• Sep 18, 2025

भारत में जब भी हिल स्टेशन का जिक्र होता है, हिमाचल प्रदेश का नाम पहले आता है, धरती का यह स्थान हमेशा से ही अपनी बर्फ की वादियों, देवदार और चीड़ के जंगलों, पर्वतों, झीलों, नदियों और सुहावने मौसम के लिए सैलानियों के प्रति आकर्षण का केंद्र रहा है। यहां न केवल प्रकृति के शौकीन बल्कि अपने प्रियजनों के साथ मनोरंजन पसंद करने वालों के लिए भी कम अवसर नहीं है। एकांत साधना हो या रोमांस का इज़हार करना हो, हर किसी के लिए हिमाचल प्रदेश सर्वश्रेष्ठ है, इसी श्रेष्ठता को और करीब से समझने के लिए हिमाचल प्रदेश के इन स्थानों को ट्रैवलिंग प्लान में शामिल करते हुए जानते हैं।

1. स्पीति घाटी

शीत रेगिस्तानी भूमि, रोचक घाटियों के भव्य परिदृश्य, ठंडा मौसम, नदियां, झीलें और तालाब और गहरी शांति का वातावरण लिए स्पीति मध्य भूमि भी है जो तिब्बत और भारत के बीच की जगह है। स्पीति नदी के घाटी में बहने की वजह से भी स्पीति घाटी के नाम से जानी जाती है। अत्यधिक ठंडा होने की वजह से यहां आबादी प्रतिशत भी कम है। हर ओर खामोश हवाओं के साये, ताज़गी भरा मौसम और सादगी पूर्ण जनजीवन की छवि उभर कर सामने आती है। स्वच्छ निर्मल आकाश, उनके बीच में बहती पहाड़ी जलधाराओं के परिदृश्य हर किसी के दिल दिमाग पर अनोखी छाप छोड़ते हैं। प्रमुख पर्यटन आकर्षण करीब 13596 मीटर की ऊंचाई पर बना चिचम ब्रिज, चिचम और किब्बर विलेज के बीच बना है जहां से आप खुद को करीब 1000 फीट की गहरी खाई में महसूस कर पाएंगे, जिसे सांबा नाला के नाम से जानते हैं। अन्य अनेक आकर्षण जैसे चंद्रताल, धनकर झील, मठ, किब्बर व वन्यजीव अभयारण्य, पिन वैली राष्ट्रीय उद्यान, ताबो गुफाएं व मठ साथ ही बहुत सारे आकर्षणों की विस्तृत श्रृंखला यहां देखने को मिलती है।

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कैसे जाएंः

स्पीति घाटी शिमला से करीब 230 किमी दूर स्थित है, इसलिए स्पीति पहुंचने से पहले शिमला तक पहुंचना होगा उसके लिए आप चंडीगढ से बस या कैब द्वारा शिमला और शिमला से काजा तक की दूरी तय कर स्पीति जा सकते हैं। आप चाहें तो शिमला से रेकॉन्ग पियो और फिर काजा तक का सफर तय कर के भी जा सकते हैं। 

