बनारस, एक तीर्थस्थान से कहीं ज्यादा एक जीवंत आध्यात्मिक अनुभव है। यहां के मंदिर, मठ, स्थल और घाटों की बात ही कुछ और है। यहां 80 से अधिक घाट है जिनमें से कईयों की स्थापना या जीर्णोद्धार किसी लोकप्रिय राजाओं व उनके मंत्रियों, गौरवशाली व्यक्तित्व द्वारा कराई गई है, हर घाट से जुड़ी कोई न कोई पौराणिक कहानी या रोचक अनुभवों की दास्तां सुनने में आती हैं। सुबह की गंगा आरती में उमड़ती दशाश्मेध घाट की भीड़ हो, चाहे शांत अस्सी घाट में योग साधको की मौन साधना, मणिकर्णिका घाट की चिताओं से उठते धुएं की कहानी हो या तुलसी घाट में तुलसीदास जी की स्मृति अवशेष, हरिश्चन्द्र घाट की पौराणिक कहानियों की चर्चा हो या नारद घाट से जुड़ी किवंदतिंयों का सैलाब। बनारस के घाटों की अलौकिक छवियों के दीदार को हर दिन यहां बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन आना पसंद करते हैं। आइए बनारस के दस प्रमुख घाटों के बारें में अधिक विस्तृत रूप से जानते हैं।
एक ऐसा घाट जो रिसर्च के लिए फेमस है, यहां शोधकर्ता, स्थानीय विदेशी छात्र और पर्यटन प्रेमी लंबे तक रहना पसंद करते हैं जो बनारस के सबसे दक्षिणी छोर को स्पर्श करता घाट है। अपने आने वालों के लिए यह घाट कई सारे प्रमुख आकर्षणों को संग्रह प्रस्तुत करता है, उदाहरण तौर पर सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कार्यक्रमों को सुंदर झलकियां यहां देखने को मिलती हैं। मान्यताओं के अनुसार कहते हैं कि तुलसीदास जी ने इसी घाट पर ही अपना देह त्याग किया था। इस घाट को महिमामंडित करती बॉलीवुड फिल्म भी बनाई गई है जिसमें मुख्य अभिनेता का किरदार सनी देओल ने निभाया है, यह फिल्म काशीनाथ सिंह के हिंदी उपन्यास काशी का अस्सी घाट पर बनाई गई है जिसको मोहल्ला अस्सी फिल्म नाम दिया गया है। अस्सी घाट गंगा और अस्सी नदियों के मिलन पर स्थित होने के कारण इस नाम से जाना जाता है प्रातः वैदिक मंत्रों से सुबह का स्वागत करते हुए वैदिक यज्ञों को संपन्न किया जाता है जिसमें पांच तत्वों से बने इस जीवन को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। योग कक्षाओं के साथ ही शास्त्रीय रागों पर आधारित प्रातःकालीन रागों की प्रस्तुतीकरण किये जाते हैं।
अपनी विचित्र किंवदतिंयों के लिए मशहूर नारद घाट को टॉक्सिक संबंधों से बाहर आने के लिए स्नान विशेष कारण से जाना जाता है, इसका निर्माण 1700 ई. के आसपास हुआ था। घाट पर चार महत्वपूर्ण मंदिर भी अवस्थित हैं, नारद ऋषि, भगवान विष्णु के परम प्रिय भक्तों में से एक हैं जो हर वक्त उनका ही नाम जाप करते हैं और थोड़ा हास्य परिहास किरदार के लिए जाने जाते हैं। इसी वजह से इनके घाट को लेकर कहते हैं कि यहां स्नान करने वालों के वैवाहिक संबंध विच्छेद हो जाते हैं, इस बात की सच्चाई का कोई प्रमाण नही है। नारद घाट में स्नान करने से तीर्थयात्री नुकसान देह विचारों और लोगों से बच जाता है। इस घाट की वास्तुकला और डिजाइन पर्यटकों और मोक्ष की कामना से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र है।
