• Aug 07, 2025

भारत की सीमा से सटा नेपाल, जहां आज भी हिंदू धर्म मानने वालें अनुयायियों की संख्या ज्यादा है, ऐसे में यहां के हिंदू मंदिरों की प्रसिद्धि और रोचकता और बढ जाती है। भगवान शिव से लेकर हिंदू धर्म के सभी मुख्य देवी देवताओं के यहां प्रमुख मंदिर अवस्थित हैं। हिंदू और बौद्ध धर्म से जुड़े यहां कई प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों की रौनक के साथ ही नेपाल का रामायण काल से भी गहरा नाता है। भक्ति, आस्था और ऐतिहासिक विरासत का अनमोल संगम, जहां प्रकृति की खूबसूरती के साथ आध्यात्मिक ऊर्जा का भी संचार होता है, नेपाल के प्रमुख मंदिरों में हर साल भारत और दुनिया भर से दर्शनार्थी दर्शन करने आते हैं, शांत और जीवंत उत्सव जैसे इन मंदिरों का प्रत्येक क्षण बहुत ही आकर्षक होता है। आकर्षण की इन्हीं विशेषताओं को समझते हैं-

1. पशुपतिनाथ मंदिर

विस्तृत हिंदू परिसर और यूनेस्को की धरोहर में शामिल इस मंदिर का स्वरूप भगवान शिव के पशुपति रूप को समर्पित है, जिसके किनारे बागमती नदी बहती है। इस मंदिर की स्थापना से जुड़े कोई ज्ञात तथ्य नहीं है, फिर भी इसे नेपाल के सबसे पुराने मंदिरों में पहला स्थान प्राप्त है। हिंदू और बौद्ध धर्म को समर्पित इस मंदिर की वास्तुकला पैगोडा और नेवारी शैली में निर्मित हैं, जहां सोने के शिखर के साथ चांदी से मढे चार दरवाजें हैं, दो स्तरीय छतें तांबे की हैं जिन पर ताम्र आवरण चढा हुआ है। स्कंद पुराण वर्णित पशुपतिनाथ भगवान शिव का बहुत पवित्र स्थान है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पशुपतिनाथ को भगवान शिव के सिर की संज्ञा दी जाती है, जिनका संपूर्ण शरीर काशी विश्वनाथ तक विस्तृत है। इसे पंच केदारों का भी एक अंग माना जाता है, कहा जाता है कि भगवान शिव जब बैल रूप में प्रकट हुए, तब उनके पृष्ठ भाग की पूजा केदारनाथ में होती है और उनके मुख की पूजा नेपाल के पशुपतिनाथ में की जाती है और पंच केदार की यह यात्रा तभी सफल होती है जब केदारनाथ और अन्य मंदिरों के साथ पशुपतिनाथ विशाल मुखलिंग के दर्शन भी कर लिए जाएं।

  • स्थानः भृकुटी मंडप, काठमांडू, नेपाल
  • समयः सुबह 4 बजे से दोपहर 12 बजे, शाम 5 बजे से रात 9 बजे
  • प्रवेश शुल्कः नेपालियों और भारतीयों के लिए निःशुल्क, अन्य लोगों के लिए 1000 नेपाली रूपया

2. जानकी मंदिर

नेपाल के जनकपुर धाम में प्रतिष्ठित हिंदू मंदिर माता सीता को समर्पित प्रमुख धाम है, जिसकी कोइरी हिंदू वास्तुकला इसे और भव्य बनाती है, श्वेत रंग से सुशोभित यह मंदिर तीन स्तरीय मंजिलों में बना है जो लगभग 1480 वर्ग मीटर में फैला हुआ जनकपुर मिथिला का प्रमुख आकर्षण हैं। मंदिर की दीवारों पर बनी मधुबनी चित्रकारी का आकर्षण और कुल 60 कमरों में सजी नक्काशी और रंगीन शीशों के चित्रों से रौनक और बढ जाती हैं। मान्यता हैं कि रामायण काल में माता सीता और भगवान राम का विवाह इसी मंदिर या महल में बने विवाह मंडप में हुआ था। इस मंदिर के पौराणिक इतिहास में ओरछा की रानी वृषभानु का जिक्र मिलता है जिन्होंने इस मंदिर का निर्माण लगभग 1910 ई. में कराया था जिसमें नौ लाख स्वर्ण सिक्के लगे थे, इस वजह से इसे नौ लखा मंदिर भी कहते हैं। वर्तमान जनकपुर के संस्थापक और प्रसिद्ध संत कवि शूरकिशोरदासजी जिन्होंने सीता उपनिषद् की रचना भी की है, इन्हें 16वीं शताब्दी में माता सीता की स्वर्ण प्रतिमा इसी स्थान पर मिली थी। कहते हैं इसी स्थान पर राजा जनक ने त्रेता युग में शिव धनुष की पूजा की थी।

