• Jun 13, 2025

पवित्र पावन भारत देश की पहचान द्वादश ज्योतिर्लिंग आध्यात्मिक शक्ति का स्त्रोत हैं, ज्योतिर्लिंग का अर्थ होता है, ज्योति यानी प्रकाश, चमक, शक्ति रूप में ऊर्जा और लिंग से अभिप्राय चिन्ह, स्तंभ रूप में स्त्रोत है। ऐसा स्थान जहां ऊर्जा का स्त्रोत हो, इन्हें ही ज्योतिर्लिंग की संज्ञा दी जाती है। भगवान शिव को समर्पित इन ज्योर्तिलिंगों की भूमिका हिंदू धर्म में भक्ति की पराकाष्ठा से भी ऊपर है। भारत के विभिन्न प्र्रांतों में इन ज्योतिर्लिंगों की उपस्थिति है, जहां हर साल लाखों करोड़ों श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं, मान्यता है कि जो व्यक्ति अपने जीवनकाल में द्वादश ज्योतिर्लिंगों के संपूर्ण दर्शन कर लेता है, वह जन्म मरण के बंधन से मुक्त होकर शिव धाम को गमन करता है। आइए इन ज्योतिर्लिंगों की उत्पत्ति, महत्व, और रोचक तथ्यों विस्तार से जानते हैं, अपने इस ब्लॉग में।

1. सोमनाथ, गुजरातः

सौराष्ट्रे सोमनाथं अर्थात् सौराष्ट्र में सोमनाथ, पुराणों के अनुसार मौलिक रूप से 64 ज्योतिर्लिंग थे, इनमें से प्रमुख बारह ज्योतिर्लिंगों को अत्यधिक पावन और शुभता का प्रतीक माना गया। सोमनाथ मंदिर की उत्पत्ति से जुड़ी किंवदंती है कि इसकी स्थापना का आधार चंद्रदेव हैं, चंद्रदेव को दक्ष प्रजापति से मिले श्राप के कारण उनकी चमक कम होने लगी, जिससे मुक्ति पाने के लिए उन्होंने भगवान शिव की आराधना की, प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें श्राप से मुक्ति दिलाई और प्रत्यक्ष रूप से इस ज्योतिर्लिंग में बस गये। तबसे पहले ज्योतिर्लिंग के रूप में सोमनाथ को माना गया, ज्योतिर्लिंग तीर्थयात्रा सोमनाथ मंदिर से शुरू होती है। प्राचीन भारत में यह मंदिर इतना समृद्धि संपन्न था कि लूटपाट के उद्देश्य इस पर 17 बार आक्रमण किया गया और मंदिर नष्ट करने के सारे संभव प्रयास किये गए। 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति पश्चात् इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया, जो भारत के भव्य मंदिरों में से एक है।

सोमनाथ मंदिर कैसे पहुंचेः

हवाई मार्ग द्वाराः निकटतम दीव हवाई अड्डा 75 किमी दूरी पर।

रेल मार्ग द्वाराः निकटतम रेलवे स्टेशन वेरावल से 7 किमी दूरी पर।

सड़क मार्ग द्वाराः द्वारका से करीब 230 किमी दूरी है, और राजकोट से लगभग 190 किमी दूरी पर।

मंदिर दर्शन समयः सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक

2. मल्लिकार्जुन, आन्ध्र प्रदेशः

श्री शैले मल्लिकार्जुनम, अर्थात् श्री शैलम् में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग अवस्थित है, जो शक्ति और शिव दोनों का प्रतीक है, मल्लिका नाम से माता पार्वती को और अर्जुन नाम से भगवान शिव को जानते हैं। दंतकथा अनुसार जब कार्तिकेय अपने पिता भगवान शिव और माता पार्वती से नाराज़ थे तब कुमार ब्रह्मचारी नाम से पलानी में क्रौंच पर्वत पर रहने लगे, उन्हें मनाने के उद्देश्य से माता और पिता ने क्रमशः मल्लिका और अर्जुन नाम रखकर उन्हीं के पास श्रीशैल पर्वत पर रहना शुरू कर दिया। कालांतर में इस स्थान पर अपने प्रतीक चिन्ह के रूप में यहीं बस गए और मल्लिकार्जुन नाम से प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजनीय हो गये। आध्यात्मिक रूप से संपन्न इस मंदिर की वास्तुकला और स्थापत्यकला अनूठी है।

