कृष्ण जन्माष्टमी हिन्दुओं का प्रमुख रूप से मनाए जाने वाला त्योहार, जिसे बड़ी धूमधाम, मौजमस्ती और उल्लास के साथ मनाया जाता है, जिसकी तैयारियां ही इतनी विशेष होती हैं, जिसे देखकर रोम रोम पुलकित हो उठता है। मंदिरों का सजाया जाने वाला, आकर्षक झांकिया, विभिन्न कठपुतलियों द्वारा कृष्ण लीलाओं के दर्शन जो देखने में इतने मनमोहक होते हैं कि यह जन्माष्टमी पर्व की शोभा देखते बनती है। भारत देश का कोना कोना भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाने वाली कृष्ण जन्माष्टमी की धूम से गुंजाएमान रहता है। यूं तो यहां हर मंदिर की बात निराली है, पर जन्माष्टमी में इनकी छटा कई गुना बढ़ जाती है। इस आर्टिकल में हम देश के ऐसे प्रसिद्ध मंदिरों के बारें में विस्तार से जानेंगे जहां जन्माष्टमी पर्व की स्पेशल धूम मचती है।
नंद घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की, यह पंक्तियां जब भी गाई जाती है तो कृष्ण जी के जन्म से जुड़ी पौराणिक कहानियों के किस्से मथुरा ले ही आते हैं। जहां वर्तमान में कृष्ण जन्मभूमि नाम से प्रख्यात मंदिर बना हुआ है, माता देवकी के आठवें गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कारागृह में हुआ था, मामा कंस के डर से इनके पिता वासुदेव उसी वक्त इन्हें यहां से गोकुल नंद बाबा के घर छोड़ आए थे। यहां विशेष जन्माष्टमी महोत्सव मनाया जाता है। यहां से श्रीकृष्ण जन्म पूजा का सीधा प्रसारण टेलीविजन वगैरह पर भी होता है, जिसे देखकर पूरी दुनिया कृष्ण जन्माष्टमी भक्ति के रंग में रंग जाती है। मूल स्थान आज भी उसी तरह रखने का प्रयास किया गया है। मंदिर प्रांगण में राधा कृष्ण के विशाल विग्रह वाला एक और न्यारा सा मंदिर है जिसकी आकर्षक छटा मन में बस जाती है।
स्थानः कृष्ण जन्मभूमि मथुरा, उत्तर प्रदेश
समयः सुबह 6ः30 मिनट से रात 8 बजे तक
भगवान कृष्ण जिनका एक नाम बिहारी जी भी है, रोज यहां लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां बालरूप छवि इतनी प्यारी है कि नज़र लगने के डर से थोड़ी थोड़ी देर में पर्दे की ओट करनी पड़ती है। मंत्रमुग्ध करने वाली काले रंग की प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि यह स्वयंभू है जिसे स्वामी हरिदास जी ने स्वयं श्री राधाकृष्ण के साक्षात् दर्शन फलस्वरूप प्राप्त किया था। स्वामी हरिदास इनकी देखभाल बच्चों की तरह करते थे, जैसे बच्चे सुबह जल्दी जागने में असहज होते हैं इसीलिए मंदिर भोर की आरती नहीं होती और न ही पट खुलते हैं। यहां वर्ष भर दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है, जन्माष्टमी पर्व पर तो ऐसा आनंद छाया रहता है कि हर ओर भक्तों का रेला नज़र आता है।
स्थानः वृंदावन, मथुरा, उत्तर प्रदेश
समयः सुबह 9 बजे से दोपहर 12 बजे तक, शाम 5ः30 मिनट से रात 9ः30 मिनट तक
