• Sep 18, 2025

कुतुबमीनार जिसकी नाम के बारें में कई किवंदतियो का चलन है, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसका नाम गुलाम वंश के संस्थापक शासक कुतुबद्दीन ऐबक के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने 11वीं शताब्दी के दौरान इसका निर्माण कार्य आरंभ करवाया था, कुछ का तर्क है कि मौलाना ख्वाजा कुतुबद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर इसका नाम कुतुबमीनार है, वजह चाहे जो भी हो पर एक बात सत्य है कि कुतुबमीनार परिसर केवल एक मीनार तक सीमित नही है, यहां मुख्य रूप से कई प्राचीन स्मारकों का संग्रह है, जो सब मिलकर आपस में कुतुबमीनार परिसर के नाम से जाने जाते हैं। दिल्ली के बाहरी क्षेत्र में स्थित कुतुबमीनार परिसर अपनी ऐतिहासिकता के लिए विश्व प्रसिद्ध है जिसके लिए पर्यटक दूर दूर से यहां घूमने आते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि कुतुबमीनार से जुड़े कई ऐसे रोचक तथ्य हैं, जो इस परिसर के प्रति दिलचस्पी को और ज्यादा बढाते हैं, आइए चर्चा करते हैं इस मीनार से संबंधित 12 रोचक तथ्यों के बारें में

1. भारत की सबसे ऊंची ईंट की बनी मीनार के रूप में प्रतिष्ठितः

कुतुबमीनार शहर के सबसे अधिक घूमे जाने वाले पर्यटन स्थलों में से एक है, जहां की प्रसिद्धि के चर्चे लोगों को यहां आकर्षित करते हैं। इस मीनार के नाम यूं तो कई रिकॉर्ड दर्ज है, जिनमें से सबसे फेमस है इसका इतनी ऊंचाई पर होने के साथ निर्माण ईंटो से होना। ईंटों से बनी यह इमारत 72.5 मीटर की ऊंचाई तक अवस्थित है, जिसकी तुलना अफगानिस्तान में जाम की 62मीटर ऊंची ईंटों से की जा सकती है, जो कुतुबमीनार से लगभग दशक पहले बनी थी। प्रत्येक मंजिल के शीर्ष पर बालकनी के नीचे स्टैलक्टाइट ब्रैंकेटिग प्रणाली के साथ आकर्षक व शानदार लुक दिया है। मीनारो के निर्माण के बारें में कहते है कि यह मस्जिद से दूर हटकर बनाई जाती थीं जिस पर कुरान की आयतें छपी होती थीं। कुतुबमीनार को बनाने में विशेष ज्यामितीय पैटर्न को अपनाया गया है जिसमें शिलालेखों का भी जिक्र है। ईंटों की बनी इस ऊंची मीनार को राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय स्तर के विशेष पर्वां पर जगमगाया जाता है जो देखने में बहुत शानदार प्रतीत होती है।

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2. यूनेस्को विश्व धरोहर में दर्जः

यूनेस्को विश्व विरासत साइट पर अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित कराने वाली यह मीनार सन् 1993 में इस रिकार्ड में शामिल होने वाली मीनार बनी। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन, दुनिया भर में शिक्षा, वैज्ञानिकता और सांस्कृतिकता में उत्कृष्ट विरासतों की सूची बनाते हैं जिन्हें विश्व स्तर का आकर्षण प्राप्त होता है और संस्कृतियों को मजबूती मिलते हुए नैतिक एकजुटता को बल मिलता है। कुतुबमीनार का यूनेस्को में शामिल होना संपूर्ण भारतीयों के लिए गौरव की बात है जिससे अंतरराष्ट्रीय मान्यता के साथ ही पर्यटन को बढावा मिलता है जिससे आर्थिक लाभ के साथ ही सांस्कृतिक संरक्षण भी प्राप्त होता है। इसमें दर्ज होने के बाद से उक्त स्थल के महत्व और संरक्षण के प्रति जागरूकता में वृद्धि होती है और अन्य देशों से भी उचित सहयोग मिलता है।

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3. ऐतिहासिक स्मारको की मौजूदगीः

