भगवान शिव की नगरी काशी, बनारस, वाराणसी नाम से भी जानते हैं, यहां स्थित प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान भोलेनाथ का बहुत ही सिद्ध और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कहते हैं इस नगरी को स्वयं भगवान शिव ने ही बसाया है, जो सृष्टि के आरंभ से ही अस्तित्व में है। काशी विश्वनाथ मंदिर सर्वप्रमुख शिव मंदिरों में से एक है, जहां भगवान शिव के अनुयायियों का तातां लगा रहता है। गंगा किनारे स्थित इस मंदिर के बारें में और विस्तार से जानते हैं..इस आर्टिकल में
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास
- कहते हैं कि भगवान शिव के इस मंदिर को 11वीं शताब्दी के समय राजा हरिश्चंद्र ने बनवाया था।
- अतीत की बात करें तो भगवान शिव के इस प्रमुख मंदिर को कई बार नुकसान पहुंचाया गया क्योंकि यह मंदिर अनादिकाल से आस्था, विश्वास और धार्मिक मान्यताओं का केंद्र रहा है
- मुख्य मंदिर जिसे आदि विश्वेश्वर के नाम से जाना जाता है, मुहम्मद गौरी ने भारत पर आक्रमण के दौरान इसे नष्ट कर दिया था, जिसको पुनः राजा अकबर के नवरत्नों में से एक टोडरमल ने दोबारा तैयार करवाया
- ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार औरंगजेब ने इस मंदिर को फिर से ध्वस्त करवा दिया
- वर्तमान संरचना का निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने सन् 1780 में करवाया
- मंदिर के गुंबदों में सोने की मढवाई राजा रणजीत सिंह द्वारा करवाई गई थी।
काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाः
मंदिर की उत्पत्ति से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं जिसमें से दो दंतकथाओं ज्यादा सुनने में आती हैं, जो इस मंदिर की कहानी को बहुत ही रोचक तरीके से बताती हैं।
- कहते हैं माता पार्वती का मन कैलाश में नहीं लग रहा था, इस वजह से उन्होंने भगवान शिव से काशी में बसने का अनुरोध किया, जिनकी इच्छा पूरी करने के लिए भगवान शिव ने विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्वयं को स्थापित किया, जो काशी विश्वनाथ के नाम से पूज्य हो गये।
- दूसरी कथा के अनुसार, भगवान शिव, ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच उपजे श्रेष्ठता विवाद को सुलझाने के कारण खुद को अंतहीन प्रकाश स्तंभ के रूप में स्थापित किया, जिसके दोनों छोर का पता लगाने भगवान ब्रह्मा और विष्णु गए, लेकिन छोर ज्ञात न कर सके लेकिन भगवान शिव के सामने भगवान विष्णु ने अपनी हार स्वीकार कर ली किन्तु भगवान ब्रह्मा ने झूठ बोला, इस कारण भगवान शिव उनसे क्रोधित हुए और उन्हेंं कभी न पूजे जाने का श्राप दे दिया, वहीं भगवान विष्णु को हमेशा पूज्य रहने का गौरव प्राप्त हुआ। जिस प्रकाश स्तंभ की खोज में दोनों भगवान गए हुए थे, वह स्तंभ स्वयं भगवान शिव ही थे जो काशी विश्वनाथ के शिवलिंग के रूप में जाने जाते हैं।
- काशी नगरी के बारें में शिवपुराण में लिखित है कि यह नगरी भगवान शिव के त्रिशूल की नोंक पर बसी हुई हैं जो अति प्राचीन और मोक्ष नगरी के रूप में जानी जाती है।
- इस मंदिर का प्राचीन इतिहास और इसके बारें में कई धार्मिक ग्रन्थों में दर्ज मिलता है जैसे महाभारत और उपनिषदों में इस बात का प्रमाण मिलता है।
काशी से जुडी कुछ रोचक जानकारी
