श्री शैलम कुरनूल आंध्र प्रदेश में स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंगम्, 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों, 18 महाशक्तिपीठों और 52 शक्तिपीठों में से प्रमुख तीर्थस्थान है। मंदिर की संरचना और बनावट प्रमुख रूप से आकर्षित करती है जहां का आध्यात्मिक खिंचाव भी मनमोहक है। दक्षिण का कैलाश कहे जाने वाले श्रीशैलम की महिमा निराली है जिसके महत्व के बारें में बात करें तो कैलाश के बाद यदि किसी का नाम आता है तो वो श्रीशैलम पर्वत ही है। श्रीशैलम् पर्वत, मल्लिकार्जुन ज्योतिस्वरूप शिवलिंग और माता भगवती का शक्तिपीठ इन तीनों का अलौकिक संगम इस स्थान को धरती का परम पावन स्थान बनाते हैं जिसकी खासियतों और तथ्यों की रोचक जानकारी आपको भी यहां दर्शनों हेतु लालयित करने में सहायक है।
द्रविड़ शैली में स्थापित यह मंदिर अति प्राचीन है जिसके मूल समय के बीच में कोई प्रमाण नहीं मिलते हैं। ऊंची मीनारें और विशाल आंगन समाहित किए यह मंदिर विजयनगर स्थापत्य कला की झलक प्रदान करता है, कहते हैं कि 7वीं शताब्दी के आसपास ही इस मंदिर का निर्माण चालुक्यों द्वारा कराया गया था जो कृष्णा नदी के दक्षिणी तट पर स्थित है। मंदिर परिसर दो हेक्टेयर में चार प्र्रवेश द्वारों के साथ निर्मित है जिसे गोपुरम नाम से जाना जाता है इनमें मल्लिकार्जुन और भ्रमराम्बा के मंदिर सबसे मुख्य हैं।
श्रीशैलम पहाड़ी का सबसे पहले जिक्र दूसरी शताब्दी ईसवी के पुलवामी के नासिक शिलालेख के अन्तर्गत मिलता है, साथ ही इसके बारें में स्कंद पुराण के अन्तर्गत भी मिलता है और 12वी तथा 16वीं शताब्दियों के ग्र्रंथों में भी इसका उल्लेख किया गया है।
इस मंदिर के प्रमुख निर्माण में विजयनगर शासकों ने योगदान दिया है, हरिहरराय ने मल्लिकार्जुन में मुखमंडप को बनवाया है और दक्षिणी भाग में गोपुरम् भी बनवाया है
श्री कृष्णदेवराय ने रथमार्ग के दोनों ओर सलुमंडप और राजगोपुरम का निर्माण करवाया।
श्रीशैलम के पास कृष्णा नदी का संकरी घाटी में बहना पत्थलनाग कहलाता है जिसके दाई ओर श्री शैल और बायीं तरफ खंडग्रह चंद्रगुप्त नगर है।
कहते हैं कि भगवान गणेश का विवाह ऋद्धि (जो बुद्धि स्वरूप हैं) और सिद्धि (जो शक्ति स्वरूप हैं ) से होने की वजह से शिवपुत्र कार्तिकेय अपने माता पिता से नाराज हो गए थे और कैलाश छोड़ कर दक्षिण दिशा में चले गए जिस वजह से भगवान शिव और माता पार्वती भेष और नाम बदलकर उनको मनाने के उद्देश्य से श्रीशैलम पर्वत पर पहुंचे, माता पार्वती ने अपना नाम मल्लिका रखा और भगवान शिव को अर्जुन नाम से पुकारा गया, इन दोनों के संयुक्त रूप को ही मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग नाम से जाना गया।
भगवान की लीला अपरम्पार है हर भेष, हर नाम में भक्तों का कल्याण ही छिपा होता है।
महर्षि शिलाद भगवान शिव के परम भक्तों में से एक थे, उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शंकर भगवान ने उन्हें दो पुत्रों का वरदान दिया। महर्षि शिलाद ने उनके नाम नंदी और पर्वत रखा। दोनों पुत्रों ने गहन विद्या अर्जन किया और भगवान शिव के बारें में गहन चिंतन किया।
