देवों के देव महादेव का हर रूप निराला है, 12 ज्योतिर्लिंगों के रूप में इनकी दिव्य उपस्थिति इनकी कृपा और भक्ति से सदैव सिंचित करती रहती है, इन्हीं ज्योतिर्लिंगों में समुद्र किनारे अवस्थित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को सबसे पहले ज्योतिर्लिंग की संज्ञा दी जाती है। अरब सागर किनारे प्रतिष्ठित यह मंदिर ज्ञान, वैभव, संपन्नता का भव्य प्रतीक है जो भारतवर्ष की समृद्धि का द्योतक रहा है। गुजरात वेरावल के प्रभास पाटन क्षेत्र की यह धरती परम पावन और पुनीत है, जहां भगवान शिव स्वयं अपनी दिव्यता का प्रसार कर रहे हैं।
प्राचीन सोमनाथ मंदिर के मूलतः निर्माण की कोई सटीक जानकारी प्राप्त नहीं है। मंदिर का ज्ञात समय लगभग 649 ईसा पूर्व से भी पहले का कहा जाता है। वर्तमान मंदिर स्वरूप के पुनर्निर्माण की आधार शिला सन् 1947 में उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा रखी गई, जिसमें सन् 1951 में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा स्थापना की गई। इतिहासकार अलबरूनी ने इस मंदिर के बारें में विस्तार से बताया है, जिसके बाद दुनिया भर में इसकी लोकप्रियता और इज़ाफा हुआ। अफगानिस्तानी लुटेरे शासक महमूद गजनी ने 1025 के आसपास इस मंदिर की भव्य संपन्नता को पहली बार लूटा था, कहते हैं कि यह मंदिर इतना समृद्धशाली था कि उस समय यहां लगभग 300 संगीतकार, 500 नर्तकियाँ व इतनी ही संख्या में नाई काम करते थे, बेशुमार संपति लगभग 2 करोड़ दीनार लूटने के साथ ही मंदिर को भी नष्ट किया है, और यही क्रम महमूद गजनी द्वारा अलग अलग कालखंडों में कुल 17 बार दोहराया गया, इस घटना से इस मंदिर की समृद्धि का अंदाजा लगाया जा सकता है, शायद इसीलिए भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था।
सोमनाथ मंदिर के बारें में शिव पुराण के तेरहवें अध्याय में भी पढने को मिलता है। सौराष्ट्र का यह पश्चिमी भारत की अति पावन जगह है जहां तीन नदियों कपिला, हिरण और सरस्वती नाम की तीनों नदियों का मिलन त्रिवेणी स्थल है जिसकी महिमा के बारें में ऋग्वेद में भी दर्ज हैं और गंगा यमुना सरस्वती नदियों के संगम की ही तरह पवित्र है और इसे तीर्थधाम की संज्ञा दी गई है। इसीलिए यहां भगवान शिव का पहला ज्योतिर्लिंग अवस्थित है। स्कंदपुराण, श्रीमद् भागवत् अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी सोमनाथ की प्रसिद्धि और महत्व के बारें में स्पष्ट शब्दों में लिखा है।
पौराणिक उत्पत्ति की कथा भगवान चंद्रदेव से जुड़ी हुई है, जिन्हें अपने श्वसुर दक्ष प्रजापति द्वारा कुरूप होने का श्राप मिला हुआ था, इससे मुक्ति पाने के लिए भगवान चंद्रदेव ने भगवान शिव की आराधना इसी स्थान पर की थी। जहां भगवान शिव ने आशीर्वाद दिया कि वह हर समय यहां उपस्थित रहेंगे।
इस मंदिर के निर्माण में कहते हैं कि सबसे पहले इसे सोने से भगवान चंद्रदेव बनवाया, जिन्हें सोमदेव भी कहते हैं। दूसरा निर्माण रवि ने चांदी में कराया, भगवान कृष्ण ने लकड़ी से और राजा भीमदेव ने पत्थर से करवाया।
मंदिर में भ्स्थापित भव्य विशाल शिवलिंग काले रंग में है, दीप्तिमान सा प्रतीत होता है। वर्तमान सोमनाथ मंदिर की वास्तुकला कैलाश महामेरू प्रसाद स्टाइल की तरह है, जिसकी नींव लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने रखी थी। इस मंदिर में गर्भग्रह, सभामंडपम और नृत्यमंडपम के तीन स्थान 155 फीट ऊंचाई के शिखर के साथ अवस्थित है। मंदिर शिखर के शीर्ष पर दस टन का कलश स्थापित है और इसके ध्वजदंड की लंबाई 27 फीट लंबी और 1 फीट की परिधि लिए हुए है।