- कहते हैं कि काशी में जिनकी मृत्यु होती है या जो यहां देह त्याग करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसीलिए काशी में लोग विशेष रूप से अपने अंतिम समय में रहने के इच्छुक होते हैं।
- बनारस में बहने वाली गंगा नदी वैसे तो गंगोत्री से निकलती हुई काशी पहुंचती हैं लेकिन यहां पहुंचकर उनकी महिमा विशेष रूप से बढ जाती है, आपने ध्यान दिया होगा कि लोग जब कहीं पर भी गंगा स्नान करते हैं तो अपने साथ कुछ गंगा जल भी भरकर ले जाते हैं लेकिन काशी में ऐसा नहीं करते, कारण यही है कि यहां सिर्फ मनुष्यों को ही मोक्ष नही मिलता बल्कि वे दृश्य अदृश्य जीव जो साधारण आंखों से नहीं दिखते, उन्हें भी मोक्ष मिल जाता है, और गंगाजल के साथ अगर आप उन्हें काशी से बाहर ले जाएंगे तो उनकी मुक्ति में बाधक बनेंगे इसीलिए यहां से गंगाजल ले जाने का नियम नहीं है।
- काशी का नाम प्राचीन नगरों में गिना जाता हैं, कहते हैं कि सृष्टि के आरंभ से ही इस नगरी का अस्तित्व रहा है जो किसी भी प्राचीन देश विदेश की सभ्यताआेंं से भी बहुत पुराना है। काशी के मूल इतिहास की जानकारी कहीं से भी नहीं मिल पाती क्योंकि यह अत्यंत प्राचीन हैं।
- बनारस शहर संगीत घरानों के लिए भी जाना जाता है, यहां के कई प्रमुख संगीत घरानें हैं जो इसकी कला संस्कृति पक्ष को उज्जवल बनाते हैं, यहां के संगीत घरानों की हिन्दुस्तानी संगीत में अपनी छाप है, जिसे नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से अतीत में कई प्रयास किए गए।
- बनारस की पहचान यहां के पान और साड़ी है, बनारसी साड़ी की खूबसूरती और गज़ब पान के स्वाद को विश्व स्तर पर भी प्रसिद्धि मिली हुई है।
काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े रोचक तथ्यः
- पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री हरि विष्णु के यहां अश्रु गिरे थे, वहीं बिंदु सरोवर बन गया और भगवान विष्णु यहां बिन्दुमाधव के नाम से प्रसिद्ध हुए। भगवान शिव को काशी भा गई और उन्होंने इस नगरी को विष्णु जी से अपने हमेशा रहने के लिए मांग लिया, फलस्वरूप बाबा विश्वनाथ के रूप में यहीं बस गए। कहते हैं कि भगवान विष्णु ने भगवान शिव की आराधना लगभग पचास हजार वर्षों तक की और पुष्कर्णी का निर्माण भी किया।
- काशी के रक्षक के रूप में यहां भगवान भैरव बाबा उपस्थित हैं जो भगवान शिव और देवी पार्वती के ही गण माने जाते हैं, बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने से पहले इनके दर्शन करने की मान्यता कही जाती है, तभी बाबा विश्वनाथ के दर्शनों का फल प्राप्त होता है। कहते हैं कि भगवान शिव के रक्त से ही भैरव भगवान की उत्पत्ति मानी जाती है जो दो तरह से बंट गया, पहले बटुक भैरव और दूसरे काल भैरव। जिनकी पूजा इन्हीं नामों से की जाती है।
- काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग स्वरूप दो भागों में विभक्त माना जाता है, जिसके दाईं ओर भगवती माता का निवास माना जाता है और बाईं तरफ भगवान शिव की उपस्थिति कही जाती है। यह शिव और शक्ति के संयोजन को दर्शाता है, जो इस सृष्टि और क्षेत्र को मुक्ति स्थान के रूप में प्रसिद्ध करता है।
- कहते हैं कि शनि देव को काशी में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी, जिस वजह से भगवान शिव की तलाश करते समय उन्हें साढे सात साल बाहर ही इंतजार करना पड़ा था।
- संतों और महात्माओं की नगरी है, जहां सारनाथ में भगवान बुद्ध ने पहला प्रवचन दिया था