2. शिमला

हिमाचल प्रदेश की अधिकारिक राजधानी शिमला एक बहुत ही फेमस टूरिस्ट प्लेस है, जहां लाखों सैलानी हर साल आते हैं। खूबसूरत वातावरण की झलक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतें, ब्रिटिशकालीन औपनिवेशक और स्थानीय पंरपराओं की बेमिसाल निशानियां देखने को मिलती हैं। यहां की सड़कों की बात ही अलग है, हरी भरी घाटियों के सुदंर मनोरम दृश्य और विभिन्न हिमालयी बर्फीली पहाड़ियों की श्वेत कृतियों की अंतर्मन पर गहरी छाप उभरती है। अपनी अनोखी खूबसूरती की वजह से यह पहाड़ों की रानी के उपनाम से जाना जाता है। यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में बरकरार कालका शिमला रेलवे पर टॉय ट्रेन के सफर का आनंद ले सकते हैं, जहां पर्वतों और घाटियों के बीच से निकलती यह ट्रेन ताज़ी हवाओं के साथ शिमला का हर अनछुआ पहलू भी प्रस्तुत करती है। वर्ष भर उत्सवों की धूम में उत्साहित रहता शिमला बहुत सारे आकर्षणों का केंद्र है, जाखू पहाड़ी और उस पर अवस्थित हनुमान जी की लगभग 108 फीट ऊंची दिव्य प्रतिमा, जहां मंदिर की बनावट और नक्काशी भक्तों को मोहित करती है। काली देवी का मंदिर जिन्हें श्यामला भी कहते हैं और इ्रन्हीं के नाम पर इस जगह को शिमला कहते हैं, 18वीं शताब्दी में शहर के बीचोबीच बना एक मुख्य केंद्र है। गुरूद्वारा साहिब हों चाहे क्राइस्ट चर्च सभी धार्मिक स्थलों की मान्यता आज भी बरकरार है। अन्नाडेले चोटी या समर हिल का आकर्षण हों आप यहां तमाम सारे एडवेंचर एक्टीविटी का आनंद ले सकते हैं। 

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कैसे जाएंः

शिमला जाने के लिए आप नजदीकी एयरपोर्ट चंडीगढ से लगभग 120 किमी की दूरी तय कर गंतव्य पहुंच सकते हैं या कालका शिमला रेल मार्ग पर दूरी लगभग 6 घंटों में तय कर शिमला की यात्रा सफल बना सकते हैं, 103 सुरंगों के मार्ग के साथ सबसे लंबी सुरंग की लम्बाई लगभग 1.2 किमी है। 

3. कुल्लूः 

देवताओं की घाटी और पौराणिक महत्व रखने के साथ ही यह जगह विस्मयकारी परिदृश्यों, प्रकृति का सबसे खूबसूरत पक्ष, दूर दूर तक हरे घास के मैदान उनके बीच कुछ स्थानीय वास्तुकला के घरों के दृश्य, और कुछ हल्के हरे व कुछ गहरे हरे वृक्षों की मौजूदगी जिनके ऊपर बादलों के धुंध भरे नजारों की महक और हमेशा रहने वाला खुशनुमा मौसम सब मिलकर यहां के पर्यटन को पंख लगाने का काम करते हैं, जिसकी उड़ान को देखते रहने का आकर्षण ही विशेष है। लगभग 17वीं शताब्दी के समय राजा जगत सिंह के शासनकाल समय में भगवान रघुनाथ का मंदिर स्थापित होते समय यही इस घाटी के प्रतिष्ठित देवता बने तभी से यहां दशहरा उत्सव मनाने की परंपरा का चलन शुरू हुआ। कुल्लू रीति रिवाजों, त्योहारों और संस्कृति मान्यताओं को अपनाने वाला स्थान है। कुल्लू में कई आध्यात्मिक केंद्र है जैसे बिजली महादेव मंदिर, तीर्थन वैली, मणिकरण साहिब और कई प्राकृतिक आकर्षण हैं जिस तरह मलाणा, सोलंग घाटी, झरने और झीलों की उपस्थिति यहां की शोभा बनाते हैं।

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कैसे जाएंः 

हवाई मार्ग द्वारा कुल्लू पहुंचने के लिए करीब 10 किमी दूर भुंतर एयरपोर्ट से आराम से कुल्लू पहुंच सकते हैं, जहां से प्रमुख शहरों से आना जाना सुविधाजनक है। निकट का रेलवे स्टेशन जोगिंदर नगर है जिसकी कुल्लू से दूरी लगभग 120 किमी है जहां से कुल्लू की दूरी सड़क मार्ग से तय करनी पड़ती है। कुल्लू एनएच 3 पर मंडी से 70 किमी और चंडीगढ से लगभग 270 किमी की दूरी पर है जहां बस या कैब सुविधा द्वारा पहुंच सकते हैं। 