अबाधित समुद्री मार्ग तीर्थ स्तंभ यह संकेत करता है कि यहां से दक्षिणी धु्रव 9936 किमी तक की यात्रा बिना किसी बाधा के संपूर्ण की जा सकती है। यह प्राचीन भारत की भौगोलिक बुद्धिमत्ता और ज्ञान का प्रतीक है।
इस मंदिर के आधिकारिक पेज पर जाकर ऑनलाइन कई सुविधाओं का लाभ मिलता है जैसे ऑनलाइन और ऑफलाइन के लिए पूजा बुकिंग, प्रसाद और अन्य बुकिंग के रूप में पहले से ही नियत तिथि के लिए रूम बुकिंग सुविधा का विकल्प भी मिलता है।
सोमनाथ मंदिर में स्वयं उपस्थित होकर पूजा कराने के लिए आप इसके ऑफिशियल पेज पर जाकर पहले से ही सारी एन्ट्रीज को भर कर करीब 5100 रूपये फीस जमा कर रसीद प्राप्त कर सकते हैं
इसके साथ ही आप बहुत तरह की विभिन्न पूजाओं के लिए ऑनलाइन ही अर्जी व शुल्क जमाकर पूजा करवा सकते हैं, जिससे संबंधित लिंक आपको आपके द्वारा दी गई जानकारी पर उपलब्ध हो जाएगा। आप यहां अपने या अपने किसी प्रिय की लंबी आयु के लिए जन्मदिन विशेष मारकेंडय पूजा भी करवा सकते हैं। इसके लिए शुल्क दर करीब 1500 रूपये निर्धारित है।
इस सावन आपको बहुत कम शुल्क मात्र 25 रूपये प्रतिदिन में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग में बिल्व पूजा का भी अवसर प्राप्त हो रहा है, जिसके पूरे सावन माह करवाने का शुल्क मात्र 525 रूपये निर्धारित किया गया है, इसमें आप चाहें तो सिर्फ सावन सोमवार में भी करवा सकते हैं जिसके लिए आपको मात्र 75 रूपये देना ही होगा। और पूजाओं से संबंधित नमन भस्म आपको आपके रजिस्टर्ड पते पर भारतीय डाक द्वारा भिजवाई जाएगी।
सोमनाथ मंदिर के अधिकारिक पृष्ठ पर भोग प्रसाद के साथ भगवान शिव को अर्पित किये गए वस्त्र भी प्रसाद के रूप में नियत शुल्क भुगतान कर आपको अपने घर पर डिलीवरी के माध्यम से मिल सकते हैं, अलग श्रेणी के वस्त्रों के शुल्क भिन्न है। वस्त्र प्रसाद के रूप में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग पर फहराई जाने वाली ध्वजा भी प्राप्त की जा सकती है, जिसके लिए आपको करीब 1111 रूपये का शुल्क भुगतान करना होगा, और डिलीवरी आपके घर पर ही आपको प्राप्त हो जाएगी, यानी कि भगवान सोमनाथ से जुड़ी वस्तुएं अब आपसे बस एक क्लिक ही दूर हैं।
आप यहां भव्य और दिव्य अनुष्ठानों का आयोजन भी करवा सकते हैं जिसके लिए शुल्क की दर भी अलग अलग है, अधिक जानकारी के लिए सोमनाथ मंदिर की ऑफिशियली वेब पेज पर विजिट करें।
सोमनाथ के पास ही स्थित इस स्थान पर भगवान कृष्ण को शिकारी द्वारा तीर लग गया था। इस घटना के बाद इस जगह उन्होंने शिकारी को क्षमा कर उसे कुछ उपदेश भी दिए हैं जिसकी प्रतिमा रूप में यहां स्थापना है। सोमनाथ मंदिर से इसकी दूरी लगभग 5 किमी है।
सोमनाथ के त्रिवेणी घाट के पावन तीर्थ पर बना यह मंदिर बहुत ही अनोखा और शांत है जहां श्रद्धालु प्रभु श्रीकृष्ण की कही हुई गीता से रूबरू होते हैं, जहां मंदिर की आध्यात्मिकता और गूंजती प्रतिध्वनि संगमरमर से बने इस मंदिर की छटा देखते बनती है, यहां की सबसे विशेष खासियत है यहां का कोना कोना गीता की पंक्तियों से इतनी स्पष्टता से सुशोभित है कि आप इसे पढ भी सकते हैं।
