केरल, ऐसा स्थान जहां समुद्र और पर्वत का मिलन हो। कुछ विदेशियों ने इसे मालाबार नाम दिया। बहुत लम्बे समय तक यह क्षे़त्र चेरा राजाओं के अधीन था, इस कारण इसे चेरलम् यानी चेरा का राज्य और फिर केरलम नाम से प्रसिद्ध हुआ। केरल की संस्कृति हज़ारों साल पुरानी है। कहीं कहीं हम लिखा देखते हैं कि केरल को ‘ईश्वर का अपना घर’ कहा जाता है। और यह कोई आश्चर्य वाली बात भी नहीं है। यहां का मौसम न ज्यादा गर्मी, न ज्यादा सर्दी, प्रचुर वर्षा, खूबसूरत प्रकृति, जल की समृद्धता, लम्बे समुद्री किनारे, घने-घने वन और बहुतायत नदियां। ऐसे में पर्यटन की दृष्टि से केरल बहुत लोकप्रिय है।आइए जानते हैं केरल के मंदिरों के बारें में, जो यहां की महिमा को और बढ़ाते हैं ।
यह एक हिंदू तीर्थ स्थल है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह केरल के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है और यहां का वैकोम अष्टमी महोत्सव विश्व प्रसिद्ध है। ग्रंथों के अनुसार इस जगह की पहचान वैयाघ्र गेहम और वैयाघ्र पुरम के रूप में की गई है, बाद में वैयाघ्र शब्द, वैकोम में परिवर्तित हो गया। कहते हैं कि व्याघ्रपद महर्षि का भगवान शिव से यहीं पर गहरी भेंट हुई, जिसके कारण इसका नाम व्याघ्रपदपुरम पड़ा। इस मंदिर में शैव व वैष्णव धर्म दोनों के अनुयायी पूजा अर्चना करते हैं।
स्थानः कोट्टायम, केरल
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
प्रमुख रूप से इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण की पूजा होती है। इस मंदिर का निर्माण 15 वीं शताब्दी के दौरान हुआ था जिसे स्थानीय शासक चेम्बकसेरी पूरादम थिरुनल देवनारायण थंपुरन ने करवाया था। यहां स्थापित भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति, भगवान विष्णु के पार्थसारथी के रूप के जैसी है। जिसके दाहिने हाथ में चाबुक, और बांए हाथ में शंख है। टीपू सुल्तान के आक्रमण के समय, श्रीकृष्ण की प्रतिमा को गुरुवायूर मंदिर से तीन साल तक सुरक्षित रखने के लिए अंबलप्पुझा मंदिर में लाया गया था। इस मंदिर में दूध और चावल से बनी मीठी खीर पायसम प्रसाद रूप में चढ़ाकर वितरित की जाती है और ऐसी मान्यता है कि गुरुवायूरप्पन प्रतिदिन इस प्रसाद को ग्रहण करने मंदिर आते हैं।
स्थानः अलप्पुझा, केरल
उपयुक्त समयः मार्च-अप्रैल, अक्टूबर से फरवरी
केरल में अति प्राचीन हिंदू मंदिर वडक्कुनाथन मंदिर शिव तत्व को समर्पित है। यहां की स्थापत्य कला केरल की उत्कृष्ट शैली का सर्वोत्तम उदाहरण है।कूटम्बलम को छोड़कर चारों तरफ एक एक विशाल मीनार है। मंदिर और कूटम्बलम में लकड़ी में नक्काशी की गई लघु चित्रावली प्रदर्शित है। मंदिर के अंदर महाभारतकालीन विभिन्न दृश्यों को दर्शाती भित्ति चित्र भी देखे जा सकते हैं। इस मंदिर की महत्ता और विशेषता इसी बात से प्रकट होती है कि इसे भित्ति चित्रों के साथ ही भारत सरकार द्वारा एक राष्ट्रीय स्तर की स्मारक घोषित किया गया है।परशुराम द्वारा स्थापित 108 शिव मंदिरों में यह पहला शिव मंदिर है जिसका उल्लेख शिव मंदिर स्तोत्र में श्रीमद दक्षिण कैलासम् के रूप में किया गया है।
