राजधानी दिल्ली का ऐसा प्रतिष्ठित मंदिर जिसकी प्रसिद्धि हर तरह से स्पेशल हैं, चाहे विशेष वास्तुकला हो या आधुनिक ध्यान केंद्र, जितना देखने में अनोखा है उतना ही मनोरम भी। बहाई धर्म के इस उपासना स्थल में सभी धर्मों के लोग आना पसंद करते हैं, सर्व धर्म समभाव के आदर्श वाक्य को साकार करता यह मंदिर दिल्ली के श्रेष्ठ आकर्षणों में से एक है। अगर आप भी इस मंदिर जाने की योजना बना रहे हैं तो यह आर्टिकल आपके लिए बेहद काम का है। यहां से जुड़ी सारी रोचक जानकारियों के साथ ही स्टेप बाय स्टेप बात करेंगे।
बहाई धर्म के उपासना गृह के रूप में इस मंदिर का निर्माण किया गया था जो केवल दुनिया में मौजूद सात बहाई उपासना स्थलों में से और एशिया में एकलौता ऐसा मंदिर है। खिले हुए कमल पुष्प का आकार लिए यह मंदिर सभी धर्मों और लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है। जहां कोई भी ध्यान व प्रार्थना कर सकता है
कब बनाः 1986
ऊंचाईः करीब 34.3 मीटर
डिजाइनः फ़रीबोर्ज़ साहबा, एक ईरानी वास्तुकार
पखुंड़ियाँ : 27 स्वतंत्र संगमरमर की पंखुड़ियां जो तीन तीन के समूह में बनाई गई हैं।
प्रार्थना कक्ष क्षमताः एक साथ करीब 2500 लोग ध्यान कर सकते हैं।
सामग्रीः ग्रीस से सफेद संगमरमर
जगहः बहापुर गांव, कालकाजी, साउथ दिल्ली
नजदीकी मेट्रो स्टेशनः कालकाजी मंदिर, यहां से 5-10 मिनट में पैदल भ्रमण कर भी पहुंच सकते है।
गर्मियों के दौरान | अप्रैल से सितंबर | सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे |
सर्दियों के समय | अक्टूबर से मार्च | सुबह 9 बजे से शाम 5ः30 मिनट |
साप्ताहिक अवकाशः सोमवार
बंद होने के समय से 30 मिनट पहले ही प्रवेश बंद हो जाता है।
बेहतर मौसम और ज्यादा भीड़ से बचने के लिए सुबह 11 बजे से पहले या शाम 4 बजे के बाद जाना ठीक है।
ध्यान और शांति चाहते हैं तो वीकेंड और नेशनल हॉलीडे से परहेज करें।
गुलाबी सर्दी के समय बगीचे, तालाबों और आसपास घूमने के लिए मौसम सर्वोत्तम रहता है।
लोटस टेंपल में प्रवेश करना घूमना ध्यान प्रार्थना आदि करना पूर्णतया निःशुल्क है। यहां किसी भी राष्ट्र, धर्म जाति रंग के लोग प्रवेश ले सकते हैं, बहाई धर्म का यह मंदिर किसी के लिए कोई भेदभाव प्रकट नहीं करता।
इस मंदिर में किसी प्रकार की कोई मूर्ति नहीं है, न ही यहां कोई धार्मिक चित्रण या प्रदर्शन देखने को मिलता है, फिर भी यह मंदिर आकर्षित करता है।
यहां आप शांति से मौन रहकर ध्यान या चिंतन कर सकते हैं, आप अपने धर्म के धार्मिक ग्रंथो को पढ व सुन सकते हैं। शांति वातावरण में उत्पन्न हुई ऊर्जा का आध्यात्मिक लाभ लेते हुए यहां की शिल्पकला का आनंद ले सकते हैं। यहां कभी कभी होने वाले पाठों में बहाई धर्म के साथ ही कई धर्मों के अंश भी निहित होते हैं- यह अनूठापन सभी धर्मों की एकता और समभाव का प्रदर्शक है।
अभ्यास योग साधना भी कर सकते हैं।
इस मंदिर में अपनी विशेष स्थापत्य कला के कारण वास्तुशिल्प श्रेणी में कई पुरस्कारों को प्राप्त किया है, जिसे साल 2001 में सीएनएन रिपोर्ट अनुसार विश्व की सबसे ज्यादा देखी जाने वाली इमारत का दर्जा भी प्राप्त हुआ है।
