• Jul 22, 2025

पारंपरिक लोककलाओं और लोकसंस्कृति का खूबसूरती से परिचय देता बिहार धार्मिक दृष्टि से समृद्धशाली राज्य है जहां आध्यात्मिकता की पराकाष्ठा को दर्शाते विभिन्न धर्मों के कई पौराणिक स्थानों की उपस्थिति है, आदि काल से लेकर महाभारत काल और रामायण काल की वास्तविक झलक दिखाते हैं। अद्भुत वास्तुकला के साथ विशेष परिवेश में बने यह मंदिर अपनी खूबियों और चमत्कारों से भक्तों के मध्य बहुत लोकप्रिय हैं, जानें बिहार के ऐसे ही प्रतिष्ठित मंदिरों के बारें में विस्तार से।

1. मुण्डेश्वरी देवी मंदिर, कैमूरः

संपूर्ण भारतवर्ष में यदि मंदिरों की गिनती की जाए तो सबसे पहले नंबर पर आने वाला मंदिर मुंडेश्वरी देवी ही है, यह भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है जिसकी ऊंचाई लगभग 600 फीट तक है और इस मंदिर में मां वाराही रूप में भगवान शिव के पंचमुखी शिवलिंग के साथ स्थापित है, इसकी विशेषता है कि सूर्य की अवस्थिति के अनुसार पंचमुखी शिवलिंग के पत्थर रंग बदलते रहते हैं। मान्यता अनुसार यहां सात्विक पशु बलि के रूप में बकरा अर्पित किया जाता है लेकिन उसको मारा नहीं जाता है, ऐसी पद्धति कहीं और देखने को नहीं मिलती है।

  • समयः सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे
  • स्थानः मुण्डेश्वरी धाम रोड, भाबुआ, कैमूर, बिहार

2. विराट रामायण मंदिर, चकियाः

कंबोडिया के अंकोरवाट हिंदू मंदिर से भी दोगुनी ऊंचाई का मंदिर जिसमें एकसाथ लगभग 20,000 लोग बैठ सकते हैं कई करोड़ रूपयों की लागत से बनवाया जा रहा है, पूर्वी चंपारण जिले के पास कैथवालिया और बहुआरा नामक आसपास के गांवों में संयुक्त रूप से बनाया जा रहा है, इसका वृहद निर्माण साल 2015 में शुरू हुआ था, जो साल 2026 में दर्शन करने हेतु पूर्ण रूप से तैयार हो जाएगा। इस मंदिर में कंबोडिया के अंकोरवाट, रामेश्वरम, मदुरै के सुदंरेश्वर मंदिरों का सम्मिश्रण देखने को मिलेगा जिसमें कुल 18 मंदिरों का संयोजन होगा साथ ही विशेष रूप से इसमें प्रभु श्री राम और माता सीता की अलौकिक छवियों के दर्शन होंगे।

  • समयः अपेक्षित
  • स्थानः चकिया केसरिया रोड, बहुआरा हरबंस, बिहार

3. महाबोधि मंदिर, बोधगयाः

बौद्ध धर्म के प्रतिष्ठित तीर्थस्थल बोधगया में पुननिर्माण में स्थित महाबोधि मंदिर यूनेस्को विश्व धरोहर में शामिल विशेष मंदिर है, जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी स्थान को इंगित करता है। यहीं पर बोधि वृक्ष है जिसे प्राचीन बोधि वृक्ष का वंशज माना जाता है, जिसके नीचे बैठकर सिद्धार्थ ‘बुद्ध’ कहलाये थे। दुनिया भर के बौद्ध अनुयायियों के लिए एक सबसे पावन और स्मरणीय तीर्थ स्थल है। बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति होने के बाद लगभग 200 साल बाद मंदिर का पहला निर्माण सम्राट अशोक द्वारा संपन्न कराया गया था, जो आज विलुप्त है हालांकि तब स्थापित पूजनीय हीरक सिंहासन के दर्शन बोधि वृक्ष के नीचे आज भी होते हैं। अद्भुत वास्तुकला के कई नमूने संग्रहालयों में देखने को मिलते हैं। वर्तमान स्वरूप में अद्भुत कलाकृतियों का अंकन भगवान बुद्ध के संपूर्ण जीवन चरित को प्रदर्शित करता है।