मल्लिकार्जुन मंदिर कैसे पहुंचेः

हवाई मार्ग द्वाराः निकटतम हवाई अड्डा कुरनूल, हैदराबाद लगभग 180 किमी दूरी पर।

रेल मार्ग द्वाराः निकटतम रेलवे स्टेशन मरकापुर या तारलुपडु लगभग 90 किमी दूरी पर।

सड़क मार्ग द्वाराः हैदराबाद से श्रीशैलम लगभग 250 किमी दूरी और विजयवाड़ा से श्रीशैलम लगभग 280 किमी दूरी।

मंदिर दर्शन समयः प्रातः 4ः30 मिनट से दोपहर 3ः30 मिनट तक, शाम 6 बजे से रात 9 बजे तक।

3. महाकालेश्वर, मध्य प्रदेशः

उज्जयिन्यं महाकालम् अर्थात् उज्जैन में महाकाल के नाम से प्रसिद्ध प्राचीन ज्योतिर्लिंग अतिदर्शनीय स्थान हैं। यहां बाबा महाकाल उज्जैन के राजा के रूप में निवास करते हैं, जो अपने भक्तों का पालक के रूप में ध्यान रखते हैं। महाकालेश्वर में बाबा दक्षिणमुखी हैं जो 12 ज्योतिर्लिंगों में इन्हें सबसे अद्वितीय बनाता है, इसे तांत्रिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। बाबा महाकाल मंदिर परिसर में के ऊपरी भाग पर ओंकारेश्वर और सबसे ऊपरी तल पर नागेश्वर के नाम से मंदिर है जो साल में सिर्फ नागपंचमी के दिन भक्तों के दर्शन हेतु खुलता है। शिप्रा नदी के तट पर स्थित उज्जैन नगरी को महाकाल नगरी के नाम से भी जाना जाता है, यहां माता सती के होंठ गिरे थे जिससे उनका शक्तिपीठ और अन्य प्रमुख मंदिर भी यहां मौजूद हैं। महाकालेश्वर से जुड़ी अनुश्रुतियों के अनुसार इस स्थान पर भगवान शंकर ने दूषण नामक राक्षस का वध कर अपने भक्तों की रक्षा की थी, भक्तों के निवेदन करने पर भगवान शिव यहां महाकालेश्वर रूप में विराजमान हुए।

महाकालेश्वर मंदिर कैसे पहुंचेः

हवाई मार्ग द्वाराः निकटतम हवाई अड्डा इंदौर से लगभग 58 किमी दूरी पर।

रेल मार्ग द्वाराः निकटतम रेलवे स्टेशन उज्जैन जंक्शन से 2 किमी दूरी पर।

सड़क मार्ग द्वाराः सड़क मार्ग से उज्जैन बस स्टैंड पहुंचकर मंदिर पहुंचा जा सकता है।

मंदिर दर्शन समयः प्रातः 4 बजे से दोपहर 1 बजे तक, शाम 6 बजे से रात 8 बजे तक।

4. ओंकारेश्वर, मध्य प्रदेशः

ओंकारम् अमलेश्वरम् नाम से मशहूर यह ज्योतिर्लिंग खंडवा में है, जो महाकाल उज्जैन से लगभग 100 किमी दूरी पर है। नर्मदा नदी के द्वीप पर अवस्थित इस मंदिर की प्रमुख किंवदंती राजा मान्धाता से जुड़ी हुई है, एक अन्य किंवदंती अनुसार देवताओं ने इस स्थान पर रेत से ओम आकार शिवलिंग स्थापित कर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने यहां प्रकट हुए और इस शिवलिंग में समा गए। ओंकार नाम से प्रसिद्ध यह तीर्थ स्थल जिस द्वीप पर है, उसका आकार भी ओम प्रतीक चिन्ह जैसा है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के पास ही ममलेश्वर शिवलिंग भी पूजनीय है, जिसकी वास्तुकला और मूर्तिकला प्राचीन मंदिर इतिहास से जुड़ी हुई है।