सफेद संगमरमर से बना यह मंदिर वृंदावन की पहचान बन चुका है, विभिन्न तरह की कलाकृतियां जिन्हें पत्थर काट कर बनाया गया है, शानदार नक्काशी, बेहतरीन सजावट, श्री जगद्गुरू कृपालु जी महाराज की संकल्पना का साकार स्वरूप लेता यह मंदिर शाम के समय और खूबसूरत प्रतीत होता है, यहां होने वाला प्रकाश शो विश्वप्रसिद्ध है जिसके विभिन्न रंगों में रंगा यह मंदिर देखने में मन मोह लेने वाला होता है। अनवरत राधाकृष्ण संकीर्तन से मंदिर के भीतर का प्रांगण गुजांएमान और वास्तुकला अद्वितीय है, कहते हैं इस मंदिर में उसी तरह की संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है, जिससे ताजमहल का निर्माण हुआ है। मंदिर के बाहरी परिसर में चबूतरे पर लगे हुए पत्थरों के लिए कहा जाता है कि यह गर्मियों में ठंडे और सर्दियों में गर्म रहते हैं यह बहुत आश्चर्यजनक प्रतीत होता है। वैसे तो यह राधा कृष्ण के अलौकिक प्रेम को दर्शाता मंदिर है, पर जन्माष्टमी पर्व पर इसकी सजावट और इसकी मोहकता कई गुना बढ़ जाती है।
स्थानः वृंदावन, मथुरा, उत्तर प्रदेश
समयः सुबह 5ः30 मिनट से दोपहर 12 बजे तक, शाम 4ः30 मिनट से रात 8ः30 मिनट तक
अद्भुत कलाकृतियों और वास्तुकला से सुशोभित इस मंदिर की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके शीर्ष पर जलने वाला दिये की रोशनी कई किलोमीटर दूर से दिखाई पड़ती थी, जिसे देखकर औरंगजेब ने पूछा कि ये क्या है? पता चलने पर उसने मंदिर के शीर्ष को तुड़वा दिया और उसकी कई मंजिलें नष्ट करवा दीं और उसमें गुंबद वगैरह का निर्माण करा दिया। लेकिन गौरवान्वित इतिहास आज भी इस मंदिर की ऐतिहासिकता और विरासत को स्पष्ट तरीके से बयां करता है। गोविंद देव जी मंदिर के मूल इतिहास की बात करें तो इसका निर्माण आमेर के राजा मानसिंह ने कराया था। विदेशी इतिहासकारों ने भी इसके बारें में कहा है कि यह मंदिर भारत के मंदिरों में बड़ा शानदार है और यह मंदिर उत्तर भारत में हिन्दू शिल्पकला का अकेला ही आदर्श था।
स्थानः वृन्दावन, मथुरा, उत्तर प्रदेश
समयः प्रातः 4ः30 मिनट से दोपहर 12ः30 मिनट तक, शाम 5ः30 मिनट से रात 9 बजे तक
श्री रंग देव जी के बारें में कहा जाता है कि भगवान विष्णु का ही एक रूप हैं, जिनकी आराधना इस मंदिर में की जाती है। दक्षिण भारत की वास्तुकला को दर्शाता, उत्तर भारत में बना यह मंदिर अपने अनोखे अंदाज़ के लिए जाना जाता है। इसकी स्थापना 18वीं सदी में हुई थी, जिसमें द्रविड़ शैली के साथ साथ राजपूत और मुगल शैलियों की भी झलक है। इस मंदिर में भगवान रंगनाथ की दूल्हे के रूप में पूजा की जाती है। इस मंदिर का प्रसिद्ध रथ मेला मार्च अप्रैल यानी चैत्र कृष्ण पक्ष की दूज से शुरू होकर 10 दिनों तक चलता है। जिसमें भगवान रंगनाथ रथ में बैठकर भक्तों को दर्शन देते हैं, मेला आयोजन बहुत शानदार और दिव्य होता है।
स्थानः वृंदावन, मथुरा, उत्तर प्रदेश
समयः सुबह 8 बजे से दोपहर 12 बजे, दोपहर 3 बजे से शाम 7ः30 मिनट तक
कमल फूल के आकार में बना यह मंदिर अपनी बनावट की वजह से भक्तों के बीच काफी लोकप्रिय है। प्रियाकांत जू मंदिर श्रीराधाकृष्ण को समर्पित एक मंदिर है, जहां राधा रानी जी प्रिया के रूप में हैं और कृष्ण जी कान्त है। मंदिर परिसर के बाहर स्थित जलाशय अति सुहावना दृश्य प्रस्तुत करता है। मंदिर की ऊंचाई 125 फीट है, इसे बनाने में लगभग 7 सालों का समय लगा और इसकी बनावट में राजस्थान के मकराना संगमरमर का प्रयोग हुआ है। आधुनिक युग में बना यह मंदिर ऐतिहासिक वास्तुकला और शिल्पकला को इंगित करता है।
