सावन माह भगवान शिव का अति प्रिय महीना कहा जाता है, जो भगवान शिव की पूजा, अर्चना, ध्यान उपासना का समय है। वर्षा ऋतु का आगाज़ से चारों ओर फैली हरियाली के मनमोहक नज़ारों के बीच कभी रिमझिम, कभी तेज़ गिरती बारिश की बूंदे जिसमें मौसम का अलग ही रंग देखने को मिलता है, जब प्रकृति का हर कण अपनी सुंदरता बिखेरता हुआ आकर्षक प्रतीत होता है। ऐसे में बोल बम के जयकारों से गुंजाएमान शिवालयों में भक्ति की गंगा प्रवाहित होती है जिसका तेज़ और दिव्यता मन को आध्यात्मिकता के रंग में सराबोर कर देती है, सावन में ही धार्मिक कांवड़ यात्रा की शुरूआत भी होती है, कांवड़ में गंगाजल भरकर भगवान शिव का अभिषेक करना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है, कौन से शिव मंदिर हैं जहां सावन में आपको दर्शन हेतु अवश्य जाना चाहिए, आपको ऐसे प्रसिद्ध 10 शिव मंदिरों की महिमा और अन्य जानकारियों से रूबरू कराते हैं जो इस सावन आपको शिवमय बनाने के साथ आपकी धार्मिक यात्रा को सफल बनाएंगे।
भगवान शिव के स्वयंभू इस ज्योतिर्लिंग में वर्ष भर भक्तों का तांता लगा रहता है, जहां महाकाल बाबा के नाम से प्रसिद्ध भगवान शिव उज्जैन नगरी के महाराजा कहे जाते हैं जो इस नगरी की रक्षा करते हुए यहां आने वाले सभी भक्तों के दुख दर्द दूर कर देते हैं। महाकवि कालिदास ने भी अपने ग्रंथों में इस मंदिर की महिमा का बखान किया है, भगवान शिव का यहां दक्षिणाभिमुखी प्रतिष्ठित शिवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंग में एकमात्र ही ऐसा है। मंदिर के ऊपरी भाग में ओंकारेश्वर शिव मंदिर है और भूतल में नागचंद्रेश्वर मंदिर अवस्थित है जो साल में सिर्फ नागपंचमी के दिन ही खुलता है, जहां विशाल मेले के आयोजन के साथ विशेष रात्रि पूजा होती है।
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उत्तराखंड के चार धामों में से एक केदारनाथ भगवान शिव के भक्तों का प्रिय धाम है जो मात्र कुछ महीनों के लिए ही खुलता है और वर्ष भर तेज ठंड की वजह से कपाट बंद रहते हैं, समुद्र तल से लगभग 3585 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह तीर्थस्थल मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है जो भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है। इस मंदिर के निर्माण के स्पष्ट प्रमाण कहीं नहीं मिलते हैं जिसके बारें में कई किंवदंतियों का प्रचलन है जैसे कहते हैं कि महाभारत कालीन पांडवों द्वारा इस मंदिर की स्थापना की गई है या और भी पौराणिक मान्यताओं को तरजीह दी जाती है। लगभग 80 फीट ऊंचे इस विशाल मंदिर की वास्तुकला का आकर्षक प्रदर्शन मंदिर की दिव्यता और भव्यता को और बढाता है। यहां भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग एक बड़ी शिला के रूप में प्रतिष्ठित है जो स्वयंभू है, गर्भग्रह के बाहर ही देवी पार्वती की प्रतिमा ओर सभा मंडप में पांचो पांडव, श्री कृष्ण और पांडवों की माता देवी कुंती की प्रतिमाएं हैं। मुख्य द्वार पर श्रीगणेश जी व वाहन नंदी जी की प्रस्तर मूर्तियां हैं। यहां से थोड़ी ही दूरी पर शंकराचार्य समाधि है और मंदिर की रक्षा हेतु भगवान भैरव जी का मंदिर प्रतिष्ठित है।
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भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग में सबसे पहले नाम पर लिया जाने वाला यह ज्योतिर्लिंग एश्वर प्रत्यय से युक्त नहीं है, यहां सबसे पहली पूजा चंद्रदेव के द्वारा की गई थी, चंद्रदेव का एक नाम सोम भी है इसलिए इस मंदिर को सोमनाथ के नाम से जाना जाता है। भारत के इस प्रतिष्ठित समृद्ध मंदिर को कई बार मुस्लिम आक्रमणकारियों का सामना करना पड़ा, जिसमें इसे नुकसान पहुंचाने के साथ ही इसे कई बार लूटा भी गया। यह तीर्थस्थल मारू गुर्जर शैली की भव्यता लिए बहुत आकर्षक प्रतीत होता है। अरब सागर के किनारे इस मंदिर की अद्भुत छटा और वातावरण बहुत आकर्षक प्रतीत होता है। सोमनाथ मंदिर का पुर्ननिर्माण भारत के उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा संपन्न कराया गया था। गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित यह तीर्थस्थल भगवान शिव का प्रमुख अलौकिक केंद्र है जहा विशाल ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर भक्त खुद को निहाल करते हैं।
