ओडिशा राज्य की राजधानी के रूप में मशहूर भुवनेश्वर कई ऐतिहासिक इमारतों, स्थलों के साथ इस राज्य का सबसे बड़ा शहर है। प्रकृति ने मैंग्रोव वन क्षेत्र से नवाजा है, वहीं मंदिरों के शहर से सुशोभित होने वाला यह शहर आधुनिक समय में अधिकतर सभी क्षेत्रों में अग्रणी है जैसे स्पोर्ट्स, और आईटी। विरासतों का धनी यह शहर हिंदू, बौद्ध, जैन धर्म का केंद्र और आधुनिक भारत के पहले व्यवस्थित शहरों में से एक भी है, इतनी सारी विविधताओं के मेल से संपन्न भुवनेश्वर में पर्यटन के लिए विशेष क्या है, आइये जानते हैं, इस आर्टिकल में
यह भुवनेश्वर का सबसे बड़ा जल निकाय है जो लिंगराज मंदिर से प्राचीन संबंध रखता है। बिंदु सागर झील नाम से ही स्पष्ट होता है कि ऐसा सागर जो एक बिंदु में समाया हो, इसको लेकर कई अनुश्रुतियों का जिक्र होता है, कहते हैं इस स्थान पर भगवान शिव ने देवी पार्वती की प्यास बुझाने हेतु त्रिशूल से वार किया जिससे यह झरना प्रकट हुआ जो परम पावन है। प्राचीन दृष्टि से महत्वपूर्ण झरने का अनुमानित समय 7वीं या 8वीं शताब्दी है, इसका प्रमाण चारों दिशाओं के किनारों पर बने प्रसिद्ध मंदिर हैं। लैटेराइट ब्लॉकों से बनी सीढियां और सूखी चिनाई तकनीक से बना यह तालाब शाम के समय लाइट एंड साउंड शो की वजह से और खूबसूरत प्रतीत होता है। मई में होने वाली चंदन यात्रा में भगवान लिंगराज की शानदार सवारी नाव से मंदिर जाती है, जो एक प्रसिद्ध महोत्सव है।
स्थानः ओल्ड टाउन, बिंदुसागर रोड, ओडिशा
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
भुवनेश्वर के सबसे बड़े मंदिरों में से एक लिंगराज मंदिर कलिंग वास्तुकला और देउला शैली का परिचायक एक प्रमुख ऐतिहासिक स्थल है, इसका संबंध मध्ययुगीन काल से संबंधित सोमवंशी शासकों द्वारा दर्शाता है, बाद में गंगवंशीय शासकों ने भी इसका निर्माण करवाया गया है। भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित इस मंदिर में चार प्रमुख भाग है जैसे विमान (गर्भग्रह), जगमोहन (सभा हॉल), नटमंदिर (त्योहार हॉल) और भोगमंडप (प्रसाद का हॉल)। रोचक बात है कि इस मंदिर परिसर में 108 अन्य मंदिर बने हुए हैं जो परिसर की दीवार से घिरे हुए हैं। मूल रूप से एक बड़े से आम के पेड़ के नीचे लिंगराज मंदिर के प्रमुख देवता का उल्लेख संस्कृत ग्रंथ के एकाम्र पुराण में मिलता है।
स्थानः लिंगराज नगर, ओल्ड टाउन, भुवनेश्वर, ओडिशा
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
ओडिशा में पीले और लाल बलुआ पत्थरों को ‘‘राजा रानी’’ के नाम से जानते हैं, मंदिर इन्हीं पत्थरों से बना है इसीलिये इसे राजरानी मंदिर नाम से पुकारते हैं। पंचरथ शैली में बना यह मंदिर स्पष्ट रूप से किसी भगवान को समर्पित नहीं है, कामुक नक्काशी के कारण स्थानीय रूप से प्रेम मंदिर नाम से जानते हैं। स्थापत्य शैली का संबंध 11वीं शताब्दी के मध्य का माना जाता है। मंदिर के कुछ विशिष्ट प्रमाणों की वजह से कभी यह भगवान शिव जैसे शैव द्वारपालों की उपस्थिति और कभी भगवान विष्णु को समर्पित मंदिर जैसे ऊपरी चबूतरे पर पंखुड़ियों के साथ कमल की तरह उकेरी गई आकृति के कारण प्रतीत होता है। पत्थरों पर विभिन्न प्रकार की नक्काशी जैसे शिव पार्वती के विवाह दृश्य, नाग नागिनी स्तम्भ, अन्य रूपांकनों में ब्याल, पत्ते, लताएं और वनलता हैं। हर साल 18 से 20 जनवरी तक होने वाला राजरानी संगीत समारोह शास्त्रीय संगीत की तीनों शैलियों, हिंदुस्तानी, कर्नाटक और ओडिसी पर आधारित होता है, जो बहुप्रसिद्ध है।
