उत्तर भारत का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा, जो क्षेत्रफल की दृष्टि से चौथा सबसे बड़ा राज्य है,वहीं जनसंख्या की दृष्टि से पहला सबसे बड़ा राज्य है। 75 जिलों और 18 मंडलों के साथ बना यह राज्य, ऐतिहासिक काल से आधुनिक समय तक बहुत अहम किरदार अदा करता है। यह प्रदेश एक अन्तर्राष्ट्रीय सीमा और नौ अन्तर्राज्यीय सीमा स्थापित करता है। पवित्र नदियों का अधिकांश भाग यूपी से होकर निकलता है, और इन्हीं नदियों के किनारे, यूपी के कई ऐतिहासिक नगर बसे हुए हैं। ऐतिहासिक हो चाहे आधुनिक,सभी शहर कोई न कोई खास पहचान रखते हैं और इसी पहचान को और मजबूती देते हैं वहां स्थापित मंदिर, जिनके नाम से उस पूरे शहर की पहचान होती है। आइए, जानते हैं उत्तर प्रदेश के ऐसे विशेष 15 मंदिरों के बारें में
लखनऊ शहर जो यूपी की राजधानी है, यहां गोमती नदी के किनारे स्थित मनकामेश्वर मंदिर भोले बाबा को समर्पित एक ऐसा मंदिर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसकी स्थापना लक्ष्मण जी ने की थी। यहां पूजा आराधना करने के बाद उन्हें अपनी मानसिक अशांति से राहत मिली थी। इससे पता चलता है कि यह मंदिर त्रेता युगीन है। लक्ष्मण के मन को शांति मिलने के कारण इस मंदिर का नाम मनकामेश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। समय के साथ यह ऐसे मंदिर के रूप में प्रसिद्ध हो गया, जहां आने वालों का मानना है कि मानसिक अशांति, शांत होती है। और भगवान शिव की कृपा से उनकी मन्नतें पूरी होती हैं।
स्थानः डालीगंज, लखनऊ
उपयुक्त समयः अगस्त से फरवरी
सरयू नदी के तट पर स्थित अयोध्या नगरी श्री राम जन्मभूमि मंदिर, आज के युग के बहुप्रतीक्षित मंदिरों में से एक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह स्थान प्रभु श्री राम का जन्म स्थान है। इस मंदिर की शुरूआत के लिए भूमि पूजन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया। प्रभु श्रीराम, भगवान विष्णु का पूर्णावतार माने जाते हैं और कुछ इन्हें परमब्रह्म रूप में पूजते हैं, जिन्होंने मानव अवतार में आकर कभी कोई दिव्य लीला नहीं की और एक आदर्श प्रस्तुत किया, इस कारण इन्हें मर्यादापुरूषोत्तम की संज्ञा दी गई। काले रंग की प्रतिमा से निर्मित विशेष रामलला की मूर्ति इनके बाल स्वरूप की मानी जाती है।
स्थानः रामघाट चौराहा, मानस भवन के पास, अयोध्या
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
वाराणसी जिसका पुराना नाम ‘काशी’ की विश्वनाथ गली में स्थित यह मंदिर हिंदूओं के लिए परम पावन धाम है। शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक यह ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वरा या विश्वनाथ के नाम से विश्व प्रसिद्ध है। बनारस नगरी अपनी अनूठी कला संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर की महिमा का बखान जितना किया जाए उतना कम है, इस बात का प्रमाण श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ को देखकर मिलता है। गंगा नदी के तट पर बसे इस मंदिर की मनमोहक छवि निराली है। कहते हैं कि जो प्राणी पवित्र गंगा में स्नान कर, इस मंदिर के दर्शन कर ले तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर को मुस्लिम शासकों द्वारा कई बार तोड़ा गया किन्तु मंदिर की वर्तमान संरचना को 1780 में मराठा शासिका अहिल्याबाई होल्कर द्वारा तत्कालीन काशी नरेश महाराजा चेत सिंह के सहयोग से दोबारा जीर्णोद्धार कराया गया।