दरवाजेः 9, जो सभी एक केंद्रीय हॉल में खुलते हैं जिसे प्रार्थना कक्ष कहते हैं।
मंदिर के चारों तरफ नौ परावर्तक कुंड छवि निहार सकते हैं, जो इसकी सुंदरता में चार चांद लगा देती है।
लागत : अनुमान 10 मिलियन डॉलर
इस मंदिर की तुलना सिडनी के ओपेरा हाउस से की जाती है जिसकी संरचना कमल की तरह है, आधुनिक वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना लोटस मंदिर आंगुतको के लिए विशेष है।
1. पैदल भ्रमणः यहां पैदल भ्रमण कर आसपास के स्थानों की शोभा को देखकर उनके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को समझ सकते हैं।
2. स्ट्रीट फूडः यहां लगने वाले गली विशेष व्यंजनो के लाजवाब स्वा को चख सकते हैं जहां आप गोलगप्पे, चाट और कई वैराइटीज के जंक फूड को खा सकते हैं।
3. मंदिर दर्शन व भ्रमणः मंदिर के पास अवस्थित प्रसिद्ध मंदिरों की सैर कर उनकी आध्यात्मिक आभा को फील कर सकते है।
4. योगा अभ्यासः यहां होने वाले योग सेशन में भाग लेकर योगा अभ्यास करें
5. पुस्तकें पढनाः बहाई धर्म से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए यहां मिलने वाली किताबो को पढें
6. फोटोग्राफीः आप यहां मंदिर के प्रार्थना कक्ष के अलावा बाहरी परिसर में फोटो वगैरह का आनंद ले सकते हैं।
7. खरीदारी अनुभवः आसपास मौजूद बाजारें जैसे ग्रेटर कैलाश मार्केट, लाजपत नगर, दिल्ली हाट या सेलेक्ट सिटीवॉक मॉल में खरीदारी का अनुभव भी ले सकते हैं।
वाया मेट्रोः
कालकाजी मंदिर मेट्रो स्टेशन से निकास सं 2 से वॉकिंग डिस्टेंस पर ही है।
वाया बसः
डीटीसी बसों द्वारा नेहरु प्लेस या कालकाजी मंदिर बस स्टॉप पर रूकें
ऑटो/टैक्सी
बुकिंग ऐप जैसे उबर ओला रैपिडो से सीधे यहां तक की बुकिंग करें।
पर्सनल वाहनः
पार्किंग सुविधा उपलब्ध है।
लोटस मंदिर से करीब 1 किमी की दूरी पर स्थित श्री राधा पार्थ सारथी मंदिर जिसे इस्कॉन मंदिर भी कहते हैं, दर्शनीय स्थल है। यहां विश्व की सबसे बड़ी गीता के दर्शन किये जा सकते हैं जिसका लगभग 800 किलो वजन है। रीति रिवाजों और पंरपराओं को उत्सव की तरह मनाता इस्कॉन मंदिर की हरियाली भरा वातावरण और आकर्षक स्थापत्य कला आपको अनोखी शांति का एहसास कराएगी। हर वक्त हरे कृष्ण संकीर्तन मंदिर की गूंज आत्मा की भीतरी लय तक संपर्क करती है।
लोटस मंदिर से बेहद नजदीक यह मंदिर वॉकिंग दूरी लगभग 700 मीटर पर ही स्थित है। कालकाजी से प्रसिद्ध यह मंदिर मनोकामना सिद्ध पीठ से भी जाना जाता है जहां माता काली की पूजा की जाती है। कालका नाम मा पार्वती के रौद्र रूप का एक नाम है जो उन्होंने रक्तबीज सहित अन्य राक्षसों के संहार के लिए रखा था, इस मंदिर की अवस्थिति की का कोई सटीक अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, अनुमानित तौर पर इसे सतयुग का माना जाता है। यह मंदिर कभी बंद नहीं होता, कालकाजी मंदिर की प्रसिद्धि के कारण ही यहां मेट्रो स्टेशन का नाम और इस क्षेत्र का नाम कालका जी से जाना जाता है।