4. कसौलीः

19वीं शताब्दी से ही दृष्टि में आया इस हिल स्टेशन के तराई में पंजाब और हरियाणा के जगमगाते रोशन नजारों की श्रृंखला दिखाई देती है, कसौली करीब 1951 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक खूबसूरत हिल स्टेशन है जिसमें इससे भी ऊपर लगभग 3647 मीटर की ऊंचाई पर चूड़धार पर्वत की चोटी चांद से मिलती हुई प्रतीत होती है और आसपास की छोटी पहाड़ियों के साथ बहुत सुंदर प्रतिरूप का निर्माण करती है। पर्वतमालाओं के घुमावदार और लहरदार पहलू से शिमला का दीदार होता है। कसौली ब्रिटिश औपनिवेशिक काल का प्रमुख गढ भी रहा है, जहां की प्रमुख इमारतें, अनूठा परिवेश और स्वच्छ साफ छोटे बगीचों की उपस्थिति अपनी और गहरी छाप छोड़ती है। मंकी प्वाइंट से यहां के पूरे नजारे के साथ एक छोटे से मंदिर के दर्शन कर सकते हो जिसकी पौराणिक मान्यता है कि यहां ऋषि मान की का स्थान जो यहां भक्त शिरोमणि श्री हनुमान जी की पूजा अर्चना किया करते थे, उन्हीं को समर्पित यह मंदिर उन्होंने ही बनाया था, साथ ही किसी पहाड़ी चोटी पर बाबा बालक नाथ का भी सिद्ध मंदिर है। यहां के अन्य प्रमुख आकर्षणों में क्राइस्ट और बैपिस्ट चर्च, कुठार महल और कालका शिमला रेलवे लाइन का भी लुत्फ ले सकते हैं। लॉरेंस स्कूल, शिरडी साईं बाबा मंदिर के भी दर्शनों से कृतार्थ हो सकते हैं।

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कैसे जाएंः 

एनएच 44 के रास्ते कसौली तक पहुंचने के लिए प्रतिदिन बस सुविधा आसानी से मिल जाती है जिसमें दिल्ली से कसौली की न्यूनतम दूरी लगभग 300 किमी है। 

निकटतम हवाई अड्डा चंडीगढ का शहीद भगत सिंह इंटरनेशनल एयरपोर्ट है जिसकी यहां से लगभग दूरी 70 किमी है। इसके अलावा नजदीकी रेलवे स्टेशन कालका की लगभग दूरी 40 किमी है, जहां से वाहन आसानी से मिल जाते हैं। 

5. कुफरी 

शिमला के अन्तर्गत आने वाला कुफरी एक मनमोहक हिल स्टेशन और गांव है जहां मनोरंजन के सारे अवसरांं का सम्मिश्रण देखने को मिलता है। खूबसूरत ट्रैकिंग ट्रैक और साल में होने वाली खेल प्रतियोगिताएं पर्यटकों को आकर्षण करती हैं। यदि आप विभिन्न तरह की सवारी के शौकीन हैं या बच्चों के लिए फन एक्टिविटी की तलाश में है तो यहां का फन वर्ल्ड आपके लिए पूरी तरह उपयुक्त है। छोटा सा रमणीक हिल स्टेशन प्रकृति के साथ समय बिताने का सबसे अच्छा साधन है जहां खूबसूरत परिदृश्यों के साथ ही कई सारे ट्रेकिंग्स का रास्ता भी है। सर्दियों के दिनों में यहां स्कीइंग और बोगनिंग जैसी साहसिक एक्टीविटी और प्रेमी जोड़ों के लिए भी मोहब्बत को परवाज देने का बेहतर ठिकाना है। महासू चोटी का नाग मंदिर, जहां से ब्रदीनाथ और केदारनाथ के भी भव्य दृश्यों को देखने का अवसर मिलता है। अगर आप वन्य जीव प्रजातियों और वनस्पति का आकर्षण देखना चाहते हैं तो हिमालयन राष्ट्रीय पार्क, इंदिरा पर्यटन पार्क घूम सकते हैं।

