उज्जैन नगरी, बाबा महाकाल के निवास के रूप में प्रसिद्ध है, जो प्रसिद्ध बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। महाकालेश्वर मंदिर का विशेष महत्व है जिसके बारें में हिंदू धर्म के ग्रन्थों में विस्तार से बताया गया है। महाकवि कालिदास के साथ कई प्रमुख संस्कृत कवियों ने भी इस मंदिर की महिमा का बखान किया है। महाकाल बाबा के इस मंदिर के बारें में विस्तार से बात करेंगे इस आर्टिकल में
पौराणिक कथाओं के अनुसार दूषण नाम के राक्षस के आतंक से उज्जैन के लोग जब बहुत परेशान हो गए तब उनकी विनती पर भगवान शिव ने जिस रूप में दूषण राक्षस का संहार किया, भगवान शिव के इसी रूप को महाकाल नाम से जाना गया। तब से उन्होंने उज्जैन के लोगों वादा किया कि वे हमेशा यहां महाकाल रूप में निवास करते हुए उनकी रक्षा करेंगें तब से उज्जैन के लोग इन्हें शासक के रूप में और खुद को महाकाल की प्रजा की तरह मानते हैं।
महाकाल भगवान को इस धरती का सर्वेश्वर माना गया है, इस संबंध में कई श्लोकों का वर्णन भी किया गया है
राजा विक्रमादित्य की नगरी उज्जैन सदियों से ही विशेष रही है और इसे सबसे खास बनाता है महाकाल मंदिर, स्वयंभू शिवलिंग मंदिर के रूप में वर्तमान मंदिर मराठा साम्राज्य की देन है, जीर्णोद्धार तत्कालीन सिंधिया राज के दीवान बाबा रामचंद्र शैणवी ने करवाया था। इस मंदिर का ज्ञात निर्माण 11वीं शताब्दी के आसपास हुआ लेकिन मुगल शासक इल्तुतमिश ने इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया था।
महाकालेश्वर मंदिर एक वृहद परिसर में स्थित है, जहां कई देवी देवताओं की स्थापना है, गर्भग्रह में भगवान महाकालेश्वर का विशाल और वैश्विक एकमात्र दक्षिणमुखी शिवलिंग है, जिसकी जलाधारी की दिशा पूर्व है, महाकालेश्वर मंदिर के शीर्ष के ठीक ऊपर कर्क रेखा गुजरती है, इस वजह से यह स्थान पृथ्वी की नाभि कहलाती है, गर्भग्रह में देवी पार्वती, भगवान गणेश और कार्तिकेय की मंत्रमुग्ध करने वाली प्रतिमाएं हैं, यहीं नंदी द्वीप भी स्थापित है, जो सदैव दीप्तिमान भी रहता है। विशाल शिवलिंग के सामने गर्भग्रह के बाहर विशाल कक्ष में नंदी की विशाल प्रतिमा स्थापित है। जहां बैठकर हज़ारों श्रद्धालु ध्यान साधना का लाभ उठाते हैं।
मंदिर परिसर में ही बहुत बड़ा कुंड है, जिसे कोटितीर्थ नाम से पूजा जाता है साथ ही परिसर में कई दर्शनीय मंदिर है। मुख्य मंदिर भूतल पर स्थित है जिसकी ऊपरी मंजिलों पर ओंकारेश्वर और नागचंद्रेश्वर मंदिर अवस्थित है जो साल में सिर्फ नागपंचमी के दिन ही दर्शन हेतु खुलता है और इसी दिन यहां रात्रि के समय पूजा पाठ होती है।
महाकाल मंदिर वर्ष भर भक्तों की भीड़ के लिए जाना जाता है लेकिन सावन महीनें में यहां का माहौल जीवंत और उत्सव जैसा लगता है। सावन और भाद्रपद मास के एक पक्ष के सोमवार को महाराजाधिराज महाकाल भगवान की सवारी निकाली जाती है, इन दिनों नगरवासी और भक्तगण बाबा के दर्शनों से खुद को धन्य महसूस करते हैं, भाद्रपद के आखिरी सोमवार को शाही सवारी निकाली जाती है। वैकुंठ चतुर्दशी के दिन यहां भगवान विष्णु हरि और भगवान शिव हर का संगम होता है जिसे हरिहर के नाम से जानते हैं। फाल्गुन कृष्ण पंचमी या षष्ठी तिथि से महाशिवरात्रि तक इन नौ दिनों भगवान शिव का अलौकिक श्रृंगार होता है। महाशिवरात्रि भगवान शिव का अति प्रिय त्यौहार है, इस दिन यहां कई उत्सव आयोजित किए जाते हैं।