स्थानः वृन्दावन, मथुरा, उत्तर प्रदेश
समयः सुबह 5 बजे से दोपहर 12ः30 बजे, शाम 4ः30 मिनट से रात 9 बजे तक
हरे कृष्ण हरे कृष्ण के गायन से अलौकिक हुआ वातावरण इस्कॉन मंदिर की विशेषता है, इसकी नींव स्वामी प्रभुपाद ने रखी थी जो एक तरह का भक्ति आंदोलन था। इंटरेनशनल सोसाइटी फॉर कृष्ण कॉन्शियसनेस यानी इस्कॉन इसके सारे मंदिर देश विदेश में बने हुए हैं, इन्हीं में से एक है वृन्दावन का इस्कॉन मंदिर, कहते हैं यह जहां स्थित है वहां लगभग 5000 साल से अधिक समय पहले कृष्ण और बलराम खेलते थे। इसकी भव्य बनावट और शिल्प इतना आकर्षक है जो दिव्यता का अनूठा अनुभव कराता है। लीला पुरूषोत्तम श्री कृष्ण को इस्कॉन के अनुयायी दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सत्ता मानते हैं जिन्होंने साक्षात् रूप में आकर जीवन का आदर्श प्रस्तुत किया। सामान्य दिनों में भी वृन्दावन के इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ होती है, जन्माष्टमी उत्सव का जश्न कई दिनों तक चलता रहता है, जो अष्टमी से लेकर भगवान की छठी उत्सव तक जारी रहता है, यहां हर दिन कुछ न कुछ मनोरंजक, आनंद देने वाला और अलौकिक होता है। यहां का जन्माष्टमी उत्सव लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है, इसे मनाने के लिए बड़ी संख्या में यहां आते हैं।
स्थानः वृन्दावन, मथुरा, उत्तर प्रदेश
समयः प्रातः सुबह 4ः10 मिनट से दोपहर 12ः45 मिनट तक, शाम 4ः30 मिनट से रात 8ः45 मिनट तक
जे. के. मंदिर नाम से प्रचलित यह मंदिर कानपुर महानगर की शान और पहचान है। मुख्यतः यहां होने वाला जन्माष्टमी उत्सव जिसकी तैयारियां बहुत पहले से शुरू हो जाती हैं। यहां लगने वाला जन्माष्टमी मेला करीब एक माह तक अनवरत चलता रहता है जिसकी सुंदरता देखते बनती है। विभिन्न तरह के झूले, बच्चों के खिलौने, अचार, कपड़े और भी बहुत कुछ इस मेले को जीवंत बनाता है साथ ही जन्माष्टमी से शुरू होकर कई दिनों तक यहां रंगारंग प्रस्तुतियां होती हैं जिसमें शास्त्रीय गायन, वादन और नृत्य का प्रदर्शन होता है। मंदिर परिसर के भीतर भव्य और दिव्य वातावरण का आभास होता है। जे. के. मंदिर के बाहरी क्षेत्र में स्थित और भी मंदिरों में कठपुतली कृष्ण लीलाओं की झांकियों से सजावट इतनी मनमोहक और आकर्षक होती है कि आंखों से उन्हें ओझल कर पाना मुश्किल होता है।
स्थानः जे. के. मंदिर, कानपुर, उत्तर प्रदेश
समयः सुबह 6 बजे से दोपहर 12 बजे, शाम 4 बजे से रात 9 बजे तक
रणछोड़ नाम से प्रसिद्ध भगवान श्री कृष्ण का यह रूप द्वारका नगरी में बहुत प्रसिद्ध है, जो गोमती नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर को निज मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं यहां भगवान श्रीकृष्ण की पूजा ‘द्वारका के राजा’ के रूप में की जाती है। यह भारत के चार धामों में से एक है, यहां की मूर्तिकला जटिल होने के साथ ही प्रसिद्ध भी है। दो प्रवेश द्वार हैं जहां उत्तर प्रवेश द्वार को ‘मोक्ष द्वार’ और दक्षिण प्रवेश द्वार को ‘स्वर्ग द्वार’ कहते हैं, इसके बाहर 56 सीढियां हैं जो गोमती नदी की ओर जाती हैं। मंदिर के शीर्ष पर फहरने वाली ध्वजा का विशेष महत्व है, इसे दिन में 5 बार बदला जाता है। 75 स्तंभों पर निर्मित यह पांच मंजिला संरचना है, जिसका शिखर 78.3 मीटर ऊंचा है। यहां कृष्ण जन्माष्टमी त्योहार बहुत ही विशेष रूप से मनाया जाता है।
