• Sep 16, 2025

भारत विविधताओें भरा देश है और जब बात पर्यटन की हो तब यहां कई ऐसे छिपे हुए खज़ाने हैं जो आमतौर पर बहुत कम प्रचारित हैं इसी वजह से चयनित पर्यटकों की रौनक ही यहां देखने को मिलती है, ऐसे में अगर आप भी इन अनूठी जगहों को देखना चाहते हैं जिनकी नैसर्गिक सुंदरता, पारंपरिक संस्कृति और मन की गहराई में जाकर मीठी सा सुकून देते हैं। ऐतिहासिक विरासतों की सैर, प्राकृतिक पहाड़ों के नज़ारें या खामोश समुद्र तटों या सादगी भरे आकर्षणों की खोज में हो, भारत के ये अनूठे पर्यटन स्थल आपको खुशनुमा और अद्वितीय यात्रा का अनुभव प्रदान करते हैं। आइए, इस आर्टिकल में इन ताजातरीन एहसासों को देने वाले पर्यटन स्थलों की व्यापक जानकारी साझा करते हैं। 

1. ओरछा, मध्यप्रदेश

विरासतों की नगरी ओरछा का समृद्ध और संपन्न इतिहास किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है, बेतवा नदी के तट पर बसी यह नगरी मध्यप्रदेश के निवाड़ी जिले में आती है जिसकी यूपी के झांसी से दूरी लगभग 15 किमी है। ओरछा में 9वीं शताब्दी से भी ज्यादा प्राचीन ऐतिहासिक स्मारक, महल और मंदिर बने हुए हैं। ओरछा के रामराजा मंदिर को लेकर विशेष कहानियां सुनने को मिलती हैं और भगवान राम यहां सिर्फ भगवान की तरह नहीं बल्कि राजा की तरह माने जाते हैं और यहां की जनता खुद को उनकी प्रजा मानती है। शाही छतरियां, पुराना मंदिर, ओरछा किला परिसर, हरदौल बैठक और सावन भादों स्तंभ इनमें से हर एक के पीछे कोई न कोई आश्चर्यजनक तथ्य है जिनके बारें में जानकर आप हैरत में पड़ जाएंगे। ओरछा के चतुर्भुज मंदिर का विमान अत्यधिक ऊंचा लगभग 344 फीट और प्राचीन है। यहा बना जहांगीर महल विशेष और कहीं कहीं मुगल वास्तुकला का प्रदर्शन करता है इसीलिए इसे जहांगीर महल की संज्ञा दी जाती है। यहां के राजा ऊंट की सवारी किया करते थे इसीलिए मंदिर के पास यहां ऊंटखाना भी है जहां आज इसकी छत से ओरछा का विहंगम नज़ारा नजरों को लुभाता है। संध्या के समय यहां होने वाला लाइट एंड साउंड शो अत्यधिक प्रिय लगता है।

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एक नज़र : रामराजा मंदिर की दिव्यता का स्पर्श करें, जहांगीर महल, रानीमहल और चतुर्भुज मंदिर की उच्च कोटि की वास्तुकला का अवलोकन करें, बेतवा नदी में रिवर राफि्ंटग का अनुभव लें। स्थानीय संस्कृति, रीति रिवाज और बुंदेली लोकगीतों का आनंद लें। 

कैसे पहुंचे

सड़क मार्ग से जाने के लिए ओरछा झांसी शहर के नजदीक ही है। यहां से आप स्थानीय वाहनो से ओरछा की सैर कर सकते हैं

हवाई मार्ग के रास्ते ओरछा की यात्रा करने के लिए निकटतम हवाई अड्डा ग्वालियर है जहां से ओरछा की दूरी करीब 130 किमी के आसपास है, ग्वालियर से ओरछा तक का सफर सड़क या रेल मार्ग से कर सकते हैं। 

रेल मार्ग से ओरछा पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन झांसी रेलवे स्टेशन हैं जहां से ओरछा जाना आसान है। 