  • स्थानः जानकी चौक, जनकपुर, नेपाल
  • समयः सुबह 5ः30 बजे - 11 बजे, शाम 4 बजे - रात 8ः30 बजे
  • प्रवेश शुल्कः किसी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता है।

3. शेष नारायण मंदिरः

नेपाल में स्थित शेष नारायण मंदिर विशाल क्षेत्रफल और रोचक वास्तुकला शैली के लिए जाना जाता है  जो यहां इस घाटी में स्थित भगवान विष्णु के चार मंदिरों में से एक है। मंदिर के निर्माण में लिच्छवि शासक विष्णुगुप्त का महत्वपूर्ण स्थान हैं जिन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया, जिसकी वास्तुकला पैगोडा शैली और नेवारी शैलियों का सम्मिश्रण हैं जिसमें लकड़ी की नक्काशी की बेहतरीन सजावट भी है। भगवान विष्णु के अन्य तीन मंदिर बिशंकु नारायण, इच्छांगु नारायण और चंगु नारायण हैं। यह मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल प्रमुख आकर्षण हैं जहां आप बैठकर भगवान का ध्यान भी कर सकते हैं।

  • स्थानः थान बस स्टॉप, दक्षिण काली, काठमांडू से लगभग 20 किमी दक्षिण की ओर, नेपाल
  • समयः 24 घंटे खुला रहता है।
  • प्रवेश शुल्कः कुछ नहीं है।

4. गुह्येश्वरी मंदिर

यह मंदिर हिंदू धर्म के साथ ही बौद्ध धर्म के लिए भी आस्था का केंद्र है। भगवान शिव के मुख्य मंदिरों के पास ही माता सती के संबंधित शक्तिपीठों का अद्भुत संगम यहां भी देखने को मिलता है। पशुपति नाथ मंदिर से लगभग 1 किमी दूरी पर अवस्थित यह मंदिर तंत्र साधनाओं जैसी गुप्त विद्याओं के लिए भी प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार राजा मल्ल ने 17वीं शताब्दी के आसपास कराया था। इस मंदिर के संबंध में भागवत पुराण में भी पढने को मिलता है, इन देवी का अर्थ है रहस्यमय यानी छिपी हुई शक्ति। इस स्थान पर माता सती के शरीर का गुहा भाग गिरने की कथा सुनने को मिलती है, जहां देवी की पूजा केंद्र में एक कलश के रूप में की जाती है जिसमें चांदी और सोने की परत चढी हुई हैं, जो पत्थरे से बने आधार पर टिका है और इसकी छांव में कलश के किनारों से एक प्राकृतिक झरना भी प्रवाहित होता हैं। माता गुहेश्वरी देवी असंख्य हाथों वाली और अलग अलग रंगों की सिर वाली देवी के रूप में मूर्त रूप में पूज्य हैं। बौद्ध धर्म को मानने वाले इन्हें वज्रयोगिनी या वज्रवराही के रूप में पूजते हैं जिस पर यहां स्वयंभूनाथ स्तूप स्थापित है, इसको काठमांडू नेपाल का पालन पोषण करने वाली गर्भनाल के रूप में भी जानते हैं और मंदिर में बहने वाले जल को गर्भ का जल यानी एमनियोटिक द्रव मानते हैं जिसमें गर्भस्थ शिशु नौ माह तक रहता है। इस प्रकार से इस मंदिर में गर्भकाल में रहने सी अनुभूति होती है।

  • स्थानः काठमांडू, नेपाल
  • समयः सुबह 4 बजे से रात 11 बजे
  • प्रवेश शुल्कः कोई शुल्क नहीं है।

