पवित्र पावन नगरी ऋषिकेश, ऋषि मुनि की तपस्थली, हिमालय की गोद में गंगा नदी के तट पर बसी, ऐसी नगरी है जहां गंगा का पानी साफ स्वच्छ क्रिस्टल क्लियर दिखता है। जहां का शांत वातावरण आध्यात्मिक उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ‘विश्व की योग राजधानी’ योग नगरी के नाम से प्रसिद्ध, इस शहर का उत्तरी भाग देहरादून जिले में है और दक्षिणी भाग टिहरी गढ़वाल में है, इस वजह से यह ‘गढवाल हिमालय का प्रवेश द्वार’ भी कहलाता है। इतनी सारी खूबियों से परिपूर्ण इस नगरी में पर्यटन हेतु कई आकर्षण हैं, जिनमें से 10 महत्वपूर्ण स्थानों के बारें में यहां जिक्र कर रहे हैं।
गंगा नदी पर बना बहुत प्रसिद्ध, पुराना और ऐतिहासिक पुल है, एक संस्पेशन ब्रिज होने की वजह से इसे साल 2020 से बंद कर दिया गया है। यह पुल टिहरी गढवाल जिले तपोवन को पौड़ी गढवाल जिले जोंक से जोड़ता है। यह पुल साल 1929 में बना था, उसके पहले यहां जो पुल था वह वर्ष 1924 की बाढ़ में बह गया था। जहां यह पुल पाया गया है किंवदंती है राम जी के छोटे भाई लक्ष्मण ने उसी जगह जूट की रस्सियों पर गंगा नदी पार की थी, इसलिये इस पुल का नाम ‘लक्ष्मण झूला’ पड़ा। जिसकी लंबाई लगभग 450 फीट और कैरिज वे लगभग 6 फीट है। वर्तमान में इसके समानांतर एक पुल का निर्माण हुआ है।
स्थानः ऋषिकेश केंद्र से उत्तर पूर्व लगभग 5 किमी में स्थित
उपयुक्त समयः सितम्बर से नवम्बर, मार्च से मई
हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों में सप्तऋषियों का नाम सर्वोच्च है, इन्हीं में से एक ़वशिष्ठ ऋषि हैं, जिनकी तपस्थली यहां पाई जाती है। यह स्थान आध्यात्मिकता के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थानों में से एक है, यहां गहन ध्यान लगाना आपको अनूठा अनुभव दे सकता है। यहां भगवान शिव को समर्पित शिवलिंग स्थापित है। सुखद वातावरण, नदी का किनारा और हरियाली, जो इस गुफा की शोभा और बढ़ाते हैं।
स्थानः बद्रीनाथ सड़क, पुरूषोत्तमानंद आश्रम, ऋषिकेश
उपयुक्त समयः मार्च से मई, सितंबर से नवंबर
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक यह तीर्थ घने वनों एवं मणिकूट, ब्रह्मकूट और विष्णकूट घाटियों के बीच बसा और नर-नारायण की पर्वत श्रृंखलाओं से सटा हुआ, पवित्र नदियों पंकजा व मधुमती के मिलन बिन्दु पर स्थित है। हिंदू ग्रंथों के अनुसार यह तीर्थ उस जगह पर स्थित है जहां भगवान शिव ने विष पान किया था, उस विष ने उनके गले को नीला कर दिया था, इस तरह भगवान शिव का एक नाम नीलकंठ भी है। श्रुति स्मृति पुराण अनुसार भगवान शिव ने यहां कालकूट विष के प्रभाव को कम करने के लिए साठ हजार वर्षां तक तपस्या की थी जहां आज मंदिर का गर्भग्रह बना है और यहां गले के आकार का शिवलिंग स्थापित है।
स्थानः पौड़ी सड़क, पौड़ी, ऋषिकेश से 12 किमी की दूरी पर
उपयुक्त समयः जुलाई-अगस्त, मार्च से मई
गंगा नदी पर बना यह पुल टिहरी गढ़वाल जिले में मुनि की रेती के शिवानंद क्षेत्र को पौड़ी गढ़वाल जिले में ऋषिकेश के स्वर्गाश्रम से जोड़ता है। 1986 में बना यह पुल प्रतिष्ठित स्थलों में से एक है। यह पुल लक्ष्मण झूला से बड़ा है, इस पुल की लंबाई लगभग 750 फीट है। यह पुल गंगा के दोनों किनारों पर स्थित कई तीर्थ स्थलों को आपस से जोड़ता है। इस पुल पर मोटरबाइक राइडिंग का आनंद लिया जा सकता है।
स्थानः ऋषिकेश केंद्र से उत्तर पूर्व में 3 किमी की दूरी पर
उपयुक्त समयः मार्च से जून, सिंतबर से नंवबर
ऋषिकेश के सबसे बड़े और प्रसिद्ध घाटों में से एक इस घाट में वैदिक मंत्रों के साथ होने वाली गंगा आरती के लिए बहुत प्रसिद्ध है। इस घाट के तट पर गीता मंदिर, त्रिवेणी माता मंदिर और लक्ष्मी नारायण मंदिर स्थित हैं। यह घाट बहुत पवित्र जगहों में से एक है। इस घाट पर तीन नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम माना जाता है, भक्तों का मानना है कि इस घाट पर स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और इस घाट पर अंतिम संस्कार रीति भी संपन्न की जाती है।
