भारत का महत्वपूर्ण राज्य बिहार, विश्व के सबसे पुरानी जगहों में से एक है जहां रोचक ऐतिहासिक निशानियां मौजूद हैं और बहुत सारे पर्यटन स्थलों की खूबसूरती को भी संजोता है जिसे देखने के लिए दुनिया भर से अनगिनत पर्यटक यहां हर साल आना पसंद करते हैं, जिनका अनुमानित आंकड़ा लाखों के पार जाता है। विश्व के ज्ञान के केंद्र के रूप में प्रचलित नालंदा को भला कौन नहीं जानता होगा, चाहें पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति को संपन्न करने का काम हो या आधुनिक वास्तुकला को निहारना हो। पुरातन काल से प्रतिष्ठित महाभारत से भी पहले की उपस्थिति को शास्त्रों के माध्यम से बयां करता और देशभक्ति प्रेरणा से ओतप्रोत बिहार में सैर करने हेतु कई विकल्पों की विस्तृत श्रृंखला है, आइए करते हैं बिहार के पर्यटन स्थलों की विस्तृत चर्चा।
भगवान बुद्ध की नगरी से प्रसिद्ध यह जगह बौद्ध धर्म के लोगों के लिए विशेष तीर्थ आकर्षण हैं, यहां उपस्थित बोधि वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान का बोध हुआ था, इसलिए इसे बोधि वृक्ष कहते हैं, चारों ओर से घिरा यह वृक्ष आस्था के केंद्र के रूप में जाना जाता है, बोधगया संपूर्णतः भगवान बुद्ध को ही समर्पित है। महाबोधि मंदिर जिसे महान जाग्रति मंदिर भी कहते हैं करीब 170 फीट ऊंचा और लगभग 50 वर्ग फीट तहखाने के बेलनाकार पिरामिड शिखर व शीर्ष छत्र के साथ अपनी विशेष वास्तुकला के माध्यम से भगवान बुद्ध के जीवन चरित का प्रदर्शन करता है, तो वहीं अवस्थित थाई मठ अपनी थाई और बौद्ध कला का सम्मिश्रण प्रस्तुत करता है। बोधगया, बहुत सारे अद्भुत बौद्ध आकर्षणों की श्रृंखला है जो इसे भगवान बुद्ध के जीवन के बारें में जानने समझने और सीखने के अवसरों के साथ ही स्मरण और आशीर्वाद प्रदान करता है। बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए यहां आना हिन्दुओं के चार धाम करने जैसा है।
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रॉयल भूटान मठ, बोधिवृक्ष, बराबर पहाड़ी गुफाएं, मुचलिंडा झील, बोधगया पुरातत्व संग्रहालय, डुंगेश्वरी गुफा मंदिर, इंडोसन निप्पॉन जापानी मंदिर, बोधि वृक्ष और भगवान बुद्ध की करीब 80 फीट ऊंची प्रतिमा इत्यादि प्रमुख स्थलों को देख सकते हैं।
सड़क द्वारा आने के लिए प्रमुख शहरों से साधन की व्यवस्था या बस की मदद से आप बोधगया पहुंच सकते हैं जहां आप बिहार राज्य पर्यटन निगम की बसों द्वारा बिहार के अन्य शहरों से पहुंचा जा सकता है।
हवाई मार्गः निकटतम एयरपोर्ट पटना है जो लगभग 110 किमी क्षेत्र दूरी पर स्थित है।
रेल मार्गः निकटतम रेलवे स्टेशन गया जंक्शन है जो लगभग 17 किमी दूर है साथ ही देश के प्रमुख शहरो से गया के लिए रेल सुविधा उपलब्ध है।
अगर आप बिहार में चाय उत्पादन को देखने का लुत्फ उठाना चाहते हैं तो किशनगंज बिहार का प्रसिद्ध है जो चाय उत्पादन के साथ ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए जाना जाता है जिसका मूल नाम कृष्णकुंज था जहां कई प्रसिद्ध नदियां प्रवाहित होती हैं, इसकी सीमा नेपाल और पश्चिम बंगाल से लगती है और यह मुगल शासन के दौरान नेपाल का एक हिस्सा हुआ करता था तब यह नेपालगढ के नाम से जाना जाता था। कहते है कि किसी मुगल शासक के समय वहां के संपूर्ण वातावरण आकर्षण मुस्लिम नाम का प्रतिनिधित्व करते थे, इस वजह से किसी हिंदू संत ने क्षेत्र में जाने से मना कर दिया, इस कारण शासक ने इस हिस्से को कृष्णकुंज नाम दिया जो अभी किशनगंज नाम से मशहूर है। प्राकृतिक खूबसूरती का खजाना समेटे यह जगह झीलों, मंदिरों, उद्यानों, बागानों और ऐतिहासिक प्राचीन विशेषताओं का प्रतीक है। विशेष मौसम में आते प्रवासी पक्षियों का दीदार करना बहुत ही सुखद अनुभव प्रदान करता है।
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खगड़ा वार्षिक मेला, हरगौरी मंदिर, कछुअदा झील, बंदरझूला बेणुगढ़ जहां कुछ समय पूर्व भगवान विष्णु और सूर्यदेव की प्रतिमाएं मिली थीं साथ ही नेहरू शांति पार्क में फूलों, पौधों और पेड़ो विभिन्न प्रजातियों को निहारने के साथ ही जड़ी बूटियों को देख सकते हैं।