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कैसे जाएंः 

कुफरी का नजदीकी हवाई अड्डा जुब्बड़हट्टी है जो लगभग 15 किमी दूर है, जहां से उड़ानें बहुत ज्यादा संचालित नहीं होती है, प्रसिद्ध एयरपोर्ट चंडीगढ है जिसकी दूरी लगभग 140 किमी है, लेकिन यहां से अधिक उड़ानें संचालित होती हैं। नजदीकी रेलवे स्टेशन शिमला रेलवे स्टेशन जो 15 किमी दूर है, यहां से या चंडीगढ से बस या कैब द्वारा भी कुफरी पहुंचा जा सकता है। 

6. मैक्लॉडगंज

तिब्बती संस्कृति की विशेष छाप देखने को मिलती है इस कारण यह जगह छोटा ल्हासा या धासा भी कहलाती है। हिंदू पौराणिक ग्रंथों में भी पढने को मिलता है जैसे ऋग्वेद और महाभारत। समुद्र तल से लगभग 2100 मीटर ऊंचाई पर स्थित यह हिल स्टेशन कांगड़ा घाटी की शरण में अवस्थित है व हिमालयी धौलाधार पर्वत श्रेणी का हिस्सा है, जिस पर सबसे ऊंची चोटी हनुमान का टिब्बा अवस्थित है। यहां से रावी घाटी और चंबा तक ट्रेकिंग कर भी जाया जा सकता है जिसमें कई दर्रे भी देखे जा सकते हैं। तिब्बती संस्कृति को बारीकी से समझाते इस स्थान पर करेरी झील और त्रिउंड भ्रमण का आनंद भी ले सकते हैं। यहां दलाई लामा से जुड़ी कई पावन वस्तुओं के दर्शनों हेतु दलाई लामा के मंदिर का दर्शन कर सकते हैं जहां हिंदू और तिब्बती धर्म से जुड़ी अवलोकितेश्वर भगवान के दर्शनों के साथ तिब्बती धर्म के शाक्यमुनि और पद्मसंभव के दर्शन भी कर सकते हैं। नामग्याल मठ के साथ तिब्बती धर्म के इतिहास को समझाता अभिलेखागारों के पुस्तकालय को भी देख और समझ सकते हैं।

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कैसे जाएंः 

नजदीकी हवाई अड्डा कांगड़ा एयरपोर्ट है जो यहां से लगभग 20 किमी दूर है, इसके अलावा निकटतम रेलवे स्टेशन पठानकोट है जहां से इसकी दूरी लगभग 35 किमी है। आप चाहें तो दिल्ली के अलावा प्रमुख शहरों जैसे चण्डीगढ, शिमला से सीधे चलने वाली बसों या कैब के जरिए मैक्लोडगंज की सैर को जा सकते हैं। 