ओकारेंश्वर मंदिर कैसे पहुंचेः

हवाई मार्ग द्वाराः इंदौर हवाई अड्डे से लगभग 77 किमी दूरी पर।

रेल मार्ग द्वाराः निकटतम रेलवे स्टेशन खंडवा जंक्शन मंदिर से लगभग 12 किमी दूरी पर।

सड़क मार्ग द्वाराः उज्जैन या इंदौर से ओंकारेश्वर मंदिर तकरीबन 3 से 4 घंटे में पहुंचा जा सकता है।

मंदिर दर्शन समयः सुबह 5ः30 मिनट से रात 9ः30 मिनट तक

5. बैद्यनाथ, झारखंडः

परल्यां वैद्यनाथं, झारखंड देवघर में अवस्थित प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग बहुत विशेष है। यहां बाबा बैद्यनाथ के अलावा 21 अन्य मंदिर शामिल हैं। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर स्वयं भगवान शिव के द्वारा दिये गए ज्योतिर्लिंग से सुशोभित होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रावण भगवान शिव को प्रसन्न और उनकी कृपा पाने की लालसा से तपस्या करता है, और भेंट में अपना दसवां सिर बलिदान करने वाला था, तभी भगवान शिव प्रकट हुए और वर मांगने को कहा, रावण ने इच्छा प्रकट की वह उन्हें लिंगस्वरूप में श्रीलंका ले जाना चाहता है, भगवान ने एक शर्त के साथ उसे अपना स्वरूप प्रदान किया और वो शर्त यह थी कि जिस जगह सबसे पहले मुझे रख दिया जाएगा, मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा। रावण खुशी से राजी हो गया, इस बात से देवता परेशान होकर भगवान विष्णु के पास गए उन्होंने समाधान रूप में जल देवता वरूण को आचमन विधि से रावण के पेट में प्रवेश करने को कहा, उन्होंने वैसा किया। रावण को झारखंड के देवघर यानी इसी स्थान के पास लघुशंका हुई, तब भगवान विष्णु एक ग्वाले का रूप धर कर आए, और रावण की मदद के लिए उसके हाथ से वह शिवलिंग ले लिया और उसे वहीं जमीन पर रख दिया। वही शिवलिंग ज्योतिर्लिंग के रूप में बाबा बैद्यनाथ कहलाए। बाबा बैद्यनाथ धाम का हवन कुंड वर्ष में सिर्फ एक बार खुलता है।

बाबा बैद्यनाथ धाम कैसे पहुंचेः

हवाई मार्ग द्वाराः निकटतम हवाई अड्डा बिरसामुंडा हवाई अड्डा, रांची से लगभग 250 किमी दूरी पर।

रेल मार्ग द्वाराः जसीडीह जंक्शन लगभग 7 किमी की दूरी पर।

सड़क मार्ग द्वाराः आप अपने शहर से रांची या पटना आकर देवघर के लिए बस यात्रा कर सकते हैं।

मंदिर दर्शन समयः सुबह 4 बजे से दोपहर 3ः30 मिनट तक, शाम 6 बजे से रात 9 बजे तक

6. भीमाशंकर, महाराष्ट्रः

डाकिन्यं भीमशंकरम्, भीमाशंकर वन को डाकिनी वन के नाम से जाना जाता है, यहीं भीमा नदी का उद्गम स्थल है । भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के साथ यहां देवी दुर्गा को समर्पित प्रसिद्ध मंदिर है। यहां ज्योतिर्लिंग का आकार बहुत मोटा है, जिससे इन्हें मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जानते हैं। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर भगवान शिव ने कुंभकरण जो रावण का एक भाई था उसके पुत्र भीम का संहार किया था, जिसने उस समय बहुत उत्पात मचा रखा था, मृत्यु शैया पर राक्षस भीम ने भगवान शिव से माफी मांगते हुए उसी स्थान पर अपने स्वरूप को स्थापित करने का आग्रह किया, जिसे स्वीकारते हुए भगवान शिव भीमाशंकर नाम से यहीं बस गए। इस मंदिर के आसपास का वातावरण बहुत शांति प्रदान करने वाला और प्रकृति के करीब है। यहां भीमाशंकर वन्यजीव अभ्यारण्य और अन्य दर्शनीय मंदिर अवस्थित हैं।

