भगवान शिव की महिमा अपरम्पार है, उनकी लीलाओं के बारें में कई पुराणों और ग्रंथों में पढने को मिलता है। रंक को राजा और राजा को रंक बनाने में उन्हें तनिक भी देर नहीं लगती, थोड़े से में संतुष्ट होने वाले महादेव का एक नाम इसीलिए आशुतोष भी है। कांटों और विष चढाये जाने पर प्रेमपूर्वक स्वीकार करने की शक्ति अगर किसी में है तो वो भोलेनाथ ही हैं जो लोटा भर जल में ही खुश हो जाते हैं और जो कुछ भी दुनिया द्वारा त्याज्य है, महादेव उसे भी अपनाते हैं। ऐसे ही भगवान चन्द्रमौलि शिव के ज्योतिर्लिंग नागेश्वर की संपूर्ण जानकारी हम लेकर आए हैं जो आपको इस ज्योतिर्लिंग के बारें में विस्तार से जानने का अवसर प्रदान करेगी।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारें में सुनने में आता है कि यह दारुकावन में अवस्थित है, जो प्राचीन जंगल का एक नाम है जिसका उल्लेख काम्यकवन, द्वैतवन, दंडकवन जैसे भारतीय महाकाव्यों और ग्रंथों में पढने को मिलता है। शिवपुराण इंगित करता है कि यह स्थान पश्चिमी यानी अरब सागर के तट पर है, साथ ही कोटिरूद्र्र संहिता के अध्याय 29 में एक श्लोक "पश्चिमे सागरे तस्य वनं सर्वसमृद्धिमत्। नियोजनं षोडशभिर्विस्तृतं सर्वतो दिशम्।।" भी यही कहता है। पश्चिमी सागर पर स्थित दारुकवन ही एकमात्र इशारा मिलता है जहां नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारें में बताया जाता है। यह गुजरात राज्य में सौराष्ट्र तट पर द्वारका और बेट द्वारका के निकट अवस्थित महत्वपूर्ण ज्योतिर्लिंग है। मुगलों द्वारा इसे भी हानि पहुंचाई गई जिसका जीर्णोद्धार परम शिव भक्त इंदौर की महारानी राजमाता अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया।
पुराणों की चर्चा करे तो शिवपुराण के अनुसार नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारें में यह कथा बताई गई है जो कई कथाओं में से एक सबसे ज्यादा प्रचलित है।
द्वारका और बेट द्वारका के नजदीक स्थित यह मंदिर भगवान शिव का अद्भुत मंदिर है जहां प्रांगण में ही भगवान शिव की बैठी हुई मुद्रा की विशाल प्रतिमा के दर्शन दूर से ही हो जाते हैं, जिसकी लंबाई कम से कम 25 मीटर है। अर्ध पीताम्बर पहने इस प्रतिमा के गले में सर्पों की माला और मस्तक पर चंद्रमा की झलक है, औरन उनके दाएं हाथ में विशाल त्रिशूल है और बाएं हाथ में डमरू है, यह इतनी जीवंत प्रतीत होती है कि मानो भोलेनाथ अभी ही बोल पड़ेंगे।
मंदिर परिसर का बाहरी पृष्ठ लाल रंग का प्रतिनिधित्व करने के साथ ही वास्तु के नियमों का पालन करके बनाया गया है जिसका आकार मानव के शयन करने की मुद्रा जैसा है। यहां जटिल वास्तुकला के साथ अलौकिक प्रतिमाएं दिव्य वातावरण का निर्माण करती हैं।
गर्भग्रह में भव्य प्राकृतिक शिला का बना हुआ तीन मुखी रूद्राक्ष रूप धारण किए नागेश्वर शिवलिंग अवस्थित है, जिसे धातु निर्मित भगवान शेषनाग ने अपने विशाल फन से अलंकृत कर रखा है और इसके अरघे का अलंकरण चांदी धातु से किया गया है। ज्योतिर्लिंग के सम्मुख ही माता पार्वती की पाषाण प्रतिमा और उनके पास भगवान शेषनाग की काले रंग की पाषाण प्रतिमा स्थापित है जहां आभामय वातावरण का सृजन होता है।