7. चम्बाः 

पुरानी हिन्दी फिल्मी एक गीत में इस जगह का नाम आप सभी ने कभी न कभी जरूर सुना होगा, नहीं तो फिर अब गौर कीजिएगा ‘‘पर्वत के पीछे चंबे दा गांव’’ जी हां इसी जगह की बात हो रही है। हिमालयी पर्वत श्रृंखलाओं के बीच बसा यह गांव अपनी पुरातन संस्कृति और ऐतिहासिकता को खुद में संभाले हुए है। मनोरम मंदिरों की छवि और हस्त निर्मित चीजों के लिए बहुत ज्यादा फेमस जगह है, जिसका नाम राजा साहिल वर्मन ने अपनी पुत्री चंपावती के नाम पर रखा था, जिनका यहां शिखर शैली में निर्मित प्रसिद्ध मंदिर, पहिए आकार की छत के साथ अवस्थित है। प्राचीन भारत की कई प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध विरासतें यहां देखने को मिलते हैं जिसमें से सुही माता मेला और मिंजर मेला दो लोकप्रिय जात्रा हैं जिसमें कई दिनों तक उत्सव का माहौल रहता है जिसमें संगीत और नृत्य की भी प्रस्तुति प्रदर्शित की जाती है। लक्ष्मीनारायण, सुई माता, चामुन्डा देवी, हरीराय और वज्रेश्वरी मंदिरों के दर्शनों के साथ भूरी सिंह संग्रहालय, भांदल घाटी, भरमौर घूमने के साथ ही चौगान खेलने का लुत्फ उठा सकते हैं। रंग महल, अखंड चंडी महल, छतराड़ी, कूंरा को घूम सकते हैं।

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कैसे जाएंः 

नजदीकी एयरपोर्ट अमृतसर में है जो चंबा से लगभग 240 किमी दूर है, अमृतसर से चंबा जाने के लिए वाहन उपलब्ध रहते हैं। इसके अलावा रेलवे स्टेशन पठानकोट लगभग 140 किमी की दूरी पर है। राज्य परिवहन निगम की बसें या प्राइवेट कैब प्रमुख शहरों से चंबा तक डायरेक्ट भी जाती हैं। 

8. खज्जरः

हिमाचल प्रदेश का यह स्थान पर्यटकों को खूब लुभाता है जिसे भारत का मिनी स्विट्जरलैण्ड कहा जाता है, क्योंकि यहां स्विट्जरलैण्ड की तरह ही मौसम की खूबसूरती और वातवरणीय परिवेश प्रतीत होता है। फ्रेश नेचर की हवाओं का आना जाना, बर्फ से ढके पर्वतों के परिदृश्यों की श्रृंखला और घने वनों, देवदारों और चीड़ के जंगलों का पाया जाना यहां हर किसी के लिए कुछ न कुछ विशेष जरूर प्रस्तुत करता है। इसे हिमाचल प्रदेश के सबसे खूबसूरत स्थानों में से एक कहा जाता है जिसे हिमाचल प्रदेश के गुलमर्ग की संज्ञा भी दी जाती है। कालाटोप वन्यजीव अभयारण्यों को पैदल भ्रमण कर देखने के साथ ही जोर्बिंग एक्टीविटी भी कर सकते हैं, जो यहां की बहुत फेमस पहचान है। धौलाधार पर्वतीय श्रृंखलाओं के देखने के साथ ही खज्जी नाग और खज्जी झील को भी देख सकते हैं। 

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कैसे जाएंः

सबसे करीबी हवाई अड्डा पठानकोट में है जो खज्जियार से लगभग 100 किमी दूरी पर है, निकट का रेल मार्ग पठानकोट स्टेशन ही है। राज्य परिवहन निगम की बसें खज्जियार से बेहतर आवागमन रखती हैं जहां देश के प्रमुख शहरों से पर्यटन के लिए जाया जा सकता है। 

9. मनालीः 

हिमालयी संरचनाओं में अति प्रसिद्ध पर्यटनीय हिल स्टेशन है। मनाली की शानदार घाटियों के साथ हरे भरे चीड़ देवदार और ओक के लंबे वृक्षों के खूबसूरत नजारें देखने को मिलते हैं। जहां नदियां पूरे शबाब में बहती हैं और झरनें भव्यता के साथ नीचे की ओर चट्टानों पर गिरते हैं। घास के विस्तृत मैदानों की श्रृंखला और सेब के फलों के बागानों का दृश्य मनमोहक लगता है और यहां को और ज्यादा शानदार बनाता है। मनाली के नाम को लेकर कहा जाता है कि धरती पर आए पहले मनुष्य मनु ने अपना समय यहीं व्यतीत किया जिस वजह से यह मनु-आलय यानी मनाली नाम से जाना जाता है। यहां इनकों समर्पित भव्य मंदिर भी है। हिडिम्बा मंदिर की बनावट और किंवदंतियों को एन्जॉए कर सकते हैं साथ ही यहां हिडिम्बा और भीम के पुत्र का घटोत्कच मंदिर भी देखने को मिलता है, जो संसार में अन्यत्र कहीं नहीं है। वशिष्ठ मंदिर के साथ इन सभी मंदिरों की आध्यात्मिकता का आभास कर सकते हैं। यहां दर्रों की भी कई श्रृंखलाओं को देखा जा सकता है जैसे रोहतांग दर्रा, बारा लाचा, हामटा और सोलंग घाटी, अटल सुरंग को भी निहारा जा सकता है। 