भीमाशंकर मंदिर कैसे पहुंचे

हवाई मार्ग द्वाराः पुणे एयरपोर्ट से भीमाशंकर की दूरी लगभग 120 किमी।

रेल मार्ग द्वाराः निकटतम रेलवे स्टेशन पुणे से कैब या बस द्वारा।

सड़क मार्ग द्वाराः पुणे से बस द्वारा आप यहां पहुंच सकते हैं।

मंदिर दर्शन समयः सुबह 5 बजे से रात 9 बजे तक

7. रामेश्वरम्, तमिलनाडुः

सेतुबन्धे तु रामेशं अर्थात रामेश्वर सेतुबंध स्थान में है, तमिलनाडु स्थित यह ज्योतिर्लिंग समुद्र किनारे अवस्थित है जिसकी महिमा अनंतकाल से चल रही है। त्रेता युग में इसको स्वयं भगवान श्रीराम ने अपने आराध्य भगवान शिव को समर्पित यह ज्योतिर्लिंग अपने हाथों से बनाया था। पवित्र ग्रंथ रामायण के अनुसार भगवान राम ने अपनी पत्नी सीता को रावण की कैद से मुक्त कराने के लिए समुद्र पार से लंका तक सेतु निर्माण का कार्य किया था। मंदिर निर्माण को लेकर कुछ किंवदंती बताती हैं कि लंका चढ़ाई करने से पहले रामेश्वरम् की स्थापना की है और कुछ कहती हैं कि लंका विजय के पश्चात् रामेश्वरम् तीर्थ की स्थापना की है। मंदिर पम्बन द्वीप पर पंबन ब्रिज के पास स्थित है। भूवैज्ञानिक रामसेतु को साक्ष्य रूप में मानते हैं कि यहां रामायण काल का सेतु बना हुआ था। मंदिर दक्षिण शैली में बना हुआ आकर्षक प्रतीत होता है। यह भारत के प्रमुख चार धामों में से भी एक है, जो दक्षिण भारत का प्रतिनिधित्व करता है।

रामेश्वर मंदिर कैसे पहुंचे

हवाई मार्ग द्वाराः निकटतम एयरपोर्ट मदुरै की रामेश्वरम से दूरी लगभग 170 किमी है।

रेल मार्ग द्वाराः पंबन जंक्शन से लगभग 20 किमी की दूरी पर।

सड़क मार्ग द्वाराः राष्ट्रीय राजमार्ग 32 के माध्यम लगभग 560 किमी दूरी तय कर चेन्नई से रामेश्वरम जा सकते हैं, पूरे भारत में कहीं से भी रामेश्वरम् बस स्टैंड जंक्शन पहुंचकर मंदिर दर्शन कर सकते हैं।

मंदिर दर्शन समयः सुबह 5 बजे से दोपहर 1 बजे तक, शाम 3 बजे से रात 9 बजे तक

8. नागेश्वर, गुजरातः

नागेशं दारुकावने, द्वारका स्थित भगवान शिव का यह ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के पास है। यहां का महत्व स्कंद पुराण और कई अन्य ग्रंथों में वर्णित है। दारुकावन में स्थित इस ज्योतिर्लिंग की महिमा न्यारी है, ज्योतिर्लिंग को लेकर एक प्राचीन कहानी प्रचलित है, सुप्रिय नामक वैश्य बहुत धार्मिक प्रवृति का व्यक्ति था जो हर वक्त भगवान शिव के ध्यान में तल्लीन रहता था, इस बात से राक्षस दारुक बहुत क्रोधित रहता था और इसी कारण उसने सुप्रिय को कारागार में डालकर जब जान से मारने ही वाला था उसी समय भगवान शिव अपने पूर्ण स्वरूप में प्रकट हुए, सुप्रिय के आग्रह पर नागेश्वर रूप में स्थापित हुए, बाद में इस स्थान पर एक सरोवर का निर्माण हुआ और कालांतर में यह ज्योतिर्लिंग इसी सरोवर में समाहित हो गया और द्वापर युग में पांचों पांडव जब वनवास पर थे तब उनके साथ गाय भी थी, वह इस जगह पर आकर अपने आप दुग्ध अभिषेक करती थी, जिसके बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने वर्णन किया कि यह नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है, तब पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। मुगल शासन में औरंगजेब के मंदिर विरोधी स्वभाव के चलते इस मंदिर को भी हानि पहुंचाई गई है, कालांतर में जिसका जीर्णोद्धार अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया।

