• Jul 29, 2025

भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से चौथा ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर की महिमा को शब्दों मे कर पाना आसान नहीं है। नर्मदा नदी के किनारे अवस्थित यह मंदिर मध्य प्रदेश की पावन धरती पर है जो प्रमुख शहरों उज्जैन और इंदौर से बहुत ज्यादा दूर नहीं है। कहते हैं कि तीनों लोकों में घूमने के बाद भगवान शिव यहीं पर आराम करते हैं जिस वजह से भगवान शिव के विश्राम, पूजा, अनुष्ठान और शयन दर्शन की तैयारी विशेष रूप से की जाती है।

ओंकारेश्वर मंदिर का कथा इतिहास

सृष्टि की पहली ध्वनि ओंकार जिसका उच्चारण विधाता के मुख से पहली बार हुआ, जिसके बिना वेदों का वाचन नहीं हो सकता, इसीलिए ओंकारेश्वर तीर्थस्थल जिस द्वीप पर स्थित है वह भी ओम के आकार का है, यहां लगभग 68 तीर्थ हैं, कहते हैं यहां 33 करोड़ हिंदू देवी देवता अपने परिवार सहित निवास करते हैं। ओंकारेश्वर और ममलेश्वर नाम से यह ज्योतिर्लिंग जाना जाता है।

अतीत में ओंकारेश्वर को मान्धाता के नाम से जाना जाता रहा है, जहां राजा मान्धाता ने कड़ी तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और शिवजी के कहने पर उनसे यह वरदान मांग लिया कि उनका इसी जगह हमेशा के लिए यहीं निवास हो जाए। तब से यह नगरी ओंकार मान्धाता के नाम से प्रसिद्ध हो गई।

भगवान शिव के परम भक्त अम्बरीष और मुचुकुन्द के पिता राजा मान्धाता ने इस स्थान पर तपस्या की थी जिससे इस पर्वत को मान्धाता पर्वत के नाम से जाना जाता है।

इस मंदिर में शिव भक्त और धन के देवता कुबेर ने भी भगवान शिव की आराधना की थी, तब उन्हें भगवान शिव से यह धन के देवता की उपाधि मिली थी, कुबेर के स्नान हेतु भगवान शिव ने अपनी जटा से कावेरी नदी भी उत्पन्न की थी, जो कुबेर मंदिर के बगल से बहकर नर्मदा जी में मिलती हैं, कावेरी नदी ओंकार पर्वत का चक्कर लगाते हुए संगम पर वापस नर्मदा जी में मिल जाती हैं, इसे ही नर्मदा कावेरी का संगम कहते हैं।

इंदौर की महारानी देवी अहिल्याबाई होल्कर ने यहां मिट्टी के 18 हजार शिवलिंग अपने हाथों से बनाकर नर्मदा नदी में विसर्जित किया था।

ओंकारेश्वर मंदिर स्थापना

मंदिर के अहाते में पंचमुखी गणेश प्रतिमा स्थापित है, प्र्रथम मंजिल पर ओंकारेश्वर लिंग विराजमान है, जो स्वयं भू है। शिवलिंग मंदिर के ठीक शिखर के नीचे न होकर एक ओर स्थापित है, जिसके चारों ओर जल भरा रहता है, मंदिर का द्वार छोटा है मानो जैसे किसी गुफा में प्रवेश कर रहे हों, पास में ही पार्वती जी की प्रतिमा स्थापित है, मंदिर के दूसरे तल पर सीढियां चढकर जाने से महाकालेश्वर शिवलिंग के दर्शन होते हैं, जो शिखर के नीचे है। तीसरे तल पर सिद्धनाथ लिंग, चौथी मंजिल पर गुप्तेश्वर लिंग और पांचवीं मंजिल पर ध्वजेश्वर लिंग है।

प्रथम और दूसरे तल पर नंदी की मूर्ति है, तृतीय तल के प्रांगण में नंदी की मूर्ति नहीं है, जो केवल खुली छत के रूप में है। प्रथम मंजिल पर अवस्थित नंदी की मूर्ति के ठोड़ी के नीचे एक स्तम्भ दिखाई देता है, जो स्तंभ नंदी मूर्तियों में कम ही मिलता है।

ओंकारेश्वर मंदिर के पास कई प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनके दर्शन आप परिक्रमा करते हुए कर सकते हैं जैसे गौरीसोमनाथ मंदिर, अविमुक्तेश्वर, ज्वालेश्वर और केदारेश्वर मंदिरों के साथ अनगिनत मंदिरों की छटा निहार सकते हैं।

