भारत विविधताओं का देश है। यहां धर्म, संस्कृति, भक्ति, आस्था, उपासना के कई पहलू हैं। पवित्र भूमि भारत देवताओं की प्रिय भूमि है तभी तो यहां कई सारे आस्था के केंद्र, मंदिरों के रूप में स्थापित हैं जिनकी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सभी पक्षों में ख़ास महत्ता है। ये न केवल धार्मिक पूजा स्थल हैं बल्कि संस्कृति और कला के केंद्र भी हैं। ये विभिन्न वास्तुकला शैलियों, ऐतिहासिक महत्वों और धार्मिक मान्यताओं के परिचायक हैं। आइए, इनके बारें में और विस्तार से समझते हैं, अपने इस लेख में।
दक्षिण भारत की द्रविड़ वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना, जिसे चोल शासक राजराज प्रथम द्वारा 11वी शताब्दी की शुरूआत में बनवाया गया था। यह भगवान शिव को समर्पित मंदिर है, जिसे यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में शामिल किया गया है। कावेरी नदी के तट पर स्थित इस मंदिर में चोल स्थापत्य कला का सम्मिश्रण हैं। इसे दक्षिण का मेरू भी कहते हैं।रोचक बात है कि इस मंदिर की परछाई नहीं बनती, जिससे आने वाले दर्शनार्थियों के लिए यह आश्चर्यजनक होता है। सबसे हैरान करने वाला पक्ष है इसका विशाल गुंबद, जिसका वजन 80 टन हैं, और बिना किसी सपोर्ट के वह मंदिर के सबसे ऊपरी भाग पर रखा हुआ है, यह वास्तुशिल्प चमत्कार गुरूत्वाकर्षण को भी मात देता है। यहां 81 भरतनाट्यम मुद्राओं की नक्काशी है। यह सभी उत्कृष्टताएं दक्षिण भारत के इस मंदिर की विरासतें हैं।
स्थानः तंजावुर, तमिलनाडु
उपयुक्त समयः अक्टूबर से फरवरी
विश्व प्रसिद्ध बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग शिव का सबसे प्यारा और पवित्र स्थान है। शिप्रा नदी के तट पर बसे स्वयंभू शम्भू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण अत्यंत पुण्यदायक हैं। मान्यता है कि इनके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। महाकवि कालिदास ने अपने ग्रंथ मेघदूतम् में इस मंदिर की महिमा का वर्णन किया है। यहां सिंहस्थ कुंभ का आयोजन किया जाता है। मंदिर एक घेरे के अंदर है, गर्भग्रह तक पहुंचने के लिए एक सीढीनुमा रास्ता है। इसके ठीक ऊपर एक दूसरा कक्ष है जिसमें ओंकारेश्वर शिवलिंग स्थापित है। कालों के काल महाकाल भगवान की भस्मारती विश्व प्रसिद्ध है, जिसके लिए भक्त विशेष रूप से इंतज़ार करते हैं और इसमें सम्मिलित होने के लिए पहले से ही पंजीकरण कराना अनिवार्य होता है, और इसमें शामिल होने के लिए पारंपरिक वस्त्र धारण करने होते हैं।
स्थानः उज्जैन, मध्यप्रदेश
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सबसे पहले जिनका नाम आता है वह है सोमनाथ, एक ऐसा स्थान जहां शिव प्रकाश के एक प्रचंड स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे। एक तरफ अरब सागर की लहरें मंदिर को स्पर्श करती हैं, तो वहीं दूसरी ओर तीन नदियों कपिला, हिरण और सरस्वती नदियों का संगम है। यह मंदिर अति प्राचीन है और इसकी समृद्धता की कारण इसे कई बार विदेशी आक्रातांओं द्वारा लूटा और तोड़ा गया है। इस मंदिर में महमूद गजनवी ने 17 बार लूटपाट की है। इस मंदिर पर हिंदू मंदिर वास्तुकला मारू-गुर्जर शैली की छाप है। आधुनिक सोमनाथ मंदिर सन् 1950 के पुनर्निर्माण की देन है।
स्थानः प्रभास पाटन, वेरावल, गुजरात
उपयुक्त समयः अक्टूबर से फरवरी
केदारनाथ का शाब्दिक अर्थ ‘क्षेत्र के देवता का मंदिर’ है। मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित यह मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से अद्वितीय है। गढ़वाल हिमालयी क्षेत्र में स्थित इस मंदिर का मौसम अति पर होने के कारण आम जनता के लिए यह एक नियत महीनों के दौरान ही खुला रहता है। सर्दियों के दौरान मंदिर के विग्रह को अगले छह महीनों तक पूजा अर्चना के लिए उखीमठ ले जाया जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर में पांडवों ने तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था। यह मंदिर उत्तरी हिमालय के छोटा चार धाम यात्रा तीर्थस्थलों में से एक है।