स्थानः केदार गौरी विहार, राजरानी कॉलोनी, राजरानी मंदिर, भुवनेश्वर, ओडिशा
उपयुक्त समयः अक्टूबर से फरवरी
जनजातीय अनुसंधान और कला, कलाकृतियों का संस्थान संग्रहालय को व्यवाहारिक रूप से मानव संग्रहालय के रूप में नामित किया गया है, यहां आदिवासी कारीगरों द्वारा बनी कलाओं के नमूने हैं जो इनकी सांस्कृतिक रूप से समृद्धि को दर्शाता है। यहां विविध स्थानीय कलाओं, कलाकृतियों, औजारों और इनकी लोकपंरपराओं की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, आवासीय रहन सहन से लेकर रोजगार प्रयासों की जानकारी जैसे मछली पकड़ना, वाद्ययंत्र, वस्त्र, व्यक्तिगत सामान, शिकार और पेंटिग जैसे हुनरों की मदद से इनके बारें में और बेहतर से जान सकते हैं। इनकी झोपड़ियों के कई प्रकार होते हैं जैसे कंधा, गदाबा, चुक्तिया भुंजिया, लांजिया साओरा, गोंड, संथाल और जुआंग। स्थानीय आदिवासी औद्योगीकरण से पहले अपना जीवन यापन कैसे करते थे यह जानने का अवसर संग्रहालय रोचकता के साथ ऑडियो विजुअल इंटरेक्टिव रूप में भी प्र्रदान करता हैं, जो इसका आकर्षण कई गुना बढ़ा देते हैं।
स्थानः स्टेट म्यूज़ियम, कल्पना स्क्वायर, बीजेबी नगर, भुवनेश्वर, ओडिशा
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
नंदन कानन प्राणी उद्यान से भुवनेश्वर से 10 किमी उत्तर में है जो 1960 में स्थापित हुआ, 1979 में पब्लिक के लिए खोला गया और साल 2009 में विश्व चिड़ियाघर और एक्वेरियम संघ में शामिल होने वाला भारत का पहला चिड़ियाघर बना। यह वनस्पति उद्यान भी है साथ ही इसका एक भाग अभयारण्य के रूप में बनाया गया है। यहां लगभग 166 प्रजातियों के लगभग 1660 व्यक्तिगत जानवर हैं, जिसमें स्तनधारी, पक्षी, सरीसृप की विभिन्न प्रजातियां हैं। यहां 34 एक्वेरियम भी हैं जिनमे विभिन्न प्रकार की मछलियां पाई जाती हैं। मुख्य आकर्षण के रूप में सफेद बाघ और पैंगोलिन का सफलतापूर्वक प्रजनन यहां की उपलब्धि है। यह प्राणी उद्यान, वनस्पति, जीव और अभयारण्य के रूप में 1,080 एकड़ क्षेत्रफल में फैला हुआ है, यहां हर साल लगभग 2.5 मिलियन से भी ज्यादा पर्यटक आना पसंद करते हैं।
स्थानः नंदनकानन रोड, नियर पुलिस स्टेशन, बारंग, भुवनेश्वर, ओडिशा
उपयुक्त समयः अक्टूबर से फरवरी
प्राचीन काल के इस मंदिर के इतिहास के बारें में यहां मौजूद शिलालेखों से स्पष्ट रूप से पता चलता है, इसका निर्माण 9वीं शताब्दी के दौरान सोमवंशी राजा उद्योतकेसरी के शासनकाल के दौरान उनकी मां कोलावती ने करवाया था, इसे चार नाट्यशालाओं के साथ सिद्धतीर्थ नामक स्थान पर बनवाया गया था। मंदिर की वास्तुकला उड़िया संस्कृति से विशेष प्रभावित होते हुए पंचतनय मंदिर के रूप में वर्णित है। बलुआ पत्थर से बने यहां के मंदिरों में नक्काशियों के साथ और दरवाजे के फ्रेम पर सुंदर फूलों के साथ उकेरी गईं आकृतियां भी हैं। इस मंदिर के निर्माण में पहली बार लोहे की बीम का उपयोग मिलता है।
स्थानः टांकापानी रोड, सिबा नगर, ब्रह्मेश्वरपटना, भुवनेश्वर, ओडिशा
उपयुक्त समयः अक्टूबर से फरवरी
