ऐतिहासिक शहर अमृतसर पंजाब राज्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, शहर अपने राजनैतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से पर्यटकों को सदैव आकर्षित करता रहता है। स्वतंत्रता संग्राम की गूंज से झंकारती अमृतसर की गलियां और देशभक्ति की अटूट मिसाल पेश करते इस शहर की कहानी किसी एक दायरे में सीमित नहीं है। अगर आप भक्ति और इतिहास के बेजोड़ संगम की जीवंत ऊर्जा से रूबरू होना चाहते हैं तो अमृतसर आपके लिए परफेक्ट डेस्टिनेशन हैं जहां आप अपने बच्चों और प्रियजनों के साथ एक कंप्लीट ट्रिप प्लान कर सकते हैं।
हरमिंदर साहब या श्री दरबार साहिब से प्रतिष्ठित यह गुरूद्वारा सिर्फ सिक्ख धर्म के अनुयायियों के लिए ही नहीं बल्कि हिंदू धर्म के लिए भी आस्था का केंद्र है। इसकी उपस्थिति जीवन में दया, धर्म और कर्तव्यपरायणता और वीरता का पाठ पढाती है, जो इंसानियत और सभी के आदर का प्रतीक है। यह दरबार किसी भी जाति धर्म या किसी भी आधार पर लोगों में भेदभाव नहीं करता। वैभवशाली वास्तुकला और सोने से बना यह मंदिर अपनी भव्यता के लिए संसार भर में प्रसिद्ध है, जो स्वर्ण मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसकी संपूर्ण रूपरेखा, नीवं और वास्तु गुरू अर्जुन देव द्वारा ही डिजाइन किया गया। यहां अवस्थित पवित्र कुंड की स्थापना का विचार सबसे पहले गुरु अमर दास के मन में आया, जिसकी शुरूआत गुरु रामदास ने की थी। निरंतर गुरू गं्रथ साहिब का पाठ होते रहने से यहां की आध्यात्मिक ऊर्जा एक उच्च स्तर पर होती है।
अमृतसर में स्थित यह किला 18वीं शताब्दी के दौरान जाटों की भंगी मिसल द्वारा स्थापित किया गया था, जिसका नाम महाराजा रणजीत सिंह ने गुरु गोबिंद सिंह के नाम पर रख दिया था। इस किले को साल 2017 से ही आम जनमानस के पर्यटन हेतु खोला गया है, जो एक सैन्य किला है। किलें में तोपें, वृत्ताकार रास्ता, खजाना और बुर्ज थे। इसके शिखर पर 25 तोंपे लगी हुई हैं जो इसे और शानदार बनाती हैं। इस किले को बनाने का उद्देश्य जी टी रोड के जरिए आने वाले आक्रमणकारियों पर रोक लगाना और गोल्डन टेंपिल को हमलावरों से बचाना था। इस किले को महाराजा रणजीत सिंह ने और मजबूती प्रदान की थी। यहां होने वाले ऐतिहासिक प्रदर्शन एक्टिविटी और प्रदर्शनियां पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है।
भारत के मार्मिक पहलू को प्रस्तुत करता यह बाग जिसका जिक्र जब भी होता है, इतिहास का वो दिन आंखों के सामने सजीव होने लगता है, जब सन् 1919 में जनरल डायर के कहने पर हजारों निहत्थे मासूम लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग कर उन्हें मौत की नींद सुला दिया गया, जबकि वे वहां रौलेट एक्ट का शांतिपूर्ण विरोध करने के लिए इकट्ठे हुए थे। अंग्रेजी हुकूमत की ऐसी कायरना हरकत का साक्षी बना यह पार्क पर्यटकों को इसी घटना की परछाईयों से रूबरू करवाता है।
