अद्भुत, अकल्पनीय रूप प्रदर्शित करने वाला यह 10वां ज्योतिर्लिंग अपनी तरह का एकमात्र अनोखा शिवलिंग है जहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के एक साथ लिंग रूप में एक साथ दर्शन किए जाते हैं जो विश्व में कहीं और देखने को नहीं मिलता है। विस्तृत प्राचीन अलौकिक छटा के साथ जहां आमतौर पर शिवलिंग के दर्शन बाहरी तौर पर ही दूर से देखने में भी हो जाते हैं, लेकिन यहां की छवि निराली है जो बाकियों से एकदम अलग और हैरान करने वाला है कि क्या कोई ऐसा भी ज्योतिर्लिंग हो सकता है? तभी तो इसे त्रयम्बेकश्वर ज्योतिर्लिंग से जाना गया, आइए विस्तार से जानते हैं इसकी संरचना, इतिहास, पौराणिक कथाओं और अन्य विशेषताओं को जो इस सावन आपके भीतर इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए उत्साहित करेंगी।
त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक जिले के त्रयम्बक कस्बे में स्थित है जो नासिक शहर से लगभग 30 किमी और नासिक रोड से लगभग 45 किमी दूर है।
इस ज्योतिर्लिंग की संरचना अन्य शिवलिंगों की भांति नहीं है, एक ओर जहां अरघे में बाहरी तौर पर ही उभरे हुए शिवलिंग के दर्शन होते हैं वहीं यहां विशाल अरघे में अवसाद या गड्ढा है जिसमें अंगूठे के आकार के तीन शिवलिंग हैं जो स्वयं भू और पूरी तरह से प्राकृतिक हैं, जो गोलाकार आकृति में थोड़ी थोड़ी दूरी पर अवस्थित हैं। विशाल ज्योतिर्लिंग के इस अनोखी छवि को बार बार निहारने का मन करता है।
त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग को एक रत्नजड़ित मुकुट से ढक दिया जाता है जो ब्रह्मा, विष्णु, शिव के स्वर्ण मुखौटे के ऊपर रखा गया है, यह मुकुट द्वापराकालीन है जिसमें हीरा, पन्ना सहित कई कीमती पत्थर जड़े हुए हैं।
वर्तमान त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग का निर्माण तृतीय पेशवा बालाजी बाजीराव ने एक पुराने मंदिर की जगह पर करवाया था जो लगभग 1740 से 1760 का समय था। मंदिर की चारों दिशाओं में प्रवेश द्वार हैं यानी पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण, प्रत्येक दरवाजा किसी खास बात का प्रतीक हैं जैसे पूर्व आरंभ का, पश्चिम परिपक्वता, दक्षिण पूर्णता और उत्तर रहस्योद्घाटन की निशानी है।
काले पत्थरों से निर्मित यह मंदिर तीन पहाड़ियों ब्रह्मगिरी, नीलगिरी और कालागिरी के बीच स्थित अपनी शानदार वास्तुकला और स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है जो ब्रह्मगिरी नाम के पर्वत की तलहटी में स्थित है। चौकोर मंडप के साथ विशाल दरवाजों की छवि भव्य प्रतीत होती है। मंदिर की भव्य इमारत सिंधु आर्य शैली का उत्तम उदाहरण हैं, मंदिर के भीतर गर्भग्रह में प्रवेश करने पर शिवलिंग के अरघे के दर्शन होते हैं, ध्यान से देखने पर अर्घा के अंदर बने गड्ढे में एक एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक चिन्ह मानते हैं। सुबह की पूजा के बाद इस अर्घा पर चांदी का पांचमुखी मुकुट चढा दिया जाता है। ब्रह्मगिरी पर्वत के ऊपर जाने के लिए चौड़ी चौड़ी सात सौ सीढियां बनी हुई हैं, जिन्हें चढने के बाद रामकुण्ड और लक्ष्मणकुण्ड मिलते हैं और शीर्ष के पास पहुंचने पर गोमुख से निकलती हुई देवी गोदावरी नदी के दर्शन होते हैं