2. जीरो वैली, अरूणाचल प्रदेश 

सितम्बर महीने में जीरो वैली घूमने का आकर्षण बहुत विशेष है, इस समय यहां होने वाला जीरो महोत्सव, खुले आसमान के नीचे होने वाला एक म्यूज़िक इवेंट होता है, जिसकी मोहकता यहां आने वाले सभी पर्यटकों को आकर्षित करती है। अगर आप संगीत प्रेमी हैं या बैकपैकर्स है, सभी के लिए इस महोत्सव में बहुत कुछ स्पेशल है। जीरो घाटी अपने प्राकृतिक आकर्षण, देवदार के जंगलों, धान के खेतों और आपातानी संप्रदाय की जनजाति के लिए जाना जाता है, यहां के मछली पालन के तालाबों और उनके बीच बने धान के खेतों की तकनीक आकर्षित करती है। यह घाटी अद्भुत शांति और सुकून प्रदान करती है। यूनेस्को विश्व धरोहर की संभावित सूची में शामिल स्थान है, जहां मौजूद प्रशासनिक कार्यालयों को हापोली कहा जाता है, यह सुबनसिरी जिले में स्थित घाटी है जो चीड़ से ढकी नर्म पहाड़ियों और आपातानी जनजाति के घरों की बनावट के लिए प्रसिद्ध है। सितम्बर के महीनें में कभी कभी हल्की फुल्की बारिश हो सकती है, जो जीरो घाटी की खूबसूरती और ज्यादा बढा देता है।

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एक नज़रः जीरो घाटी संगीत उत्सव में विभिन्न प्रस्तुतियों और झलकियों का आनंद लें, पर्यटकों के लिए आकर्षण केंद्र के रूप में रहता है। चावल के खेतों और तरीकों पर गौर फरमाएं, देवदार और चीड़ के वृक्षों को देखें। जनजातीय क्षेत्र होने के बावजूद यहां शिक्षा के अच्छे अवसर हैं और साक्षरता दर भी ठीक है, जिसमें धीरे धीरे और ज्यादा सुधार होना बताया जाता है। 

कैसे पहुंचे

सड़क मार्ग से जीरो वैली असम और अरूणाचल प्रदेश से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है, जहां से जीरो जाने के लिए स्थानीय साधनों की भरपूर उपलब्धता रहती है। आप चाहें तो राज्य सरकार के बसों द्वारा या अपनी कार ड्राइव कर भी पहुंच सकते हैं।

जीरो वैली का निकटतम हवाई अड्डा तेजपुर एयरपोर्ट है जो जीरो वैली से लगभग 279 किमी है, यहां से कैब या किसी भी सुविधाजनक वाहन की मदद से जीरो वैली देखने जा सकते हैं। आप चाहें तो गुवाहाटी एयरपोर्ट से करीब 450 किमी दूरी तय कर भी जीरो वैली जा सकते हैं। 

जीरो के नजदीकी रेलवे स्टेशन के रूप में नाहरलागुन रेलवे स्टेशन है जहां से जीरो की तकरीबन दूरी लगभग 100 किमी रह जाती है जिसे आप सड़क मार्ग से तय कर पहुंच सकते हैं। 

3. बिनसर, उत्तराखंड

उत्तराखंड का यह स्थान चंद राजवंश के राजाओं की ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में जानी जाती थी जहां कुमाऊंनी हिमालय की पहाड़ियों के शानदार आकर्षण और सुरम्य वातावरण के कारण पर्यटकों को रिझाता है, अपनी विशेष स्थिति के कारण ही यह चौखम्बा, नंदा देवी, पंचाचूल, शिवलिंग और त्रिशूल जैसी शाही हिमालय चोटियों के मनभावन नज़ारें दिखाई देते हैं। बिनसर प्यारा सा प्राकृतिक गांव है जहां लाल रोडोडेंड्रोन और ओेक के वनों से आच्छादित इस क्षेत्र में वन्यजीव अभ्यारण्यों की झलक भी दिखाई पड़ती है, जिसमें वन्य जीवों के साथ तेंदुओं की अच्छी संख्या उपलब्ध है। हिमालय के भव्य राजसी अंदाज़ों की श्रृंखला आकर्षक दिखाई पड़ती है। यहां मौजूद 16वीं शताब्दी के मंदिर जहा भगवान शिव की आराधना बिनेश्वर नाम से होती है और इन्हीं के नाम पर इस जगह को बिनसर नाम से जाना जाता है। 

