पुष्कर जिसे ब्रह्मा जी के एकमात्र ऐतिहासिक पवित्र मंदिर स्थित शहर होने के कारण राष्ट्रीय और वैश्विक रूप में प्रमुखता से जाना जाता है। कहते हैं ब्रह्मा जी ने लंबी तपस्या के लिए पुष्कर की पावन धरती को तपस्थली के रूप में चुना। पुष्कर उन पवित्र शहरों में से एक माना जाता है, जहां मंदिरों और घाटों की लंबी श्रृंखला अवस्थित है। प्रकृति के वरदान के रूप में मिला पुष्कर शहर का आध्यात्मिक और दिव्य वातावरण हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है। आइए विस्तार से जानते हैं इस ब्लॉग के तहत पुष्कर के प्रसिद्ध 10 पर्यटन स्थानों के बारें में,
पुष्कर झील परम पुनीत झीलों में से एक है जो सृष्टि के निर्माणकर्ता श्री ब्रह्मा जी से संबंधित मान्यताओं की साक्षी है। इस झील का जिक्र चौथी शताब्दी के सिक्कों पर देखने को मिलता है। अति पवित्र यह झील 52 पवित्र घाटों की श्रृंखला से जुड़ी हुई है जिसमें झील तक जाने वाली सीढियां प्रमुखता का केंद्र हैं। यहां स्नान कर मोक्ष पाने की अभिलाषा से सैंकड़ों तीर्थयात्री आते हैं, जहां कार्तिक पूर्णिमा के आसपास लगने वाले पुष्कर मेले के दौरान बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का तांता लगता हैं। मान्यता है कि इस पवित्र झील में डुबकी लगाने से त्वचा संबंधी रोग ठीक हो जाते हैं। इस झील के आसपास लगभग 500 से भी ज्यादा हिंदू मंदिर अवस्थित हैं जहां स्नान कर दर्शन करने से मनुष्य को पापों से मुक्ति मिल जाती है
इस मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी के दौरान पारीक नाम के ब्राह्मण समाज द्वारा करवाया गया था। मुख्यतया संगमरमर के पत्थरों से बना यह मंदिर नीले रंग के आकर्षक स्तंभों से सुसज्जित मंदिर हैं। जिसे सन् 2005 में राष्ट्रीय स्तर की स्मारक के रूप में संरक्षित होने का अवसर प्राप्त है। इस मंदिर और किंवदतियों का पुराना साथ है, कहते हैं कि मंदिर का निर्माण ब्रहमा जी के अनुष्ठान के बाद ऋषि विश्वामित्र ने किया था और कहावत यह भी है कि ब्रह्माजी ने अपने मंदिर हेतु यह स्थान स्वयं चुना था। इस मंदिर की कथा के बारें में पद्मपुराण में जिक्र मिलता है कि ब्रह्मा जी ने राक्षस वज्रनाथ का अपने कमल के फूल से वध कर दिया था और इस प्रक्रिया में कमल की पंखुड़ियां तीन स्थानों पर गिरी थीं जिनसे ज्येष्ठ पुष्कर झील, मध्य पुष्कर झील और कनिष्ठ पुष्कर झील का निर्माण हुआ। कहते हैं कि किसी विशेष पूजा करने के दौरान ब्रह्मा जी को अपनी पत्नी के साथ बैठकर उस पूजा को संपन्न करना था जिसमें सरस्वती देवी के ज्यादा देर लगाने के कारण ब्रह्मा जी ने गायत्री देवी से विवाह कर उन्हें पूजा स्थल पर अपने साथ बैठाया। इससे देवी सरस्वती क्रुध हो गईं और ब्रहमा जी के साथ अन्य लोगों को भी श्राप दे दिया। किंतु गायत्री माता के यज्ञ के प्रभाव से उन्होनें पुष्कर में उनके मंदिर और तीर्थों के राजा की उपाधि भी प्रदान की।