1947 में होने वाले भारतीय विभाजन से संबंधित यह संग्रहालय अपनी तरह का विश्व में एकमात्र संग्रहालय है जहां विभाजन से जुड़ी हर एक चीज देखने को मिलती है। अमृतसर के टाउन हॉल में अवस्थित इस संग्रहालय में विभाजन के दौरान होने वाले दंगों से जुड़ी कहानियों, सामग्रियों और पेपर्स का संग्रह करता है। जहां अन्य प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ी घटनाओं की यादें और साक्ष्य का प्रतिविंब देखने को मिलता है, जिनमें से जालियांबाग हत्याकांड, कामागाटा मारू ऐतिहासिक घटना, अखिल भारतीय मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना इतिहास और अन्य जानकारियां भी मिलती हैं। जहां आज यह संग्रहालय है, ब्रिटिशकालीन में यह मुख्यालय और जेल हुआ करता था, इसकी शुरूआत साल 2017 से हुई है। यहां बहुत छोटे बच्चों को ले जाना उपयुक्त नहीं है, कम से कम 10 वर्ष या इससे ऊपर के बच्चों को ले जाना उचित है।
शेर-ए-पंजाब उपाधि से प्रसिद्ध महाराजा रणजीत सिंह अपने काल के प्रमुख व्यक्तियों में से एक थे। इनके तब किए गए गौरवपूर्ण कार्य को पहचान प्रदान करता यह संग्रहालय भारत संरकार द्वारा संभाला जाता है जिसमें संस्कृति मंत्रालय, राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद् की महत्वपूर्ण भूमिका है। कम से कम 4.5 एकड़ मे बना यह पैनोरमा रामबाग हेरिटेज गार्डन की शान है जहां महाराजा के समर महल के पास हरियाली का वातावरण और बेलनाकार इमारत की भव्यता देखते बनती है।
महाराजा रणजीत सिंह द्वारा अपनी प्रिय नर्तक मोरन के लिए बनवाया गया था, यह पुल रावी नदी से निकलने वाली छोटी सी नहर के लिए था, जिसे पैदल पार करना पड़ता था। इस पुल पर सन् 1965 और 1971 के आसपास पाकिस्तान का कब्जा भी हो चुका है, लेकिन शांति और विवाद सुलझने के बाद यह दोबारा से भारत के सुरक्षित सीमा के भीतर स्थापित है। अमृतसर से करीब 35 किमी दूर स्थित यह स्थान अटारी बॉर्डर के पास ही स्थित है। मनमोहक और आकर्षक ऐतिहासिक छवि के साथ बना यह पुल किसी समय में एक व्यापारिक केंद्र था, जहां से अमृतसर को लाहौर से जोड़ने वाली नहर के ऊपर यह बना था। इस पुल के पास एक मंदिर, गुरूद्वारा, मस्जिद और एक बावली का निर्माण भी कराया गया, जिसके प्रतीक चिन्ह आज भी देखने को मिलते हैं। जहां कई सारी पेटिंग्स, भित्ति चित्रों का निर्माण भी कराया गया है- इसमे सोनी महिवाल की पेटिंग भी देखने को मिलती है। प्रकृति की गोद, हरियाली और शांत वातावरण की वजह से यह स्थान अपने पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करता है।
अमृतसर से करीब 30 किमी दूरी पर स्थित है वाघा बार्डर, जहां देशभक्ति की भावना पूरे चरम पर होती है। कदमताल करते सैनिक जब रिट्रीट सेरेमनी के लिए आगे बढते हैं उस समय देश के तिरंगे की शोभा देखकर हृदय रोमांचकता से भर जाता है। सेरेमनी से पहले देशभक्ति पर झूमते कलाकार राष्ट्रप्रेम की भावना को और बल प्रदान करते हैं। देशभक्ति के नारों से गुजाएंमान होता वातावरण और वाघा अटारी बॉर्डर समारोह की छवि देखते बनती है, सन् 1959 से यह कार्यक्रम अनवरत चल रहा है, जिसमें सेना का मनोबल बढाते पर्यटकों के अंदर देश प्रेम की भावना सबसे ऊपर होती है।