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एक नज़र : ट्रेकिंग और प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य का आनंद लीजिए, पंछियों की चहचहाहट और सूर्योदय, सूर्यास्त के परिदृश्यों को देखें, बिनसर वन्यजीव में जीप सफारी का आनंद लेते हुए विभिन्न वन्यप्राणियों को देखें। 

कैसे पहुंचे 

सड़क द्वारा पहुंचने के लिए उत्तराखंड के सभी इलाकों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है जहां से बिनसर पहुंच सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अल्मोड़ा से इसकी दूरी 30 किमी और नैनीताल से करीब 95 किमी है। 

हवाई यात्रा करने के लिए निकटतम एयरपोर्ट पंतनगर है जिसकी लगभग दूरी यहां से 125 किमी है। 

रेल यात्रा के माध्यम से पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है जहां से बिनसर की लगभग दूरी 120 किमी है। 

4. जैसलमेर, राजस्थान 

राजस्थान संस्कृति और परंपराओं का सहेजता यह शहर महलों, किलों और स्मारकों के लिए जाना जाता है। स्वर्ण नगरी के नाम से मशहूर जैसलमेर राजस्थान का एक रेगिस्तानी शहर है जहां से पाकिस्तान की सीमा नजदीक है और यहां से करीब 50 किमी की दूरी पर थार रेगिस्तान की खूबसूरती को निहार सकते हैं। रेत के समान ईंटो और से बने छोटे छोटे घर जैसलमेर की खूबसूरती में टिमटिमाते हुए स्वर्णिम तारों की तरह दिखाई देते हैं, जिनकी वजह से इसे गोल्डन सिटी कहा जाता है। जैसलमेर में सितम्बर का महीना गर्मी से राहत देने वाला होता है जहां रात का मौसम और भी ज्यादा खुशगवार रहता है। यहां कई प्रमुख आकर्षण है जहां आप राजसी समय बिताने के साथ ही उनकी वास्तुकला को सराह सकते हो। जैसलमेर का किला और किले से पैदल दूरी पर मौजूद गड़ीसर झील पर्यटकों को बहुत ज्यादा मनोरम दृश्य प्रदान करता है। जैसलमेर से करीब थार रेगिस्तान में खुले आसमान के नीचे कैंपिंग का मजे़दार और यादगार अनुभव लें। जैसलमेर किले के अंदर बने होटल और रूकने के लिए स्थानों में रूकने के साथ ही स्वादिष्ट स्थानीय भोजन का आनंद लें, जैसलमेर की खरीदारी बहुत अद्वितीय है जहां आप हाथ की कढाई वाले बैग, मूर्तियां और अन्य सामानों को स्मृति और गिफ्ट उद्देश्य से खरीद सकते हैं।

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एक नज़रः गड़ीसर झील में नौका विहार का आनंद लें, पुराने किले की वास्तुकला को देखें और रेत से रंगों के घरों, स्मारकों, और इमारतों को किसी ऊंचाई वाले स्थान से देखें, हाथों में हिना कलाकारों से मेंहदी लगवाएं, रेगिस्तान में ऊंट और टिब्बा सफारी का आनंद लेते हुए जैसलमेर की खूबसूरती को जिएं, पैरासेलिंग का लुत्फ लें। रूफटॉप रेस्टोरेंट में व्यंजनों का स्वाद चखें, राजस्थान के पंरपरागत वस्त्रों और सामानों की खरीद कर सकते हैं। 

कैसे पहुंचे 

सड़क मार्ग से जैसलमेर जाने के लिए रोड की अच्छी उपलब्धता है जहां पहुंचने के लिए राजस्थान और अन्य बड़े शहरों से कनेक्टिविटी बेहतर है। 

हवाई मार्ग से यात्रा करने के लिए जैसलमेर घरेलू हवाई अड्डे के माध्यम से जैसलमेर पहुंच सकते हैं। 

