• Jul 10, 2025

मोक्ष की नगरी काशी जिसके कई नाम है जैसे वाराणसी, बनारस और भी कई उपनामों से प्रसिद्ध इस शहर के ऐतिहासिक घाटों की आध्यात्मिक एनर्जी और सुकून भरा वातावरण हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है। इन्हीं घाटों में से एक दरभंगा घाट मृत्यु के बाद के रीति रिवाजों को संपन्न करने और मोक्ष पाने की अभिलाषा को जीवंत करता है, घाट के किनारे पर बना भव्य महल अद्भुत वास्तुकला का परिचायक है जो आध्यात्मिक शांति और वातावरण को और मजबूती प्रदान करता है। घाट की महत्ता को बढाती गंगा नदी की महिमा और भी बढ़ जाती है जब इसके पवित्र जल से दरभंगा घाट के प्राचीन शिव मंदिर का अभिषेक किया जाता है। आइए, दरभंगा घाट और इसकी विशेषताओं के साथ जानते हैं इसके पास घूमने वाले स्थानों के बारें में

दरभंगा घाट का प्राचीन इतिहासः

दरभंगा घाट, जिसका नाम तो दरभंगा, जो बिहार का एक शहर है, और यह अवस्थित है वाराणसी शहर में, है न कितनी आश्चर्यजनक बात? दरअसल इस घाट के नाम के पीछे एक इतिहास है, बिहार दरभंगा शहर के शाही परिवार द्वारा इस घाट के दक्षिणी भाग को खरीद कर सन् 1920 में पूरे घाट को विस्तृत तरीके से विकसित किया, उनकी इस पहल से इस घाट की रौनक कई गुना बढ गई जिस वजह से घाट को इन्हीं के शहर के नाम से जाना जाने लगा।

वास्तव में दरभंगा घाट अति प्राचीन निर्माण 18वीं शताब्दी के दौरान नागपुर साम्राज्य के मंत्री श्री धर मुंशी ने करवाया था, प्रारंभ में यह मुंशी घाट के नाम से ही जाना जाता था। ब्रिटिश काल के दौरान इस घाट को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में विशिष्ट पहचान मिली जिससे भारतीय रियासतों और अंग्रेजो के मध्य पारंपरिक परस्परता को बढावा मिला।

स्थापत्यकला का बेजोड़ उदाहरणः

दरभंगा घाट के पास बना शानदार महल जिसकी बेमिसाल छवि भारतीय स्थापत्य कला का अद्वितीय प्रदर्शन करती है। भव्य और दिव्य दिखने वाला यह महल चुनार के बलुआ पत्थरों से निर्मित किया गया है, जो भारतीय कलात्मक शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है, बारीक नक्काशियों के साथ बने झरोखों की श्रृंखला महल की शोभा और शिल्पकला को बड़ी खूबसूरती से प्रस्तुत करती है। उत्तर और दक्षिण में सृदृढ खड़ी मीनारें शाही अंदाज में चार चांद लगाने का काम करती हैं।

महल और गंगा नदी के बीच बनी आकर्षक सीढियों का निर्माण तीर्थयात्रियों की सुविधा हेतु बहुत व्यापक रूप में किया गया है, जिससे यहां आने और स्नान करने में आसानी रहती है। इनका निर्माण दरभंगा के महाराजा द्वारा ही कराया गया था, जो न केवल सुविधा में उत्तम है बल्कि सुंदरता में भी उज्जवल हैं।

दरभंगा घाट का आधुनिक स्वरूप और महत्ताः

दरभंगा घाट की विशेषता है कि यह एक साफ स्वच्छ और सौंदर्य युक्त है, जो पक्के घाट के रूप में जाना जाता है। इस घाट में अंतिम संस्कार के लिए जाते मृत शरीर और विशेष महिमा के धनी इस घाट में जीवित रहते हुए स्नान आदि कार्य करना तीर्थयात्री को असली काशी की महत्ता से रूबरू कराता है।