शिवपुराण की श्रीकोटिरुद्र संहिता के 42वें अध्याय के अनुसार, त्रयम्बक भगवान शिव का आठवां अवतार हैं जो गोदावरी नदी के किनारे ऋषि गौतम की प्रार्थना और तपस्या का फल है।
1. ब्रह्मगिरी पर्वत की तलहटी में बसा यह स्थान ऋषि गौतम की तपस्थली के रूप में जानी जाती है। जहां वे अपनी पत्नी अहल्या के साथ एकांत आश्रम में रहा करते थे। एक बार इस क्षेत्र में भयंकर सूखा पड़ गया जिससे स्थानीय लोगों के साथ साथ अन्य वन्य प्राणी भी बेहाल हो उठे और भूलवश ऋषि गौतम पर गौहत्या का पाप लग गया जिसके प्रायश्चित हेतु मां गंगा में स्नान कर इस पाप से मुक्ति का मार्ग बताया गया तब गौतम ऋषि द्वारा ब्रह्मगिरी पर्वत पर कठिन तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया जिन्होंने गंगा को उस क्षेत्र में बहने का निर्देश दिया, जो यहां एक धार के रूप में प्रकट हुई और त्रयंम्बक पहाड़ियों से होती हुई प्रवाहित हुईं जिन्हें हम गोदावरी नाम से जानते हैं इसीलिए इन्हें दक्षिण गंगा या वृद्ध गंगा नाम से जानते हैं। गंगा का गोदावरी रूप दिव्य आशीर्वाद की देन है, इसी के साथ गौतम ऋषि ने भगवान शिव से यहां त्रिदेव रूप में बसने के लिए आग्रह किया, तब उनकी इच्छा पर भगवान शिव अन्य दो पराशक्तियों ब्रह्मा और विष्णु के साथ यहां त्रयम्बकेश्वर रूप में सदा के लिए विराजमान हो गए।
2. गोदावरी नदी की उत्पत्ति संबंधित अन्य किंवदंती भी सुनने में आती है जिसमें भगवान विष्णु ने वामन अवतार के रूप में अपने पैर से पृथ्वी को दबाकर जल की उत्पत्ति की थी, उसी उद्गम से गोदावरी नदी का निर्माण हुआ था, भगवान विष्णु से चरणों से उत्पन्न होने की वजह से यह परम पावन नदी के रूप में मानी जाती है। भगवान विष्णु का वामन अवतार रूप में यहां साक्षात प्रकट होना यह दर्शाता है कि इस मंदिर में इनका भी स्वरूप विराजमान है।
त्रयम्बकेश्वर मंदिर अपने यहां होने वाली विशेष पूजा और अनुष्ठानों के लिए जाना जाता है, जो सिर्फ खासतौर पर यहीं सम्पन्न किए जाते हैं।
जब किसी कुंडली में काल सर्प दोष का योग होता है तो अनावश्यक झंझटों से बचाव हेतु कुछ पूजा की जाती हैं जो स्थान विशेष के रूप में त्रयम्बक में कराने का महत्व ज्यादा है, इसको पंडितो या पुरोहितों की मदद से संपन्न करवाया जाता है।
कुंडली में उत्पन्न पितृ दोष से मुक्ति पाने और भगवान नारायण की कृपा पाने हेतु यह पूजा नासिक के इस मंदिर में सम्पन्न करवाई जाती है
जो अधिकतर मामलों जैसे अकाल मृत्यु, पशु, शाप, महामारी, बीमारी, आत्महत्या या किसी जीवदंश से होने वाले मामलों के बचाव हेतु करवाई जाती है।
साथ ही दुनिया में जो नहीं है, उनकी मृत आत्माओं को शांति और मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से कराई जाती है, जिनके लिए कहा जाता है कि अगर इनकी शांति नहीं कराई जाती तो यह अपने ही परिवार को परेशान करते हैं, जो अनावश्यक कष्ट का कारण बनता है।
पूर्वजों की आत्माओं की शांति और अधूरी इच्छाओं को तृप्त करने के लिए इस पूजा को करवाया जाता है, इस पूजा में पूर्वजों की तीन पीढियों को तीन पिंड अर्पित किए जाते हैं।
भगवान शिव को समर्पित यह शक्तिशाली मंत्र मृत संजीवनी मत्र भी कहलाता है जिसकी मदद से भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर व्यक्ति को मृत्यु के मुख से भी बाहर लाया जा सकता है। सुरक्षा, स्वास्थ्य, विजय या अन्य असाध्य चीजों को साध्य करने हेतु इस मंत्र का जाप नासिक में करवाया जाता है, जिसकी महत्ता बहुत अधिक होती है।
