राजस्थान का उदयपुर अपने सांस्कृतिक वैभव, लोकप्र्रिय झीलों और राजसी अंदाज के लिए विशेष रूप से जाना जाता है जहां दुनिया के सर्वश्रेष्ठ आकर्षणों की लंबी श्रृंखला है, जहां पर्यटक बेहतर समय बिताने के लिए आना पसंद करते हैं और सिर्फ उदयपुर ही नहीं इसके आसपास भी कई सारे अद्भुत आकर्षणों की लंबी लिस्ट है, जहां कुछ समय व्यतीत करने की इच्छा रखने वालों के लिए यह मनचाहे वरदान की तरह है क्योंकि ज्यादातर लंबी छुट्टियों की अपेक्षा सप्ताहांत गंतव्यों को ज्यादा पसंद किया जाता है। इन गंतव्यों में शाही अंदाज़ के महलों से लेकर हिल स्टेशनों की ताज़गी और पर्यावरण की नजदीकी से लेकर वन्य प्राणियों की झलक भी है, और वो भी उदयपुर से बस कुछ घंटों के सफर पर ही है।
आप प्रेमी वर्ग की कैटेगरी में हैं तो किसी भी तरह की दिलचस्पी आपके लिए उपयुक्त बेहतर स्थानों को अन्वेषण करने में यह आर्टिकल सहायक साबित होगा।
उदयपुर झीलों के शहर के नाम से पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। जहां कई सारी विख्यात झीलों के आकर्षण पर्यटकों का मनोरंजन करते हैं। इन झीलों पर बने कुछ मंदिर, महल और वेधशालाएं हमेशा ही कौतूहल और रोमांच लाती हैं। यहां की पिछोला झील, फतेह सागर झील, दूधतलाई झील व ऐसी कई अन्य झीलें हैं जहां वीकेंड का समय बिताना और भी ज्यादा लुभावना हो जाता है। सिटी पैलेस, लेक पैलेस, सहेलियो की बाड़ी इन्हीं झीलों के किनारें पर हैं साथ ही जग निवास महल व सौर वेधशाला की अवस्थिति, झीलों पर बने आईलैण्ड हैं जहां नाव के रास्ते ही जाया जाता है। ऐसा ही विशेष नज़ारा जलमहल का रहता है, जो झील के बीचों बीच बना एक खूबसूरत और हेरिटेज रिसॉर्ट के रूप पर्यटकों को रिझाता है। उदयपुर के इन आकर्षणों की वास्तुकला और शैलियों में महाराणाओं की गौरवशाली झलक के दर्शन होते हैं। जहां वीकेंड में अच्छा क्वालिटी टाइम बिताना रास आता है।
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उदयपुर के पास ही भगवान श्रीनाथ जी की धरती के नाम से मशहूर नाथद्वारा उदयपुर के आसपास दर्शनीय स्थलों में बहुत विशेष स्थान रखता है। यहां भगवान कृष्ण के गोवर्धन पर्वत कनिष्ठा अगुंली में उठाए मात्र सात वर्षीय बालक के रूप में पूजा की जाती है, जहां इनकी यह विशेष प्रतिमा स्वयं भू है। इस स्थान को चुनने को लेकर सुनने में आता है कि इसे भगवान ने स्वयं चुना है। 17वीं शताब्दी के समय जब औरंगजेब मंदिरों को नष्ट कर रहा था, उस समय यह मूर्ति वृंदावन से स्थानांतरित 6 माह के लिए आगरा लाई गई और वहां से बैलगाड़ी के माध्यम से मेवाड़ राज्य की ओर प्रस्थान करते समय इसी स्थान से बैलगाड़ी आगे ही नहीं बढी और नाथद्वारा में ही इनकी पूजा की जाने लगी। इसिए कहते हैं कि भगवान ने इस स्थान को स्वयं चुना।
इस मंदिर में भगवान की पूजा बालक रूप में होने के साथ ही आठ बार वस्त्र बदलने की परंपरा है और यहां हर दिन 56 भोगों का प्रसाद इन्हें अर्पित किया जाता है।