कपिला हिरण और सरस्वती नदियों का अद्भुत संगम त्रिवेणी घाट के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में ऐसे स्थानों को बहुत ही पवित्र माना जाता है जिन्हें कहा जाता है कि यहां स्नान करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
इसे गोलोक धाम तीर्थ के नाम से भी जानते हैं, जिसकी सोमनाथ से लगभग 2 किमी दूरी है, जो त्रिवेणी घाट के पास ही है। मंदिर को लेकर मान्यता है कि इस जगह भगवान श्री कृष्ण ने तीर लगने के बाद त्रिवेणी घाट के पावन तीर्थ पर स्नान किया और इस देहोत्सर्ग मंदिर में अपना देह त्याग किया। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इनके बड़े भाई बलदेव जी जो शेषनाग के अवतार थे, तो उन्होंने भी इसी तीर्थ के पास एक गुफा से निजधाम गमन किया था। जिसे आज दाऊजी नी गुफा कहते हैं।
प्रभु श्री राम को समर्पित यह राम मंदिर सोमनाथ ट्रस्ट द्वारा ही बनवाया गया है जिसकी दो मंजिलों में बने इस मंदिर की वास्तुकला बहुत शानदार है, यहां बहुत बड़े पर्दे पर भगवान राम जी के जीवन का चित्रण किया जाता है, साथ ही यहां भगवान श्री राम के जीवन से जुड़ी प्रमुख घटनाओं की प्रतिमाएं और कलाकृति देखने को मिलती हैं। मंदिर में संपूर्ण राम दरबार और प्रभु श्रीहनुमान जी की प्रतिमाओं की झलक देखने को मिलती है।
इस मंदिर को पुराना सोमनाथ मंदिर कहकर भी पुकारा जाता है, जिसकी स्थापना पुण्यसलिला देवी अहिल्याबाई ने भूमिगत रूप में की थी। मुख्य सोमनाथ मंदिर से इसकी दूरी लगभग 200 मीटर की ही है, जहां भक्त दर्शन करने अवश्य जाते हैं।
मुख्य जैन चंद्रप्रभु के मंदिर के रूप में इस स्थान को जाना जाता है जिसके अंदर तहखाने और एक अलग मंदिर है जिसे छिपकर बनाया गया था, ताकि मुगल यहां तक न पहुंच सकें।
जहां जहां ज्योतिर्लिंग हैं, अधिकतर वहां कोई न कोई शक्ति पीठ जरूर है। सोमनाथ के पास स्थित शक्तिपीठ में माता सती का उदर भाग गिरा था जिसे चंद्रभागा शक्तिपीठ के नाम से जानते हैं। इस तीर्थ स्थल पर भगवान शिव का वक्रतुंड भैरव रूप देखने को मिलता है।
भारत वर्ष में सूर्य मंदिरों की संख्या बहुत ज्यादा देखने को नहीं मिलती है, भगवान सोमनाथ की धरती पर, जो सोम यानी चंद्रदेव के नाथ का प्रतीक हैं वहां सूर्य मंदिर की उपस्थिति रोचक लगती है। जो सोमनाथ का अति प्राचीन मंदिर है। जटिल नक्काशी और पुरातन संस्कृति का प्रदर्शन करते इस मंदिर की दीवारें विभिन्न तरह के जानवरों जैसे हाथी और शेर की कलाकृतियों से सजी हैं। मंदिर के तीनों कोनों में भगवान विष्णु, लक्ष्मी, ब्रह्मा व सरस्वती, और भगवान शिव व देवी पार्वती की मूर्तिया प्रतिष्ठित हैं। यहां से दिखने वाले सूर्यास्त के नजारें बहुत ही आकर्षक प्रतीत होते हैं।
सोमनाथ मंदिर से बहुत ही पास में अवस्थित इस संग्रहालय में लगभग 3500 प्रदर्शित वस्तुए हैं, जिनमें से मूर्तियों और शिलालेखों को देखने का मौका मिलता है, इस जगह टेराकोटा युग से जुड़ी चीजें भी हैं।
अंत में सागरीय आकर्षण को और बढाता आस्था और भव्यता का शानदार प्रतीक सोमनाथ ज्योतिर्लिंग सदियों से भारत का प्रमुख मंदिर है जहां भक्ति, दिव्यता और ऐतिहासिक विरासत की निशानियां आज भी मौजूद हैं।
भले ही इस मंदिर को कई बार नष्ट किया गया हो लेकिन इसकी चमक और प्रसिद्धि कभी कम नहीं हुई। अद्भुत कलाकृतियों और जटिल नक्काशियों से सुशोभित यह मंदिर संसार के उत्कृष्ट स्थानो में से एक है। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की मौजूदगी हिंदू धर्म की निष्ठा और सांस्कृतिक एकता को प्रदर्शित करती है।