  • समयः सुबह 5 बजे से रात 9 बजे
  • स्थानः बोधगया मंदिर, पोस्ट ऑफिस-2, बोधगया, गया, बिहार

4. तख्त श्री हरमिंदर साहबजी, पटनाः

सिखों के पांच तख्तों में से एक यह तख्त सिखों के दसवें और अंतिम गुरु गोविंद सिंह को समर्पित है, जो इनका जन्म स्थान भी है, पटना शहर को गुरू नानक और गुरू तेग बहादुर के आने से भी बहुत प्रसिद्ध माना जाता है। इस तख्त को महाराजा रणजीत सिंह ने गुरू गोविंद सिंह के जन्म स्थान को चिन्हित कर बनवाया था, जिसे प्राकृतिक आपदा के कारण विनाश का सामना करना पड़ा जिसका पुननिर्माण साल 1955 के आसपास दोबारा किया गया है। गुरू गोविंद साहब ने अपने जीवन के शुरूआती सालों को यहां बिताया है इसके बाद वे आनंदपुरी साहब चले गए थे।

  • समयः प्रातः 3 बजे से रात 8 बजे
  • स्थानः तख्त श्री हरमिंदर जी पटना साहिब, पटना, बिहार

5. श्री बड़ी पाटन देवी मंदिर, पटनाः

पटना की अधिष्ठात्री देवी के नाम से प्रतिष्ठित यह मंदिर माता सती के 52 शक्तिपीठों में से एक है जहां उनकी दाईं जंघा गिरी थी, इसलिए इन्हें पाटन देवी या पाटनेश्वरी नाम से जाना जाता है। वैसे देवियों के दिन में सोमवार और शुक्रवार की ज्यादा मान्यता होती है लेकिन इस मंदिर में मंगलवार का दिन विशेष माना जाता है इस दिन श्रद्धालुओं की गजब भीड़ देखने को मिलती है। भक्तगण यहां मनोकामना मांगते हैं जिसे पूरा होने पर भेंट स्वरूप में साड़ियों और अन्य तोहफों को चढाते हैं। विशाल मेले के आयोजन में आश्विन नवरात्रों के अंतिम तीन दिनों में वृहद भीड़ होती है जहां लगभग प्रतिदिन हजारों लोग प्रसाद चढाते हैं।

  • समयः सुबह 6 बजे से दोपहर 1 बजे व शाम 4 बजे से रात 9 बजे
  • स्थानः बड़ी पाटन देवी, सादिकपुर, पटना, बिहार

6. सीता कुण्ड, सीतामढीः

पुनौरा धाम जानकी कुंड नाम से प्रचलित यह स्थान परम पावन और हिंदू धर्म की आस्था का केंद्र है, कहते हैं कि माता सीता का जन्म इसी स्थान पर हुआ था जो पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऋषि पुंडरीक का आश्रम हुआ करता था। राजा जनक और उनकी पत्नी द्वारा प्रजा की भलाई के लिए वर्षा कराने हेतु इसी स्थान पर हल चलाने की प्रथा को संपन्न किया जा रहा था, तभी हल की टक्कर एक मिट्टी के घड़े से होती है जिसमें से माता सीता शिशु के रूप में थीं, इसी स्थान पर आज पुनौरा कुंड है जहां भक्त गण श्रद्धा और आस्था की डुबकी लगाकर माता सीता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

  • समयः 24 घंटे खुला रहता है।
  • स्थानः पुनौरा धाम पथ, पुनौरा पश्चिम, सीतामढी, बिहार

7. श्री महावीर मंदिर, पटनाः

भक्त शिरोमणि श्री हनुमान को समर्पित यह मंदिर उत्तर भारत के सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक है जो प्राचीन भी है। लगभग दस हजार वर्गफुट क्षेत्रफल में बने इस मंदिर से कोई भक्त खाली नहीं लौटता है और यहां किसी के भी साथ कोई भेदभाव की भावना नहीं अपनाई जाती है, विशेष बात है कि पुजारी वर्ग में किसी भी जाति का व्यक्ति शामिल हो सकता है। यहां चढने वाले चढोत्तरी और दान से कैंसर मरीजों का इलाज संपन्न किया जाता है, इस मंदिर में श्रीराम लक्ष्मण सीता जी के भव्य दर्शन होते है। मंदिर की श्रवण कुमार अवार्ड देने की विशेष पहल सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है, जिसमें माता पिता की सेवा करने वाले को पुरूस्कार स्वरूप पहली, दूसरी और तीसरी रैकिंग के साथ दस अन्य नकद पुरूस्कार प्रदान किये जाते हैं।