स्थानः त्रिशूर, केरल
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
यह मंदिर वैष्णव परंपरा के 108 अभिमान क्षेत्रम में से एक है। यहां कहते हैं कि यहां माता लक्ष्मी, अपने पति के साथ निवास करती हैं। मुख्य रूप से यह भगवती धन की देवी लक्ष्मी को समर्पित एक मंदिर है। किंवदंती के अनुसार यहां के प्रमुख देवता लक्ष्मी नारायण भी हैं। मंदिर की विशेषता है कि विशेष बाधा जैसे भूत, प्रेत भगाने के लिए भी जाना जाता है।यह मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से प्राचीन विश्वकर्मा स्थापत्य यानी लकड़ी की मूर्ति का अंतिम प्रमाण है। श्री जगतजननी भगवती केरल में सबसे लोकप्रिय देवी-देवताओं में से एक हैं जो हिन्दू धर्म में भी सर्वोच्च सत्ता है। मंदिर में भगवती की पूजा तीन रूपों में अलग अलग की जाती है। सुबह महासरस्वती के रूप में, दोपहर में महालक्ष्मी और सांझ में महाकाली के रूप में।
स्थानः चोट्टानिकारा, कोच्चि, केरल
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
केरल के प्रमुख शिव मंदिरों में से एक यह मंदिर अष्ट गृह की भूमि माना जाता है जहां भगवान शिव आठ यानी एट्टू अलग अलग रूपों यानी मानम में प्रकट हुए थे, इसीलिए इस जगह को एट्टूमनूर कहते हैं। इस मंदिर में पूरे पारंपरिक रूप से पांडवों ने और ऋषि व्यास ने पूजा अर्चना की थी। यहां मुख्य प्रवेश द्वार के अंदर और बाहर की दीवारों पर द्रविड़ भित्ति चित्र है। प्रदोष नृथम अर्थात शिव के नृत्य का भित्ति चित्र भारत की बेहतरीन दीवार चित्रों में से एक है। मंदिर के अंदर एक सुनहरा ध्वजदंड है जिसके ऊपरीपृष्ठ पर एक बैल की प्रतिमा है जो छोटी छोटी घंटियों और धातु के बरगद के पत्तों से घिरी हुई हैं। वास्तुकला की दृष्टि से कहें तो इस मंदिर में विश्वकर्मा स्थापित इंजीनियरिंग कौशल की झलक है।
स्थानः कोट्टायम, केरल
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
यह मंदिर दक्षिण पश्चिम केरल में स्थित एक प्राचीन तीर्थस्थल है। नागों की पूजा के लिए यहां से अधिक शालीन, आश्चर्यचकित करने वाला, और ग्रन्थिक स्थान पूरी दुनिया में दूसरा नहीं है।ऋषि जमदग्नि के पुत्र और भृगु के वशंज परशुराम ने केरल की स्थापना के साथ इस संकल्पना को बनाया। किंवदंती है कि जब परशुराम ने केरल को वरदानस्वरूप पाया तब खारेपन के कारण यह रहने लायक नहीं था। इसके लिए परशुराम ने भगवान शिव की तपस्या की, और उपायस्वरूप नागों की पूजा करने का उपाय मिला। तब इस तीर्थस्थल का निर्माण हुआ। मन्नारसला ऐसा विशेष तीर्थ है जहां बहुत सी रोचक तथ्य और आकर्षक किंवदंतियां हैं और यहां की एक विशेष प्रथा है कि यहां की पूजा महिला द्वारा की जाती है जिन्हें वलिया अम्मा की पदवी दी जाती है।
स्थानः हरिपद, केरल
उपयुक्त समयः अक्टूबर-नवंबर