रेल मार्ग से जैसलमेर पहुंचने के लिए जैसलमेर रेलवे स्टेशन नजदीकी रेलवे स्टेशन है। 

5. संदकफू, पश्चिम बंगाल 

पश्चिम बंगाल का यह नायाब हीरा ट्रेकिंग करने वाले लोगों के लिए स्वर्ग जैसा है, जहां दार्जिलिंग से इसकी दूरी करीब 55 किमी है। लगभग 3636 मीटर की ऊंचाई पर स्थित संदकफू नेपाली इलम, मेची और भारत के पश्चिमी क्षेत्र में सबसे ऊंची चोटी है। संदकफू शब्द जहरीले पौधे की ऊंचाई से लिया गया है जहां यह जहरीला पौधा इस पहाड़ी पर पाया जाता है। यह पहाड़ी एवरेस्ट, कंचनजंगा, ल्होत्से और मकालू पहाड़ियों के विहंगम नजारे प्रस्तुत करती है। संदकफू पर्वत को संदकपुर नाम से भी जाना जाता है जहां से कंचनजंगा की पूरी श्रृंखला के धुंध भरे दृश्यों से मन भाव विभोर हो जाता है। तुमलिंग से सूर्योदय और सूर्यास्त देखना रोंमांचक अनुभव प्रदान करता है।

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एक नज़रः संदकफू पर्वत पर ट्रेकिंग करें और संगलीला वन्य उद्यान पार्क में वन्य जीवों की उपलब्धता देखें, कई सारी प्रमुख चोटियों के बर्फ से ढके नजारों का लुत्फ लें, परिक्षेत्र में कई आकर्षण है जहां गांव, पर्वतीय चोटियों और सोते हुए बुद्ध के समान दिखने वाले इन प्राकृतिक परिक्षेत्रों का आनंद लें। संदकफू जाने के लिए सितम्बर महीना अच्छा है जहां अन्य कई और रोमांचक गतिविधियों को एन्जॉए कर सकते है।

कैसे पहुंचे 

हवाई मार्ग से संदकफू जाने के लिए बागडोगरा हवाई अड्डे के माध्यम से संदकफू जा सकते हैं 

रेल मार्ग से संदकफू जाने में न्यू जलपाईगुड़ी जंक्शन पहुंचकर संदकफू पहुंच सकते है।

सड़क मार्ग से पहुंचने के लिए आपको पश्चिम बंगाल के किसी भी शहर से जा सकते हैं। 

6. माजुली द्वीप, असम

ब्रहमपुत्र नदी पर बना माजुली द्वीप असम का एक ज़िले द्वीप के रूप में जाना जाता है जहां प्रकृति खूबसूरती का बेहद शानदार ताना बाना बुनती है, दुनिया का सबसे बड़े नदी द्वीप और असमिया संस्कृति को प्रदर्शित करता यह जगह अपनी स्थानीय जनजातियों, प्राचीन रीति रिवाजों और आकर्षक परिदृश्यों की विविध श्रृंखलाओं को देखने का अवसर प्रदान करता है। हरी भरी धरती और माजुली की लय दूसरी ही दुनिया में ले जाता है। लगभग 352 वर्ग किलोमीटर में फैला माजुली हरियाली, विस्तृत धान के खेतों और वेटलैंड भूमि के लिए जाना जाता है। माजुली में मूल रूप से मिशिंग जनजाति रहती है जिनकी सांस्कृतिक विशेषताएं यहां की खूबसूरती और ज्यादा बढाती हैं। जैव विविधता के बेहतर उदाहरण के रूप में मशहूर माजुली में पक्षियों की विविधता और उनके महत्वपूर्ण क्षेत्र के लिए जाना जाता है। 15वीं शताब्दी में यहां संत सुधारक श्रीमंत शंकरदेव और उनके शिष्यों द्वारा बनाए गए मठ हैं जो असमिया विरासत, संगीत, नृत्य के केंद्र हैं।

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एक नज़र : कमलाबाड़ी सत्र, दखिनपत सत्र, औनियाती सत्र, बेंगानाती सत्र, चेतिया गांव और यहां की लोकल संस्कृति और शांत वातावरण का आनंद लें। मोलाइ वन में भ्रमण का अनुभव लेने के साथ ही मिशिंग गांव का रहन सहन समझें

कैसे पहुंचे 

माजुली द्वीप तक पहुंचने के लिए जोरहाट असम के मध्य एक प्रमुख शहर और जंक्शन हैं, पहुंचना होता है। यहां से आप नदी पार कर बिना किसी दिक्कत के नाव के रास्ते माजुली द्वीप पहुंच सकते हैं। 