लक्ष्मी नृसिंह मंदिर, ऋद्धि सिद्धि गणेश, श्रीराम दरबार मंदिर, अंवतिका देवी, पंढरीनाथ मंदिर, वाच्छायन गणपति, अन्नपूर्णा देवी, मंगलनाथ, बृहस्पतिश्वर, स्वप्नेश्वर मंदिर, सप्तऋषि मंदिर, श्री बालविजय मस्त हनुमान, मां भद्रकाली मंदिर, नवग्रह मंदिर, शनि मंदिर, मारूतिनंदन हनुमान, श्रीराम मंदिर, साक्षी गोपाल, संकटमोचन सिद्धदास हनुमान मंदिर, वृद्धकालेश्वर महादेव, सूर्यमुखी मंदिर, लक्ष्मीप्रदाता मोढ गणेश मंदिर, अनादिकल्पेश्वर महादेव आदि प्रमुख हैं
क्षिप्रा नदी, महाभारतकालीन पांडवों के द्वारा बनवाये गए प्रमुख मंदिर, बड़े गणेश मंदिर, श्री चिंतामन गणेश मंदिर, सिद्ध वट, काल भैरव मंदिर, सांदीपनि आश्रम, इस्कॉन मंदिर, गणकालिका मंदिर, मंगलनाथ गोपाल मंदिर, नवग्रह मंदिर त्रिवेणी, चौबीस खंभा मंदिर, नगरकोट की रानी, राम जर्नादन मंदिर, वेदशाला या वेधशाला
हरसिद्धि मंदिरः राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी हैं जो चौरासी सिद्धपीठों में से एक हैं जहां माता सती की कोहनी गिरी थी, स्कंदपुराण वर्णित कथा अनुसार चण्डमुण्ड नामक दो राक्षसों के वध के लिए माता ने हरसिद्धि रूप में इनका वध किया था। इस मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व में है, दक्षिण दिशा में एक बावड़ी है जिसके ऊपर एक स्तंभ पर संवत् 1947 लिखा हुआ है, यहां अन्नपूर्णा माता का मंदिर भी है, जहां रोज दुर्गा पाठ होता है। मंदिर में दो विशाल और भव्य स्तंभ है, जो दीप जलाने के लिए बने हुए हैं इनकी दीप संख्या लगभग 726 है। मुख्य त्योहारों पर जब ये दीप एक साथ जलते हैं तो बहुत मनोरम और अलौकिक दृश्य प्रतीत होता है।
अक्सर श्रद्धालु उज्जैन से लगभग 150 किमी की दूरी पर स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शनों के लिए भी जाते हैं।
शास्त्रित मंत्र अनुसार आकाशे तारकेलिंगम्, पाताले हाटकेश्वरम्। मृत्युलोके च महाकालम्, त्रयलिंगम् नमोस्तुते।। अर्थात् सृष्टि के तीनों लोक में आकाश के स्वामी तारकलिंग हैं, पाताल के स्वामी हाटकेश्वर हैं और मृत्युलोक के स्वामी महाकाल हैं यानी इस पृथ्वी के स्वामी महाकाल भगवान ही हैं, जिन्हें समय का स्वामी भी कहा जाता है। वराह पुराण के अनुसार महाकाल के रूप में भगवान शिव ही ज्योर्तिगणना से संबंधित 12 कुंडली ग्रहों के कारकों की समस्याओं से निजात दिलाने वाले हैं, मात्र इनकी पूजा, अर्चना ध्यान से संबंधित सारी समस्याओं का निराकरण हो जाता हैं। बाबा महाकाल सदियों से भक्तों को अपनी कृपा आशीर्वाद से कृतार्थ कर रहे हैं। महाकालेश्वर बाबा का दर्शन कर लेने से मनुष्य को मृत्यु की चिंता नहीं रहती और मोक्ष प्राप्त करते हुए शिवधाम गमन करते हैं।