भगवान शंकर को प्रसन्न और दर्शन पाने की इच्छा से पर्वत ने कठिन तपस्या की, फलस्वरूप भगवान शंकर प्रकट हुए और वर मांगने को कहा, पर्वत ने भगवान शंकर से प्रार्थना कि वे उसे कैलाश पर्वत की तरह पूजनीय पवित्र पर्वत बना दें जिस वजह से कैलाश की तरह इस पर्वत पर भी भगवान शिव का निवास हो। भगवान शिव को हैरानी हुई क्योंकि पहले कभी किसी भी भक्त ने ऐसी मनोकामना प्रकट नहीं की थी। भगवान शंकर के आशीर्वाद से ही पर्वत को श्रीशैलम पर्वत के रूप में आशीर्वाद प्राप्त हुआ और श्रीशैलम की इच्छा पर ज्योतिर्लिंग स्वरूप में ही यहां बस गए।
भगवती माता पार्वती के भ्रमराम्बा स्वरूप की भी रोचक कहानी सुनने को मिलती है। अरुणासुर एक दैत्य हुआ करता था जिसे ब्रह्मा जी से अमर होने के लिए वरदान प्राप्त किया था कि उसकी मृत्यु किसी दो या चार पैर वाले प्राणी से न हो, इस वरदान को पाने के पश्चात वह खुद को अमर समझते हुए सभी को हैरान और प्रताड़ित करने लगा। तभी सभी देवता माता पार्वती के पास गए और उनसे आग्रह किया, माता पार्वती ने सहस्त्रों भ्रमर का रूप बनाकर उस राक्षस का अंत कर दिया, इसके बाद देवताओं और मानवों ने उनसे आग्रह किया वे अपने इस स्वरूप के साथ पृथ्वी पर निवास करें, माता राजी हुईं, उन्होंने भगवान शिव से उचित स्थान के बारें में पूछा जिन्होंने श्रीशैलम पर्वत के पवित्र स्थान पर माता को बताया और माता भ्रमराम्बा देवी शक्तिपीठ श्रीशैलम पर्वत पर स्थापित हो गया।
मान्यता है कि 18 महाशक्तिपीठों में छठा और 52 शक्तिपीठों में से एक भ्रमराम्बा शक्तिपीठ में माता सती के होंठ का ऊपरी हिस्से की पूजा यहां की जाती है।
कहते हैं कि भगवान शंकर ने यहां एक शिकारी मल्लयया का रूप रखकर लीलाएं कि और वह माता पार्वती के स्वरूप चेंचू लड़की के साथ प्रेम करने लगे। जिन्होंने इसी रूप में विवाह भी किया इसलिए यहां कुछ लोग चेंचू मल्लयया के नाम से भी इस मंदिर को पुकारते हैं।
लोगों का कहना है कि भ्रमराम्बा देवी के भ्रमर स्वरूप की आवाज आज भी कई लोगों को सुनने को मिलती हैं जिसे माता के दिव्य आशीर्वाद की तरह समझा जाता है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग में कुछ शिव मंदिरों की तरह दुग्धअभिषेक करते हुए ज्योतिर्लिंग को स्पर्श करने की अनुमति है।
साक्षी गणपतिः यह मंदिर गणेश जी को समर्पित है जो मुख्य ज्योतिर्लिंग से लगभग 2 किमी दूर पूर्व में स्थित है। काले रंग के पत्थर से बारीकी से बनी इस प्रतिमा की सूंड बाईं ओर मुड़ी प्रतीत होती है, जैसे ज्योतिर्लिंग दर्शन करने वाले सभी भक्त पहले साक्षी गणपति मंदिर में अपनी उपस्थिति का प्रमाण दर्ज कराते हों। यहां अपना गोत्र नाम बताया जाता है और अपने कुल की रक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना की जाती है।
अंकलम्मा तल्लीः ग्राम देवी के रूप मे यहां इनकी पूजा की जाती है जो मुख्य मल्लिकार्जुन मंदिर के पास ही अवस्थित हैं। इन्हें बहुत ही शक्तिशाली देवी की संज्ञा दी जाती हैं।
पाताल गंगाः कृष्णा नदी पाताल गंगा के रूप में बहती है जहां लगभग 800 सीढियां उतरकर जाना पड़ता है और इसी जल से मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का जलाभिषेक किया जाता है। यहां के बारें में कहा जाता है कि महाभारत में जब भीष्म अपनी मृत्यु के करीब थे तब उन्हें जल पिलाने के उद्देश्य से अर्जुन ने बाण मारकर यहां से जल निकाला था।