जोरहाट पहुंचने के लिए आप असम की राजधानी गुवाहाटी के रास्ते जोरहाट जा सकते हैं इसके लिए आप नजदीकी गुवाहाटी एयरपोर्ट या रेलवे स्टेशन गुवाहाटी से जोरहाट का सफर तय कर सकते हैं। 

7. लोकटक झील, मणिपुर

मणिपुर की लोकटक झील अपने नाम के अनुसार ही अद्भुत है जिसमें वलय आकार की आकृतियों के हरियाली और विभिन्न तरह की संरचनाएं दूर से कौतूहल जगा देती हैं। मणिपुर में तैरते द्वीपों की यात्रा को एन्जॉए करना हो तो यह स्थान बेहद विशेष है। पूर्वोत्तर भारत का ऐसा अनमोल तोहफा है जिसको देखकर आश्चर्यचकित होना तो लाजिमी है। यह न केवल मीठे पानी की बड़ी सी झील है बल्कि इस पर भारत का एकलौता तैरता हुआ राष्ट्रीय उद्यान भी है जिसे केबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान कहते हैं। मणिपुर राजधानी इम्फाल से लगभग 50 किमी दूरी पर स्थित यह झील अपने गोलाकार तैरते दलदलीय स्थान जिन्हें फुमुदी कहा जाता है, पर्यटन का आकर्षण केंद्र है। इन्हीं फुमुदी पहाड़ियों पर बने होम स्टे और भी ज्यादा इस जगह के करीब ले जाते हैं। इस तरह से आप चाहें तो लोकटक झील पर होम स्टे का यादगार अनुभव ले सकते हैं, इन कॉटेज में रूकने का आनंद और झील का आकर्षण निहारा किसी जन्नत से कम नहीं लगता। झील पर बनी इन तैरती झोंपड़ियों को फुमसांग कहते है, जिनमें खाने पीने के सामान भी रहते हैं।

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एक नज़रः नाव की सवारी का आनंद लें, लोकटक झील के परिदृश्यो को बेहतरी से देखने के लिए किसी ऊचे स्थान पर जाएं, केइबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान में विभिन्न पक्षियों को देखें, स्थानीय द्वीपों सेंड्रा और करंग की यात्रा करें, लोकटक झील पर सूर्यास्त या सूर्योदय के नजारों के विहंगम दृश्य देखें। क्वालिटी समय बिताएं। 

कैसे पहुंचे 

मणिपुर की लोकटक झील तक पहुंचने के लिए सबसे पहले इम्फाल से मोइरांग तक जाना है इसके बाद मोइरांग से थंगा के लिए जाना है जहां साझा वाहन आसानी से मिल जाते हैं, थंगा लोकटक झील पर बसे कई गांवों का समूह कहलाता है जो एक प्रायद्वीप जैसा है। अब आप लोकटक झील आसानी से पहुंच जाएंगे। 

इम्फाल जाने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा, रेलवे स्टेशन या सड़क मार्ग चुन सकते हैं, इम्फाल से मोइरांग तक जाने के लिए जहां जिरीबाम इम्फाल रोड पर साझा स्थानीय वाहन मिल जाते हैं। 

8. गोकर्ण, कर्नाटक

गोकर्ण कर्नाटक का समुद्री किनारा है जिसकी खामोशी से भरी शांति दिल और दिमाग को गहरा सुकून प्रदान करती है। गोकर्ण में कई सारे शानदार समुद्री तट हैं जहां एक से बढकर एक तीर्थ मंदिर भी हैं। दक्षिण भारत की दिव्यता और पवित्रता को सारगर्भित तरह से समझाते गोकर्ण में ऊंचे ऊंचे नारियल और ताड़ के पेड़ व उनके बीच बसे मंदिरों की आध्यात्मिकता और हिंदू पौराणिक कहानियों के आकर्षण यहां के बारें में और अधिक रोचकता बढाते हैं। शहरी जीवन की व्यस्तता से सुकून के पलों को प्रदान करता गोकर्ण के नजारें अपनी विशेषताओं और शानदार परिदृश्यों के कारण पर्यटकों के लिए थेरेपी जैसा आरामदायक स्थान है।