स्थानः द्वारका, गुजरात
समयः सुबह 6 बजे से दोपहर 1 बजे, शाम 5 बजे से रात 9ः30 मिनट तक
वृंदावन के सात प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक श्री राधा रमण मंदिर में देवी राधा के साथ शालिग्राम भगवान की प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर की कथा भक्ति की पराकाष्ठा से परे है। सुनते हैं यहां 12 शालिग्राम की शिलाएं थीं जिसमें से एक अपने आप कृष्ण विग्रह दामोदर शिला के रूप में परिवर्तित हो गई और बाकी की 11 शालिग्राम उसी तरह है। भक्त इस दामोदर शिला को श्रीकृष्ण का जीवित स्वरूप मानते हैं। इस मंदिर की स्थापना करीब 500 साल पहले गोपाल भट्ट स्वामी जी ने की थी। इनकी समाधि यहां स्थित है और श्री चैतन्य महाप्रभु का ऊना वस्त्र यहां रखा हुआ है।
स्थानः वृंदावन, उत्तर प्रदेश
समयः सुबह 8 बजे से दोपहर 12ः30 मिनट, शाम 5ः30 मिनट से रात 9 बजे तक।
नाथद्वारा स्थान पर स्थापित श्री नाथ जी मंदिर श्रीकृष्ण जी का ही सात वर्षीय स्वरूप हैं जो गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा अंगुली में उठाते हैं। वैष्णव संप्रदाय के पुष्टिमार्ग से संबंधित वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठल नाथ जी ने इनकी पूजा को नाथ द्वारा में शुरू किया। श्री नाथ जी की सेवा दिन 8 स्तरों में होती है। अनुश्रुतियों के अनुसार इनकी यह प्रतिमा स्वयंभू है और पहली बार गोवर्धन पहाड़ी के पास से उभरी थी, जिसकी प्रथम पूजा उसी स्थान पर की गई थी। मुगल शासक औरंगजेब के मंदिर विरोधी आचरण की वजह से इस मूर्ति को पहले मथुरा, फिर आगरा में भी 6 माह रखा गया, 18 वीं सदी के अंत में प्रतिमा को मेवाड़ के राजा भीम सिंह के संरक्षण में उदयपुर के पास नाथद्वारा में स्थापित किया गया। श्रीनाथ जी की सेवा एक बच्चे की तरह की जाती है जिसमें उनके वृस्त्र दिन में 8 बार बदले जाते हैं, जन्माष्टमी महोत्सव और अन्य मुख्य त्योहारों में सोने के तारों और हीरे जड़ित कढाई से बुने हुए कपड़े पहनाए जाते हैं। यहां जन्माष्टमी महोत्सव मंदिर में तोपों और बंदूकों की सलामी के साथ मनाया जाता है, विभिन्न लाइट्स की रोशनी से सजाया जाता है, जन्माष्टमी पर रात में सार्वजनिक उत्सव मनाए जाने के बजाए अगले दिन नन्दमहोत्सव मनाए जाने की पंरपरा है। कृष्ण जन्माष्टमी के एक महीने पहले से ही श्रावण मास की अष्टमी से ही बधाई देने का क्रम शुरू हो जाता है। श्री नाथद्वारा क्षेत्र को पश्चिमी भारत के ब्रज के रूप में जाना जाता है।
स्थानः नाथद्वारा, उदयपुर से करीब 45 किमी दूर, राजस्थान
समयः सुबह 5 बजे से दोपहर 12ः30 मिनट, शाम 4 बजे से रात 8ः30 मिनट तक