5. पाटन कृष्ण मंदिर

यूनेस्को के विश्व धरोहर में शामिल यह मंदिर लगभग 17वीं शताब्दी के दौरान राजा सिद्धिन्द्र सिंह मल्ल द्वारा बनवाया गया था इसके लिए किंवदंती है कि इस मंदिर को बनाने के लिए ईश्वरीय शक्ति द्वारा स्वप्न में निदेर्शित किया गया था।  21 स्वर्ण शिखरों से सुसज्जित तीन स्तरीय यह मंजिल शिखर शैली का उत्कृष्ट नमूना है। इसकी पहली मंजिल पर कृष्ण और महाभारत की नक्काशी देखने को मिलती है, दूसरी पर भगवान शिव का प्रतीक स्वरूप शिवलिंग और नेवारी लिखावट में रामायण की कहानी की दास्तां पढने को मिलती है, और तीसरी मंजिल पर लोकेश्वर भगवान बुद्ध विराजित हैं। भगवान कृष्ण, महाशक्ति विष्णु के ही प्रतीक स्वरूप हैं, मंदिर में कई जगह भगवान विष्णु अपने वाहन गरूड़ के साथ की छवियों के साथ स्थापित हैं। मंदिर बनने के लगभग 10 वर्ष बाद मंदिर सामने एक स्तंभ पर भगवान गरूड़ की विशाल प्रतिमा स्थापित है। पाटन कृष्ण मंदिर यहां आयोजित होने वाले विभिन्न धार्मिक उत्सवों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए जाना जाता है।

  • स्थानः पाटन या ललितपुर, नेपाल
  • समयः सुबह 4 बजे से रात 9 बजे
  • प्रवेश शुल्कः कोई प्रवेश शुल्क नहीं है।

6. डोलेश्वर मंहादेव मंदिर

भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर की किंवदंती बड़ी रोचक है, एक बार जब रावण और भगवान शिव में युद्ध हुआ तब भगवान शंकर का सिर धड़ से अलग होकर इसी स्थान पर गिरा था और यह जगह इनके शिवलिंग की स्थापना के साथ डोलेश्वर नाम से प्रसिद्ध मंदिर बन गया। मंदिर की बनावट और वातावरणीय परिवेश तीर्थयात्रियों को आध्यात्मिक आभा प्रदान करता है। इसकी स्थापत्य कला नेवारी संस्कृति से प्रभावित है जिसमें महीन नक्काशीदार लकड़ी की प्रतिकृतियां, दरवाजों और खिड़कियों की डिजाइन की शोभा और पैगोडा शैली की छतें इसकी भव्यता को और बढाने का काम करती हैं। मंदिर परिसर के पवित्र कुंड का जल अति पावन और स्नान करने योग्य है, मान्यता है कि कुंड का जल समस्त रोगों का नाश करते हुए चिंरजीवी होने का आशीर्वाद प्रदान करता है। यहां होने वाले धार्मिक उत्सव और अनुष्ठानों की धूम भक्तों को बरबस ही आकर्षित करती है।

  • स्थानः सूर्य विनायक, भक्तपुर, नेपाल
  • समयः सुबह 5ः30 - शाम 7 बजे
  • प्रवेश शुल्कः प्रवेश शुल्क नहीं लिया जाता है।

7. मुक्तिनाथ मंदिर

हिंदू धर्म की तीन महाशक्तियों में से एक भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर में इन्हें मोक्ष प्रदायी रूप में पूजा जाता है जो मुक्ति प्रदान करते हैं इसलिए मुक्तिनाथ नाम से प्रसिद्ध हैं। जहां यह एक शालिग्राम जीवाश्म पुनीत शिला के रूप में प्रकट हैं, जो भगवान विष्णु के आठ स्वयं भू पवित्र स्थानों मेंं से एक है। इस पवित्र शिला से जुड़ी बहुत प्रसिद्ध पौराणिक कथा है- अपनी परम प्रिय भक्त तुलसी यानी वृंदा के सतीत्व के कारण इनके राक्षस पति जलंधर की मृत्यु अटल हो गई थी और इस वजह से वह और ज्यादा पाप करने लगा जिस वजह से भगवान विष्णु को अपनी भक्त वृंदा से छल करना पड़ा जिसके उपरांत वृंदा से मिले श्राप के कारण भगवान विष्णु इस शिला में परिवर्तित हो गए और अनादिकाल से इसी रूप में भक्तो को दर्शन देते हैं। इस मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में रानी सुवर्ण प्रभा देवी द्वारा करवाया गया है। इस मंदिर में भगवान विष्णु की तांबे की प्रतिमा और अन्य देवी देवताओं के विग्रहों के दर्शन कर सकते हैं। मंदिर के बाहर 108 जलस्त्रोतों से प्रवाहित दिव्य जल को स्पर्श करने से जाने अंजाने में किये गए पापों का नाश हो जाता है।