त्रयम्बकेश्वर मंदिर के ऑफिशियल पेज पर हमेशा मंदिर के पट खुले रहने के समय तक त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के गरिमामय पावन दर्शनों का सीधा लाभ कहीं से भी आराम से ले सकते हैं।
त्रयम्बकेश्वर मंदिर में रूद्राभिषेक पूजा और लघुरूद्र्राभिषेक पूजाओं को संपन्न कराने के लिए सिर्फ ऑनलाइन साधन ही उपलब्ध है, जिसे आप बुकिंग कर सिर्फ ऑनलाइन ही देख सकते हैं, यहां ऑफलाइन पूजा करने का विधान उपलब्ध नहीं है अर्थात हर कोई यहां उपस्थित होकर पूजा में सम्मिलित नहीं हो सकता है। मंदिर में होने वाले यह अभिषेक यहीं के पुरोहितों द्वारा ही संपन्न करवाया जाते हैं, आप अपनी बुकिंग अनुसार इसका दर्शन और पूजा लाभ पुरोहित द्वारा बताये गए समय अनुसार ऑनलाइन माध्यम से ही कर सकते हैं।
त्रयम्बकेश्वर मंदिर में दर्शनों हेतु वीआईपी पास भी बनवा सकते हैं जो प्रति व्यक्ति 200 रूपये निर्धारित है जिसमें जो दर्शतिथि निर्धारित होती है उसी पर ही दर्शन कर सकते हैं और यह अहंस्तातरणीय है।
चैत्र माहः गुड़ी पड़वा
वैशाख माहः माह के तीसरे दिन यानी अक्षय तृतीया को हर्षमहल को सजाकर उत्सव की तैयारी की जाती है।
श्रावण माहः यूं तो पूरा श्रावण माह ही भगवान शिव की विशेष पूजाओं को समर्पित है लेकिन कुछ विशेष तिथियों जैसे नागपंचमी और नारली पूर्णिमा के दिन भगवान का विशेष तौर पर श्रृंगार किया जाता है और श्रावण अमावस्या के दिन पोला पर्व और बैलों की शोभायात्रा आयोजित की जाती है।
भाद्रपद माहः भादों मास में गणेश जी का जन्मोत्सव चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है जो लगातार 10 दिनों तक मनाया जाता है।
आश्विन माहः आश्विन यानी क्वार मास की अष्टमी तिथि को मां जगदबिंका, कोलाम्बिका, नीलाम्बिका आदि देवियों को साड़ी और चोली अर्पित की जाती है विजयदशमी पर अन्य देवताओं सहित शस्त्रों की भी पूजा की जाती है, जहां न्यासीगण सुबह 5 बजे से त्रयम्बकेश्वर में विशेष अनुष्ठान संपन्न करते हैं साथ ही अन्य रीति रिवाजों का पालन किया जाता है। नरक चतुर्दशी के समय पर भी विशेष पूजा और दिवाली वाले दिन शाम को लक्ष्मीपूजन किया जाता है।
कार्तिक माहः पड़वा वाले दिन शाम को स्वर्ण मुकुट की स्थापना होती है और त्रयम्बकराज की रथ यात्रा निकाली जाती है।
माघ माहः वसंत पंचमी के दिन भगवान को विशेष श्रृंगार से सजाया जाता है।
फाल्गुन माहः होलिका पूजन करने के साथ ही दूसरे दिन विशेष सजावट और रंगपंचमी को भगवान त्रयम्बकेश्वर को रंग लगाया जाता है। फाल्गुन के प्रत्येक सोमवार को पालकी यात्रा कुशावर्त तीर्थ ले जाई जाती है।
त्रयम्बकेश्वर मंदिर के आसपास पर्यटन हेतु कई शानदार स्थलों का संग्रह है, जहां प्रकृति की सुंदरता के साथ ही आध्यात्मिक पराकाष्ठा के कई आदर्श देखने को मिलते हैं।
त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा निराली है, इनके पावन दर्शनों से मनोकामना पूर्ति के साथ ही व्यक्ति को अन्य दोषों से भी मुक्ति मिल जाती है, जहां की पावन धरा मानव कल्याण के उद्देश्य से ही गढी गई है। पवित्र गोदावरी की धारा में स्नान करना और भगवान त्रयंबकेश्वर के दर्शनों के आनंद की अनुभूति करना जीव मात्र को सच्चे सुख की परिभाषा समझाते हुए तीनों देवों की कृपा को एक साथ पाने का सौभाग्य प्रदान करता है।