बनारस के प्रमुख घाटों में से एक है दशाश्वमेध घाट, जहां की गंगा आरती वर्ल्ड फेमस है, इस घाट को लेकर दो प्रमुख मान्यताएं प्रचलित हैं। पहली कहते हैं कि यह घाट ब्रहमा जी द्वारा दस अश्वमेध यज्ञों के कारण इस नाम से जाना जाता है और दूसरी यह कि इस घाट को ब्रहमा जी ने भगवान शिव के स्वागत के लिए तैयार करवाया था। 1748 ई. के दौरान पेशवा बालाजी बाजीराव ने इसका निर्माण करवाया था जिसका जीर्णोंद्धार इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने साल 1774 में कराया था। यहां होने वाली शानदार गंगा आरती की रौनक इतनी फेमस है कि तीर्थयात्री 45 मिनट के इस धार्मिक आयोजन को देखने के लिए शाम से ही एकत्र होने लगते हैं। गर्मियों के दौरान आरती का समय शाम 7 बजे और सर्दियों में शाम 6 बजे से शुरू होती है, जगमग करते दीपों की कतारें और आरती के स्वर इस घाट की आध्यात्मिक ऊर्जा को बहुत उच्च स्तर पर पहुंचा देती हैं।
18वीं शताब्दी की शुरूआत में इस घाट का निर्माण अमृत राव ने करवाया था, जिसका पुनर्निमाण महंत स्वामी नाथ का नाम आता है और सन् 1941 में इसे बलदेव दास बिड़ला ने पक्का कराया था। कहते हैं कवि तुलसीदास द्वारा यहां रामचरितमानस को लिखा गया था जिसकी पांडुलिपि गंगा नदी में गिरने के बाद भी डूबी नहीं थी। यहां तुलसीदास द्वारा स्थापित हनुमान प्रतिमा और उनके द्वारा इस्तेमाल वस्तुओं को आज भी दर्शन हेतु रखा गया है। यहां भगवान राम का भी प्रसिद्ध मंदिर है।
माता सती के 52 शक्तिपीठों मेंं से एक यह शक्तिपीठ, जहां सती देवी का कान का आभूषण गिरा था, विशालाक्षी शक्तिपीठ के नाम से पूजनीय है और इसके किनारे अवस्थित यह घाट जीवन और मृत्यु के अंतर को स्पष्ट रूप से समझाता है, कहते हैं बनारस में मरने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती हैं इस वजह से इस घाट का महत्व और बढ जाता है। मणिकर्णिका घाट पर चिता अग्नि हमेशा प्रज्वलित रहती है जहां शिवधाम गमन की प्रक्रिया वर्षां से अनवरत चली आ रही है। जलते हुए मृत शरीर को देखकर जीवन की गहराई का बड़ी सरलता से अनुभव किया जा सकता है।
नागपुर साम्राज्य के मुंशी द्वारा इस घाट का निर्माण करवाया गया था जिसकी मरम्मत और विस्तार बिहार दरभंगा के शाही राजवंशों द्वारा कराया गया और इस वजह से इसका नाम दरभंगा घाट से प्रसिद्ध हुआ। यहां पर्यटक अपने पूर्वजों की अस्थि कलश विसर्जन से लेकर गंगा में पावन डुबकी लगाते हैं जिस कारण तीर्थयात्रियों का तन और मन दोनों ही पवित्र पावन हो जाते हैं। घाट किनारे आकर्षक चुनार के बलुआ पत्थरो से बना महल पर्यटको का मन मोह लेता है और महल और घाट के बीच बनी चौड़ी लंबी आधुनिक सीढियां जिनकी वजह से गंगा में आसानी से डुबकी लगाने का अवसर प्राप्त होता है।
अहिल्याबाई होल्कर का नाम बनारस से प्रमुखतः से जुड़ा हुआ है। काशी विश्वनाथ मंदिर का आधुनिक स्वरूप रानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा ही निमार्णित कराया गया है जिन्होंने कई घाटो और मंदिरो को भी पुनर्जीवन दिया है। इन्ही के सम्मान में इस घाट को अहिल्याबाई घाट के नाम से जाना जाता है, घाट के किनारे पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाने का आध्यात्मिक अनुभव अविस्मरणीय है, इस घाट की बनावट आकर्षक है जो अपनी भव्यता और सुदंर नक्काशियों और के कारण पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण घाटों मे से एक है। इस घाट पर वाराणसी की प्राचीनतम संस्कृति, रीति रिवाज और धार्मिक दृष्टिकोण इसे महसूस करने के लिए सर्वोत्तम स्थान के रूप में स्थापित करते हैं।