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कैसे जाएंः 

दिल्ली, चंडीगढ या अन्य प्रमुख स्थानों से मनाली के लिए नियमित तौर पर बस वगैरह संचालित होती है जिसकी मदद से मनाली जाया जा सकता है। करीबी हवाई अड्डा भुंतर एयरपोर्ट है जो कुल्लू मनाली के पास ही है। नजदीकी रेल मार्ग की कनेक्टिविटी जोंगिदर रेलवे स्टेशन से है जो लगभग 147 किमी दूर है। 

10. डलहौजीः 

हिमाचल प्रदेश का यह हिल स्टेशन कुदरत का बेमिसाल वरदान है, डलहौजी नाम अंग्रेज वायसराय डलहौजी के नाम पर पड़ा, जिनका यह ग्रीष्मकालीन आवास था। औपनिवेशिक काल से चर्चा में रहा यह स्थान तमाम सारी निशानियों का संग्रह प्रस्तुत करता है। शांत परिवेश, सुखद वातावरण, और मौसम की खूबसूरती का नायाब अंदाज़ सब मिलकर डलहौजी को और शानदार बनाते हैं जिसे पर्यटक खूब पसंद करते हैं। बर्फ से ढके पहाड़ सर्दियों में और घने वनों के नजारें मानसून और बसंत सीजन में सुखद अनुभूति प्रदान करते हैं। ब्रिटिश जमाने की चर्च की स्कॉटिश और विक्टोरियन वास्तुकला देखते बनती हैं जिनमें सेंट पैट्रिक चर्च, सेंट जॉन्स चर्च, सेंट फ्रांसिस चर्च विरासत का परिचय देती है। यह हिल स्टेशन अपने कुछ उत्पादों जैसे हिमाचली शॉल, हस्तशिल्प, रूमाली चंबा और बहुत सारी साज सज्जा सामानों की विस्तृत रेंज प्रदान करता है। आप डलहौजी की मुख्य बाजार मॉल रोड से खूब सारी पंसदीदा खरीदारी भी कर सकते हैं। पंचपुला, डैनकुंड चोटी, बीजी का पार्क और सतधारा जलप्रपात का आनंद लीजिए।

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कैसे जाएंः 

कांगड़ा हवाई अड्डे या पठानकोट रेलवे स्टेशन से डलहौजी के लिए बस या कैब सुविधा लेकर डलहौजी पहुंच सकते हैं। 