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उदयपुर से थोड़ी ही दूरी पर स्थित यह मंदिर वीकेंड के दौरान बेहतर गंतव्य हैं जहां आप अकेले या अपने परिवार के साथ घूम सकते हैं। एकलिंगीजी नागदा मंदिर दो जुड़े हुए वैष्णव परिसर हैं जिन्हें सास बहू मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर परिसर में करीब 108 मंदिर हैं जहां इनकी संरचना बलुआ और संगमरमर पत्थरों से की गई है। एकलिंगीजी, भगवान शिव के अनुयायियों के लिए आस्था का केंद्र है जिन्हें मेवाड़ क्षेत्र के शासक देवता माना जाता रहा है। बड़ा मंदिर (सास) का है जो लगभग दस सहायक मंदिरों के बीच में है। यहां भगवान विष्णु के भी करीब 1000 सालों से भी ज्यादा प्राचीन मंदिरों के समूह हैं। 108 मंदिर की शोभा देखने में फीते जैसे लगते हैं, जो करीब 1300 सालों से ज्यादा पुराने हैं। इन मंदिरों का निर्माण मेवाड़ के सिसोदिया वंश के द्वारा कराया गया है जहां इनकी नक्काशी और तोरण आज भी उज्जवल और आकर्षक हैं। शानदार ग्रामीण अंचल में बसा यह मंदिर अपने प्रवेश मार्ग मकर तोरण की वजह से बहुत खास लगता है।
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वन्य जीव स्थल की तरह घूमा जाने वाला यह स्थान मानव गांवों के बीच बसा तेंदुओं का घर है जहां ग्रेनाइट पहाड़ियों, गुफाओं के मंदिर और आसपास के गांवों की जीवनशैली आकर्षित करती है। सप्ताहांत में यहां सफारी का आनंद लेना मनमोहक प्रतीत होता है। पाली जिले में बसा जवाई अपनी संस्कृति और खूबसूरती के चलते इसे राजस्थान का छिपे हुए रत्न की संज्ञा दी जाती है। जहां रहने वाले प्राचीन समुदाय और तेंदुए एक दूसरे के साथ सहज और आज़ादी महसूस करते हुए रहते हैं। आप यहां रोमांचक गतिविधियों का आनंद लेने के साथ ही प्रकृति की खूबसूरत वादियों में बहती जवाई नदी का दीदार कर सकते हैं। जवाई तेंदुआ संरक्षण अभयारण्य और यहां साथ ही यहां जवाई बांध की खूबसूरत परिदृश्यों की फोटोग्राफी करने के साथ ही स्थानीय निवासियों के रीति रिवाज और तेंदुए के प्रति इतनी सहजता आश्चर्य करती है।
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राजस्थानी संस्कृति में शाही मौर्य शासकों द्वारा 7वीं शताब्दी के इर्द गिर्द राजस्थान का चित्तौड़गढ किला, यह भारत का सबसे बड़ा किला है। यह लगभग 600 ऊंची पहाड़ी पर अपना शाही अंदाज़ बिखेरता हुआ आलीशान प्रतीत होता है, जिसकी बनावट लगभग 690 एकड़ क्षेत्रफल तक जलवा बिखेर रही है। राजपूत वास्तुकला का लोकप्रिय उदाहरण यह स्थान अपनी तरह का बेहद उत्कृष्ट नमूना है जिसमें कई प्रवेश द्वारों की रौनक और यहां गूंजती वीरता की कहानियां आज भी प्रेरित करती है। साल 2013 में इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त हुआ है। चित्तौड़गढ किले के जाने का रास्ता लंबाई लिए और काफी चढाई वाला है, जिसे इसके गौरव से जोड़ते हैं जिसकी तुलना कर पाना हर किसी के बस की बात नहीं है। अतीत में कभी 84 जलनिकायों की वजह से जलमहल कहा गया, वर्तमान में जिसमें से अब 22 बचे हैं। अपनी विजयकीर्ति बयां करते अवस्थित विजय स्तंभ और कीर्ति स्तंभ आज भी भव्य आकर्षण का प्रतीक हैं, इनके अलावा यहां कई महल और मंदिर हैं जिसमें से मीरा मंदिर सबसे प्रसिद्ध मंदिर है।
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भारत के जैन मंदिरों की शोभा विश्वभर में प्रसिद्ध है जिसमें से रणकपुर की भव्यता और उत्कृष्टता अपने 144 अद्भुत नक्काशीदार संगमरमर के भव्य स्तंभों के लिए जाना जाता है। वन घाटी की शांति में विश्राम प्रदान करता यह श्वेताम्बर जैन मंदिर है, जो जैन तीर्थंकर ऋषभनाथ को समर्पित है। श्वेताम्बर समुदाय से संबंधित यह तीर्थस्थल 15वीं शताब्दी में बना जैन संस्कृति की गहराईयों और महत्वों से परिचित करता है। चौमुखा मंदिर, सूर्य मंदिर, सुपार्श्वनाथ मंदिर और अम्बा मंदिर के साथ रणकपुर गोरवाड़ पंच तीर्थ के लिए प्रसिद्ध हैं। इस मंदिर में शिलालेख, तांम्रपर्ण और संस्कृत पाठ सोम सौभाग्य काव्य में अच्छी तरह उल्लेखित किया गया है। यह जैन मंदिर जटिल नक्काशी और अद्भुत वास्तुकला के लिए जाना जाता है जो मारू गुर्जर वास्तुकला में बनाया गया है। चतुर्मुखी मंदिर बेहद ही अलौकिक और दिव्य है।
