संपूर्ण भारतवर्ष में अगर देखा जाए तो तमिलनाडु राज्य में अन्य राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा मंदिरों की संख्या है। हिंदू संस्कृति, रीति रिवाजों और परंपराओं में संपन्न समृद्धशाली ये मंदिर भारत की ऐतिहासिक विरासत, पौराणिक मान्यता और अद्भुत चमत्कारों के साक्षात् प्रमाण प्रस्तुत करते हैं, इनमें से अधिकतर मंदिर करीब 800 सालों से भी अधिक प्राचीन हैं, तमिल स्थापत्य कला के धनी इन मंदिरों की लगभग संख्या 4 लाख के करीब है, जिनका निर्माण यहां राज करने वाले विभिन्न शासक राजवंशो द्वारा समय समय पर करवाया गया है। इन विशेषताओ को विस्तार से समझते हुए तमिलनाडु के 10 प्रसिद्ध मंदिरों की चर्चा करते हैं।
तमिलनाडु के मदुरै शहर में अवस्थित यह मंदिर अद्भुत वास्तुकला और रंगबिरंगे पत्थरों की कारीगरी से बना बेहद खूबसूरत मंदिर है जो मदुरै शहर की पहचान है। मीनाक्षी नाम माता पार्वती का पर्याय है, तो वहीं सुंदरेश्वर भगवान शिव का प्रतिरूप है, इन्हीं दो मंदिरों को मिलाकर मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर कहते हैं। इस मंदिर का सर्वाधिक उत्कर्ष 16वीं शताब्दी के आसपास हुआ, जिसमें पांच शाही द्वार है और हर द्वार की भव्यता का आकर्षण देखते बनता है साथ ही मीनाक्षी मंदिर परिसर लगभग 65 हजार वर्गमीटर क्षेत्र में लगभग 2000 साल होने के साथ ही प्राचीन विस्तारित वास्तव में वृहद है। यहां का अयिरमकाल मंडपम हजार स्तंभों वाला हॉल है जो यहां की सबसे प्रमुख विशेषता है। इसके प्रत्येक खंभे पर शानदार, सुसज्जित अलंकृत की हुई आकर्षक मूर्तियां हैं जो देखने में एकदम सजीव प्रतीत होती हैं।
समुद्र किनारे रामेश्वरम द्वीप पर अवस्थित हिंदू धर्म के चार धामों में से और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक यह मंदिर भगवान शिव का प्रसिद्ध विशाल मंदिर हैं जिसकी स्थापना के संबंध में कई किंवदंतिया प्रचलित है जिसमें से यह तो सत्य है ही कि इस मंदिर का संबंध रामायण काल से है,
कहते हैं कि जब प्रभुश्रीराम रावण पर विजय प्राप्त कर वापस लौटे तब उन्हें ब्राह्मण हत्या का दोष लगा हुआ था, इससे मुक्त होने हेतु ऋषि अगस्त्य ने भगवान शिव की आराधना करने का सुझाव दिया, जिसे शिरोधार्य मानकर उन्होंने समुद्र किनारे अपनी पत्नी और भाई लक्ष्मण के साथ भगवान शिव की ध्यान साधना के लिए श्री हनुमान जी को कैलाश पर्वत शिवलिंग लाने भेजा किन्तु शिवलिंग आने में देर हो रही थी जिस वजह से माता सीता ने वहीं रेत को उठाकर पार्थिव शिवलिंग का इस्तेमाल कर दिया और स्थापित कर दिया, तभी वहां भक्त हनुमान कैलाश से भगवान शिव द्वारा प्रदत्त शिवलिंग लेकर पहुंच गए, दूसरे शिवलिंग को देखकर अपनी देर के लिए ग्लानि अनुभव न करें, इसलिए प्रभुश्रीराम ने हनुमान द्वारा लाए गए विश्वेश्वर शिवलिंग को भी वहीं स्थापित कर दिया और कहा कि इसी शिवलिंग की पूजा पहले की जाएगी। भगवान राम द्वारा इस स्थान पर सबसे पहले पूजा की गई थी इसीलिए इस मंदिर को रामेश्वरम मंदिर से जाना जाता है। यहां मौजूद 21 कुण्डों का पवित्र जल सारे तीर्थों की विशेषता रखता है।
भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर यूनेस्को विश्व धरोहरों में शामिल महान जीवंत चोल मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है जिसे दक्षिण का मेरु कहा जाता है और और चोल शासक राजराज प्रथम द्वारा करीब 11वीं शताब्दी के आसपास बनवाया गया था, जो अद्भुत चोल वास्तुकला का प्रदर्शन करता है। इस मंदिर के शीर्ष पर रखा वजनी पत्थर उस युग में कैसे रखा गया होगा और आज भी वह इसी प्रकार रखा हुआ है यह बहुत आश्चर्यजनक बात लगती है साथ ही यहां मंदिरों के पत्थरों को जोड़ने के लिए किसी भी सामग्री का उपयोग नहीं हुआ है और तब भी यह मंदिर सदियों से ऐसे ही खड़ा है, 16वीं शताब्दी के दौरान इसे किलेबंद दीवारो के बीच सुरक्षित किया गया।
भगवान गणेश जी के भक्तों का यह विशेष मंदिर एशिया में सबसे बड़ा विनायक मंदिर है, यहां मनाया जाने वाला विनयगर गणेश चतुर्दशी लगभग 10 दिनों तक बहुत ही धूमधाम से मनायी जाती है जिसमें भगवान गणेश की 31 रूपों की पूजा आराधना और दर्शन करने का लाभ मिलता है, इनके साथ ही अन्य देवी देवताओं की भी प्रतिमाएं यहां स्थापित है जिसमें भगवान शिव नेल्लईअप्पर के रूप में, गांधीमथी अम्मन, नेल्लईअप्पर की पत्नी मां पार्वती, स्कंद कुमार, सुब्रहण्यम रूप में पत्नी वल्ली और देइवानई के साथ और अन्य ईश्वरीय प्रतिमाओं के साथ सुशोभित हैं। इसे मूर्ति विनयगर मंदिर भी कहा जाता है, जिसका रखरखाव प्रबंधन तमिलनाडु सरकार द्वारा देखा जाता है।
भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का एक दक्षिण में सबसे प्रचलित नाम मुरुगन है, इन्हीं को समर्पित यह मंदिर सुब्रहण्यम मंदिर से भी जाना जाता है जो कांचीपुरम के प्रमुख मंदिरों में से एक है जो वहां अवस्थित दो मंदिर एकाराम्बेश्वर और कामाक्षी मंदिरों के बीच एक सेतु समूह का कार्य करता है, एकाराम्बेश्वर इनके पिता भगवान शिव और कामाक्षी माता पार्वती को समर्पित मंदिर है यानी ये अपने माता पिता के मंदिरों के मध्य अपनी विशेष पहचान बनाते हैं। किंवदंती के अनुसार भगवान मुरुगन ने यहां सृष्टि को बनाने वाले ब्रह्मा जी को कैद कर लिया था जिन्हें छोड़ने के लिए भगवान शिव ने पुत्र मुरुगन को आदेश दिया। भगवान कार्तिकेय को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान शिव की आराधना की जिसे देवसेनापतिसर नाम से जाना गया। भगवान मुरुगन की दिव्य छवि एक हाथ में रूद्राक्ष की माला और दूसरे हाथ में कमंडल लिए हुए है।
दक्षिण भारत में भगवान विष्णु को रंगनाथ और इनकी पत्नी मां लक्ष्मी को रंगनायकी कहकर पुकारा जाता है। इन्हीं दोनों को समर्पित श्रीरंगम मंदिर परिसर दुनिया में सबसे बड़े धार्मिक परिसरों में से एक है जहां भगवान की आराधना पूजा यही उपस्थित रहकर की जा सकती है। विशाल अद्भुत गोपुरम जो रंगीन मूर्तियों की कलाकृतियों से शोभाएमान प्रतीत होते हैं, विशेष अद्भुत आकर्षण की वजह से इसे यूनेस्को विश्व धरोहर में शामिल किया गया है साथ ही इसे यूनेस्को से पुरूस्कार भी मिला हुआ है जो पूरे तमिलनाडु में इसे अद्वितीय बनाता है। वैकुंठ एकादशी यहां का विशेष त्योहार है।
भगवान मयूरनाथ भगवान शिव का ही एक रूप है, जिसकी सबसे पहले पूजा माता पार्वती ने ही की थी। सुंदर गोपुरम और भव्य शिवलिंग लिए इस मंदिर की विशेषता है कि यहां तमिल माह अप्पासी (जो नंवबर या दिसम्बर में पड़ता है) में यहां मौजूद कुण्ड में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलने के साथ ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहां वर्ष में एक बार होने वाले मयूर नाट्यंजलि नृत्य उत्सव की धूम देखने लायक होती है। इस मंदिर की