स्थानः गौरीकुंड, केदारनाथ, उत्तराखंड
उपयुक्त समयः अप्रैल से नवंबर
मांधाता नामक द्वीप पर बना यह मंदिर भगवान शिव का बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है। आश्चर्य की बात यह है कि मांधाता द्वीप देवनागरी चिन्ह ओम के आकार का है। ओंकारेश्वर जैसे नाम से स्पष्ट है कि ओम ध्वनि के भगवान जो द्वीप में स्थित है। नर्मदा नदी के दक्षिणी तट पर स्थित यह मंदिर, महाकालेश्वर उज्जैन से लगभग 140 किमी उत्तर में स्थित है। ओंकारेश्वर मंदिर के भीतर, ज्योतिर्लिंग को एक ‘‘गोलाकार कृष्ण पत्थर’’ बताया गया है जो शिव के रूप का प्रतिनिधित्व करता है और इसके पास एक सफेद पत्थर है जो माता पार्वती के प्रतीक चिन्ह के रूप में है।
स्थानः खंडवा, मध्यप्रदेश
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
बद्रीनारायण, बद्रीविशाल और भी कई नामों से प्रसिद्ध यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। अलकनंदा नदी के तट के किनारे यह मंदिर गलवाढी पहाड़ी ट्रैक पर स्थित है।इसका नाम भारत के सबसे अधिक दर्शन किये जाने वाले तीर्थस्थलों में शामिल है। मंदिर में पूजनीय मुख्य देवता की प्रतिमा 1 फीट है, जो बद्रीनारायण के रूप में स्वयं भगवान विष्णु की है। इस मंदिर का वर्णन विष्णु पुराण, स्कंद पुराणों और तमिल ग्रन्थ नालयिर दिव्य प्रबंधम् में किया गया है।
स्थानः चमोली, उत्तराखंड
उपयुक्त समयः अप्रैल के अंत से नवंबर की शुरूआत तक
पुरी मंदिर के नाम से मशहूर इस मंदिर की छटा देखते बनती है। सागर किनारे मनमोहक दृश्यों के साथ मंदिर की छवि और निराली हो जाती है। इस मंदिर से जुड़ी ऐसी कई मान्याताएं जो बहुत ही रोचक हैं, इस मंदिर में ध्वजा हवा की उल्टी दिशा में फहरता है और इस मंदिर के ऊपर से कोई भी पक्षी नहीं गुजरता। और मंदिर में प्रतिष्ठित काष्ठ भगवान जगन्नाथ की मूति में उनका हृदय असली है, जिसके बारें में कहते हैं कि वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण का दिल है। यहां भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र दाऊ और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं।
स्थानः पुरी, उड़ीसा
उपयुक्त समयः अक्टूबर से फरवरी
प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ स्थलों में से एक तिरूपति बालाजी मंदिर भगवान विष्णु के अवतार, भगवान वेंकटेश्वर को समर्पित है। तिरूमाला की पहाड़ियों पर बना यह मंदिर विश्व में सबसे अधिक देखे जाने वाले वैष्णव मंदिरों में से एक है। इस मंदिर से जुड़ी कई अनुश्रुतियां हैं, जिनमें से एक यह है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक सरोवर के तट पर निवास किया था जो तिरूमाला स्थान है और तिरूमाला, तिरूपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं सप्तगिरि कहलाती हैं, यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर बना है, जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर परिसर में पारंपरिक वेशभूषा ही स्वीकार्य है।
स्थानः तिरूमाला, आंध्रप्रदेश
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