- कहते हैं कि मंदिर के नीचे एक सुरंग है जो गुप्त स्थानों की ओर जाती है।
- वाराणसी में महेश्वर शिवलिंग ज़मीन के नीचे एक गुप्त स्वयंभू शिवलिंग हैं जहां हर किसी का जाना संभव नहीं हो पाता है।
- 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी की पहचान है, जहां आदिलिंग अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग से जाना जाता है, जिसे 1460 के समय वाचस्पति ने अपनी पुस्तक ‘तीर्थ चिंतामणि’ में लिखा है कि अविमुक्तेश्वर ही विश्वेश्वर शिवलिंग है। इसकी महिमा का वर्णन महाभारत और उपनिषदों में मिलता है।
- कहा जाता है कि जब औरंगजेब की मंदिर नष्ट करने की योजना की खबर यहां पहुंची तो भगवान शिव के प्रतीक स्वरूप को अनिष्ट होने से बचाने के लिए एक कुएं में छिपा दिया गया, वह कुआं ‘‘ज्ञान का कुंआ’’ कहलाता है जो आज भी यहां मस्जिद और मंदिर के बीच स्थित है।
- काशी विश्वनाथ में माता भगवती दाईं ओर स्थित होने से मुक्ति का मार्ग केवल काशी में ही है, जहां मृत्यु होने का अर्थ ही मुक्ति है, जहां भगवान शिव स्वयं मृत्यु समय कान में मंत्र कहते हैं, जिससे आत्मा मुक्ति पा जाती है और जन्ममरण के चक्र से छूट जाती है। अकाल मृत्यु योग यदि कोई टाल सकता है तो वो सिर्फ भगवान शिव ही है।
- काशी विश्वनाथ मंदिर में मूर्तियों की दिशा पश्चिम है जहां श्रृंगार के समय पर भगवान शिव और देवी शक्ति की स्पष्ट उपस्थिति जान पड़ती है, विश्व में सिर्फ इसी मंदिर में ऐसा दुर्लभ संयोग देखने को मिलता है।
- मंदिर गर्भग्रह के शिखर पर श्री यंत्र सुशोभित होता है, जो तांत्रिक सिद्धि के लिए अत्यंत सटीक स्थान है, श्री यंत्र माता लक्ष्मी का प्रतिनिधित्व करता है जिसकी स्थिति दर्शाती है कि यह धर्म भक्ति ही नहीं वरन् तंत्र साधना के लिए भी प्रसिद्ध है, विशेषतः जो गूढ विद्याओं की तलाश में है।
- बाबा विश्वनाथ के मंदिर में चार प्रमुख द्वार हैं जो शांति, कला, प्रतिष्ठा और निवृत्ति द्वारों के रूप में प्रसिद्ध हैं, गर्भग्रह में बाबा का ज्योतिर्लिंग ईशान कोण में स्थित है जो दिशा और वास्तुकला के हिसाब से अति शुभ फलदायी होता है।
- मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार दक्षिण दिशा में है और बाबा का मुख उत्तर दिशा में होने की वजह से यह अघोर रूप को प्रदर्शित करता है। मंदिर प्रवेश करते समय बाबा के अघोर दर्शन होने से यह समस्त बुरे कर्मों, पाप, संताप को नष्ट करने वाला होता है।
- बाबा विश्वनाथ काशी में गुरू और राजा दोनों ही रूपों में विद्यमान रहते हैं, दिन के समय इनके गुरू रूप के और रात की आरती के समय शाही वेश धारण करते हैं, इस वजह से इन्हें राजराजेश्वर भी कहते हैं।
- बाबा विश्वनाथ भक्तों की रक्षा करते हैं और मां भगवती अन्नपूर्णा रूप में प्रत्येक जीव का भरणपोषण करती हैं। भगवान शिव और देवी मां का ये सुखद संयोग केवल काशी में ही मिल सकता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के पास देखने योग्य स्थलः
पावन नगरी बनारस भगवान शिव की नगरी होने के साथ ही आसपास के पर्यटक स्थलों के लिए भी प्रसिद्ध है, जो ऐतिहासिक होने के साथ ही शानदार भी है।
सारनाथः प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ स्थल के रूप में प्रसिद्ध यह स्थान बनारस से लगभग 12 किमी की दूर है जहां गौतम बुद्ध ने यहां पहला उपदेश दिया था। सारनाथ में घूमने के लिए लोकप्रिय गंतव्यों में अशोक स्तंभ, चौखंडी स्तूप, तिब्बती मंदिर, धमेख स्तूप, पुरातत्व संग्रहालय, मठ और थाई मंदिर शामिल हैं।