नागेश्वर मंदिर कैसे पहुंचे

हवाई मार्ग द्वाराः निकटतम हवाई अड्डा पोरबंदर या जामनगर है, जहां से लगभग 110 किमी तय कर आप द्वारका पहुंचकर मंदिर दर्शन कर सकते हैं।

रेल मार्ग द्वाराः निकटतम रेलवे स्टेशन द्वारका

सड़क मार्ग द्वाराः आप गुजरात के किसी भी स्थान से सड़क द्वारा आराम से द्वारका पहुंच सकते हैं, द्वारका का गुजरात के सभी प्रमुख शहरों से बेहतर सड़क संपर्क है।

मंदिर दर्शन समयः सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक

9. काशी विश्वनाथ, उत्तर प्रदेशः

वाराणस्यां तु विश्वेशं, वाराणसी में बसे विश्वनाथ मंदिर की छटा गंगा किनारे अनुपम अद्वितीय है। भगवान शिव के लाखों श्रद्धालु यहां इनके दर्शन और कृपा पाने के लिए बनारस आते हैं। बनारस नगरी भगवान शिव के घर के रूप में जानी जाती है इस वजह से ज्योतिर्लिंग की महिमा कई गुना बढ़ जाती है। किंवदंती अनुसार इस मंदिर की स्थापना का आधार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच उपजा श्रेष्ठता का विवाद है जिसके निराकरण के लिए भगवान शिव को ज्योति, प्रकाश स्तंभ स्वरूप में विद्यमान होकर यह विवाद सुलझाना पड़ा, और इसी प्रकाश स्तंभ को आज विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है। स्वयंभू ज्योतिर्लिंग बाबा विश्वनाथ हिंदुओं का प्रमुख तीर्थस्थल है जिसका उल्लेख पुराणों में भी किया गया है। बनारस में देवी सती का शक्तिपीठ भी अवस्थित है और भोले बाबा के यहां कई मंदिर विराजमान हैं।

विश्वनाथ मंदिर कैसे पहुंचे

हवाई मार्ग द्वाराः निकटतम एयरपोर्ट बाबतपुर में लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डे से 20-25 किमी दूरी पर।

रेल मार्ग द्वाराः निकटतम रेलवे स्टेशन वाराणसी जंक्शन या वाराणसी सिटी स्टेशन से क्रमशः 6 या 2 किमी की दूरी पर।

सड़क मार्ग द्वाराः वाराणसी कई शहरों से सड़क माध्यम से बेहतरीन तरीके से जुड़ा हुआ है।

मंदिर दर्शन समयः सुबह 4 बजे से दोपहर 11 बजे तक, शाम 7 बजे से रात 10 बजे तक

10. त्रयम्बेकश्वर, महाराष्ट्रः

त्रयम्बकं गौतमितते, गौतमी नदी के किनारे अवस्थित यह ज्योतिर्लिंग नासिक शहर की शान है। मंदिर तीन पहाड़ियों ब्रह्मगिरी, नीलगिरी और कलगिरी के बीच स्थित है और इन्हीं पहाड़ियों से ही गौतमी यानी गोदावरी नदी का उद्गम स्थल है जो इसके दिव्य वातावरण का परिचायक है। मंदिर में स्थित ज्योतिर्लिंग तीन प्रतिष्ठित चिन्ह जो भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के रूप में प्रतिनिधित्व करते हैं। मंदिर के अंदर एक पावन तालाब है जिसे अमृतवर्षिनी कहा जाता है, यहां तीन जल निकाय बिल्वतीर्थ, विश्वनंतीर्थ और मुंकुदतीर्थ है। श्री त्रयंबकेश्वर की उत्पत्ति से जुड़ी किंवदंती गौतम ऋषि से संबंधित है, कहते हैं उनकी तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए और त्रयम्बक रूप में यहां प्रतिष्ठित हुए और साथ ही गंगा नदी के उनके आश्रम में अवतरण करने के वरदान पर यहां गोदावरी नदी को प्रकट किया जिसे दक्षिण की गंगा के रूप मे जाना जाता है। यह मंदिर विशेष पूजापाठ के लिए प्रसिद्ध है, यहां कालसर्प दोष इत्यादि पूजाएं की जाती हैं।