स्थानः मायाकुंड, ऋषिकेश
उपयुक्त समयः मार्च से मई, सितंबर से दिसंबर
चट्टानों के अलग अलग स्तर पर गिरने वाला यह जल प्रपात देखने में बहुत आकर्षक प्रतीत होता है। इसे सीक्रेट वॉटरफॉल भी कहा जाता है। पहाड़ों से गिरने वाली ठंडी जलधारा, जिसमें नहाने के बाद आप खुद को तरोताज़ा और एनर्जेटिक महसूस कर पाएंगे। अगर आपको ट्रेकिंग का शौक है तो ऋषिकेश की यह जगह आपके लिए एकदम उचित है, आसानी से होने वाले इस ट्रेक में आप परिवार बच्चों के साथ भी आ सकते हैं।
स्थानः ऋषिकेश केंद्र से 3 किमी दूर
उपयुक्त समयः सितम्बर से मार्च
इस स्थान से ही ऋषिकेश को ‘दुनिया की योग राजधानी’ के रूप में पहचान मिली। इसे चौरासी कुटिया के नाम से भी जाना जाता है। महर्षि महेश योगी द्वारा अंतर्राष्ट्रीय ध्यान अकादमी नाम से इसको जाना है, जो छात्रों के लिए प्रशिक्षण केंद्र था। इन्होंने ट्रांसडेंटल मेडिटेशन तकनीक तैयार की थी। आश्रम में सन् 1968 में अंग्रेजी बैंड बीटल्स ने डोनोवन, मिया फैरो और माइक लव जैसी मशहूर शख्सि़यतों के साथ ध्यान सीखा। 1990 के दशक में इस स्थान को छोड़ने के बाद कालांतर में ये जगह बीटल्स के प्रशंसकों के लिए एक लोकप्रिय स्थल बन गया। प्रशिक्षण केंद्र को वेस्टर्न हैबिट्स के अनुरूप डिजाइन किया गया था और इसे कई दर्जन लोगों के रहने के लिए बनाया गया था। यहां बनी ध्यान गुफाएं आकर्षण का केंद्र है।
स्थानः स्वर्ग आश्रम, ऋषिकेश
उपयुक्त समयः मार्च से जून, सितंबर से नवंबर
हिमालय की वादियों में बना यह आश्रम, गंगा के तट पर स्थित एक ऐसा स्थान है जहां ध्यान, योग की शिक्षा दी जाती है। इसमें 1000 से भी ज्यादा कमरे हैं। विश्व के कोने कोने से तीर्थयात्री यहां आकर पवित्र, स्वच्छ, सुंदर वातावरण के साथ सुबह की प्रार्थनाएं, व्याख्यान, कीर्तन और सूर्यास्त के समय गंगा आरती का आनंद लेते हैं। इसकी स्थापना सन् 1942 में हुई थी। यहां पिछले करीब 25 वर्षों से साध्वी भगवती सरस्वती परमार्थ निकेतन आश्रम में रहती और पढ़ाती हैं। प्राकृतिक चिकित्सा,आयुर्वेदिक उपचार और प्रशिक्षण की शिक्षा भी दी जाती है।
स्थानः मुख्य मार्केट सड़क, रामझूला, स्वर्ग आश्रम, ऋषिकेश
उपयुक्त समयः मार्च से जून, सितंबर से नवंबर
लक्ष्मण झूला के निकट मौजूद तेरह मंजिल इमारत, जिसे त्रयंम्बेकश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इसकी तेरह मंजिलों में अलग अलग हिंदू देवी देवताओं की स्थापना है। परम पावन मां गंगा के तट पर अवस्थित मंदिर 12वीं सदी के दौरान आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया था। मंदिर के आस पास लगने वाली दुकानें पर्यटकों को खूब आकर्षित करती हैं।
स्थानः शिव चौक, लक्ष्मण झूला, जोंक, ऋषिकेश
उपयुक्त समयः मार्च से जून, सितंबर से नवंबर
अगर आप रिवर राफ्टिंग के शौकीन हैं तो यह आपके लिए बढिया जगह हो सकती है। एडवेंचर प्रेमियों के लिए यह जगह सर्वोत्तम है जहां रोलर कोस्टर, गोल्फ कोर्स और क्लब हाउस आदि शामिल हैं। यहां कैंपिग, कयाकिंग, रैपलिंग और तटों की गतिविधियों का अवलोकन कर सकते हैं।
स्थानः शिवपुरी, ऋषिकेश से 16 किमी की दूरी पर
उपयुक्त समयः मार्च से जून, सितंबर से नवंबर
ऋषिकेश जिसे हृषिकेश के नाम से भी जाना जाता है। गंगा आरती के वक्त का जगमग नज़ारा जिसकी छटा देखते बनती है। धर्म, आस्था, भक्ति और संस्कृति का केंद्र यह नगरी अपने उज्ज्वल वातावरण और नैसर्गिक सुंदरता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। जहां आत्मसाक्षात्कार जैसे मौन से लेकर, एडवेंचर की सारी सुविधाएं मौजूद हैं। इसे ‘विरासत का शहर’ भी कहते हैं, जहां प्रकृति से मिले आशीर्वाद का एहसास होता है।