वाल्मीकि रामायण अनुसार इस मंदिर की स्थापना त्रेता युग में लंका पर चढ़ाई करने से पहले प्रभु श्री राम ने भगवान शिव से विजय की कामना हेतु स्वयं अपने हाथों से की थी। रामेश्वरम् कहने के साथ ही इसे रामनाथस्वामी मंदिर भी कहते हैं, जो बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह भारत के चार धाम तीर्थ स्थलों में से एक है।इस मंदिर की तमिल वास्तुकला बहुत आकर्षक और विशेष है। यह हिंदू धर्म के सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है, जिसके बारें में कई ऐतिहासिक संदर्भ हैं।
स्थानः रामनाथपुरम्, तमिलनाडु
उपयुक्त समयः अक्टूबर से अप्रैल
रंगनाथस्वामी मंदिर, जिसमें रंगनाथ, जो भगवान विष्णु का स्वरूप है और उनकी पत्नी रंगनायकी, जो माता लक्ष्मी का एक रूप हैं, इन्हें समर्पित है। तमिल स्थापत्य शैली में निर्मित इस मंदिर का गोपुरम् यानी मंदिर परिसर सबसे बड़ा धार्मिक परिसर है, जिसे यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया है। यह वैष्णवों के सबसे शानदार मंदिरों में से एक है जो अनुश्रुतियों और किंवदंतियों से समृद्ध है, यहां के देवता का उल्लेख संस्कृत महाकाव्य रामायण में मिलता है।
स्थानः श्रीरंगम्, तमिलनाडु
उपयुक्त समयः दिसंबर, जनवरी
श्री माता वैष्णो देवी मंदिर, बहुत ही प्रसिद्ध और सम्मानित मंदिर,पहाड़ियों की ढलान पर कटरा, रियासी में स्थित है। त्रिकूट पर्वत पर स्थित इस मंदिर में विराजमान माता वैष्णो का एक नाम त्रिकूटा भी है। यहां माता पिंडी रूप में विराजमान है, इनके साथ महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती माता भी यहां पिंडी रूप में स्थापित हैं। महाभारत महाकाव्य में देवी वैष्णों की पूजा का उल्लेख मिलता है।
स्थानः कटरा, जम्मू
उपयुक्त समयः मार्च से अक्टूबर
सिद्ध पीठ मां कामाख्या देवी के प्रसिद्ध और तिलिस्म मंदिरों में से एक है। यहां सुप्रसिद्ध अंबुवाची मेला लगता है, जो देवी के मासिक धर्म का जश्न मनाने वाला एक वार्षिक उत्सव है। 51 शक्तिपीठों में से इसकी गिनती 4 सबसे पुराने पीठों में होती है। यह शक्तिपीठ वाममार्गी साधनाओं के लिए जाना जाता है। कहते हैं यहां माता सती के जननांग की पूजा की जाती है। नीलांचल पहाड़ी पर अवस्थित यह मंदिर अति प्राचीन है। संस्कृत के एक प्राचीन ग्रंथ कालिका पुराण में कामख्या को सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाली, भगवान शिव की पत्नी और मोक्षप्रदायिनी के रूप में उल्लेखित किया गया है।
स्थानः गुवाहाटी, असम
उपयुक्त समयः सितम्बर से फरवरी
भगवान खाटूश्याम जिन्हें शीश के दानी के रूप में जाना जाता है, इनका पूर्व नाम बर्बरीक था। इनके इस मंदिर पर हर दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है। यह पांच पांडव में से एक भीम के पौत्र और घटोत्कच व उनकी पत्नी अहिलावती के पुत्र थे। भक्त प्यार से इन्हें ‘हारे का सहारा’ नाम से बुलाते हैं। यहां मन्नत के रूप में निशान ध्वज यात्रा करने का रिवाज़ है जो लगभग 18 किमी दूर रींगस क्षेत्र से शुरू की जाती है।
स्थानः सीकर, राजस्थान
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
यह अपने तरीके का एक बहुत अनूठा मंदिर है जिसका निर्माण नरसिंह देव प्रथम ने लगभग 1250 ई. में कराया था। यह मंदिर उड़ीसा वास्तुकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। सूर्यदेवता को समर्पित, यह कला के सर्वोच्च शिखर की ऊंचाई को दर्शाता है। मंदिर परिसर में 100 फुट ऊंचे रथ के रूप में विशाल पहिए और घोड़े हैं जो सभी पत्थर से तराशे गए हैं। इसे ब्लैक पैगोडा के नाम से भी जानते हैं।
स्थानः कोणार्क, पुरी, ओडिशा
उपयुक्त समयः मार्च से अक्टूबर
जगतपिता ब्रह्मा मंदिर के रूप में प्रसिद्ध यह मंदिर पूरे विश्व का एकलौता ऐसा मंदिर है जहां ब्रह्मा जी की पूजा होती है। यह पवित्र पुष्कर झील के पास अवस्थित है। अनुश्रुतियों से इस मंदिर का गहरा संबंध है। मंदिर संगमरमर और पत्थर की पटियों से बना है, मंदिर के गर्भ ग्रह में चार सिर वाले ब्रह्मा और उनकी पत्नी गायत्री मां की छवि है। कार्तिक पूर्णिमा पर ब्रह्मा जी को समर्पित एक उत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु पवित्र झील में स्नान करने के बाद मंदिर दर्शन करते हैं।