त्रयम्बेकश्वर मंदिर कैसे पहुंचे

हवाई मार्ग द्वाराः निकटतम हवाई अड्डा नासिक

रेल मार्ग द्वाराः निकटतम रेलवे स्टेशन नासिक

सड़क मार्ग द्वाराः नासिक से लगभग 30 किमी दूरी पर।

मंदिर दर्शन समयः सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक।

11. केदारनाथ, उत्तराखंडः

हिमालये तु केदारं, हिमालय की वादियों में पवित्र पावन धाम केदारनाथ जिसका जिक्र चारधाम यात्रा में भी किया जाता है। अन्य ज्योतिर्लिंगों की तरह यहां पहुंचने का रास्ता सहज नहीं है। दुर्गम रास्तों की कठिनाईयों को पार करते हुए भोले बाबा के भक्त इस धाम में पहुंचते हैं। उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग में अवस्थित यह मंदिर चोराबारी ग्लेशियर के ऊपर बना हुआ है, जो मंदाकिनी नदी का उद्गम स्त्रोत है। प्राकृतिक सुंदरता, हरियाली और बर्फ की शीतलता केदारनाथ के आध्यात्मिक वातावरण की शोभा बढाने में उत्प्रेरक का काम करते हैं। मंदिर के इतिहास को लेकर कई कहानियां चलन में हैं जिसमें से पांडवों के बारें में कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद अपने भाईयों की हत्या के पाप प्रायश्चित करते हुए भगवान शिव से क्षमा मांगने के लिए हिमालय की ओर चल दिए, पांडवों का आता देख भगवान शिव ने नंदी यानी बैल का रूप ले लिया और धरती में समाने लगे, लेकिन भीम ने बैल का पिछला हिस्सा पकड़कर रखा और धरती में जाने से रोक लिया, उसी भाग की पूजा केदारनाथ में होती है। एक और किंवदंती के अनुसार नर और नारायण ऋषि ने यहां तपस्या की जिसके संपन्न होने पर भगवान शिव ने नंदी रूप में दर्शन दिया और इसी रूप की यहां पूजा होने लगी, जो भविष्य में केदारनाथ के नाम से जाना गया। यह मंदिर अप्रैल से नवंबर के मध्य ही खुलता है जिसके लिए ऑनलाइन या ऑफलाइन पंजीकरण कराना आवश्यक है।

केदारनाथ मंदिर कैसे पहुंचे

केदारनाथ मंदिर जाने के लिए सबसे पहले आपको बस या ट्रेन से हरिद्वार या ऋषिकेश पहुंचना होगा, इसके बाद यहां से गौरीकुंड का सफर भी इसी तरह तय करना होगा।

हवाई मार्ग द्वाराः गौरीकुंड से केदारनाथ तक हवाई यात्रा की मदद से मंदिर दर्शन कर सकते हैं।

सड़क मार्ग द्वाराः गौरीकुंड से केदारनाथ तक लगभग 17 किमी की दूरी जिसे आप पैदल, खच्चर या पालकी से पार सकते हैं।

