह मंदिर 400साल तक बर्फ में दबा रहा लेकिन इस मंदिर को कोई हानि नहीं हुई। 
  • इस तीर्थ की वजह से केदार क्षेत्र को मुक्ति क्षेत्र के नाम से जाना जाता है।
  • बैल स्वरूप में केदारनाथ के पिछले हिस्से की पूजा केदारनाथ में की जाती है और इनके मुख की पूजा नेपाल स्थित पशुपतिनाथ में की जाती है।
  • मंदिर में द्रौपदी सहित पांचों पांडवों की विशाल प्रतिमाएं स्थापित हैं जहां कई पवित्र कुण्ड पाए जाते हैं जहां आचमन और तर्पण आदि कार्य किए जाते हैं।

केदारनाथ मंदिर के आसपास घूमने योग्य स्थानः

1. सोनप्रयागः गुप्तकाशी और गौरीकुंड के निकट यह स्थान प्रकृति की खूबसूरती निहार सकते हैं जहां मंदाकिनी और बासुकी नदियों का पवित्र संगम देखने को मिलता है।

2. वासुकी तालः गढवाल हिमालय में अवस्थित हिमनद झील के रूप में आकर्षक और लुभावना प्रतीत होता है, यह शाही चौखम्बा चोटियों के बीच प्रसिद्ध झील है जिसके बारें में कहा जाता है कि भगवान विष्णु केदारनाथ यज्ञ में शामिल होने से पहले इस झील में स्नान करते हैं और साहसिक गतिविधियों के शौकीन पर्यटक यहां ट्रैकिंग जैसी लोकप्रिय गतिविधियों का मजा ले सकते हैं।

3. भैरवनाथ मंदिरः केदारनाथ मंदिर से थोड़ी दूरी पर भैरवनाथ मंदिर के दर्शन कर सकते हैं जो खुले आसमान के नीचे अवस्थित है और यहीं शंकाराचार्य जी के रूकने के भी चिन्ह मिलते हैं।

4. गुप्तकाशीः इस स्थान को काशी की तरह ही मोक्षप्रदायी माना गया है, रोचक इतिहास के साथ ही इस स्थान में भगवान शिव की सूक्ष्म उपस्थिति का एहसास मन को तरोताजा करता है।

5. चोराबारी तालः इसे गांधी सरोवर नाम से भी जानते हैं जो केदारनाथ के निकट ही है, भगवान शिव ने यहां पांडवों को योग का ज्ञान दिया था, इसके अलावा यहां महात्मा गांधी जी की की कुछ अस्थियों का विसर्जन भी किया गया था।

6. त्रियुगीनारायण मंदिरः सोनप्रयाग के मनमोहक आकर्षणों के मध्य बसा यह मंदिर आध्यात्मिक ऊर्जा का स्त्रोत है।

कैसे पहुंचे

हरिद्वार,ऋषिकेश या देहरादून पहुंचकर आप आगे की यात्रा अपनी सुविधा अनुसार कर सकते हैं आप चाहें तो इन जगहों के साथ फाटा या गुप्तकाशी से हेलीकॉप्टर सेवा का लाभ उठाकर केदारनाथ पहुंच सकते हैं।

आप चाहें तो सोनप्रयाग या गौरीकुंड से पैदल यात्रा कर भी केदारनाथ यात्रा शुरू कर सकते हैं। जहां से मंदिर की दूरी क्रमशः लगभग 21 किमी और 14 किमी है।

मंदिर तक जाने के लिए राजमार्ग सेवा के माध्यम के साथ पालकी सेवाओं के माध्यम से भी केदारनाथ दर्शन किए जा सकते हैं।

निष्कर्षः

केदारनाथ मंदिर भारत की अभूतपूर्व सांस्कृतिक और विरासत का प्रतीक है, जहां भगवान शिव की सशक्त व्यापकता भक्तों के मन को मोह लेती है और मोक्ष प्रदान कर जन्म मरण के चक्र से मुक्ति प्रदान करती है। अद्भुत, अकल्पनीय और दिव्य वातावरण की खूबसूरती प्रकृति की मौजूदगी के साथ और विशेष छाप छोड़ती है जहां आप पूरे परिवार के साथ हों या एकांत की खोज करने वालों को पवित्र अनुभूतियों का पूरे गर्मजोशी के साथ एहसास कराता है, जहां आप दर्शन तो केदारनाथ के करते हैं लेकिन आध्यात्मिक एक्सप्लोर खुद को करते हैं।

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