एक प्रतिमा में भगवान शिव माता पार्वती को गले लगाते हुए है जिसके बारें में स्कंद पुराण में कथा आती है कि एक बार भगवान शिव माता पार्वती से इतना ज्यादा नाराज हो गए कि उन्हें जमीन पर मोरनी के रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया। फलस्वरूप माता पार्वती मोरनी स्वरूप में यहीं मयिलादुथुराई में भगवान शिव की आराधना कर श्राप से मुक्ति पाई और अभयंबल हो गईं, तब से यह स्थान इतना फेमस है। यह शिवलिंग को केवल लाल साड़ी ही पहनाई जाती है।
ग्यारहवीं शताब्दी के दौरान बना यह मंदिर नोइयाल नदी के उत्तरी किनारे पर अवस्थित है जो माता कोनिअम्मन, पार्वती मां के स्वरूप को समर्पित है, जिसका निर्माण कोवन वंशजों के द्वारा किया गया था। इस मंदिर में होने वाला कार उत्सव दर्शकों को बहुत रोचक और लुभावना लगता है जिसमें माता कोनिअम्मन का विवाह उत्सव, कुडनदम विझा और मंदिर की आकर्षक झांकी की झलक देखने को मिलती है। कोनिअम्मन शहर की रक्षा करने वाली देवी है जो यहां के दो प्रमुख पेरूर पाटेश्वर मंदिर के साथ ही प्रमुख मंदिर है।
भक्त शिरोमणि हनुमान जी के बाल समय में कई ऐसे किस्से हैं जो उनकी शक्ति और बुद्धि का भली भांति परिचय देते है, ऐसे ही जब एक बार हनुमान जी ने जब भूख शांत करने के उद्देश्य से सूर्य देवता को मुख में रख लिया तब ही भगवान इंद्र ने हनुमान जी पर वज्र का प्रहार किया जिससे वे अचेत हो गए, इस घटना की भनक लगते ही वायु देव अपने पुत्र हनुमान को लेकर एक गुफा में चले गए, वायु के न होने से जीना दुश्वार हो गया तबही सबने उनसे प्रार्थना की और ब्रहमा जी ने हनुमानजी को कई सारे आशीर्वाद दिये जिनमें से एक बुद्धि और चिरंजीवी होने का स्पेशल वरदान उन्हें प्राप्त हुआ। आज भगवान हनुमान के कई मंदिर है जिनमें से इस मंदिर की महिमा है कि यहां भक्तों के सारे रोग, शोक कष्ट दूर हो जाते हैं। लगभग 32 फीट ऊंची प्रतिमा केवल एक ही पत्थर से ढाली हुई आंजनेय भगवान की कृपा से दर्शनार्थी रोगमुक्त होकर अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करते हैं।
यहां मां पराशक्ति आदिपरशक्ति सिद्धर पीठ में अरुलथिरु बंगारू आदिगलर माता की पूजा की जाती है। सन् 1960 के दौरान यहां एक नीम का पेड़ था जिससे मीठे रस की प्राप्ति होती थी जिसको चखकर लोगों की बीमारियां ठीक हो गईं और लोग उसके महत्व को समझते हुए इस पेड़ को संरक्षण प्रदान करने लगे। लेकिन सन् 1966 के तूफान ने नीम के पेड़ को जड़ से उखाड़ दिया, और उसके नीचे स्वयंभू शिला मिली जिसकी महत्ता को समझते हुए इसे अंडाकार आकृति का स्वरूप प्रदान कर उसकी पूजा की जाने लगी। इस मंदिर में मौजूद पुत्रमंडपम और सप्त कन्नियार बहुत ही प्रसिद्ध स्थान है, जिसकी विशेषताओं के बारें में जानकर लोग यहां खीचें चले आते हैं। इस स्थान पर 21 संतों ने समाधि अवस्था को प्राप्त किया है। जिसमें महिला और पुरूष दोनो ही प्रकार के संत शामिल हैं।
तमिलनाडु वैश्विक प्रसिद्ध मंदिरों की खूबसूरती और सम्पन्न कृपा से दर्शनार्थियों को निहाल करता है जहां उनकी धार्मिकता और उत्कृष्ट बनावट का अनुभव कर जीवन के ंसंपूर्ण अर्थ को सार्थक किया जाता है। जहां अनेक प्रकार की पौराणिक कथाओं की रोचकता के साथ मंदिरों को देखना शानदार आकर्षक अनुभव प्राप्त के साथ ही आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य को मजबूती देती हुई गहन कला है।