  • स्थानः मस्तंग, नेपाल
  • समयः सुबह 5 बजे - दोपहर 12 बजे , दोपहर 2 बजे से रात 9 बजे
  • प्रवेश शुल्कः कोई प्रवेश शुल्क अनुमन्य नहीं है।

8. चंगुनारायण मंदिर

नेपाल के काठमांडू में लगभग 12 किमी पूर्व दिशा की ओर, भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर नेपाल का बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है जो यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है। यहां भगवान विष्णु की पूजा सिर कटे रूप में की जाती है, जिसको लेकर एक पौराणिक कहानी कही जाती है- किसी भक्त ने धोखे और क्रोध की वजह से भगवान विष्णु का सिर काट दिया था जो उसकी चंपक वृक्ष के नीचे बैठती कपिला गाय का दूध बिना पूछे ही रोज पी जाते थे। मंदिर की वास्तुकला नेपाली संस्कृति से प्रभावित है, जिसके आसपास का क्षेत्र बहुत ही शांत और प्राकृतिक सुंदरता से ओतप्रोत है। अपनी काष्ठ बनावट और पत्थर की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध यह मंदिर अपनी शिल्प कला और कला की बारीकियों से अद्भुत आकर्षण प्रदान करता है। इस मंदिर का निर्माण चौथी शताब्दी में लिच्छवि राजा हरिदत्त बर्मा के समय पर हुआ था, जो इसकी प्राचीनता को दर्शाता है।

  • स्थानः चंगु नारायण, भक्तपुर
  • समयः सुबह 4 बजे से रात 10 बजे
  • प्रवेश शुल्कः नेपाली नागरिकों के लिए कोई शुल्क नहीं, सार्क राष्ट्रवासियों के लिए नेपाली 100 रूपये, अन्य विदेशियों के लिए 300 नेपाली रूपये

9. मनकामना मंदिरः

यह मंदिर पर्यटकों को बहुत ज्यादा आकर्षित करता है, जिसका परिवेश, पहुंचने का रास्ता और माध्यम इसे और लोकप्रिय बनाता है। नेपाल की राजधानी काठमांडू में मार्शयागंडी और त्रिशूली नदियों के किनारे लगभग 1300 मीटर की ऊंची पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर भव्य वातावरण की खूबसूरती के साथ बहुत ही लुभावना लगता है। जहां से आप अन्य पहाड़ियों के मंत्रमुग्ध कर देने वाले दृश्यों को भी देख सकते हैं, यहां पहुंचने के लिए केबल कार से जाना बहुत रोमांचक और शानदार अनुभव प्रदान करता है। यह मंदिर माता भगवती पार्वती को समर्पित है जहां मन की सारे कामनाएं पूरी हो जाती है। यहां मन्नत मानने के लिए भक्त दिये जलाना और फूल चढाते हैं। जहां की पूजा में प्रयुक्त हर वस्तु का कोई न कोई अर्थ जरूर होता है, जैसे लाल कुमकुम का अर्थ होता है सौभाग्य की निशानी। इस मंदिर की स्थापना को लेकर सुनने में आता है कि माता अपने भक्त के सपने में आईं और मंदिर बनवाने के लिए कहा।

  • स्थानः कुरिन्तार, गोरखा, नेपाल
  • समयः सुबह 5 बजे - दोपहर 12 बजे ,दोपहर 2 बजे - रात 9 बजे
  • प्रवेश शुल्कः कोई शुल्क नहीं है।

10. जल नारायण मंदिर

अद्भुत आश्चर्य के कई उदाहरण नेपाल में देखने को मिलते हैं उन्हीं में से एक है जल नारायण मंदिर, जिसे बुधनीलकंठ नाम से भी जानते हैं। इस मंदिर की विशाल प्र्रतिमा अपने आप में एक मुख्य आकर्षण हैं- विशाल भव्य भगवान विष्णु की लेटी हुई प्रतिमा जो शेषनाग की कुंडलीमय आकृति में शयन कर रहे हैं और यह मूर्ति विशाल जल तालाब के बीच में ही अवस्थित है, इस वजह से यह बहुत अनोखा आनंद प्रदान करती हैं। यह मंदिर काठमांडू से 10 किमी उत्तर में शिवपुरी पहाड़ियों की तलहटी में बसा एक अनूठा स्थान है। इस मंदिर का संबंध हिंदू धर्मग्रंथों की एक वृतांत से है- जब समुद्र मंथन के द्वारा घातक विष को भगवान शिव द्वारा पिया गया तब भगवान शिव ने अपनी प्यास बुझाने को इस जगह त्रिशूल से मीठे पानी की एक झील को प्रकट किया, उनकी प्यास बुझ गई और इस झील को गोसाईंकुंड नाम से पुकारा जाता है। इसी झील से जलनारायण मंदिर के तालाब को पानी मिलता है। बौद्ध धर्म के लिए यह भगवान बौद्ध की प्रतिमा के रूप में पूजनीय है।