दरभंगा घाट के आसपास स्थित अन्य दर्शनीय स्थल

बनारस गलियों के शहर होने के साथ ही अपनी स्थानीय संस्कृति के लिए भी मशहूर है, वर्ल्ड फेमस लजीज कचौरियों के साथ ही यहां के घाट और मंदिर भी लोगों के लिए पर्यटन आकर्षण का केंद्र हैं, जानते हैं विस्तृत रूप से इनके बारें में

1. काशी विश्वनाथ मंदिरः

वाराणसी स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर अत्यंत प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है, कहते हैं कि यहां स्थित ज्योतिर्लिंग पूरे ब्रहांड का सबसे पहला ज्योतिर्लिंग है जिसकी वजह से काशी नगरी जानी जाती है। इस मंदिर का और यहां ध्यान पूजा अर्चना करने विशेष महत्व है जो जन्म जन्मांतर के बंधनों से मुक्त कर शिवधाम को प्रदान करता है। यहां की महिमा इतनी विशेष है कि यहां आने मात्र से कल्याण हो जाता है, इन्हीं विशेषताओं की वजह से अतीत में इस मंदिर को कई बार विध्वंस का सामना भी करना पड़ा है। पौराणिक रूप से इस मंदिर की महत्व के बारे में हिंदू धर्म के प्रसिद्ध ग्रन्थों स्कंद पुराण, शिवमहापुराण, ब्रहम वैवर्त पुराणों के साथ अन्य कई स्थानों पर भी इसका उल्लेख मिलता है।

  • पताः श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, लाहोरी टोला, डोमरी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
  • सर्वाधिक प्रमुखः द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक, गंगा नदी और भारत का सर्वाधिक प्रतिष्ठित शिव मंदिर
  • यात्रा का उपयुक्त समयः नवंबर से मार्च

2. दशाश्वमेध घाटः

बनारस के तटों की महिमा अद्भुत है, इसी क्रम में दशाश्वमेध घाट का नाम भी जाना जाता है, मान्यता है कि यहां ब्रहमा जी ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के दस अश्वमेध यज्ञों का आयोजन किया था। घाट में नौकाए, तीर्थयात्रियों को नौकायन के आनंद के साथ यहां अवस्थित लगभग सभी घाटों की सैर का रोमांचक अवसर प्रदान करती हैं। इस ऐतिहासिक घाट पर तीर्थयात्री मुख्य रूप से गंगा आरती के दौरान भव्य दृश्यों को देखने के लिए आकर्षित होते हैं, जो सूर्यास्त के तुरंत बाद शुरू हो जाती है, जिसकी विशेष छटा को देखने के लिए तीर्थयात्री शाम से ही इकट्ठा होना शुरू कर देते हैं। हिंदू त्योहारों और मंगलवार को यहां विशेष आरती का आयोजन होता है, गंगा आरती की अवधि लगभग 45 मिनट की होती है।

  • पताः दशाश्वमेध घाट रोड, दशाश्वमेध घाट, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
  • सर्वाधिक प्रमुखः विश्वनाथ मंदिर ,नौकायन का लुत्फ और गंगा नदी स्तुति
  • यात्रा का उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च

3. मणिकर्णिका घाटः

माता सती के प्रमुख 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ विशालाक्षी मंदिर, प्रमुख मणिकर्णिका घाट पर स्थित है, जो वाराणसी के प्रसिद्ध श्मशान स्थलों में से एक है। कहते हैं यहां हर समय अग्नि प्रज्वलित रहती है, कारण-काशी में मोक्ष पाने की इच्छा से यहां मृत शरीर के अंतिम संस्कार को जीवन मृत्यु के बंधन से मुक्त होना मानते हैं। विशालाक्षी मंदिर में माता सती के कान के आभूषण गिरे थे, जो कालांतर में प्रमुख शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। इस घाट के नाम पर ही रानी झांसी लक्ष्मीबाई का विवाह पूर्व नाम मणिकर्णिका रखा गया था जिन्हें प्यार से मनु कहकर पुकारा जाता था, इनके पूर्वज बनारस से संबंधित थे।

  • पताः मणिकर्णिका श्मशान घाट, ललिता घाट के पास, लाहोरी टोला, डोमरी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
  • सर्वाधिक प्रमुखः 52 शक्तिपीठों में से प्रमुख शक्तिपीठ विशालाक्षी मंदिर, जलती चिताएं और पवित्र गंगा नदी
  • यात्रा का उपयुक्त समयः अक्टूबर से अप्रैल