11. नारकंदाः 

समुद्र तल से बहुत ज्यादा ऊंचाई लगभग 8500 फीट पर अवस्थित यह हिल स्टेशन हिमालय की शिवालिक पर्वतामालाओं के अन्तर्गत आता है, जहां हिम से लदे पर्वतों की चोटियां, सुरम्य शांत वातावरण की खूबसूरती के नज़राने, हरे भरे वनों की शोभा और मोड़दार रास्तों की ढलानें अपने पर्यटकों को भीतरी और बाहरी तौर पर परमानंद का एहसास कराती हैं। जहां सर्दियों के दिनों में स्कींइग हुनर को आजमा सकते हैं और बर्फ से खेलना भला किसे नहीं पसंद होगा? यहां आप हिमालयी भव्य परिदृश्यों को निहारने के लिए लगभग 12000 फीट हाइट पर अवस्थित हाटू पीक का पैदल भ्रमण कर सकते हैं जहां चढते हुए मोड़दार रास्तों और घने जंगलों का आकर्षण हरे भरे आवरण ओढे हुए आकाश की ओर जाता हुआ है। रात के समय यहां कैपिंग करना एक सुखद अनुभव होता है। आप यहां संकट मोचन मंदिर, तारा देवी, केग्रानो नेचर पार्क, नालदेहरा, गेयटी सांस्कृतिक परिसर, बैंटनी कैसल, प्रॉस्पेक्ट हिल, शोघी, सराहन, सांगला घाटी, नाहन और छिलकुल घाटियों की खूबसूरती को महसूस कर सकते हैं।

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कैसे जाएंः 

शिमला हवाई अड्डा यहां से नजदीक है जिसे जुब्बड़हट्टी भी कहते हैं जिसकी नारकंडा से लगभग दूरी 150 किमी है। लेकिन यहां से उड़ानों की संख्या सीमित रहती है, इसलिए चंडीगढ हवाई अड्डा उपयुक्त है जिसकी दूरी 185 किमी के आसपास है। दिल्ली चंडीगढ हाईवे के माध्यम से अंबाला तक की यात्रा कर हिमालयन एक्सप्रेस वे से शिमला की ओर जाएं और आनंदित सफर तय करते हुए कुछ ही समय में नारकंडा पहुंच जाएंगे, कालका शिमला रेल ट्रैक पर शिमला से नारकंडा की दूरी लगभग 75 किमी है और कालका से 125 किमी है, कहीं से भी नारकंडा जा सकते हैं। 

12. धर्मशालाः 

झुकी हुई पहाड़ियों के सुदंर परिदृश्य, देवदार और चीड़ के वृक्षों की विस्तृत श्रृंखलाएं, अपने घुमावदार रास्तों और शहर के दो अलग भागों की तस्वीर दिखाता है, एक निचला जिसमे बाजार की हलचल रौनक व्यापार और आर्थिक जुगलबंदी तो वहीं ऊपरी भाग जहां मठों की खूबसूरती, दलाई लामा की जीवन संस्कृति, आध्यात्मिकता और निर्वासित तिब्बती सरकार का आवास मौजूद है। धर्मशाला के खूबसूरत और भव्य मठों मंदिरों की शोभा में मन भाव विभोर हो जाता है जहां शांति, ध्यान और मन को सुकून देने वाला वातावरण मिलता है। यहां आप त्सुगलाग्खांग परिसर इसे दलाई नामा के निवास स्थान के रूप में जानते हैं इसे दूर से निहार सकते हैं और प्रसिद्ध मठों में बौद्ध भिक्षुओं को शांति से प्रार्थना करते हुए और अध्ययन करते हुए देख सकते हैं। सेंट जॉन चर्च, धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम, ग्यातो मठ, नड्डी व्यू पॉइंट, धरमकोट, भागसू झरना, भागसूनाग मंदिर और अन्य कई आकर्षणों को देख सकते हैं।

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कैसे जाएंः 

कांगड़ा हवाई अड्डा की दूरी लगभग 15 किमी है, इसके अलावा पठानकोट रेलवे स्टेशन से लगभग 85 किमी सफर तय कर धर्मशाला पहुंच सकते हैं या फिर चंडीगढ के रास्ते सड़क मार्ग से धर्मशाला जा सकते हैं। 