ओंकारेश्वर मंदिर के करीब ममलेश्वर

ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा भी अतुलनीय है, यह देवी अहिल्याबाई द्वारा बनवाया गया मंदिर है, जो बहुत बड़ी शिव भक्त थीं। यात्री अपनी इच्छानुसार ममलेश्वर दर्शन पहले कर सकते हैं लेकिन नियमानुसार पहले ओंकारेश्वर दर्शन करना फिर लौटते समय नर्मदा नदी पार कर ममलेश्वर दर्शन करना चाहिए।

ओंकारेश्वर मंदिर से संबंधित मान्यताएं

  • शास्त्रों की मान्यता अनुसार आप किसी भी तीर्थ कर हो आएं लेकिन जब तक वह ओंकारेश्वर आकर किए गए तीर्थों का जल लाकर यहां नहीं चढाता उसके सारे तीर्थ अधूरे माने जाते हैं।
  • ओंकारेश्वर तीर्थ के साथ नर्मदा जी का भी विशेष महत्व है, कहते हैं कि जमुना जी में 15 दिन के स्नान, गंगा जी नदी में 7 दिन के स्नान से जो फल प्राप्त होता है, वही पुण्यप्रसाद मां नर्मदा के दर्शनमात्र से प्राप्त हो जाता है।
  • ओंकारेश्वर मंदिर के पास कुबेर भंडारी मंदिर में हर साल धनतेरस की विशेष पूजा का आयोजन होता है, जहां दीवाली की रात को ज्वार चढाने का विशेष महत्व है साथ ही जागरण और सुबह ब्रहममूहर्त तक पूजा होती है, इसके बाद कुबेर महालक्ष्मी का महायज्ञ, हवन आदि कार्य संपन्न कराया जाता है, यहां प्रसाद स्वरूप लक्ष्मी वृद्धि पैकेट सिद्धि वितरण होता है, मान्यता है जिसे घर पर रखने से प्रचुर धन संपदा आती हैं।
  • रात्रि में रोजाना यहां माता पार्वती और भगवान शिव विश्राम करते हैं, मात्र आराम ही नहीं बल्कि चौसर भी खेलते हैं, यहां इनके मनोरंजन के लिए चौसर बिछाना, पासे रखना और सोने के लिए सेज तैयार करी जाती है। श्रावण मास और शिवरात्रि के दौरान भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है।

ओंकारेश्वर मंदिर आरती समय सारिणी

  • मंगल आरतीः सुबह 5 बजे
  • संध्या आरतीः शाम 6 बजे
  • मां नर्मदा नदी आरतीः शाम 6 बजे के आसपास
  • शयन आरतीः रात 9 बजे
  • ओंकारेश्वर भगवान के दर्शन आप सुबह 5 बजे से रात 9ः30 बजे तक कर सकते हैं।

ओंकारेश्वर मंदिर लाइव दर्शनः

  • अगर आप भी ओंकारेश्वर मंदिर फिजिकली नहीं जा पा रहे हैं तो प्री बुकिंग के माध्यम से आप ओंकारेश्वर मंदिर की सीधी आरती का आनंद ले सकते हैं, जिसका प्रसाद आपके रजिस्टर्ड पते पर भेज दिया जाता है।
  • आप चाहें तो मंदिर में विभिन्न कैटेगरी में श्रृंगार, दान और पूजा हेतु राशि भेजकर उक्त कार्य संपन्न करवा सकते हैं।
  • ओंकारेंश्वर मंदिर की वेबसाइट shriomkareshwar.org के नाम से हैं।

कैसे पहुंचे ओंकारेश्वरः

  • हवाई मार्गः निकटतम हवाई अड्डा देवी अहिल्याबाई होल्कर एयरपोर्ट है जो लगभग 77 किमी है।
  • रेल मार्गः निकटतम रेलवे स्टेशन ओंकारेश्वर रोड है जो मंदिर से लगभग 15 किमी दूरी पर है।
  • सड़क मार्गः देश के सभी प्रमुख शहरों से बेहतर सड़क माध्यम से कनेक्टड है जैसे इंदौर, उज्जैन या खंडवा से आप निजी या सार्वजनिक वाहन की मदद से आसानी से पहुंच सकते हैं।

निष्कर्षः

भगवान शिव का ऐसा स्वरूप जो स्वयं ओम आकार के द्वीप पर ही बसा हुआ है, जहां नर्मदा नदी के पावन तट के साथ मंदिरों की विस्तृत श्रृंखला है। जहां भक्त भगवान शिव के कई मंदिरो के दर्शन कर सकते हैं। प्राकृतिक शिवलिंग के रूप में यह प्राचीन काल से भगवान शिव और माता पार्वती का प्रतीक स्वरूप है, सावन में मां नर्मदा के तट पर स्नान कर जलाभिषेक करने का पुण्य अति फलदायी है। पवित्र भूमि की परिचायक यह धरती भक्तों का कल्याण करने और शिवभक्ति से ओतप्रोत वातावरण के लिए जानी जाती है।

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