4. तुलसी घाटः

रामचरितमानस की रचना करने वाले तुलसी दास जी ने इसी घाट पर बैठकर प्रभु श्रीराम के जीवन को आम जनमानस तक पहुंचाया है, जिसे तुलसी घाट नाम से जाना जाता है। विरासत प्रतीक चिन्ह के रूप में कलम पकड़े तुलसीदासजी और हनुमान जी की काष्ठ प्रतिमा और प्रभु श्रीराम का मंदिर आकर्षण का केंद्र है। कहते हैं कि जब तुलसीदास जी रामचरितमानस लिख रहे थे तब कई बार उसे हानि पहुंचाने के असफल प्रयास किए गये। कभी तो उस कक्ष में आग की लपटों से सब खाक हो गया लेकिन रामचरितमानस की पांडुलिपि सुरक्षित रही और कभी गंगा नदी में गिरने के बाद भी पांडुलिपि नष्ट नहीं हुई। भक्ति का कोई मापदंड नहीं होता और इसी तर्क को और मजबूत करता तुलसी घाट विशेष पूजनीय तट के रूप में प्रतिष्ठित है। प्रमुख त्योहारों पर यहां की विशेष सजावट और मंचन पर्यटन प्रेमियों को आकर्षित करता है।

  • पताः तुलसी घाट रोड, बी 2/40 ,तुलसी घाट, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
  • सर्वाधिक प्रमुखः तुलसी दास स्मृति विशेष, गंगा नदी, प्रसिद्ध धार्मिक मंदिर
  • यात्रा का उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च

5. काल भैरव मंदिरः

काशी विश्वनाथ और अन्य प्रमुख शक्तिपीठों की नगरी काशी में काल भैरव भगवान को इन मंदिरों और बनारस शहर की रक्षा करने हेतु निश्चित किया गया। कहते हैं काल भैरव भगवान शिव के एक रूपों में से ही एक है, काल भैरव से आशय समय या मृत्यु के भय से दूर रखने वाले ईश्वर है। मान्यता है कि काशी विश्वनाथ बाबा के दर्शन करने से पहले काल भैरव के दर्शन करना महत्वपूर्ण माना जाता है। भगवान शिव के इस रूप मे यह खप्परों की माला को धारण करने के साथ लंबे केशों वाले हैं जो अपने वाहन कुत्ते पर सवारी करते हैं। इस मंदिर के दर्शनों हेतु बड़ी लंबी लाइनों को पार करना पड़ता है जहां तंग गलियों से होकर पहुंचना पड़ता है। भगवान भैरव का प्रसाद मदिरा उन्हें विशेष रूप से प्रिय है, जिसे भक्तजन यहां समर्पित करते हैं।

  • पताः के 32/22, भैरोंनाथ, विश्वेश्वरगंज, गोलघर, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
  • सर्वाधिक प्रमुखः काल भैरव प्रतिमा, काशी विश्वनाथ मंदिर
  • घूमने योग्य समयः नवंबर से अप्रैल

निष्कर्षः

बनारस का दरभंगा घाट हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण घाटों में से एक है जहां जीवन के पार भी शिवधाम गमन की अभितृप्ति से अपने पूर्वजों की अस्थि कलश को विसर्जित करते हैं और यहां के जल को स्पर्श करते हुए डुबकी लगाते हैं। गौरवपूर्ण ऐतिहासिक विरासत को समाहित किये बनारस का यह घाट संपन्न और समृद्ध हिंदू धर्म की आस्था और विश्वास को संतृप्त करता गरिमामय प्रतीक है, जिसके पास कई ऐसे लोकप्रिय घाटों और मंदिरों का समूह है जो इस घाट की लोकप्रियता को और बढाते हैं। बनारस घूमने जाएं तो इन मंदिरों और घाटों की आध्यात्मिक वातावरण में ईश्वर की अनूठी उपस्थिति महसूस करने का एहसास जरूर लीजिए, बनारस एक ऐसा शहर जो जीवन की शुरूआत से लेकर मृत्यु उपरांत भी अति वंदनीय है।

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