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एक नज़रः गोकर्ण समुद्री तटो मे विशेष ओम आकार के समुद्री किनारे की पौराणिक मान्यताओ की कहानी सुने और दिव्यता का एहसास करें, कुडले बीच में सूर्यास्त का नजारा देखें, महाबलेश्वर मंदिर की द्रविड़ वास्तुकला और शिवलिंग का दर्शन करें, हाफ मून बीच में क्वालिटी टाइम बिताएं, पैराडाइज बीच और नमस्ते कैफे में बैठकर एक कप कॉफी को पीते हुए समुद्रीय सुंदरता देखें। मिरजान किला की बनावट देखें, कोटि तीर्थ में दिव्यता की अनुभूति करें, निर्वाण बीच पर कुछ पल बैठें। 

कैसे पहुंचे 

सड़क मार्ग से गोकर्ण पहुंचने के लिए कर्नाटक के प्रमुख शहरों से राष्ट्रीय राजमार्गों की सहायता से पहुंचना आसान है। 

हवाई मार्ग के रास्ते गोकर्ण जाने के लिए निकटतम हवाई अड्डा गोवा का डाबोलिम हवाई अड्डा है जहां से लगभग 135 किमी दूरी का सफर सडक मार्ग के द्वारा तय कर गोकर्ण पहुंच सकते हैं। 

गोकर्ण जाने में रेल मार्ग की सुविधा भी उपलब्ध है जिसका निकटतम रेलवे स्टेशन अंकोला है जो गोकर्ण से मात्र लगभग 20 किमी दूरी पर है। 

9. तवांग, अरूणाचल प्रदेश 

भारत के पूर्वोत्तर मेंं एक से एक अनमोल रत्नों की खान है जहां तवांग अरूणाचल प्रदेश का वैभवशाली हिमालय की ओट में बसा एक मनभावन जगह है जहां के प्राचीन मठों की आध्यात्मिकता, संपन्न सांस्कृतिक ऐतिहासिकता और अद्भुत परिदृश्यों के नज़ारों की शोभा के साथ तवांग हर किसी को अनूठे और कभी न भूलने वाले पलों को प्रदान करता है। सितम्बर महीने में यहां हरी भरी हरियाली से संपन्न घाटियां और झीलों की श्वेत चमक से जगमगाया वातावरण जो ऐसा एहसास देता है मानो जन्नत में कदम रखा हो। तवांग प्रकृति की चाह रखने वालों और साहसिक गतिविधियों के शौकीनों के लिए बहुत कुछ लेकर आता है। यहां करीब 13700 फीट से भी ज्यादा की ऊंचाई पर सेला दर्रा तवांग का प्रवेश द्वार कहलाता है। बर्फ से ढके चोटियों के परिदृश्यों के बीच तवांग में बने मठों की ऐतिहासिकता तिब्बत के बाहरी क्षेत्र में सबसे बड़े बौद्ध मठों का क्षेत्र है। इन मठों का इतिहास करीब 17वीं सदी से भी ज्यादा पुराना है। इन मठों में और भी कई वास्तु आकर्षणों के साथ पांडुलिपि संग्रह भी हैं जहां पर्यटक और भी ज्यादा रोमांचित महसूस करते हैं।

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एक नज़र : तवांग की संस्कृति और आतिथ्य का आनंद लें, जसवन्त गढ स्मारक पर सलामी दें, ट्रेकिग और कैंपिंग साहसिक गतिविधियों का आनंद लें, फोटोग्राफी का अवसर न चूकें, तवांग की शांति और प्रकृति की खूबसूरती यहां के अलौकिक और दिव्य परिप्रेक्ष्यों को भी उजागर करती है। प्रकृति के साथ समय बिताना अच्छा लगता है। 

कैसे पहुंंचे 

तवांग तक जाने का सर्वसुलभ साधन सड़क मार्ग ही है जहां से आप नजदीकी राज्यों से संचालित बसे या कैब बुक कर तवांग यात्रा पर जा सकते हैं। 

यदि आप हवाई रास्ते से तवांग पहुंचना चाहते हैं तो पहले आपको सोनीबाड़ी हवाई अड्डे पहुंचना होगा उसके बाद करीब 320 किमी की दूरी तय कर तवांग के लिए जा सकते हैं। आप चाहें तो गुवाहाटी एयरपोर्ट विकल्प भी चुन सकते हैं। 