ब्रहमा जी की पहली पत्नी के रूप में प्रसिद्ध देवी सरस्वती का एक नाम सावित्री भी है। जो ब्रहमा जी से नाराज होकर चली गईं थीं और एक झरने के रूप में प्रवाहित होती हैं। इन्हीं का यहां प्रसिद्ध मंदिर देवी सावित्री के नाम से जाना जाता है। रत्नागिरी पहाड़ी के ऊपर स्थित यह मंदिर ऊंचाइयों पर स्थित मंदिरों मे से एक है जो लगभग 750 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, जिसमें 970 सीढियां है। मंदिर में देवी सावित्री के साथ दाहिनी तरफ शारदा और बाईं ओर देवी सरस्वती हैं जो सभी इन्हीं के रूप हैं। साथ ही देवी गायत्री की प्रतिमा भी यहां स्थापित है। मंदिर में गायत्री देवी की ध्यान अर्चना से पहले देवी सावित्री के दर्शन स्तुति करना उचित माना जाता हैं। इस मंदिर में भाद्रपद माह की सप्तमी की रात को देवी जागरण का आयोजन किया जाता है जो आध्यात्मिक दृषि् ट से बहुत महत्व रखता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए आप रोपवे का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
भगवान रंग देव विष्णु जी के ही अवतार को माना जाता है, इन्हें यह नाम दक्षिण भारतीय संस्कृति के तहत मिला हुआ है। भगवान रंग देव का यह मंदिर दक्षिण नागर शैली मे बना हुआ बहुत ही खूबसूरत मंदिर है जिसमें द्रविड़, राजपूत और मुगल शैलियों का भी अनोखा मिश्रण हैं। हैदराबाद के सेठ पूरन मल गनेरीवाल द्वारा बनवाया गया यह मंदिर 18वीं शताब्दी का अनूठा मंदिर है। जिसमें जटिल नक्काशी और भव्य प्र्रवेश द्वार है। साथ ही इसमें भगवान कृष्ण, माता लक्ष्मी और श्री रामानुजाचार्य की प्रतिमाएं हैं और रामानुज संप्रदाय का पूरे राजस्थान में पहला मंदिर है, जो यहां के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।
वराह अवतार भगवान विष्णु के अवतारों में से एक है, इनका यह प्रसिद्ध अवतार जंगली सुअर को समर्पित अवतार है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी के दौरान पृथ्वीराज चौहान के दादा जी महाराजा अनाजी चौहान द्वारा करवाया गया, जो पुष्कर के सबसे प्राचीन और विशाल मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को कई बार आक्रातांओं का शिकार होना पड़ा जिसका अनेकों बार जीर्णोद्धार भी करवाया गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हिरण्याक्ष राक्षस पृथ्वी को समुद्र के अंदर लेकर चला गया था जिससे हाहाकार मच गया था तब भगवान विष्णु वराह यानी जंगली सूअर का रूप रखकर समुद्र के अंदर जाकर वराह राक्षस का अंत किया और पृथ्वी को जल के ऊपर लाए। इस मंदिर की खूबसूरत नक्काशी और द्वारपालों की बड़ी बड़ी मूर्तियां देखने में आकर्षक लगती है जो राजपूत और मुगल स्थापत्य शैली के मिश्रण का बेहतर उदाहरण हैं।
पुष्कर दर्शन करने के अन्तर्गत खरीदारी करना एक महत्वपूर्ण पहलू है, जहां हस्तशिल्प की वस्तुएं जिसमें लकड़ी की नक्काशी, पत्थर और मीनाकरी का काम साथ ही हाथी दांत से बनी वस्तुएं शामिल होती हैं। यह एक वाइब्रेंट मार्केट है जहां सास्कृंतिक समृद्धि के साथ ही अन्य विविध पेशकशों से जुड़ी वस्तुएं हैं। यहां की अद्वितीय वस्तुएं सिर्फ पुष्कर के बाजार में ही देखने को मिलती है। यह पारंपरिक वस्त्र, आभूषणों से लेकर हाथ से बनाये कागज और धूपबत्ती के लिए मशहूर है।
पुष्कर राजस्थान के पवित्र शहर होने के साथ ही ऊंट सफारी के लिए भी प्रसिद्ध स्थान है, यहां आप ऊंट सफारी के साथ ही जीप सफारी और घुड़सवारी का भी आनंद ले सकते हैं। यहां का सफारी स्थल बहुत आकर्षक है जहां पर्यटक भारी संख्या में मनोरंजन हेतु पहुंचते हैं। यहां का पांरपरिक वाद्य यंत्र रावण हत्था को सुनना बेहद रोचक लगता है जहां कलबलिया यानी चलाएमान घरों का आनंद लिया जाता है। यहां के बाग, सूर्योदय और सूर्यास्त को देखना बहुत प्र्रिय लगता है। यहां पर अगर विदेशी पर्यटक आते हैं तो उन्हें प्रवेश करने से पहले पासपोर्ट और वीजा की प्रतिलिपि जमा करानी होती है। अरावली पर्वतमाला के बीच बनी यह सफारी पर्यटकों को खूब पसंद आती है।