13. पाराशर झीलः 

लगभग 2730 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह झील अपने वातावरणीय मनोरम दृश्यों और एक द्वीप की तरह आकर्षक छवि प्रदान करती है। इस झील की परिधि लगभग 300 मीटर की है, साफ स्वच्छ निर्मल मीठे पानी की यह झील आगुंतकों का स्वागत करती है। इस झील की उत्पत्ति को ऋषि पाराशर से जोड़ा जाता है, यहां इनका एक प्राचीन पैगोडा वास्तुकला में निर्मित भव्य मंदिर भी है, जिसमें ऋषि की उपस्थिति एक पिंडी रूप में ही है। इस मंदिर का निर्माण पूरे 12 सालों तक हुआ, जिसमें सिर्फ एक देवदार पेड़ का ही उपयोग हुआ है। झील के आसपास घूमने पर शांति का सुखद एहसास कराता है, यहां का सरनौहाली मेला जून माह में लगता है। कहते हैं कि ऋषि पाराशर के मंदिर में पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, जहां दूर दूर से लोग इस खूबसूरती और आध्यात्मिकता को महसूस करने आते हैं। 

कैसे जाएंः 

भुंतर एयरपोर्ट कुल्लू से लगभग 65 किमी की दूरी तय कर या जोगिंदर नगर रेलवे स्टेशन से तकरीबन 88 किमी सफर तय करते हुए पराशर झील पहुंचा जा सकता है। सड़क मार्ग से जिला मुख्यालय मण्डी से करीब 50 किमी दूरी पार कर यहां जाया जा सकता है। 

14. कल्पाः 

हिमाचल प्रदेश की संस्कृति और परंपराएं देखने में बहुत आकर्षक और अद्भुत हैं, कल्पा में पांरपरिक वेशभूषा का बहुत ही सुंदर रूप दिखता हैं। समुद्र तल से तकरीबन 2759 मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित यह हिल स्टेशन किन्नौर जिले के अन्तर्गत आता है, जहां 19वीं शताब्दी के आसपास डलहौजी गर्वनर के भ्र्रमण के बाद कल्पा को विशेष पहचान मिली जिसका शिल्प कौशल यहां की वेशभूषा से लेकर यहां के स्थानीय प्रसिद्ध मंदिर नारायण नागानी मंदिर में भी देखने को मिलता है। कल्पा का बौद्ध मठ भी बहुत लोकप्रिय है साथ कल्पा की अवस्थिति किन्नर कैलाश के निकट ही है, जहां भगवान शिव का आवास माना जाता है। कल्पा की खूबसूरत वादियों और धार्मिकता के रंगों का इतना मनभावन मिश्रण पर्यटक को अंदर तक झकझोर देता है जिसमें शांति और सुकून का गहरा आभास होता है। 

कैसे जाएं

नजदीकी एयरपोर्ट शिमला है जहां से बस या कैब की लगभग 265 किमी दूरी तय कर कल्पा जा सकते है, इसके अलावा शिमला रेलवे स्टेशन से भी आप इसी तरह पहुंच सकते हैं। 

निष्कर्षः 

हिमाचल प्रदेश, पर्यटन का वो उत्कृष्ट हीरा है जिसे हर कोई पाना चाहता है। हिमालयी श्रृंखलाओं का अद्भुत श्वेत आकर्षण, हरीतिमा लिए धरती और घने चीड़ देवदार के वनों की सघनता, प्रकृति की गोद में बसा हिमाचल धार्मिक परिप्रेक्ष्य में भी सर्वोत्तम हैं जिनसे जुड़ी पौराणिक मान्यताएं भी रोचक और प्रभावशाली हैं। यूं तो हिमाचल प्रदेश का हर हिल स्टेशन अपने अनूठे रंग, संस्कृति और पंरपराओं का अनूठा प्रदर्शन करता है लेकिन समग्रता से कहा जाए तो यह न सिर्फ तरोताजा फील कराता है बल्कि शहरों के व्यस्त जीवन में भारत का एक ऐसा दिव्य अलौकिक पहलू भी हो सकता है? हैरान करता है, लेकिन सच तो है कि हिमाचल प्रदेश कुदरत का ऐसा तोहफा है, जिसकी कीमत का आंकलन कभी नहीं हो सकता। 

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