स्थानः बाबा विश्वनाथ गली, वाराणसी
उपयुक्त समयः अक्टूबर से फरवरी
मिर्जापुर जिले के पास गंगा नदी के किनारे यह प्रसिद्ध मंदिर अवस्थित है जहां मां विन्ध्यवासिनी का धाम है। यह तीर्थ भारत के प्रमुख जाग्रत शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर की उत्पत्ति और महिमा सृष्टि के आंरभ से ही मानी जाती है, जिसके कई उदाहरण पौराणिक ग्रन्थों में मिलते हैं। यह ब्रह्मांड का पहला दिव्य स्वयंभू तीर्थ है। शास्त्रों में इस बात का भी वर्णन मिलता है कि मां आदिशक्ति देवी कहीं भी पूर्ण रूपेन विराजमान नहीं है, किन्तु विंध्याचल ही ऐसा परम पवित्र स्थान है जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं। ग्रन्थानुसार अन्य शक्तिपीठों में देवी के अलग अलग अंगों की प्रतीक रूप में पूजा होती है।
स्थानः विन्ध्याचल नगर, मिर्जापुर
उपयुक्त समयः मार्च-अप्रैल, अक्टूबर-नवंबर
हर रोज श्रद्धालुओं की भारी भीड़, और हो भी क्यों न? जहां साक्षात् बिहारी जी विराजे हों, वहां भला कौन भक्त खुद को जाने से रोक सकता है। मंदिर में स्थापित बिहारी जी की प्रतिमा, स्वामी हरिदास को स्वयं दिव्य युगल छवि श्यामा-श्याम जू द्वारा प्रदान की गई प्रतिमा है। कहते हैं कि भक्तों के मनोरथ की पूर्ति हेतु भगवान अपनी अलौकिक संगिनी के साथ साक्षात् प्रकट हुए और अन्तर्धान होने से पहले एक काली मनमोहक प्रतिमा छोड़ गए। श्री बांके बिहारीजी की दिव्यता और सुंदरता के कारण ही मंदिर में दर्शन कभी भी लगातार नहीं होते बल्कि थोड़ी थोड़ी देर में उन पर पर्दा खींच दिया जाता है। यह भी कहा जाता है कि यदि कोई श्रीबांके बिहारीजी के नयनों में लंबे समय तक देखता है तो वह अपनी आत्म चेतना खो देता है। मंदिर में मंगला आरती का प्रावधान नहीं है क्यांकि स्वामी हरिदास उनकी बाल रूप में सेवा करते थे और उनका मानना था कि उनके बच्चे पूरी तरह से आराम करें और सुबह-सुबह उन्हें गहरी नींद से नहीं जगाना चाहते थे।
स्थानः वृन्दावन, मथुरा
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
हिन्दुओं के पवित्र मंदिरों में से एक यह मंदिर जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है कि श्री हनुमान जी को समर्पित है। संकट मोचन का अर्थ होता है परेशानियों, कष्टों अथवा दुखों को नाश करने वाला। इस मंदिर की स्थापना पं श्री मदन मोहन मालवीय द्वारा 1900 में की गई थी। हनुमान जन्मोत्सव पर यहां शोभा यात्रा निकाली जाती है। भगवान हनुमान को प्रसाद के रूप में शुद्ध घी के बेसन के लड्डुओं का भोग लगाया जाता है। इस मंदिर की एक अनुपम विशेषता है कि भगवान हनुमान की मूर्ति की स्थापना स्वयं तुलसी दास जी के द्वारा केवल मिट्टी से हुई है एवं प्रभु श्रीराम के चरणाबिन्दु संकटमोचन महाराज के हृदय के ठीक सामने स्थित है। मंदिर के प्रांगण में अति प्राचीन विशाल कुआँ जो तुलसीदास जी के सम य का है, अति शीतल जल प्रदान करता है।यहां बहुत विशाल क्षेत्र में तुलसी के पौधों का रोपण किया गया है जिनसे स्वच्छता के साथ साथ विषाक्त सर्पों का भय कम हुआ है।
स्थानः साकेत नगर कॉलोनी, वाराणसी
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