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हर हर महादेव शंभू काशी विश्वनाथ गंगे, हर शिवप्रेमी के भीतर बसी यह ध्वनि कभी न कभी तो यहां जाने की ललक जगाती ही है। सावन माह में इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, गर्भग्रह से बाबा विश्वनाथ और उनकी आरतियों के दुर्लभ दर्शन केंद्र 3डी वीआर तकनीक द्वारा कर सकते हैं जैसे आप स्वयं वहां उपस्थित होकर आनंद ले रहे हों, प्राचीन शिव मंदिर सबसे पुराने शिव मंदिरों मे गिना जाता है, इस मंदिर की उपस्थिति से काशी नगरी बाबा भोलेनाथ की नगरी के नाम से जानी जाती है। काशी स्थित इस मंदिर को भी बहुत दुर्भावनाआेंं का शिकार बनना पड़ा, जिसका पुर्ननिर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा कराया गया था। बनारस अपने घाटों, गंगा नदी और बाबा विश्वनाथ के कारण मोक्ष की नगरी के रूप में भी प्र्रसिद्ध है।
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लिंगराज मंदिर आस्था और अद्भुत वास्तुकला के साथ भगवान शिव और भगवान विष्णु के संयुक्त प्रतिरूप हरिहर को समर्पित बेहद रोचक मंदिर है, प्रायः देखा जाए तो भगवान शिव अपनी पत्नी और परिवार के साथ विराजते हैं लेकिन यह मंदिर हटकर है, जहां इनकी पूजा भगवान विष्णु के साथ होती है। कलिंग शैली वास्तुकला का सर्वोत्तम नमूना यह मंदिर 11वीं शताब्दी के आसपास का है। श्रावण माह में यहां विभिन्न अनुष्ठानो का आयोजन होता है। कहते हैं कि राजा लालतेंदु की परम भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव लिंगराज नाम के विशाल शिवलिंग के रूप प्रकट हुए और भक्तों का कल्याण करते हैं।
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भगवान राम द्वारा स्वयं उनके हाथों से स्थापित यह अलौकिक मंदिर समुद्र किनारे अपनी विशेष वास्तुकला और दिव्य वातावरण के लिए जाना जाता है। दक्षिण शैली तर्ज पर बने इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि यह भगवान राम ने लंका पर चढाई करने से पहले बनाया था, कुछ का कहना है कि लंका विजय पश्चात उन्होंने इस शिवलिंग का निर्माण किया था। त्रेता युग से स्थापित यह मंदिर युगों युगों से अपनी कृपा और आशीर्वाद से अपने भक्तों को निहाल कर रहा है। मंदिर से नजदीक ही पंबन द्वीप है जहां रामसेतु मौजूद होने के साक्ष्य मिलते हैं। इस मंदिर के बारें में कई पुराणों में भी दर्ज है जैसे शिवपुराण में लिखा है कि भगवान राम ने इस समुद्री तट पर मंत्रोच्चार, ध्यान और नृत्य वंदना कर भगवान शिव की आराधना की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव स्वयं यहां प्रकट हुए और आशीर्वाद देकर कृतार्थ किया। पौराणिक रूप से कहा गया है कि यहां पूजा अर्चना करने वाले को मोक्ष प्राप्ति के साथ ही सांसारिक सुखों की भी प्राप्ति होती है। मंदिर में प्राथमिक देव लिंगम रामनाथस्वामी हैं, साथ ही गर्भग्रह में दो प्रमुख शिवलिंग हैं, मान्यता है कि इसमें एक शिवलिंग प्रभु श्रीराम द्वारा स्थापित रेत का शिवलिंग है जिसे रामलिंगम कहते हैं और दूसरा प्रतीक चिन्ह विश्वलिंगम है जिसे हनुमान जी स्वयं कैलाश से लाए थे, जिसके बारे में कहते हैं कि भगवान राम ने स्वयं पहले विश्वलिंगम की पूजा करने की बात कही, जिसे हनुमान जी लाए थे। रामेश्वर प्रसिद्ध चार धामों में से एक धाम है जहां जाना हिंदू धर्म में बहुत सौभाग्य की बात मानी जाती है।