10वीं शताब्दी का मंदिर जो हिंदू मंदिरों के इतिहास में एक गौरवशाली मंदिर की भूमिका में है, जो भगवान शिव को समर्पित है। यह कलिंग स्थापत्य शैली का उत्कृष्ट नमूना है। जटिल मूर्तिकला, नक्काशियों की कलाकृतियां और मंदिर का अष्टकोणीय परिसर जो देखने में अद्वितीय है। मंदिर का प्रवेश द्वार धनुषाकार है जिसमें बौद्ध वास्तुकला का असर देखने का मिलता है। विभिन्न तरह की उकेरी गई कलाकृतियां आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं जिसकी वजह से इसे ‘‘कलिंग वास्तुकला का असली रत्न’’ माना गया है। मंदिर की पूर्व में एक तालाब है और दक्षिण पश्चिमी में एक कुआं है जिसे मरीची कुंड के नाम से जानते हैं, मान्यता है कि यहां डुबकी लगाने से बांझपन की समस्या से निजात मिलती है।
स्थानः केदार गौरी विहार, ओल्ड टाउन, भुवनेश्वर, ओडिशा
समयः अक्टूबर से फरवरी
भुवनेश्वर के सबसे पुराने मंदिर के नाम से प्रचलित यह मंदिर 7वीं या 8वीं शताब्दी का बना हुआ प्रसिद्ध मंदिर है जिसका निर्माण शैलोद्धव ने कराया था। यह मंदिर मुक्तेश्वर मंदिर के परिसर में स्थित बहुत प्रसिद्ध मंदिर है जहां भगवान शिव की पूजा होती है। कलिंग वास्तुकला शैली में मंदिर के दो प्रमुख भाग होते हैं गर्भग्रह और प्रार्थना कक्ष जिन्हें क्रमशः विमान और जगमोहन कहा जाता है। परशुराम मंदिर से ही इस शैली में जगमोहन का बनाना देखा गया इसके पहले सिर्फ विमान संरचना के बने मंदिर हुआ करते थे। चौकोर विमान योजना और दीवारों के खंड को रथ कहा गया। मंदिर में षष्ठ भुजाओं वाली महिषमर्दिनी की छवि का सबसे पहली छवि यहीं देखने को मिलती हैं। इस मंदिर में परशुरामष्टमी मनाया जाने वाला प्रमुख त्यौहार है, जब लिंगराज की त्यौहारी छवि को परशुरामेश्वर मंदिर में ले जाया जाता है और भोग दिया जाता है।
स्थानः नियर बिंदु सागर तालाब, ओल्ड टाउन, भुवनेश्वर, ओडिशा
उपयुक्त समयः अक्टूबर से फरवरी
एकाम्र कानन बॉटनिकल गार्डन जो भारत का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध कानन है, स्थापना 1985 में हुई थी। कानन का हिन्दी भाषा अर्थ वन होता है। यह 500 एकड़ भूमि पर फैला हुआ अति सुंदर पार्क है जिसके रखरखाव की जिम्मेदारी क्षेत्रीय पादप संसाधन केंद्र की है। साल 2020 में यहां दो दिवसीय पुष्प प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था। एकाम्र क्षेत्र कैक्टस के पेड़ों के लिए भी जाना जाता है।
स्थानः ओडिसा सरकार, वन एवं पर्यावरण विभाग, नयापल्ली, भुवनेश्वर, ओडिशा
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
भुवेनश्वर से 20 किमी की दूरी पर अवस्थित चौंसठ योगिनी माता मंदिर पूरे भारतवर्ष में अपनी तरह का अकेला ऐसा मंदिर है, यह छत रहित वास्तुकला मंदिर है, जो तांत्रिक स्थलों की पूजा के लिए काम आने वाला मंदिर है। योगिनी देवी का अवतार कही जाती हैं, 64 योगनियों की मूर्तियां अलग अलग भावों जैसे खुशी, क्रोध, आनंद को प्रकट करते हुए इस मंदिर में अवस्थित हैं।
स्थानः हीरापुर, भुवनेश्वर से 20किमी दूर, ओडिशा
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
कलिंग उत्कल संस्कृति का द्योतक भुवनेश्वर शानदार प्राकृतिक विरासत और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम है। यहां के मंदिरों में ऐतिहासिक वास्तुकला के साथ पौराणिक कथाओं का सार छिपा हुआ है और मैंग्रोव वन क्षेत्र होने से यहां का दृश्य बहुत मनोरम प्रतीत होता है। उद्यानों में विभिन्न प्रजातियों और वर्गों के जीवों को देखने का आनंद मिलता है, यहां आप प्रकृति और इतिहास के साथ ही आधुनिकता से भी खुद को जोड़ सकते हैं जो आपकी अनूठी स्मृतियों को खूबसूरती के साथ सहेज कर रखता है।