कानपुर शहर की शान जे.के.मंदिर आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। सफेद पत्थरों से बना यह मंदिर बहुत विशाल क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इस मंदिर का पूरा नाम जुग्गीलाल कमलापत मंदिर है, इसे राधा कृष्ण मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर की बनावट इसकी मुख्य विशेषता है, यह मंदिर प्राचीन और आधुनिक वास्तुकला का मिश्रण माना जाता है। मंदिर का मंडप बहुत ही ऊंचाई पर बनाया गया है जिससे पर्याप्त रोशनी और हवा व्यवस्थित रहे। यहां श्रीराधा व कृष्ण, श्रीलक्ष्मी व नारायण, श्री अर्द्धनारीश्वर, श्री नर्मदेश्वर एवं श्री हनुमान जी के प्रतिमाएं विराजित हैं। त्रिकोणाकार कैंपेस के पूर्व पश्चिम दिशा में मंदिर की मुख्य इमारत बनी हुई है। यहां आध्यात्मिक ग्रन्थों को पढ़ने के शौकीन लोगों के लिए लाइब्रेरी भी है। यहां लगने वाला जन्माष्टमी मेला बहुत प्रसिद्ध है।
स्थानः सर्वोदय नगर, कानपुर
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
हिन्दू धर्म के अति प्रसिद्ध मंदिरों में से एक श्रीकृष्णजन्मभूमि मंदिर, भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली है। द्वापरयुगीन इस मंदिर की वास्तुकला अनूठी है, यहां तीन मुख्य मंदिर है, केशवदास मंदिर जो कृष्ण भगवान को समर्पित है। दूसरा गर्भ ग्रह जो इनके जन्म लेने वाली जगह को इंगित करता है और तीसरा भागवत् भवन जहां राधा कृष्ण की साथ में पूजा होती है। इतिहास बताता है कि मुगलों द्वारा इस मंदिर को नष्ट करने की कई बार चेष्टा की गई थी। जन्मस्थान मंदिर की दक्षिण पूर्व दिशा में एक पवित्र कुंड है, कहते हैं बाल श्रीकृष्ण के जन्म के बाद का पहला स्नान इसी कुंड में हुआ था। दर्शनों की भारी भीड़ होने के कारण यहां सुरक्षा और व्यवस्था के खास इंतजाम रहते हैं।
स्थानः मथुरा जन्मभूमि, मथुरा
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
पहली बार इस मंदिर का नाम सुनते ही हृदय में इसके नाम के प्रति जिज्ञासा आना स्वाभाविक है। दरअसल इस मंदिर के इतिहास की एक कहानी है जो कुछ यूं है कि पौराणिक कथाओं अनुसार एक गरीब ब्राह्मण भगवान श्रीकृष्ण का बहुत बड़ा भक्त था। एक बार उसने साहूकार से कुछ रूपये उधार लिये और हर महीने उसे थोड़ा थोड़ा देकर चुकता करता रहता था। जब आखिरी किश्त रह गई तब साहूकार का मन लालच से भर गया और उसने उस गरीब ब्राह्मण को कोर्ट का नोटिस भेज दिया कि अभी तक उसने एक पैसा नहीं दिया है इसलिए पूरी रकम ब्याज सहित वापस करे। ऐसे में अदालत के जज ने गरीब ब्राह्मण से पूछा कि आपका कोई गवाह है जिसके सामने आपने इस साहूकार को किश्तें दी हो। गरीब ब्राह्मण सोच में पड़ गया और भगवान श्रीकृष्ण का सामने होना कहा। इस पर भरी अदालत में उसे कहा गया कि उन्हें गवाही के लिए बुलाओ। भक्त के कहने पर भगवान श्रीकृष्ण आये एक वृद्ध का रूप रखकर आए और उन्होंने गवाही भी दी। ये सब वृतांत जज साहब देख और सुन रहे थे, ऐसे में यह जज अपनी नौकरी, घर बार छोड़कर कहीं चले गए और फकीर बन गए। जब वो सालों बाद वृंदावन आए तो उन्हें सब पागल बाबा नाम से जानने लगे। यह मंदिर दस मंजिला बना हुआ है। विशेषतः पूर्णिमा के अवसर पर इस मंदिर में हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। ये बहुत प्रसिद्ध मंदिर है।
स्थानः लीलाधाम, पागल बाबा आश्रम, गौतम नगर, वृंदावन
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
यह मंदिर 5वीं शताब्दी ईसवी के दौरान गुप्तकाल में बना हुआ ईंटो का मंदिर है। भीतरगांव मंदिर एक सीढीदार ईंट की इमारत है जिसके सामने टेराकोटा संयंत्र लगा हुआ है। इस मंदिर की मान्यता है कि बारिश होने से पहले यहां मंदिर की छत पर अपने आप गीली बूंदे प्रतीत होती हैं जो संकेत करती हैं कि अच्छी बारिश होने वाली है। गर्भग्रह के ऊपर एक पिरामिडनुमा शिखर है। दीवारों को शिव और विष्णु आदि को दर्शाने वाला टेराकोटा पैनलों से सजाया गया है।