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कुंभलगढ, अरावली पहाड़ियों की पश्चिमी श्रृंखला पर स्थित भव्य किला है जिसकी दीवार को भारत की महान दीवार कहा जाता है। इस किले का निर्माण राणा कुंभा ने 15वीं शताब्दी में करवाया था, जिसकी दीवार लगातार 36 किलोमीटर तक बनी हुई है और सबसे लंबी निरंतर बनने वाली दीवारों में एक है। महाराणा प्रताप जैसे शूरवीरों का जन्म इसी किले में हुआ था। कुंभलगढ किले को राजस्थान के पांच अन्य किलों के साथ यूनेस्को वैश्विक धरोहर का दर्जा प्राप्त है।
उदयपुर से राजस्थानी हिल स्टेशन माउंट आबू की सैर करना बहुत ही प्रिय अनुभव है जहां का मौसम और वातावरण पर्यटन के लिहाज से हर किसी के अनुरूप है। शीतल जलवायु, पहाड़ी रास्ते और घने जंगलों की सघनता मंत्रमुग्ध कर देने वाली होती हैं। यहा मौजूद मंदिर, प्वाइंट और पौराणिक मान्यताओं के धनी इस पहाड़ी की कई किंवदंतियां चलन में है। गुरूशिखर चोटी से माउंट आबू को निहारना बहुत ही रोचक अनुभव प्रदान करता है जहां से नक्की झील और अभयारण्य को घूमना अच्छा अनुभव प्रदान करता है।
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उदयपुर मुख्य केंद्र से लगभग दूरी :
मेवाड़ के अधिकृत क्षेत्र के रूप में ऐतिहासिक पहचान बनाता डूंगरपुर अपने गौरव और वीरता से सभी को परिचित कराता है, यहां गहलोत वंश का शासन हुआ करता था। राजस्थान में बसे उदयपुर के नजदीक बसे इस जगह की मंत्रमुग्ध कर देने वाली सुंदरता और समृद्ध संस्कृति अपने राजसी महलों, भव्य वास्तुकलाओं और उत्साही जीवंत संस्कृति के लिए डूंगरपुर राजस्थान का अभिन्न अंग है जहां भव्य किले, मंदिर और उसके शाही अंदाज़ हैं। यह क्षेत्र अपने भरपूर शाही महलों ओर किलों के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से पर्यटकों को अवगत कराता है। गौरवशाली जीवंत इतिहास और यहां मौजूद उनका दिव्य वातावरण डूंगरपुर की संस्कृति, स्थानीय भोजन और नृत्य कलाओं से आज भी शानदार आकर्षण हैं। हरियाली और मनोहारी परिदृश्यों से सजा हुआ डूंगरपुर प्रकृति और ऐतिहासिक दिलचस्पी रखने वालों के लिए जन्नत जैसा है, जहां आप कई रोमांचक गतिविधियां कर सकें।
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अंत मेंं, उदयपुर व आसपास सुंदरता और रोचकता के साथ आश्चर्यचकित कर देने वाले अनमोल खजानों की भरमार है, जहां सप्ताहांत की छुट्टियों में घूमना अनोखा अनुभव प्रदान करता है। रणकपुर जैन मंदिरों की भव्य वास्तुकला से लेकर एकलिंगीजी नागदा का पौराणिक सफर कराते मंदिरों की आध्यात्मिकता तक, माउंट आबू हिल स्टेशन से लेकर चित्तौड़गढ के ऐतिहासिक गौरव तक, बेहतर व यादगार सप्ताहांत की छोटी यात्रा को जीवंत अनुभव प्रदान करते यह पर्यटन स्थल की यादें अक्सर दीर्घ अविस्मरणीय अनुभवों का संकलन करती हैं। उदयपुर व इसके आसपास देखने को बहुत शानदार आकर्षण हैं, जहां से थोड़ी दूरी तय कर इन्हें घूमने और समझने का आकर्षक अवसर मिलता है।