हाटकेश्वरमः नल्लामलाई की पहाड़ियांं की नीचे स्थित हाटेकश्वरम् श्री शैलम् की यात्रा पर महत्तवपूर्ण मंदिर है जहां भगवान शिव का रहस्यमयी शिवलिंग स्थापित है, संरचना भले ही छोटी हो लेकिन व्यवस्थित वास्तुकला का द्योतक यह मंदिर खुले मंडप के नीचे बना हुआ है जिसमें कई स्तंभ और मुख्य एक गर्भग्रह है। इस मंदिर की किंवदंती है कि यहां एक कुम्हार भगवान शिव का परम भक्त और दानी था, उसके द्वार से याचक खाली नही लौटता था, एक बार भगवान शिव बूढे का भेष धर कर आए और भोजन मांगा पर उस वक्त कुम्हार के घर में खाने को कुछ नहीं था इसलिए कुम्हार ने भगवान शिव से प्रार्थना की उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव एक घड़े में प्रकट हुए इसीलिए इसे हाटकेश्वरम् नाम से जाना जाता है।
गुप्त मल्लिकार्जुनमः श्री शैलम से लगभग 40 किमी दूर स्थित यह मंदिर मंत्रमुग्ध कर देने वाले स्थान में स्थित है जहां एक झरना भी प्रवाहित होता है, यहां एक उभरी हुई गुफा में छोटा सा शिव मंदिर है जिसमें शिवलिंग के साथ ही खंडित की हुई गणेश जी की मूर्ति भी है। स्कंद पुराण में इस जगह के बारें मे श्रीशैल खंड मे लिखे होने के कारण इसे गुप्त मल्लिकार्जुनम नाम से जाना गया है।
पलाधार पंचधाराः श्री शैलम से लगभग 5 किमी दूरी पर स्थित यह जगह अपने प्राकृतिक नजारों के साथ बड़ी ही सुंदर प्रतीत होती है जिसके आध्यात्मिक महत्व के बारें में स्कंद पुराण में भी निहित है, इस धारा का प्रवाह भोगवती है जिसका नाम भगवान शिव के मस्तक से निकलने के कारण पड़ा है। पंचधारा शब्द भगवान शिव के पांचों रूपों का प्रतिनिधित्व करता है।
इसके अलावा श्री शैलम के पास कई मंदिर, रहस्यमय जगहें और प्राकृतिक स्थल हैं जहां आप श्री शैलम को और अच्छे से एक्सप्लोर कर सकते हैं।
निकटतम हवाई अड्डा कुरनूल है जहां से लगभग दूरी 190 किमी है और हैदराबाद हवाई अड्डे की दूरी लगभग 195 किमी है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से निकटतम रेलवे स्टेशन मरकापुर है जो यहां से लगभग 84 किमी दूर है। यहां आपको बस या टैक्सी की सुविधा आसानी से मिल जाती है।
बस या अन्य माध्यमों से भी यहां पहुंच सकते हैं जिसके लिए आपको कुरनूल या हैदराबाद पहुंचकर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आसानी से पहुंच सकते हैं।
श्री शैलम् महाशिव और श्रीचक्र है, जिनकी खोज सतयुग से भी पहले की बताई जाती है, संक्षेप में कहा जाए तो अनादिकाल से स्थापित भगवान शिव का यह पवित्र स्थान सृष्टि के आरंभ से ही इस धरा पर पाया जाता है, माता शक्ति भ्रमराम्बा देवी और मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का अनमोल संगम और मौजूदगी यहां आने वाले भक्तों का कल्याण करते हैं। इस पृथ्वी के सबसे पवित्र स्थानों में कैलाश की संज्ञा दी जाती है, जहां दर्शनों हेतु त्रेता में भगवान राम सीता लक्ष्मण, द्वापर में पांचों पांडव भी आए और कलयुग में मुख्यतः सभी दिव्य महापुरूषों द्वारा इस पर्वत पर ध्यान साधना करते हुए समय बिताया गया है। श्रीशैलम् पवित्र स्थान और यहां उपस्थित सभी दिव्य महाशक्तियों को कोटि कोटि नमन करते हैं।