कुतुबमीनार सिर्फ एक मीनार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह तो अन्य महत्वपूर्ण स्मारकों का संकलन है, रोचक बात तो यह है कि यहां मुख्य रूप से कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद, लौह स्तंभ, अलाई दरवाजा, अलाई मीनार, अलाउद्दीन खिलजी का मकबरा, इल्तुतमिश का मकबरा और इमाम जामिन का मकबरा भी अवस्थित है। यहां मौजूद इमाम जामिन का मकबरा सिंकदर खान लोदी ने बनवाया था जो 16वीं शताब्दी के आसपास बनवाया गया था, इमाम जामिन इस्लामी धर्मगुरू मुहम्मद अली के नाम से जाने जाते थे, इनका मकबरा लोधी स्थापत्य कला शैली का परिचायक है जिसे 12 खंभों की मदद से सहारा दिया गया है, मकबरे की संपूर्ण जानकारी मुख्य द्वार पर लगे शिलालेखों पर मिलती है, कुवत उल इस्लाम मस्जिद का निर्माण कुतुबद्दीन ऐबक द्वारा कराया गया है, इसके अलावा अलाई दरवाजा, अलाई मीनार और अपने स्वयं का मकबरा अलाउद्दीन खिलजी द्वारा बनवाए गए थे, इल्तुतमिश का मकबरा भी इल्तुतमिश ने स्वयं बनवाया था और जबकि लौह स्तंभ का संबंध चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल से बताया जाता है, यह सब स्मारक किसी एक शासक द्वारा बनवाई गई नहीं हैं, यह तो विभिन्न शासकों की पहल का परिणाम है।

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4. निर्माण कार्य में कई शासकों की महत्वपूर्ण भूमिकाः

कुतुबमीनार के निर्माण में कई शासकों का अभूतपूर्व योगदान शामिल है। इस मीनार की नींव कुतुबद्दीन ऐबक द्वारा जरूर रखी गई थी लेकिन इसके आगे का निर्माण उनके दामाद इल्तुतमिश द्वारा संपन्न कराया गया था जो लाल बलुआ पत्थर की ईंटों से बनी पांच मंजिला मीनार है जिसके बारें में कहते हैं कि ऐबक ने इसकी पहली मंजिल ही बनवा पाई थी, इसके बाद इल्तुतमिश ने इसमें तीन और मंजिलों को बनवाया। आकाशीय बिजली गिरने के से इसका ऊपरी भाग क्षतिग्रस्त हुआ, जिसकी मरम्मत और निर्माण कार्य फिरोजशाह तुगलक ने संपन्न करवाया, उन्होंने इसमें दो मंजिल और जुड़वा दी। इस प्रकार कुतुबमीनार में कुल 5 मंजिले शामिल हैं। कुतुबमीनार के विभिन्न पहलूओं पर गौर करने पर पता चलता है कि इसके निर्माण और मरम्मत कार्य को कई शासकों द्वारा पूरा करवाया गया जिसमें सिकंदर लोदी का नाम भी आता है।

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5. लौह स्तंभ की विशेषताः

कुतुबमीनार के परिसर में स्थित लौह स्तंभ विशेष रूप से पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहता है, इसकी मुख्य विशेषता है कि यह 1600 सालों से भी अधिक समय से ऐसे ही खड़ा है जिसमें जंग का एकमात्र भी कोई नामोंनिशान देखने को नही मिलता है, जो बहुत आश्चर्य की बात है, यह प्राचीन भारत की धातुकर्म प्रतिभा का प्रामाणिक उदाहरण है। इस स्तंभ के बारे में कहते है कि यह राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा निर्माण कराया गया था जिसका निर्माण और पहले लगभग चौथी शताब्दी के दौरान ही कराया गया है। इस स्तंभ की लंबाई सात मीटर के आसपास है जो पहले हिंदू और जैन मंदिर के एक भाग रूप में बताया जाता है। इसकी मूल स्थापना मथुरा में बताई जाती है, जो भगवान विष्णु के मंदिर के समीप लगाया गया था, जिसे 1040 ईस्वी में दिल्ली के महाराजा अनंगपाल द्वारा यहां प्रतिस्थापित कराया गया। यह लौह स्तंभ शुद्ध इस्पात का बना हुआ है जिसमें लौह मात्रा करीब 18 प्रतिशत बताई जाती है, जिसमें एक भी जोड़ नहीं है। इसको लेकर कहा जाता है कि यहां खड़े होकर मन्नत मांगने का रिवाज भी है। यह एक तरह का प्राचीन स्तंभ लेख भी है जिस पर कुछ अंकित है, जो इसे कीर्ति स्तंभ की संज्ञा भी देते हैं।