सत्य, साहस और ईमानदारी की पराकाष्ठा पर खरे उतरते महाराजा हरिश्चंद्र के कारण इस घाट को इनके नाम से ही जाना जाता हैं, मान्यता है कि इस घाट पर यह नौकरी किया करते थे उसी वक्त इनकी पत्नी बेटे रोहिताश्व के शव को अंतिम संस्कार हेतु लाती हैं, गरीबी के कारण उनकी पत्नी तारा के पास उस वक्त देने के लिए कुछ नहीं होता किन्तु राजा हरिश्चन्द्र बिना लगान लिए उन्हें प्रवेश नहीं करने इतनी ह्नदय विदारक घटना होने पर भी राजा हरिश्चन्द्र अपने सत्यमार्ग और कर्तव्यनिष्ठता पर अडिग रहे जिस वजह से उन्हें ईश्वर दर्शन हुए आशीर्वाद स्वरूप उनका पुत्र जीवित हो गया और उनका राज्य उन्हें वापस मिल गया। कालांतर में इसी घाट को राजा हरिश्चन्द्र के नाम से जाना जाता है, यहां इनके मंदिर के साथ पत्नी तारा और पुत्र रोहिताश्व के मंदिर अवस्थित है। यहां आज भी शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है, जहां किसी खास पर्व पर अघोरियों द्वारा राख की होली का भी आयोजन होता है।
नारायण राजवंश द्वारा 18वीं शताब्दी के समय पर इस घाट का निर्माण करवाया गया था। गंगा नदी के किनारे बना इस घाट पर बने हुए महल को गंगा महल के नाम से जानते हैं जो देखने में अति आकर्षक और लुभावना प्रतीत होता है। यह अस्सी घाट के करीब ही स्थित है, इनके बीच बनी पत्थर की सीढियां इन दोनों घाटों की सीमा को तय करती हैं। गंगा महल वाराणसी की खूबसूरत इमारतो में से एक है। गंगा की खूबसूरती को और करीब से देखना चाहते हैं तो इस महल से गंगा की नजदीकी को महसूस कीजिए, जो पवित्रता के साथ राजसी अंदाज बयां करते बनारस में प्रवाहित होती हैं।
जैन तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध इस घाट की महिमा अनंत गुणा है। इसे भदैनी घाट के नाम से भी जानते हैं। यहां की वास्तुकला और गंगा नदी के तट पर इसकी अवस्थिति सुकून भरे माहौल का निर्माण करते हैं। यह घाट जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित है, जिनका यहां मंदिर भी है, इन्हीं के साथ यहां श्री महावीर जैन मंदिर भी दर्शनीय स्थल है जो जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर के रूप में पूजनीय हैं। साथ ही इस घाट पर जैन धर्म के अनुयायियों के लिए विशेष प्रार्थना कक्ष और अन्य छोटे मंदिरों की भी स्थापना की गई है।
बनारस, घाटों के शहर के रूप में विश्व भर में प्रसिद्ध है, आध्यात्मिक वातावरण और सुखद अनुभूति देते यह घाट बनारस की विविध संस्कृति के परिचायक हैं जो जीने के खूबसूरत अवसरों और मृत्यु के बाद की खोज को बहुत अच्छे से समझाता है। बाबा विश्वनाथ की नगरी और मां गंगा के अद्भुत नीर की विशेषता को बढाता यहां का वातावरण हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां के घाटों में नौका विहार करते हुए अधिकतम घाटों के सफल दर्शन करना प्रत्येक तीर्थयात्री को सत्य के और करीब लाता है।