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अलौकिक अद्भुत अदम्यता का परिचय देती अमरनाथ गुफा लिद्दर घाटी में हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए विशेष रूप से धार्मिक महत्व रखती है, जहां भगवान शिव का प्रतीक स्वरूप वृहद बर्फ की शिला के रूप में अपने आप ही इस गुफा में बन जाता है जिसके बारें में कई कथाएं कही जाती हैं। अमरनाथ गुफा शिव और शक्ति को समर्पित पवित्र स्थान है जो जम्मू कश्मीर के दुर्गम रास्तों से होकर जाने की गुफा है। वृहद बर्फ के शिवलिंग के साथ ही दो बर्फ की प्रतिकृति भी दर्शनीय होती हैं जिन्हें देवी पार्वती और भगवान गणेश का प्रतीक स्वरूप माना जाता है। अमरनाथ पहुंचने के स्थानों के बारें में भी किवंदतियां कही जाती हैं, जो भगवान शिव से जुड़ी हैं। सावन में बनने वाले शिवलिंग के दर्शनों के लिए यात्रा शुरूआत इसी माह से शुरू होती है जो श्रावण की पूर्णिमा तिथि तक जारी रहती है।
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भगवान शिव के भक्त महाज्ञानी रावण द्वारा लाये गए शिवलिंग की स्थापना के कारण इस मंदिर को जाना जाता है, जो उन्होंने स्वयं भगवान शिव से प्राप्त किया था और इसकी स्थापना लंका अपने राज्य में करना चाहते थे, ये बात सुनकर देवता घबरा गए और उनकी प्रार्थना पर भगवान विष्णु चरवाहे का रूप रखकर आए और समस्त लीला रचकर मंदिर की स्थापना यहीं करवाई। झारखंड देवघर में मौजूद यह मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है जिसे मत्स्य पुराण में आरोग्य बैद्यनाथी की संज्ञा दी गई है। यहां की मुख्य पंरपरा है कि मौजूद हवन कुंड नवरात्रि पर्व पर बस साल में एक बार ही खुलता है। सावन के महीने में श्रद्धालु यहां कांवड़ यात्रा जल अजगैबीनाथ मंदिर से लाकर यहां चढाते हैं और भगवान भोलेनाथ की कृपा प्राप्त करने के साथ ही यहां आयोजित मेले का भी आनंद लेते हैं।
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नासिक स्थित यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख स्थान रखता है, यहां से भारत की पवित्र नदी गोदावरी का उद्गम भी होता है, जिसे वृद्ध गंगा भी कहते हैं। यह मंदिर तीन पहाड़ियों के मध्य स्थित तीन मुख ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में भगवान शिव का प्रतिष्ठित स्वरूप है, जो अन्य शिवलिंगों से अद्वितीय है। मंदिर में मौजूद तालाब जिसे पवित्र कुसावर्त के अलावा अमृतवर्षिनी के नाम से भी जाना जाता है, जहां अन्य तीन जल निकाय बिल्वतीर्थ, विश्वनंतीर्थ और मुकुंदतीर्थ हैं और साथ ही कई देवी देवताओं की प्रतिमाएं और संतो की समाधियां भी स्थापित हैं। भगवान शिव की अनंत उपस्थिति के प्रतीक यह ज्योतिर्लिंग भारतवर्ष की अलौकिक शक्तियों का प्रतीक है।
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भगवान शिव की परम भक्त घुष्मा की भक्ति से प्रसन्न होकर उसके पुत्र को जीवित करने के साथ ही भगवान शिव यहां घुष्मेश्वर नाम से विराजते हैं, जो अपने भक्तों की समस्त मनोकामना पूरी करते हैं। यह मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक है जिसके बारें में कई पुराणों जैसे शिव पुराण, स्कंद पुराण, रामायण और महाभारत में भी मिलता है, 13वीं सदी के आसपास इस मंदिर को हानि पहुंचाई गई जिसे रानी गौतम बाई होल्कर के नेतृत्व में दोबारा तैयार किया गया। मंदिर में भक्तों की विशेष आस्था होने के कारण सावन के महीने में विशेष भीड़ होती है जहां स्थानीय हिंदू रीतियों के अनुसार पारंपरिक वस्त्र पहनकर जाने का आग्रह किया जाता है।
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साल में यह एक महीना सावन भगवान शिव को पूरी तरह समर्पित है जो भगवान शिव के प्रति गहरी आस्था और विश्वास रखने वाले श्रद्धालुओं के लिए किसी उत्सव से कम नही होता, जब शिव मंदिरों के दर्शन और अभिषेक के लिए भक्तों का भारी हुजूम उमडता है, ऐसे में शिव मंदिरों में जाकर ध्यान अर्चन करने का विशेष महत्व है। भारत के कोने कोने में भगवान शिव की सूक्ष्म और स्थूल उपस्थिति के साथ अवस्थित इन मंदिरों की खूबसूरती सावन माह में और बढ जाती है, जब प्रकृति का प्रत्येक जीव सृजन की ओर अग्रसर रहता है और वातावरण भी शिवमय हो जाता है।