मान्यता है कि पांडवों के वनवास काल के समय जब वे दारुकावन में निवास कर रहे थे तब उनकी गाय रोज दूध दुहने से पहले ही अपने दूध को कहीं और ही निकाल देती थी, जब यह रोज की घटना हो गई तब भीम ने उस गाय पर दृष्टि रखी तब पाया कि वह गाय किसी तालाब में दूध दुह रही थी जिसे देखकर वह बहुत हैरान हुए और उस जगह के बारें में भगवान श्रीकृष्ण को बताया तब उन्होंने कहा कि वह नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है जो भगवान शिव का परम पवित्र स्थान है और उन्हीं के निर्देश पर इस ज्योतिर्लिंग का निर्माण कार्य संपन्न किया।
इस तरह से भगवान शिव के नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का संबंध महाभारत काल के पांडवों से भी है।
नागेश्वर मंदिर की जगह अवस्थिति के संबंध में कई विवादों का जिक्र होता है, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को कई लोग महाराष्ट्र में अवस्थित औढा नागनाथ नाम से भी पुकारते हैं, जहां दारुकावन होने के प्रमाणों को सिद्ध करते हैं और कई लोग इसके अलावा प्राचीन ग्रंथ प्रसादमंडनम के अनुसार ‘‘हिमाद्रेरुत्तरे पार्श्वे देवदारूवनं परम पावन शंकरस्थानं तत्र सर्वे शिवार्चिताः।।’’ उत्तराखंड के अल्मोड़ा में मौजूद जागेश्वर मंदिर को नागेश्वर मंदिर की संज्ञा देते हैं।
गुजरात स्थित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के आसपास कई ऐसे पर्यटन योग्य स्थल हैं जो यहां आने के बाद जरूर घूमने चाहिए-
नागेश्वर मंदिर से करीब 15 किमी दूर स्थित रूकमिणी माता मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर से करीब 2 किमी दूर है, इस मंदिर की बनावट लगभग 2500 सालों पुरानी है जो 12वीं शताब्दी के आसपास का प्रतीत होता है, सादगी भरा आकर्षण लिए यह मंदिर आध्यात्मिक शक्ति की पहचान कराता है, गर्भग्रह में माता रूक्मिणी की प्रतिमा स्थापित है और इसके चबूतरे पर मानव आकृतियां और हाथी के चित्रण देखने को मिलते हैं। इस मंदिर के बारें में एक कहानी सुनने को मिलती है, जब रूक्मिणी जी और भगवान श्रीकृष्ण ने ऋषि दुर्वासा को भोजन पर आंमत्रित किया तो ऋषि दुर्वासा ने उनसे एक शर्त रखी कि उनका रथ स्वयं श्रीकृष्ण और माता रूक्मिणी ही खींचकर ले चलें तब वो भोजन के लिए चलेंगे। वे दोनों राजी हो गए, जब श्रीकृष्ण और देवी रूकमिणी रथ खींच रहे थे तब रास्ते में माता को प्यास लगी इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने गंगा नदी प्रकट की, माता ने जल ग्रहण किया लेकिन ऋषि दुर्वासा से पूछना भूल गईं ऐसे में ऋषि दुर्वासा ने अपमान महसूस किया और माता रूक्मिणी को भगवान श्रीकृष्ण से अलग रहने का श्राप दे दिया।
इस नगरी को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बसाया गया जिसके बारें में स्कंद पुराण और महाभारत में मिलता है, यह समुद्र के बीच एक द्वीप पर स्थित है जहां नाव या मोटर बोट की मदद से पहुंचा जाता है। समुद्र के अंदर स्थित इस द्वीप पर बेट द्वारका मंदिर बहुत ही मनोरम प्रतीत होता है जहां आम जनमानस भी आसानी से निवास करते हैं, इस द्वीप को शंखोधर कहा जाता है और भारत के पश्चिमी छोर ओखा के पास स्थित है। इसे भेंट द्वारका या बेट द्वारका कहते हैं जिसे इनके मित्र सुदामा ने उपहारस्वरूप प्रदान किया था। समुद्र के माध्यम से जाना इसकी रोमांचकता को और बढा देता