यह केरल की राजधानी में स्थित भगवान विष्णु को समर्पित मंदिरों में से एक बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है। यह स्मार्त पंरपरा के लोगों के लिए एक विशेष स्थल है जहां आदि शंकराचार्य ने मधुर पवित्र भजनों की रचना की थी। वास्तुकला की नज़र से देखें तो यह मंदिर कुछ सीमा तक तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के थिरुवतार में आदिकेशव पेरुमल मंदिर का प्रतिरूप है। स्थानीय भाषा मलयालम और तमिल में इस को अनंत का रूप कहते हैं, अनंत भगवान विष्णु का एक नाम है। यह मंदिर केरल और द्रविड़ शैली की वास्तुकला के दुर्बोध मिश्रण से बनाया गया है, जिसमें 16वीं शताब्दी का गोपुरम् है और ऊंची दीवारें है।
स्थानः तिरूवनंतपुरम, केरल
उपयुक्त समयः अक्टूबर से फरवरी
यह हिंदुओं के सबसे महत्वपूर्ण पूजा स्थलों में से एक है जो गुरुवायुरप्पन को समर्पित है। इसे धरती के बैकुंठ के रूप में जाना जाता है। मंदिर की खूबसूरती की तरह ही यहां का इतिहास भी बहुत रोचकता भरा है, कहते हैं इस मंदिर की स्थापना देवताओं के गुरु गुरू और पवन देवता वायु ने की थी, और भगवान कृष्ण के दिव्यस्वरूप को समर्पित किया, जिसे दोनों के संयुक्त नाम गुरुवायुरप्पन से पुकारा गया। दुरूह नक्काशी, ऊंचे गोपुरम यानी प्रवेश द्वार और शानदार प्रकाश स्तम्भ के साथ इसके वर्तमान केंद्रीय मंदिर का पुनर्निर्माण 1638 ई. में किया गया था, जो यहां की सांस्कृतिकता और धार्मिकता की झलक देता है।
स्थानः गुरुवायुर, केरल
उपयुक्त समयः नवंबर से फरवरी
यह एक महत्वपूर्ण मंदिर परिसर है जो पेरियार टाइगर अभयारण्य के अंदर है और दुनिया के सबसे बड़े तीर्थस्थलों में से एक है। यह मंदिर भगवान अयप्पपन को समर्पित हैं जो कहते हैं कि भगवान शिव और भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार इन दो पराशक्तियों के समागम से उत्पन्न हैं। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए 41 दिन के कठिन व्रत के अनुष्ठान को पूरा करना पड़ता है जिसे मण्डलम्’ कहते हैं। यहां पहुचने के लिए 5 किलोमीटर तक पैदल यात्रा करनी होती है। घने पर्वतों के बीच इस मंदिर की महिमा का बखान कम्बन रामायण, महाभागवत के अष्टम स्कंध और स्कन्दपुराण में मिलता है। यहां वर्ष में तीन बार जाया जा सकता है। विषु, मंडलम, और मकरविलक्कु इन तीन पर्वों पर मंदिरों के दर्शन किये जा सकते हैं।
स्थानः पथानामथिट्टा, केरल
उपयुक्त समयः मध्य अप्रैल, नवंबर-दिसम्बर, जनवरी मकरसंक्राति पर
यह मंदिर मां भद्रकाली को समर्पित हैं जिनकी सवारी वेताल पर है। यह मंदिर वार्षिक उत्सव अट्टुकल पोंगल उत्सव के लिए प्रसिद्ध है। यह एक ऐसा त्योहार है जो आध्यात्मिक गतिविधि के लिए महिलाओं की होने वाली सबसे विशाल सभा है, जिसके बारें में गिनीज़ बुक ऑफ द वर्ल्ड में भी दर्ज है।यह 10 दिनों का त्योहार होता है जिसमें 9वां दिन ‘पूरम दिवस’ प्रमुख आकर्षक हैं।
स्थानः अट्टुकल, केरल
उपयुक्त समयः फरवरी-मार्च
केरल, बहुत से प्राचीन मंदिरों की नगरी है, इन सभी के बारें में बहुत सी रोचक कथाएं प्रचलित हैं, जो इतिहास की खूबसूरती और मंदिरों के प्रति और जानने समझने को उत्सुक करती हैं। इनके साक्ष्यों का वर्णन किसी न किसी ग्रंथों में जरूर मिलता है। दक्षिण भारत की यह नगरी कलात्मक और दृश्यात्मक दोनों तरह से खूबसूरती की मिसाल है।