वास्तुकला का नायाब नमूना हुमायूं का मकबरा लोटस मदिर से करीब 7 किमी की साधारण सी दूरी पर स्थित है। जिसे 1993 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया गया है। लाल बलुआ पत्थर से बना यह मकबरा मुगल वास्तुकला शैली का पहला प्रतिनिधित्व करता है, इस मकबरे का निर्माण इनकी पहली पत्नी बेगा बेगम द्वारा कराया गया था जिन्हें हाजी बेगम नाम से भी जाना गया। इस मकबरे का डिजाइन फारसी वास्तुकार मीराक गिर्जा ने किया, लेकिन संयोग ऐसा कि मकबरा पूरा होने से पहले ही इनकी मृत्यु हो गई जिसे इनके बेटे सैयद मुहम्मद इब्र मिराक गियासुद्दीन ने पूरा किया। हुमांयू की मृत्यु के 9 साल बाद इस मकबरे का निर्माण हुआ था।
कमल मंदिर से करीब 9 किमी की दूरी पर स्थित यह गार्डन मुगल इतिहास की कहानी को बयां करता है। जहां लोधी राजाओं ने इस स्थान को अपनी कब्रगाह के रूप में चुना था। ऐतिहासिक स्मारको की कहानी प्रदर्शित करता यहां एक बड़ा मकबरा है जो चारों ओर हरियाली संपन्न वातावरण से घिरा हुआ है। यहां का भव्य निर्माण सिंकदर लोदी के शासनकाल के समय अधिक हुआ। शाही गुम्बद और प्रतिविबिंत टाइलों से सजा शीश गुंबद बहुत ही आकर्षक लगता है।
एक प्राचीन अंतरिक्ष वेधशाला के रूप में परिभाषित यह स्थान लोटस मंदिर से पास ही है। इसका निर्माण 18वीं सदी के दौरान महाराजा जयसिंह द्वितीय द्वारा कराया गया था जो अपने अनोखे वास्तुशिल्प कला के उपकरणों के लिए जाना जाता है। यूनेस्को विश्व धरोहर में शामिल यह स्थान विश्व की सबसे बड़ी सूर्य घड़ी के रूप में जानी जाती है।
अंत में, लोटस मंदिर यूं तो एक वास्तुकला आकर्षण प्रतीत होता है लेकिन यह इससे कहीं अधिक बढकर एक संदेश देता है जहां कमल की पंखुड़ियों के नौ द्वार एक ही जगह पर खुलकर एकता को परिभाषित करते हैं। दिल्ली जैसे व्यस्त शहर में आधुनिक श्वेत पत्थरों से बने इस कमल की छटा अंतःमन को गहरी शांति प्रदान करता है साथ ही आश्चर्यचकित भी करता है। आप ईश्वर को करीब से समझना चाहते हों या परिवार के साथ अच्छा समय बिताना चाहते हैं तो लोटस मंदिर ऐसा विकल्प है जहां आप बहुत कुछ अनोखा अनुभव प्राप्त कर पाएंगे।
प्रश्नः लोटस मंदिर किस धर्म से संबंधित मंदिर है?
उत्तरः लोटस मंदिर बहाई धर्म से संबंधित मंदिर है।
प्रश्नः लोटस मंदिर में किस देवी/देवता की मूर्ति है?
उत्तरः यहां किसी भी देवी /देवता की कोई मूर्ति नहीं है, न ही कोई और विशेष चिन्ह है जो किसी धर्म को इंगित करता हो।
प्रश्नः लोटस मंदिर कौन कौन जा सकता है?
उत्तरः लोटस मंदिर कोई भी देश, धर्म, जाति, रंग वाले व्यक्ति जा सकते हैं
प्रश्नः क्या लोटस मंदिर में प्रसाद वगैरह चढाया जाता है?
उत्तरः जी नहीं, यहां किसी प्रकार कोई चढावा नही चढाया जाता है।
प्रश्नः क्या लोटस मंदिर में किसी तरह का प्रवेश शुल्क लगता है?
उत्तरः बिल्कुल नहीं
प्रश्नः लोटस मंदिर किस दिन बंद रहता है?
उत्तरः लोटस मंदिर सोमवार के दिन बंद रहता है।
प्रश्नः लोटस मंदिर में कितनी पंखुडिया है
उत्तरः लोटस मंदिर में 27 पंखुडियों के तीन तीन समूह हैं।
प्रश्नः लोटस मंदिर की स्थापना कब हुई थी?
उत्तरः लोटस मंदिर की स्थापना सन् 1986 में हुई थी।