स्थानः घाटमपुर, कानपुर
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
गुरू गोरखनाथ के सम्मान में बना यह मठ, नाथ संप्रदाय का द्योतक है। इस स्थान पर इन्होंने साधना की थी। गोरखपुर छठी शताब्दी ईसा पूर्व में सोलह महाजनपदों में से एक मगध राज्य की हिस्सा था। हिंदू आस्था का केंद्र यह मंदिर कई मायनों में बहुत खास है। मंदिर की वास्तुकला, मंदिर परिसर के भीतर भीमकुंड और हरियाली भरा खूबसूरत वातावरण हैं। मकर संक्राति के दिन यहां हजारों की संख्या में भक्तगण आते हैं जो बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी अर्पण करते हैं। वर्तमान में इस मंदिर के मुख्य महंत योगी आदित्यनाथ हैं।
स्थानः गोरखनाथ मठ, गोरखपुर,
उपयुक्त समयः जनवरी
आधुनिक युग की अनोखी वास्तुकला का धनी यह मंदिर कृपालु जी महाराज की संकल्पना है। पूरी तरह सफेद संगमरमर से बना यह मंदिर नागर शैली में बना हुआ है। मंदिर में भगवान राधा कृष्ण के जीवन दृश्यों को दर्शाती सुंदर नक्काशीदार मूर्तियों की सजावट है।शाम के समय यहां का लाइट शो मंदिर की सुंदर नक्काशी का मनमोहक दृश्य दिखाता है।
स्थानः वृंदावन, मथुरा
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
6वीं शताब्दी का ऐसा हिंदू मंदिर जो बेतवा नदी के पास अवस्थित है। देवगढ़ का यह दशावतार मंदिर अलंकृत गुप्त शैली की वास्तुकला को दर्शाता है।भगवान विष्णु से जुड़ी किंवदतियां मंदिर की भीतरी और बाहरी दीवारों पर उकेरी गई हैं और इनके दशावतारों का चित्रण किया गया है। ब्रिटिश पुरातत्वविद् अलेक्जेंडर कनिंघम ने 1875 में यहां का दौरा किया और इसे ‘अद्वितीय सुरम्य’ कहा।
स्थानः ललितपुर, झांसी के पास
उपयुक्त समयः नवंबर से फरवरी
मां गंगा जी किनारे लेटे हुए हनुमान जी की विशाल प्रतिमा संत समर्थ गुरू रामदास जी ने यहां स्थापित की थी। बजंरग बली की यह अविस्मयकारी प्रतिमा दक्षिणाभिमुखी और 20 फीट लंबी है। इस प्रतिमा के बारें में ऐेसा माना जाता है कि इनके दाएं पैर के नीचे अहिरावण दबा है। यहां के बारे में कहा जाता है कि लंका पर विजय पाने के बाद जब हनुमानजी लौट रहे थे तो रास्ते में उन्हें थकान महसूस हुई, तो माता सीता के कहने पर वह यहां संगम के तट पर लेट गए। इसी धारणा पर यहां इस मंदिर का निर्माण हुआ।
स्थानः संगम तट, प्रयागराज
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है जहां वर्ष में लगने वाला शाकुम्भरी देवी मेला बहुत प्रसिद्ध है। मंदिर शिवालिक पहाड़ियों में स्थित है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार जब मानव जाति भूख और अभाव से ग्रस्त थी। देवी पोषण करने के उद्देश्य से इस जगह अवतरित हुईं।
स्थानः नवाबगंज, माता शाकुम्भरी देवी रोड, सहारनपुर
उपयुक्त समयः मार्च से मई
निष्कर्षः
उत्तर प्रदेश विविधताओं से परिपूर्ण राज्य है। जहा की लोकसंस्कृतियां, मान्यताएं और मंदिरों की विशेषताएं इतनी अनूठी है कि इनकी रोचकता जानकर इनके बारें में दिलचस्पी और बढ़ने लगती है। एक तरफ जहां प्राचीन ऐतिहासिक सदियों पुराने मंदिर हैं तो वहीं दूसरी ओर मान्यताओं और किंवदतियों से सराबोर इन मंदिरों की बात ही निराली है।श्रेष्ठ वास्तुकला, उम्दा मूर्तिकला को इंगित करते यूपी के यह मंदिर किसी चमत्कार से कम नहीं है।