है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग से यह करीब 22 किमी दूरी पर स्थित है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के पास लगभग 4 किमी दूरी पर स्थित गोपी तालाब की कथा बहुत ही रोचक है, जिसके बारें में कहते हैं कि ब्रज की सभी गोपिकाओं ने भगवान श्रीकृष्ण के साथ अंतिम रासलीला इसी स्थान पर की थी और वे ब्रज से यहां द्वारका में भगवान श्रीकृष्ण से मिलने के लिए आईं थीं और दिव्य वातावरण में पूर्ण मन से ईश्वर के साथ एकाकार होने की भावना से झूम उठी थीं। जिसमें उन्होंने स्वयं को भगवान के श्रीचरणों की रज में खुद को समर्पित कर दिया था और वैंकुठ धाम को गमन कर गईं थीं। गोपी तालाब की मिट्टी की विशेषता है वह द्वारका जैसे क्षेत्र में भी पीला रंग लिए चिकनी मिट्टी है जैसे ब्रज क्षेत्र की मृदा होती है।
अरब सागर मे पाए जाने वाला यह शिव मंदिर लगभग 5000 साल पुराना है जो स्वयंभू शिवलिंग है और मानसूनी महीनें में यह मंदिर समुद्र में डूब जाता है जिसे भक्तगण प्रकृति की महादेव के प्रति समर्पण का प्रतीक मानते हैं। यह 1300 से अधिक शिवलिंगों और लगभग 1200 शालिग्रामों का निवास स्थान है जिसमें मंदिर के शीर्ष तक जाने के लिए भी सीढियां है जो अधिक समुद्री बहाव में डूब जाती हैं। यह अद्भुत और अलौकिक दृश्य इसकी महानता को भली भांति उजागर करता है।
भगवान श्रीकृष्ण का लोक पावन मंदिर द्वारकाधीश भव्य नक्काशी और मूर्तिकला का परिचायक है जिसके एक द्वार से दिखने वाली गोमती नदी का नजारा बहुत ही आकर्षक प्रतीत होता है, इस मंदिर की नागेश्वर से दूरी करीब 22किमी है।
बेट द्वारका और समुद्र की दूरी को मापता यह पुल बहुत ही आकर्षक और लुभावना प्रतीत होता हैं, पहले बेट द्वारका जाने के लिए मोटरबोट या स्टीमर की मदद लेनी पड़ती थी जिसमें मौसम संबंधी चेतावनी होने पर बेट द्वारका जाना संभव नहीं हो पाता था इसी असुविधा को आसान और खुशनुमा बनाने का काम किया है सुदर्शन सेतु ने, जिसके माध्यम से किसी भी परिस्थिति में बेट द्वारका के दर्शन आसानी से किये जा सकते हैं, समुद्र पर बना पुल देखने में बहुत सुंदर है।
निकटतम पोरबंदर हवाई अड्डा लगभग 108 किमी दूर है, इसके अलावा जामनगर एयरपोर्ट करीब 125 किमी दूरी पर है, जहां से आप द्वारका पहुंचकर नागेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन कर सकते हैं।
निकटतम रेलवे स्टेशन द्वारका है जो रेलवे स्टेशन से करीब 20 किमी दूर है।
नागेश्वर मंदिर द्वारका से लगभग 18 किमी दूर है जो राष्ट्रीय राजमार्ग 947 के माध्यम से जुड़ी हुई है। यहां आप गुजरात राज्य के प्रमुख शहरों से या देश के अन्य प्रमुख शहरों से टैक्सी, कैब या बस के माध्यम से पहुंच सकते हैं।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग देवभूमि द्वारका की पावन धरा पर भगवान शिव की उपस्थिति को साकार करती ईश्वर की दिव्य संरचना है जो महादेव और भगवान विष्णु के बीच आपसी आत्मीयता और देवभूमि शब्द को आकार देने का काम करती हैं। समुद्र किनारे बसी द्वारका की खूबसूरती, भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की भव्यता से सही मायनों में खुद को अलंकृत रूप प्रदान करती हैं जहां द्वापर युगीन ऐसे कई आकर्षण हैं जो वास्तव में आश्चर्यचकित कर देने वाले और दर्शनीय हैं।