मंदिर दर्शन समयः प्रातः 7 बजे से दोपहर 3 बजे तक, शाम 6 बजे से 7ः30 मिनट तक

12. घुष्मेश्वर, महाराष्ट्रः

घुश्मेशं च शिवालये, इस ज्योतिर्लिंग को घृष्नेश्वर नाम से भी बुलाते हैं। महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले के वेरूल गांव में भगवान शिव के भक्त आशीर्वाद लेने आते हैं। घृणेश्वर शब्द का अर्थ है ‘‘दयालुता के भगवान’’, इस मंदिर का उल्लेख पुराणों, शास्त्रों, महाकाव्य और ग्रंथों में मिलता है। मंदिर राष्ट्रीय संरक्षित स्थलों में से एक है, जहां से एलोरा गुफाएं लगभग 1.5 किमी दूरी पर अवस्थित है। मौलिक मंदिर को 13वीं और 14वीं सदी में नष्ट कर दिया गया था, इसका पुनर्निर्माण कई बार हुआ। वीर शिवाजी के दादाजी मालोजी भोसले के हाथों इस मंदिर का जीर्णोद्धार 16वीं शताब्दी में करवाया गया, जिसके पुनः नष्ट कराए जाने के कारण 1729 में गौतम बाई होल्कर इंदौर की महारानी ने इसका वर्तमान स्वरूप का पुनः निर्माण कराया। घुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के अवतरण संबंधित कहानी इस प्रकार है- दक्षिण देश में देवगिरी पर्वत के पास सुधर्मा बहुत ही तपस्वी ब्राह्मण, अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। दोनों में आपस में खूब प्रेम था, किन्तु वह संतान सुख से वंचित थे। उपाय स्वरूप सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुश्मा से सुधर्मा का विवाह करवा दिया। घुश्मा एक शिव भक्त थी, वह रोज एक सौ पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनकी सच्ची श्रद्धा से पूजा करती थी, फिर उन्हें प्रवाहित कर देती थी। भगवान शिव की कृपा से घुश्मा को सुंदर से बालक की प्राप्ति हुई, सभी खुशी खुशी साथ रह रहे थे। कालांतर में सुदेहा के मन में ईर्ष्या के वशीभूत होकर रात्रि के समय घुष्मा के बालक को मारकर उसी तालाब में फेंक दिया, जहां घुष्मा रोज शिवलिंग प्रवाहित करती थी। सुबह बालक के न मिलने पर कोहराम मच गया लेकिन घुष्मा पूर्ववत् अपनी पूजा करती रही और जब शिवलिंग प्रवाहित करने तालाब के किनारे पहुंची तब बालक जीवित बाहर आया साथ ही भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और वर मांगने को कहा, जिसके फलस्वरूप भगवान शिव अपने भक्त के नाम पर घुष्मेश्वर के रूप में चिरकाल तक यहीं बस गए और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने लगे।

घुष्मेश्वर मंदिर कैसे पहुंचे

हवाई मार्ग द्वाराः निकटतम औरंगाबाद स्थित छत्रपति संभाजी नगर हवाई अड्डा।

रेल मार्ग द्वाराः निकटतम रेलवे स्टेशन छत्रपति संभाजी नगर यानी औरंगाबाद

मंदिर दर्शन समयः सुबह 5ः30 मिनट से दोपहर 11 बजे तक।

निष्कर्षः

भारतवर्ष कई सारे मंदिरों, धार्मिक केंद्रो और प्रतिष्ठित स्थलों का देश है, जहां द्वादश ज्योतिर्लिंगों की महिमा अपरम्पार है। भगवान शिव का एक नाम भोला है जो उनके करूणा स्वरूप को बतलाता है, एवं नटराज स्वरूप उनके तांडव नृत्य के लिए जाना जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंग ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों को संजोए धार्मिकता के लिए प्रसिद्ध हैं। बारह ज्योतिर्लिंगों की यात्रा करना परम पुनीत कार्य माना जाता है जहां भगवान शिव की कृपा अपने भक्तों पर बनी रहती है और इनकी कृपा से जीवन में सुख समृद्धि और संपन्नता आती है।

द्वादश ज्योर्तिलिंगों की यात्रा करते समय अक्सर पूछे जाने 15 प्रश्नः

प्रश्न 1ः 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे ज्यादा महिमा किस ज्योतिर्लिंग की है?

उत्तर 1ः 12 ज्योतिर्लिंगों में से सभी की महिमा अतुलनीय है, किसी की तुलना अन्यत्र नहीं की जा सकती। यह सारे अद्वितीय और पूजनीय है।

प्रश्न 2ः द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से सबसे पहले कौन से ज्योतिर्लिंग का नाम आता है?