वेदमाता, देवमाता गायत्री माता का यहां बहुत प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर अवस्थित है, जब ब्रह्मा जी पुष्कर में यज्ञ कार्य संपन्न करने वाले थे तब देवी सावित्री की अनुपस्थिति में उन्होंने माता गायत्री से विवाह कर यज्ञ कार्य संपन्न किया था तब से यहां ब्रह्मा जी के मंदिर होने के साथ ही माता गायत्री का भी मंदिर अवस्थित है। यज्ञ कार्य कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक चलने के कारण यहां इस दौरान हर वर्ष विशाल मेले का आयोजन होता है। इस मंदिर को पाप मोचनी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है जो एक छोटी पहाड़ी पर बना है। पुष्कर घाट से इस पहाड़ी तक पहुंचने में 20 मिनट का समय लगता है।
इसे नाग पहाड़ के नाम से भी जाना जाता है। इस पहाड़ को लेकर कई किंवदंतिया और पौराणिक कथाएं चलन में हैं जो इसका संबंध ऋषि अगस्त्य और नाग कुंड से दर्शाता है। इस पहाड़ के बारें में बताया जाता है कि च्यवन ऋषि द्वारा दंडित किए जाने पर ब्रह्मा पुत्र वतु ने यहीं शरण ली थी। यहां एक पवित्र जल स्त्रोत भी है जिसे नाग कुंड के नाम से जाना जाता है। कहते हैं यह पर्वत समय के साथ सिकुड़ता जा रहा है। नाग पहाड़ की ढलानों पर बालाजी मंदिर अवस्थित है जिन्हें नाग पहाड़ वाले बालाजी के नाम से जाना जाता है। इन पहाड़ों से आस पास के परिदृश्य अति मनमोहक प्रतीत होते हैं।
पुष्कर का सराफा बाजार राजस्थानी संस्कृति और पंरपरा की खूबसूरती को दर्शाता अति प्रिय बाजार है। सराफा जैसे नाम से ही स्पष्ट है कि यहां सोने चांदी के लुभावने और अद्वितीय डिजाइन के आभूषण आकर्षक प्रतीत होते हैं साथ ही चहल पहल वाली इस गली में शिल्प कौशल, कपड़े और पूजा पाठ से संबंधित धार्मिक सामग्री और पुष्कर झील, ब्रह्मा मंदिर और पुष्कर संबंधित अन्य स्मृत चिन्ह खरीद सकते हैं। सराफा बाजार में स्ट्रीट फूड्स के साथ स्थानीय मसालों की सुगंध से मन उनके स्वाद में खो जाता है। पवित्र पुष्कर झील के निकट यह बाजार मोल भाव के स्थान के साथ अति पवित्र भी है। यहां आप अपने लोगों को गिफ्ट के तौर पर खरीद के बहुत कुछ दे सकते हैं।
पुष्कर जाने हेतु उपयुक्त समयः पुष्कर जाने के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक का है और यहां नवंबर में लगने वाला पुष्कर मेला अति प्रसिद्ध है।
पुष्कर कैसे पहुंचेः पुष्कर अजमेर शहर के पास स्थित है जहां आप हवाई, रेल और अन्य मार्गों के द्वारा पहुंच सकते हैं।
पुष्कर, पवित्र नगरी के रूप में प्रसिद्ध बहुत ही रोचक शहर है, जिसके बारें में किवंदतियां विश्व प्र्रसिद्ध हैं। जहां सृष्टि निर्माता के साथ महर्षि अगस्त्य का भी पौराणिक स्थान है। पुष्कर झील के घाटों के साथ अरावली पर्वतमाला के शुष्क रेगिस्तान का भी आनंद है जहां पवित्र स्नान करने के साथ ही ऊंट की सवारी का भी मज़ा लिया जा सकता है और प्रसिद्ध ऐतिहासिक मंदिरों की वास्तुकला, उनके धार्मिक महत्व और उनसे जुड़ी मान्यताएं इस स्थान की महत्ता कई गुना बढा देती हैं।