तवांग के निकटतम रेलवे स्टेशन रंगापारा रेलवे स्टेशन है जहां से करीब 313 किमी तय कर तवांग यात्रा संपन्न कर सकते हैं। 

10. हम्पी, कर्नाटक

यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल हम्पी के खंडहर और मंदिरों के अवशेष इसे अद्वितीय और पर्यटन योग्य स्थल में प्रसिद्ध बनाते हैं। रामायणकालीन किष्किंधा और मुगलो के समय विजयनगर साम्राज्य के रूप में परिभाषित यह स्थान अपनी ऐतिहासिक विरासत और रोचकता के कारण पर्यटको को आकर्षित करता है। सितम्बर में हम्पी हरे भरे स्वर्ग की तरह दिखता है जहां अनोखे अनुभवों की प्राप्ति होती है। इस समय यहां कम भीड़, मौसम में शीतलता और कई आकर्षक नजारों को कैमरे में कैद करने का सुअवसर प्राप्त होता है। यहां आप तुंगभद्रा नदी में डोंगी की सवारी का आनंद ले सकते हैं व नदी किनारे आराम कर सकते हैं। सनापुर झील की मोहकता अनुभव करें, विरुपाक्ष मंदिर की अद्भुत वास्तुकला और दर्शनों का अवसर पाएं, मतंगा पहाड़ी की ऐतिहासिक तथ्य और पौराणिक मान्यताओं को सुने और अवलोकन करें इसके अलावा हम्पी के बाजारों में खरीदारी के सुनहरे पलो को सहेजें।

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एक नज़रः हम्पी में विजयनगर साम्राज्य के समय से होने वाले उत्सव, अब जिसे कर्नाटक सरकार द्वारा आयोजित किया जाता है उसका अवलोकन और आनंद उठाएं और कई सारे आकर्षक स्थलों जैसे मंदिरों, नदियों, बांधों, झीलों और पर्वतों के दृश्यों को देखें। यहां क्लिफ जंपिग हंपी एक्टिविटी का मज़ा लें इसके साथ ही कोरल राइड और अन्य पुरातत्व संग्रहों को देखें। 

कैसे पहुंचे 

हम्पी पहुंचने के लिए कर्नाटक के सभी प्रमुख शहरों से सीधी बसों की आवाजाही नियंत्रित होती है। जहां आप सड़क माध्यम से कर्नाटक राज्य परिवहन की बसें या निजी वाहनों से हंपी की सैर पर निकल सकते हैं

कर्नाटक में हुबली एयरपोर्ट हंपी के नजदीकी हवाई अड्डो मेंं से एक है जहां से लगभग 160 किमी दूरी तय कर आप हंपी पहुंच सकते हैं।

हंपी पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन हॉस्पेट जंक्शन है जो हम्पी से मात्र लगभग 13 किमी दूरी पर जहां से हम्पी जाने का रास्ता एकदम आसान है।

निष्कर्ष

भारत ऐसा देश है जहां रोचकताओं से भरी जगहों की लंबी लिस्ट है, जिनकी विशेषताएं आश्चर्यचकित और उत्साहित करती हैं। अनोखी जगहों की खासियतें और बहुत शांति और कम पर्यटकों से सुशोभित होते यह स्थल वास्तव में स्वर्ग से कम नहीं होते। आप चाहें तो प्रकृति की गोद में समय बिताना चाहते हों या ओरछा जैसी जगहों में आध्यात्मिकता की पराकाष्ठा देखना चाहते हों, गोकर्ण के तटों पर बैठकर ध्यान अभ्यास, ताड़े के वृक्षों को निहारना चाहते हों या हम्पी में रामायणकालीन अवशेषों से रूबरू होना चाहते हों। जहां स्थानीय जनजाति के रहन सहन, संस्कृति विशेषताओं और उन्हें करीब से जानने का सुखद अवसर मिलता है। इन स्थानों का अनूठापन और अद्वितीय विरासत पर्यटकों को यहां विशेष अनुभवों की श्रृंखला प्रदान करती हैं, भारत में इन जगहों को एक्सप्लोर कीजिए और आश्चर्यों की वास्तविकता महसूस कीजिए।

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