स्वर्ण मंदिर की तरह दिखने वाला दुर्गियाना मंदिर माता भगवती देवी दुर्गा को समर्पित अमृतसर का प्रसिद्ध मंदिर है, जहां लक्ष्मी और विष्णु भगवान के साथ और भी भगवानों की प्रतिमाओं के भी भव्य दर्शन प्राप्त होते हैं। यह मंदिर भी स्वर्ण मंदिर की तरह एक झील के बीच में अवस्थित है। मूलतः यह मंदिर 16वीं शताब्दी के आसपास का है लेकिन वर्तमान ढांचा गुरु हरसाई मलकपूर ने सन 1921 में स्वर्ण मंदिर की तर्ज पर ही करवाया है। इस मंदिर से जुड़ी किंवदंती है कि यहां स्थित एक प्राचीन पेड़ में लव और कुश ने अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा वापस लेने आए श्री हनुमान जी को बांधा था। इस मंदिर के पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व के कारण इसकी 200 मीटर की रेंज के अन्तर्गत किसी भी मादक पदार्थ की बिक्री नहीं होती है।
राष्ट्रीय महत्व की स्मारक के रूप में संरक्षित सराय अमानत खान का निर्माण 16वीं शताब्दी के दौरान अमानत खान ने करवाया था, जो लाहौर से आगरा जाने के रास्ते में यात्रियों की सुविधा हेतु बनवायी गई सराय थीं जिसमें एक कुआं और मस्जिद की सुविधा भी उपलब्ध थी। यहां मौजूद मकबरे में अमानत खान के अवशेष दफन हैं, ये मुगल रईसो में से एक और लेखक होने के साथ ही ताजमहल में अपने काम के लिए मशहूर रहे हैं, जहां इनकी कृतियो और उनकी विशेषताओं को देखा भी जा सकता है। अमानत खान ने यह स्मारक अपने भाई अफजल खान की याद में बनवाई थी, जो भातृ प्रेम का बेहतर उदाहरण है।
1892 में स्थापित यह कॉलेज लगभग 300 एकड़ में फैला शिक्षण संस्थान होने के साथ ही इंडो सरसेनिक शैली का भव्य उदाहरण है, जहां हरियाली लिए घास के मैदानो की खूबसूरती और लाल बलुआ पत्थर से बने इस इमारत की शोभा आकर्षक लगती है। इस कॉलेज का डिजाइन वास्तुशिल्पकार राम सिंह द्वारा बनाया गया है, जिन्हें ब्रिटिश भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरुस्कार से भी नवाजा गया। उच्च शिक्षा प्रदान करने के साथ ही यह कॉलेज कई सारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, राजनैतिक, सशस्त्र, वैज्ञानिकों और प्रसिद्ध हस्तियों की जननी है, इस कॉलेज ने देश सेवा पर मर मिटने से लेकर कई नायाब हीरे भारत को दिये हैं। विभिन्न संकायों में संचालित यह कॉलेज देखने में किसी महल से कम नहीं लगता है, जहां शिक्षा का भव्य महल है। आप यहां सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक घूम सकते हैं और इसके लिए आपको कोई शुल्क भी नहीं देना है।
अमृतसर, सिर्फ किसी एक धर्म के लिए ही नहीं बल्कि पूरे भारतवासियों के लिए पर्यटन का आकर्षण हैं, ऐतिहासिक समृद्धि और विरासतों से संपन्न इस शहर में बच्चे बड़े सभी के लिए जानने और सीखने के साथ ही स्वस्थ मनोरंजन कराते कई अद्भुत विकल्प हैं। ऐतिहासिक गलियों से निकलकर धार्मिक पराकाष्ठा तक के सफर का आनंद देता अमृतसर आज भी कई परिप्रेक्ष्यों में खास हैं जहां आप सिर्फ स्वर्ण मंदिर की झलक नही देखते बल्कि वाघा बार्डर की प्रतिष्ठा से भी परिचित होने के साथ ही जालियांवाला बाग हत्याकांड की धरती की भावनात्मकता को और करीब से महसूस कर पाते हैं।