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6. कई वास्तुकलाओं का सम्मिश्रणः

कुतुबमीनार कई शासकों द्वारा बनी होने के कारण कई वास्तुकला के संगम का प्रतीक भी है। कुतुबमीनार की प्रत्येक मंजिल का डिजाइन अलग अलग वास्तुकारों द्वारा बनाया गया है जिस वजह से इसके आर्किटेक्चर में अलग अलग वा्रस्तुकलाओे का सम्मिश्रण हैं, पारंपरिक इस्लामी वास्तुकला और दक्षिण पश्चिमी एशियाई डिजाइन के एलीमेंट शामिल हैं। तहखाने जिसे बेसमेंट स्टोरी के नाम से जानते हैं, इसमें बारह आधे वृत्त के आकार के और बारह निकले हुए किनारो वाले स्तंभों से बनाया गया है जिन्हें बारी बारी से बनाया गया है, इसमें ज्यामितीय का प्रयोग करते हुए निर्माण कार्य किया गया है, इसके आधार शिलालेखों पर कुरान की बातों का उल्लेख किया गया है, जिसमें सुल्तान की प्रशंसा का भी की गई है। कुतुबमीनार ऊंचाई पर पहुंचने मे पतली होती जाती है, इसके आधार व्यास 14.3 फीट हैं जो मीनार के शीर्ष पर 2.7 मीटर रह जाता है। यह मीनार उस समय कई मीनारों और टावरों के लिए प्रेरणास्त्रोत के रूप में भी उभरी, जिसकी मिसाल चांद मीनार और मिनी कुतुब मीनार हैं। कुतुबमीनार पर फारसी यानी पारसी प्रभाव भी झलकता है जिसके शिलालेखों पर अरबी और फारसी भाषा का उपयोग भी देखने को मिलता है।

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7. मोड़दार सीढियों के रास्ते और बॉलीवुड गीत की शूटिंगः

कुतुबमीनार की सर्पिलाकार सीढियां मीनार के शीर्ष तक को जाती हैं, इस मीनार में लगभग 379 सीढियां हैं जो आगुंतकों को कुतुबमीनार की हर मंजिल की बालकनी तक पहुंचाने का काम करती हैं, जहां से दिल्ली शहर का खूबसूरत नजारों का आनंद लिया जा सकता है। नीचे से ऊपर जाते समय यह सीढियां मीनार के आकार में फिट होने उसी माप से बनाई गई हैं। बॉलीवुड गीत ‘‘दिल का भंवर करे पुकार’’ जिसमें देवानंद साहब और अभिनेत्री नूतन पर फिल्माया गया है जिसमें वो पूरे गीत में सर्पिलाकार सीढियों से उतरते हुए ही दिखाए गए हैं, इसके पीछे यहीं का कन्सेप्ट लिया गया है, दरअसल पहले वो ये शूटिंग कुतुबमीनार के अन्दर करना चाहते थे लेकिन आकार में बड़े कैमरे मीनार के अंदर पहुंचने में असहज होने की वजह से इस गीत की शूटिंग इस मीनार के जैसी दिखने वाली प्रति में कराई गई, मीनार की ही छवि होने की वजह से इस गीत और कुतुबमीनार एक अनोखे कनेक्शन की मिसाल के रूप में जाने जाते हैं।

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8. कुतुब परिसर के साथ ही भारत की पहली मस्जिद लेकिन मुख्यतः पर्यटन के रूप में ही प्रसिद्धः

कुतुबमीनार के परिसर में यूं तो मस्जिद पहले ही बनाई गई लेकिन यह जगह धार्मिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध न होकर एक पर्यटन स्थल के रूप में ही जाना जाता है। दक्षिण दिल्ली का यह स्थान कई स्मारकों को एक ही परिसर में पहचान देता है, इसी क्रम में यहां कुवत उल इस्लाम मस्जिद को कुतुबद्दीन ऐबक ने मीनार निर्माण से पहले ही बनवाया था जो उस समय भारत की पहली मस्जिद के रूप में जानी गई। कहते हैं इस मस्जिद का निर्माण कई हिंदू और जैन मंदिरों के अवशेषो पर किया गया था जिसे मूर्तिभंजन के स्मारक की संज्ञा दी गई। यह लाल बलुआ पत्थर, ग्रे क्वार्टज, और सफेद संगमरमर से बनाई गई है जिसमें ऊंचा मेहराबदार चित्रण भी किया गया है। ऐबक द्वारा शुरू की गई इस मस्जिद के आगे का निर्माण और विस्तार कार्य इल्तुतमिश और अलाउददीन खिलजी द्वारा संपन्न कराया गया। कुवत उल इस्लाम का शाब्दिक अर्थ ‘‘इस्लाम की शान’’ है, जो इस्लामी विजय के जश्न के प्रतीक के रूप में बनवाई गई थी, जो आज पर्यटन का आकर्षण हैं।