उत्तर 2ः द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से सबसे पहले गुजरात के वेरावल प्रभास पाटन स्थित सोमनाथ का नाम सबसे पहले आता है।

प्रश्न 3ः क्या द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा करते समय किसी विशेष समय का पालन करना आवश्यक होता है?

उत्तर 3ः द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ वर्ष में एक नियत समय अर्थात अप्रैल से अक्टूबर या नवंबर के मध्य खुलता है इसलिए इसकी यात्रा करने के लिए इन्हीं महीनों का समय मिलता है, अन्य ज्योतिर्लिंगों के लिए समय की ऐसी कोई पाबंदी नहीं है, इसलिए इनकी यात्रा आप की प्लानिंग कभी भी कर सकते हैं।

प्रश्न 4ः क्या अप्रैल से अक्टूबर, नवंबर के मध्य कोई विशेष द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा पैकेज होता है?

उत्तर 4ः विभिन्न यात्रा कंपनियां इस संबंध में टूर पैकेज्स उपलब्ध करवाती हैं।

प्रश्न 5ः उत्तर प्रदेश में कितने ज्योतिर्लिंग अवस्थित हैं?

उत्तर 5ः उत्तर प्रदेश में सिर्फ एक ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ वाराणसी है।

प्रश्न 6ः महाराष्ट्र में कितने ज्योतिर्लिंग हैं?

उत्तर 6ः महाराष्ट्र में 4 ज्योतिर्लिंग अवस्थित हैं, त्रयंबकेश्वर, भीमाशंकर, घुष्मेश्वर, बैजनाथ ये सब ज्योतिर्लिंग हैं।

प्रश्न 7ः ज्योतिर्लिंग मंदिरों का दर्शनीय समय क्या है?

उत्तर 7ः सभी ज्योतिर्लिंगों का दर्शनीय समय थोड़ा भिन्न हो सकता है, औसत बात करें तो सुबह 5 बजे से रात 9ः30 मिनट तक दर्शनीय समय है।

प्रश्न 8ः ज्योतिर्लिंग मंदिर किस भगवान को समर्पित मंदिर हैं?

उत्तर 8ः ज्योतिर्लिंग मंदिर भगवान शिव को समर्पित मंदिर हैं।

प्रश्न 9ः ज्योतिर्लिंग मंदिरों की विशेषता क्या है?

उत्तर 9ः ज्यादातर ज्योतिर्लिंग मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वयं भू है, यही इनकी विशेषता है।

प्रश्न 10ः क्या केदारनाथ ज्योतिर्लिंग में शिवलिंग स्थापित है?

उत्तर 10ः नहीं, यहां भगवान शिव की पूजा बैल के पृष्ठ भाग के रूप में होती है।

प्रश्न 11ः क्या कोई भी व्यक्ति ज्योतिर्लिंगों के दर्शन कर सकता है?

उत्तर 11ः हां जी, सभी धर्मों और संप्रदायों के लोग यहां दर्शन कर सकते हैं।

प्रश्न 12ः क्या ज्योतिर्लिंगों के दर्शन किसी विशेष श्रृंखला क्रम में करने होते हैं?

उत्तर 12ः जी नहीं, ऐसा कोई जरूरी नहीं है, आप अपनी सुविधानुसार द्वादश ज्योतिर्लिंगों की यात्रा कर सकते हैं।

प्रश्न 13ः द्वादश ज्योतिर्लिंगों की यात्रा करने का सबसे उपयुक्त समय कौन सा है?

उत्तर 13ः अप्रैल से अक्टूबर या नंवबर

प्रश्न 14ः ज्योतिर्लिंग का शाब्दिक अर्थ क्या है?

उत्तर 14ः प्रकाश का पुंज।

प्रश्न 15ः ज्योतिर्लिंगों की विशेषता क्या है?

उत्तर 15ः यह भगवान शिव के प्रतीक स्वरूप हैं, यहां दर्शन करने से जीवन मरण के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है।

partner-icon-iataveri12mas12visa12