भगवान विष्णु के चार सशस्त्र रूपों को समर्पित यह मंदिर गुरुवायुरप्पन या भूलोक वैकुंठ के नाम से जाना जाता है। मंदिर में भगवान की छवि चार भुजाओं वाले विष्णु भगवान की है जो शंख पंचजन्य, सुदर्शन चक्र, कौमोदकी गदा और तुलसी की माला के साथ कमल पुष्प धारण किये हुए हैं। यह छवि मूलतः उस रूप को दर्शाती है जिसके दर्शन माता देवकी और वासुदेव ने उनके जन्म समय किए थे। इस मंदिर में भगवान विष्णु का प्रभाव चरम पर है। यहां की ओजस्विता का प्रमाण कई किंवदंतियों में भी मिलता है। पुराणों में मिलता है कि यहां मंदिर का निर्माण जनमेजय राजा जो परीक्षित राजा के पुत्र थे, करवाया था।
स्थानः गुरूवायुर, केरल
समयः प्रातः 3 बजे से दोपहर 12ः30 मिनट, शाम 4ः30 मिनट से रात 9ः15 मिनट तक
वृंदावन से जयपुर आए गोपीनाथ भगवान स्वयं श्री कृष्ण हैं जिनके मंदिर के बारें में अक्सर सुनने में आता है ऐसे भगवान जो घड़ी पहनते हैं। ब्रिटिश शासन के समय जब यह बात एक अंग्रेज ऑफिसर तक पहुंची तो इस बात पर विश्वास न करते हुए वह इसकी सत्यता जानने के लिए गोपीनाथ मंदिर में पहुंचकर अपनी घड़ी जो उस समय नब्ज़ के स्पंदन से चलती थी, मूर्ति के हाथ में पहना दी, इसके बाद जो हुआ उससे वह हतप्रभ रह गया, घड़ी चल रही थी और सही समय बता रही थी। इसके बाद से वह इस मंदिर का अभिभूत हो गया। यह चमत्कार प्रमाणित करता है कि गोपीनाथ मंदिर में मूर्ति में प्राण हैं या यूं कहें कि भगवान श्रीकृष्ण सशरीर यहां दर्शन देते हैं, इसीलिए जयपुर को गुप्त वृंदावन भी कहा जाता है
स्थानः श्रीराधा गोपीनाथ जी मंदिर, चौड़ा रास्ता, जयपुर, राजस्थान
समयः सुबह 5 बजे से दोपहर 12 बजे तक, शाम 4 बजे से रात 9 बजे तक
अरावली की पहाड़ियों में बनास नदी की सहायक नदी भद्रावती के तट पर स्थित यह मंदिर श्री कृष्ण के मदन मोहन रूप को समर्पित है। इनके दोनों ओर उनकी सखियां राधा और ललिता देवी की प्रतिमाएं हैं। यह मंदिर औरंगजेब के हमले से बचाने हेतु यहां स्थानांतरित किया गया था। ऐसी मान्यता है कि गोवर्धन यात्रा पूरी करने के लिए मदन मोहन मंदिर और गोविंद देव जी मंदिर का दर्शन जरूरी है। करौली स्थित यह मंदिर यहां के चार धामों में से एक है। यहां का भोग जुगल प्रसाद कहलाता है, जो लड्ड और कचौड़ी होता है, इसे दिन में एक बार एक व्यक्ति द्वारा ही चढ़ाया जाता है, इसके लिए कतार में लगभग दो सालों तक इंतजार करना पड़ता है। कृष्ण जन्माष्टमी पर इस पूरे मंदिर को फूलों के भव्य श्रृंगार से सजाया जाता है।
स्थानः मदन मोहन जी, करौली, राजस्थान
समयः सुबह 6 बजे से दोपहर 11 बजे, संध्या 4 बजे से रात 8 बजे तक
माधव, श्याम, मुरलीधर, नंदलाला, माखनचोर ना जाने कितने ही नामों से इन्हें जाना जाता है, इसी तरह भगवान श्रीकृष्ण के अनेको ही मंदिर हैं जो आज भी इनकी सजीवता और मौजूदगी का साक्षात् एहसास कराते हैं। जन्माष्टमी का यह पर्व इनका जन्मदिवस, लोकप्रिय त्यौहार है, उस पराशक्ति के अभ्युदय का पर्व मनाते हैं जिनके जीवन से हमें मुश्किलों में भी मुस्कुराने की कला का गुण सीखने का हुनर मिलता है, इसे हम अनवरत पूरे हर्षोल्लास व जोश के साथ मनाते आ रहे हैं। यह पर्व और इससे जुड़े मंदिर, जीवन में शक्ति और ऊर्जा का नवसंचार करते हैं।