स्थानः पुष्कर, राजस्थान
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
यह ऐतिहासिक मंदिर भगवान शिव और उनकी दारा देवी पार्वती (मीनाक्षी या मीन के आकार की नयनों वाली देवी के रूप में) दोनों को समर्पित है। गौर करने वाली बात है कि मछली पांड्य राजाओें का राजचिन्ह था। हिन्दू पौराणिक ग्रंथो के अनुसार भगवान शिव सुंदरेश्वर के रूप में पांड्यराजा मलयध्वज की पुत्री राजकुमारी मीनाक्षी से विवाह रचाने को मदुरई आये थे। इन्हें माता पार्वती का अवतार माना जाता था। इस मंदिर की स्थापत्यकला दक्षिण भारतीय शैली से प्रभावित है।
स्थानः मदुरई, तमिलनाडु
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
हरमिंदर साहब या गोल्डेन टेंपल नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर, सिक्ख धर्म के अनुयायियों के लिए बहुत ही पवित्र और पूजनीय गुरूद्वारा है।यहां पर स्थित अमृत सरोवर पवित्र कुंड का निर्माण चौथे सिख गुरू, गुरू रामदास ने पूरा कराया था। महाराजा रणजीत सिंह ने 1809 में इसे संगमरमर और तांबे से पुननिर्मित किया और 1830 में गर्भग्रह को सोने की पत्ती से मढ दिया, जिस कारण इसका नाम स्वर्ण मंदिर पड़ा।
स्थानः अमृतसर, पंजाब
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
यमुना नदी के किनारे स्थित अक्षरधाम मंदिर परिसर बहुत ही शांत व सुकून देने वाला है। उत्कृष्ट वास्तुकला, शिल्पकला, हिंदू संस्कृति और आध्यात्मिकता का अटूट संगम है। वास्तुकला मारू गुर्जर शैली से प्रभावित है।मंदिर में 234 अलंकृत नक्काशीदार खंभे, नौ गुंबद, और स्वामियों और भक्तों और आचार्यों की 20,000 मूर्तियां हैं। मंदिर के केंद्रीय गुबंद में नीचे स्वामीनारायण की 11 फीट ऊंची मूर्ति है जो आशीर्वाद देती हुई मुद्रा में है, मंदिर इन्हें ही समर्पित है।
स्थानः अक्षरधाम, नई दिल्ली
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक लिंगराज मंदिर आदि व अंत के देवता भगवान शिव को समर्पित है, इनकी भार्या और मंदिर में स्थापित देवीपार्वती को अन्नपूर्णा या गिरिजा कहा जाता है। मंदिर कलिंग वास्तुकला का निचोड़ है। मंदिर देउला शैली में बनवाया गया है जिसमें चार घटक अर्थात् गर्भग्रह, सभा हॉल, नटमंदिर यानी त्योहार हॉल और भोग मंडप अर्थात प्रसाद का हॉल है। 13वीं शताब्दी के संस्कृत ग्रंथ एकाम्र में इस मंदिर का उल्लेख किया गया है।
स्थानः भुवनेश्वर, ओडिशा
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
प्राचीनतम मंदिरों में जगह बनाता यह मंदिर पौराणिक कथाओं के अनुसार उस जगह पर है जहां देवी ने चण्ड-मुण्ड नामक राक्षसों का वध किया था। इसलिए देवी यहां मुंडेश्वरी नाम से प्रसिद्ध है। हैरान करने वाली बात ये भी है कि यहां स्थित पंचमुखी शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलता है। यह पत्थर से बना हुआ अष्टकोणीय मंदिर है, मां वाराही रूप में विराजमान है। यहां पशु बलि में बकरा तो चढ़ाया जाता है किन्तु उसका वध नहीं किया जाता, बलि की यह सात्विक परंपरा अन्यंत्र देखने को नहीं मिलती।
स्थानः कैमूर, बिहार
उपयुक्त समयः अक्टूबर से मार्च
भारत संस्कृति और धार्मिकता का देश है। यहां के मंदिर सदियों से अपनी मौजूदगी का एहसास कराते आए हैं। आंतरिक शक्ति, बुद्धि, और संपन्नता के प्रतीक यह मंदिर चेतना का संचार ग्रह होते हैं। जहां निर्मल मन भक्ति के नये आयाम पाता है। पूजा, अर्चना, ध्यान, साधना और विश्वास यह सभी मनुष्यता को निखारते हैं और यह जीवन चैतन्य हो जाता है।