  • समयः प्रातः 5 बजे से रात 9 बजे
  • स्थानः बुद्ध विहार, अहारा, गोलमबर, पटना, बिहार

8. मां शीतला मंदिर, पटनाः

माता शीतला मंदिर, दुर्गा शक्तिपीठ से पूजा जाने वाला भव्य मंदिर है जहां चैत्र यानी अप्रैल महीने में होने वाली शीतला अष्टमी को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है और मान्यता है कि यहां माता को सच्चे मन से ध्याने पर असाध्य रोग भी छूमंतर हो जाते हैं। इस मंदिर में माता शीतला के सात मातृ रूपों के पिंड के साथ उनकी मनमोहक प्रतिमा स्थापित है जो अति प्राचीन काल से यहां स्थापित है। यहां मौर्यकाल से जुड़ी प्रतिमाओ के कुछ नमूने आज भी देखने को मिलती है, इसका साक्ष्य है मौर्य काल से जु़ड़ी यक्ष की मूर्ति।

  • समयः सुबह 6 बजे से रात 8 बजे
  • स्थानः देवघर, टावर चौक, पटना, बिहार

9. विष्णुपाद मंदिर, गयाः

फल्गु नदी के किनारे यह मदिर भगवान विष्णु का प्रतीक है जहां यह न केवल ऐतिहासिक या आध्यात्मिक रूप से प्रसिद्ध है बल्कि यह अपनी विशेष स्थापत्य कला के लिए भी भक्तो के मध्य प्रसिद्ध है। यह मौजूद शिला पर भगवान विष्णु के चरण चिन्हों की छवि के दर्शन करने को मिलते हैं जहां भगवान ने गयासुर राक्षस को मारने के बाद भक्तो के कल्याण हेतु अपने चरणों की छवि को प्रतिस्थापित किया था। सबसे ज्यादा भीड़ यहां पितृपक्ष के दौरान श्राद्धकर्म और पिंडदान करने वाले भक्तों की होती है। मंदिर की बनावट बेसाल्ट पत्थरों और बारीक नक्काशी से सजी है।

  • समयः प्रातः 6 बजे से शाम 8 बजे
  • स्थानः लखनपुरा, गया, बिहार

10. मां चंडिका देवी, मुंगेरः

मां के 52 शक्तिपीठों में से एक यह मंदिर सिद्धपीठ होने की वजह से बहुत महत्वपूर्ण है एवं इसकी समानता असम स्थित मां कामाख्या के शक्तिपीठ से की जाती है। पौराणिक मान्यताओं की बात करें तो यहां माता सती की बायीं आंख यहीं गिरी थी, तब से यहां माता चंडी की पूजा की जाती है और चंडिका स्थान के रूप में प्रसिद्ध यह स्थान नेत्र संबंधित रोगों के निदान के लिए विश्व भर में प्रतिष्ठित है। यहां भक्त मनौती मानकर माता से विनती आराधना करते हैं, जिस पर माता की कृपा से भक्तों को नेत्र समस्या में राहत मिलती है। एक और कहानी सुनने में आती है कि यहां राजा कर्ण रोज मां की आराधना करते थे और प्रतिदिन मंदिर में मौजूद खौलते घी में कूद जाते थे। पर मां की कृपा से राजा कर्ण को जीवनदान मिल जाता था साथ ही इस मंदिर से जुड़े कई रहस्य और चमत्कार भी हैं।

  • समयः सुबह 9 बजे से दोपहर 1ः30 और शाम 5ः30 बजे से रात 8ः30 बजे
  • स्थानः बिराटपुर, बासुदेवपुर, मुंगेर, बिहार

निष्कर्षः

बिहार के प्रसिद्ध मंदिरों में सबसे बड़ी विशेषता उनका ऐतिहासिक महत्व और उनकी सहज बनावट है। प्राचीन और पौराणिक कहानियों का सफल चित्रण अगर कहीं देखने को मिलता है तो वो बिहार है जहां आज भी इन मंदिरों की प्रांसगिकता बरकरार है और उनकी मान्यताएं पूरी तरह भक्तों द्वारा अपनाकर जीव कल्याण और मानव जीवन की उपलब्धि को साकार किया जाता है।

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