चुनार का किलाः 34000 वर्ग फुट विस्तृत क्षेत्र में फैला हुए इस किले को राजा विक्रमादित्य ने अपने भाई भरथरी के लिए बनवाया था, वाराणसी घूमने आएं तो चुनार का किला पर्यटन हेतु आकर्षक स्थलों में से एक हो सकता है जो शहर से लगभग 40 किमी दूर मिर्जापुर जिले में गंगा नदी के किनारे स्थित है जिसकी वास्तुकला आगरा किले से मिलती जुलती है।
लखनिया दरी: लगभग 100 मीटर की ऊंचाई से गिरते हुए पानी का नजारा बेहद आकर्षक प्रतीत होता है, यह स्थान बनारस से करीब 50 किमी दूरी पर मिर्जापुर में लखनिया जलप्र्रपात या दरी के नाम से जानी जाती है, जहां चारों ओर ऊंचे पेड़ों की सटी हुई श्रृंखलाएं हैं। सावन के दिनों में यहां विशेष सावधानी बरती जाती है, इस जलप्रपात के पास सिद्धनाथ जलप्रपात भी है।
राजदरी और देवदरी जलप्रपात: बनारस से लगभग 70 किमी की दूरी पर चंदौली के नौगढ के जंगलों में राजदरी और देवदरी जलप्रपात है। यह चंद्रपुर वन्यजीव अभयारण्य के भीतर ही स्थित है जहां से चंद्रप्रभा बांध से पानी छोड़े जाने पर इतनी ऊंचाई से गिरता हुआ पानी बेहद आकर्षक लगता है। यहां की खूबसूरती के लिए सर्च टॉवर का रूख कर सकते हैं।
मुक्खा फॉल: वाराणसी के लगभग 90 किमी दूरी पर स्थित यह स्थान सोनभद्र जिले में अवस्थित है जहां से बेलन नदी का करीब 50 फीट ऊंचाई से नीचे गिरना शानदार प्रतीत होता है, गर्मी के सीजन में यह फेवरेट टूरिस्ट डेस्टिनेशन है।
काशी विश्वनाथ मंदिर में आरती समय सारिणी
- मंगला आरती समयः प्रातः 3 बजे से 4 बजे
- सप्तऋषि आरती समयः प्रातः 7 बजे
- भोग आरतीः दोपहर के समय
- श्रृंगार आरतीः रात 9 बजे से रात 10.15 बजे
अधिक जानकारी और लाइव दर्शन के लिए काशी विश्वनाथ मंदिर की ऑफिशियल वेबसाइट पर संपर्क कर सकते हैं जहां आप दर्शन के लिए भी ऑनलाइन बुकिंग कर सकते हैं व दान वगैरह भी दे सकते हैं।
कैसे पहुंचे काशी विश्वनाथ मंदिर
हवाई मार्गः
बनारस के प्रमुख हवाई अड्डे बाबतपुर से देश के प्रमुख शहरों की बेहतर कनेक्टीविटी है, जहां से आप बनारस पहुचंकर स्थानीय वाहनों की हेल्प से काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंच सकते हैं।
रेलमार्गः
वाराणसी रेलवे स्टेशन से काशी विश्वनाथ मंदिर आसानी से पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्गः
बनारस देश के प्रमुख शहरों से एक्सप्रेसवे और राष्ट्रीय राजमार्गों से जुड़ा है, जब भी सड़क माध्यम से बनारस की सैर पर निकलें तो निकटतम एक्सप्रेस वे या नेशनल हाईवे के बारें में जानकारी प्राप्त कर लें। अगर आप दिल्ली से बनारस जा रहें हैं तो एएच 1 आपके लिए उपयुक्त माध्यम है। राष्ट्रीय राजमार्ग 7 वाराणसी से कन्याकुमारी तक जाता है और देश का सबसे लंबा हाईवे है।
निष्कर्षः
अति प्राचीन मंदिर काशी विश्वनाथ प्रतिष्ठित हिंदू मंदिरों में से एक होने के साथ ही चमत्कारों की आश्चर्यजनक श्रृंखला है, जहां मां गंगा की साक्षात् उपस्थिति और काशी विश्वनाथ मंदिर की दिव्यता मन को भाव विभोर कर देती हैं। बनारस की गलियां इतनी मनमोहक और अपनी लगती हैं कि आप चाहें पहली बार जाएं या बार बार, यह शहर मन में बसे उस कोने जैसा है जहां जाने के लिए मन हमेशा ही लालयित रहता है।