भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से चौथा ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर की महिमा को शब्दों मे कर पाना आसान नहीं है। नर्मदा नदी के किनारे अवस्थित यह मंदिर मध्य प्रदेश की पावन धरती पर है जो प्रमुख शहरों उज्जैन और इंदौर से बहुत ज्यादा दूर नहीं है। कहते हैं कि तीनों लोकों में घूमने के बाद भगवान शिव यहीं पर आराम करते हैं जिस वजह से भगवान शिव के विश्राम, पूजा, अनुष्ठान और शयन दर्शन की तैयारी विशेष रूप से की जाती है।
सृष्टि की पहली ध्वनि ओंकार जिसका उच्चारण विधाता के मुख से पहली बार हुआ, जिसके बिना वेदों का वाचन नहीं हो सकता, इसीलिए ओंकारेश्वर तीर्थस्थल जिस द्वीप पर स्थित है वह भी ओम के आकार का है, यहां लगभग 68 तीर्थ हैं, कहते हैं यहां 33 करोड़ हिंदू देवी देवता अपने परिवार सहित निवास करते हैं। ओंकारेश्वर और ममलेश्वर नाम से यह ज्योतिर्लिंग जाना जाता है।
अतीत में ओंकारेश्वर को मान्धाता के नाम से जाना जाता रहा है, जहां राजा मान्धाता ने कड़ी तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और शिवजी के कहने पर उनसे यह वरदान मांग लिया कि उनका इसी जगह हमेशा के लिए यहीं निवास हो जाए। तब से यह नगरी ओंकार मान्धाता के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
भगवान शिव के परम भक्त अम्बरीष और मुचुकुन्द के पिता राजा मान्धाता ने इस स्थान पर तपस्या की थी जिससे इस पर्वत को मान्धाता पर्वत के नाम से जाना जाता है।
इस मंदिर में शिव भक्त और धन के देवता कुबेर ने भी भगवान शिव की आराधना की थी, तब उन्हें भगवान शिव से यह धन के देवता की उपाधि मिली थी, कुबेर के स्नान हेतु भगवान शिव ने अपनी जटा से कावेरी नदी भी उत्पन्न की थी, जो कुबेर मंदिर के बगल से बहकर नर्मदा जी में मिलती हैं, कावेरी नदी ओंकार पर्वत का चक्कर लगाते हुए संगम पर वापस नर्मदा जी में मिल जाती हैं, इसे ही नर्मदा कावेरी का संगम कहते हैं।
इंदौर की महारानी देवी अहिल्याबाई होल्कर ने यहां मिट्टी के 18 हजार शिवलिंग अपने हाथों से बनाकर नर्मदा नदी में विसर्जित किया था।
मंदिर के अहाते में पंचमुखी गणेश प्रतिमा स्थापित है, प्र्रथम मंजिल पर ओंकारेश्वर लिंग विराजमान है, जो स्वयं भू है। शिवलिंग मंदिर के ठीक शिखर के नीचे न होकर एक ओर स्थापित है, जिसके चारों ओर जल भरा रहता है, मंदिर का द्वार छोटा है मानो जैसे किसी गुफा में प्रवेश कर रहे हों, पास में ही पार्वती जी की प्रतिमा स्थापित है, मंदिर के दूसरे तल पर सीढियां चढकर जाने से महाकालेश्वर शिवलिंग के दर्शन होते हैं, जो शिखर के नीचे है। तीसरे तल पर सिद्धनाथ लिंग, चौथी मंजिल पर गुप्तेश्वर लिंग और पांचवीं मंजिल पर ध्वजेश्वर लिंग है।
प्रथम और दूसरे तल पर नंदी की मूर्ति है, तृतीय तल के प्रांगण में नंदी की मूर्ति नहीं है, जो केवल खुली छत के रूप में है। प्रथम मंजिल पर अवस्थित नंदी की मूर्ति के ठोड़ी के नीचे एक स्तम्भ दिखाई देता है, जो स्तंभ नंदी मूर्तियों में कम ही मिलता है।
ओंकारेश्वर मंदिर के पास कई प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनके दर्शन आप परिक्रमा करते हुए कर सकते हैं जैसे गौरीसोमनाथ मंदिर, अविमुक्तेश्वर, ज्वालेश्वर और केदारेश्वर मंदिरों के साथ अनगिनत मंदिरों की छटा निहार सकते हैं।
ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा भी अतुलनीय है, यह देवी अहिल्याबाई द्वारा बनवाया गया मंदिर है, जो बहुत बड़ी शिव भक्त थीं। यात्री अपनी इच्छानुसार ममलेश्वर दर्शन पहले कर सकते हैं लेकिन नियमानुसार पहले ओंकारेश्वर दर्शन करना फिर लौटते समय नर्मदा नदी पार कर ममलेश्वर दर्शन करना चाहिए।
भगवान शिव का ऐसा स्वरूप जो स्वयं ओम आकार के द्वीप पर ही बसा हुआ है, जहां नर्मदा नदी के पावन तट के साथ मंदिरों की विस्तृत श्रृंखला है। जहां भक्त भगवान शिव के कई मंदिरो के दर्शन कर सकते हैं। प्राकृतिक शिवलिंग के रूप में यह प्राचीन काल से भगवान शिव और माता पार्वती का प्रतीक स्वरूप है, सावन में मां नर्मदा के तट पर स्नान कर जलाभिषेक करने का पुण्य अति फलदायी है। पवित्र भूमि की परिचायक यह धरती भक्तों का कल्याण करने और शिवभक्ति से ओतप्रोत वातावरण के लिए जानी जाती है।