  • स्थानः बुधनीलकांठा, काठमांडू, नेपाल
  • समयः सुबह 4 बजे से शाम 7ः30 बजे
  • प्रवेश शुल्कः निःशुल्क

11. दक्षिण काली मंदिरः

सुरम्य जंगलों के बीच स्थापित यह मंदिर माता काली को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है जहां बलि देने की परंपरा का पालन किया जाता है। दक्षिण काली मां, भक्तों का सदैव उद्धार करती हैं और हर मुसीबत से उनकी रक्षा करती हैं। मंदिर के चारों तरफ बेहतर सजावट और नक्काशी देखने को मिलती है और त्योहारों व उत्सवों के दौरान यहां का माहौल बहुत खुशनुमा, आध्यात्मिक और सजीव जाता है। आस पास के घने वनों के बीच यह मंदिर ऐतिहासिक और भव्य प्रतीत होता है। कहते हैं जो काली मां की उपासना करते हैं उन्हें मृत्यु का भय नही सताता।

  • स्थानः फार्पिंग, काठमांडू, नेपाल
  • समयः सुबह 6 बजे - रात 9 बजे
  • प्रवेश शुल्कः कोई शुल्क नहीं है।

12. बिंध्यबासिनी मंदिर

भगवान श्री कृष्ण के स्थान पर राजा कंस के द्वारा मारने हेतु जिस बच्ची को लाया गया था, वहीं माता बिंध्यबासिनी हैं। नेपाल के प्राचीन मंदिरों मे से एक यह मंदिर माता भगवती देवी काली जिनका यहां निवास है, उन्हें समर्पित हैं इसी कारण उन्हें बिंध्यबासिनी कहा जाता है।एक छोटी सी पहाड़ी पर निर्मित यह मंदिर 17वीं शताब्दी के आसपास राजा सिद्धि नारायण शाह द्वारा बनवाया गया था। जिसकी मूर्ति भारत स्थित बिंध्याचल पर्वत से लाई गई है, जिसके बारें में माता ने राजा को स्वप्न में ही बताया था। इस मंदिर की वर्तमान शैली अति प्राचीन शिखर शैली है। आसपास का जीवंत और मंत्रमुग्ध करने वाले नजारें भक्त और पर्यटकों को बहुत आकर्षित करते हैं। इस मंदिर में अन्य भगवान की दिव्य उपस्थिति जैसे माता सरस्वती, भगवान शिव, हनुमान और गणेश जी की प्रतिमाओं के दर्शन मिलते हैं।

  • स्थानः पोखरा, काठमांडू, नेपाल
  • समयः 24 घंटे खुला रहता है।
  • प्रवेश शुल्कः कोई शुल्क नहीं है।

निष्कर्षः

अंत में, नेपाल के इन आध्यात्मिक स्थानों की अवस्थिति बहुत प्राचीन है, जो न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि ऐतिहासिक विरासतों और मान्यताओं को भी सहेज कर रखे हुए हैं। इन मंदिरों की वास्तुकला, वातावरण और पौराणिक महत्व तीर्थयात्रियों को न केवल शांति प्रदान करता हैं बल्कि नेपाल की खूबसूरत वादियों से भी मिलाने का काम करता हैं। गुहेश्वरी देवी से जुड़ी कथाओं से लेकर पशुपतिनाथ की दिव्य उपस्थिति या मनकामना मंदिर की आकर्षक खूबसूरती से लेकर पाटन कृष्ण या डोलेश्वर महादेव की बनावट तक, तीर्थयात्रियों और श्रद्धालुओं को नेपाल के इन मंदिरों की धार्मिक और विरासत संस्कृति को समझने और सुखद यात्रा करने के लिए उत्साहित और प्रेरित करते हैं।

partner-icon-iataveri12mas12visa12