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9. कुतुबमीनार से भी ऊंची मीनार बनाने का नाकाम सपनाः

अलाउद्दीन खिलजी ने कुतुबमीनार से दोगुनी हाईट की मीनार को बनाने का ख्वाब पाला, जिसे अलाई मीनार के रूप में जाना जाता है जो कुतुब परिसर में ही अवस्थित है, किन्तु इसका निर्माण कार्य जब 13वीं शताब्दी के दौरान शुरू हुआ तो मात्र लगभग 24 मीटर की प्रथम मंजिल पर ही रूक गया, 1316 ईसवी के दौरान अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद उसके वंशजों ने अलाई मीनार को और बनवाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, जिस वजह से यह अधूरी हसरतों की कहानी को बयां करती हुई पर्यटकों का ध्यान विशेष रूप से अपनी ओर आकर्षित करती है। इसकी संरचना में भी लाल बलुआ पत्थरों का ही निर्माण हुआ है, जो कुतुबमीनार के उत्तर में स्थित है। भले ही यह पूरी न बन पाई हो लेकिन फिर भी इसकी कारीगरी और वास्तुकला विशेष है, जो इसे दिल्ली की महत्वपूर्ण स्मारक के रूप में स्थापित करती है।

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10. मीनार की ऊपरी मंजिल की बनावटः

 यह विशेष बात यह है कि इसकी ऊपरी मंजिल की बनावट सफेद संगमरमर पत्थर से की गई है, जो इसे मीनार के बाकी हिस्से से अलग बनाता है। प्राकृतिक कारणों से ऊपरी मंजिल को हानि होने पर फिरोजशाह तुगलक द्वारा दोबारा बनवाई गई जिसके साथ इसमें दो मंजिले और जोड़ दी गईं। कुतुबमीनार की बनावट लाल बलुआ पत्थरों से की गई थी जिसमें सफेद संगमरमर का जुड़ाव अलग ही प्रतीत होता है जो इसकी खूबसूरती को और भी ज्यादा बढा देता है। मीनार की चौथी और पांचवी मंजिल सफेद रंग से दिखती हैं जिस पर जटिल नक्काशी और शिलालेख मीनार की ऐतिहासिकता और बलुआ पत्थर व संगमरमर के अद्भुत संगम का परिचय देते हैं।

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11. विजय प्रतीक के रूप में चिन्हितः

भारत में गुलाम वंश की स्थापना के साथ ही यह एक नये युग की शुरूआत होने जैसा था जब स्थानीय राजपूत राजाओं का वर्चस्व कम होने लगा था। इसी युग की शुरूआत के विजय रूप में इस मीनार को स्थापित किया गया, जो इनकी विजय चिन्ह स्वरूप मानी गई।

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12. कुतुबमीनार का हल्का सा झुकावः

कुतुबमीनार की बनावट में हल्का सा झुकाव प्र्रतीत होता है, जो कुछ सेंटीमीटर का है। इसके कई कारण हैं जैसे अलग अलग खंडो और कालक्रमों में बनवाना, प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप और आकाशीय बिजली का सामना करना या फिर समय के साथ मीनार की नींव में भी गिरावट होने की वजह से इसका झुकाव हो सकता है। यह झुकाव सेफ्टी नियमों के अन्तर्गत होने के कारण चिंता का विषय नहीं है।

निष्कर्षः

कुतुबमीनार भारत की ऐतिहासिक मीनार और श्रेष्ठ वास्तुकला प्रमाण होने के साथ ही दुनिया भर में प्रसिद्ध है, जिससे जुड़े कई दिलचस्प रोचक तथ्य हैं जिनकी जानकारी यहां घूमने के लिए उत्साहित करती है। ऐतिहासिक हो या आधुनिक, यह मीनार अपनी विशेषताओं से हर युग में लोकप्रिय है, यह कुतुब परिसर में अवस्थित सभी स्मारकों के विभिन्न स्वरूप का संयुक्त पर्यटन स्थल है।

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