ज्यादातर प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, पटना और कोलकाता से सड़क मार्ग से आने पर एनएच 31 के माध्यम से किशनगंज पहुंच सकते हैं।
हवाई मार्ग द्वाराः निकटतम एयरपोर्ट बागडोगरा है जो यहां से करीब 85 किमी है।
रेल मार्ग द्वाराः निकटतम रेलवे स्टेशन किशनगंज रेलवे स्टेशन है जो भारत के प्रमुख शहरों से भली भांति कनेक्टड है।
राजा बिम्बिसार द्वारा बनवाया गये वैश्विक स्तर पर पुरातन काल से ही बहुप्रसिद्ध नालंदा अपने प्रमुख बौद्ध शैक्षिक केंद्र होने के कारण कई इतिहासकार, दार्शनिकों के लिए प्रमुख स्थल रहा है जो भारत के प्रसिद्ध महाविहारों में से एक होने के साथ गौरवमयी और उच्च प्रतिभा का द्योतक है। यहां भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध भी आ चुके हैं साथ ही उस समय भारत आने वाले चीनी यात्री हेनसांग ने 7वीं शताब्दी के आसपास कुछ समय विद्यार्थी और शिक्षक के रूप में यहां व्यतीत किया है, वर्तमान में यहां नालंदा बौद्ध विश्वविद्यालय के अवशेष खंडहर, संग्रहालय, हेनसांग मेमोरियल हॉल मौजूद है। नालंदा बौद्ध विश्वविद्यालय की स्थापना लगभग 200ई में हुई थी, जिसे यूनेस्को ने वैश्विक विरासत स्थल घोषित किया है। भारत की समृद्धता और संपन्नता में नालंदा विश्वविद्यालय का अभूतपूर्व योगदान है।
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नालंदा के राजगीर में गर्म पानी के झरनों का आनंद लेने के साथ ही नंद्यावर्त महल को भी देख सकते हैं इसके अलावा नालंदा राजगीर में ब्रह्मकुण्ड, सरस्वती कुण्ड लंगेटे कुण्ड और कई मुख्य विदेशी मंदिरों की उपस्थिति भी देखने को मिलती है जिसमें चीन का मंदिर, जापान का मंदिर और नालंदा जिले की बहुत विशाल और पुरानी जामा मस्जिद है। यहां आप सूर्य मंदिर, महान स्तूप व नव नालंदा महाविहार के दर्शन कर सकते हैं।
नालंदा राजगीर के बहुत पास है, जहां से बिहार के अन्य प्रमुख शहर भी बेहतर सड़क माध्यम से जुड़े हुएं हैं। यहां लोकल परिवहन आसनी से मिल जाते हैं।
हवाई मार्गः निकटतम एयरपोर्ट पटना में है जिसकी दूरी लगभग 89 किमी है।
रेलमार्गः राजगीर रेलवे स्टेशन पर बड़े और प्रमुख स्टेशन के रूप में गया जंक्शन लगभग 95 किमी दूर है।
बिहार के चौथे बड़े जिले के रूप में यह क्षेत्र सासाराम जिले का प्रशासनिक मुख्यालय के रूप में जाना जाता है इसका गठन सन् 1972 के आसपास हुआ। प्राकृतिक सुदंरता के धनी घने जंगलों के दृश्य की खूबसूरती मंत्रमुग्ध करती है। सुरम्य वातावरण का निर्माण करती नदियों की धाराएं कोयल, सुरा, दुर्गावती और बजारी सहित और भी कई नदियां इस जगह को पर्यटन हेतु और विशेष बनाती है। नदियों और जंगलों के इस सम्मिश्रण में कई बेहतरीन और उपयोगी वनस्पतियां जैसे पोस्ता, नाशपाती घास और खस सहित वृहद घासों के मैदान देखने में आकर्षक प्रतीत होते हैं, जहां पूरे देश से पर्यटको का तातां लगा रहता है। रोहतास का नाम हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व के नाम पर पड़ा है, जहां सहस्त्रबाहु और परशुराम के बीच लड़ाई भी हुई थी।
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तेलहर व करकट झरना, चियर्स, उरांव, रोहतासगढ किला, मां तारा चंडी मंदिर, बाँदू का शिवलिंग, गुरूद्वारा चाचा फागमूल व टकसाल संघत, गुप्ता धाम, वृहत्पाषाणिक समाधियां, शैलचित्रांकन शिलालेख, धूप घड़ी, चौरासन मंदिर, करमचट बांध, धुआं कुंड, तुतला भवानी मंदिर, शेरगढ किला इत्यादि।
राष्ट्रीय राजमार्ग 2, सड़क मार्ग से जुड़ा है जहां प्रमुख बिहार के प्रमुख शहरों से आसानी से जाया जा सकता है।
हवाई मार्गः निकटतम हवाई अड्डा गया है जिसकी यहां से दूरी लगभग 18 किमी है और पटना एयरपोर्ट से लगभग 145 किमी है।
रेल मार्गः निकटतम रेलवे स्टेशन सासाराम, डेहरी ऑन सोन और बिक्रमगंज है।
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बागमती नदी के किनारे शोभाएमान यह शहर अपनी सांस्कृतिक विशेषताओं और बौद्धिक क्षमताओं के लिए प्रख्यात है, साथ ही यह फलों में आम और सूखे मेवों में मखाना के उत्पादन के लिए फेमस है। संस्कृत भाषा के अनुसार दरभंगा शब्द का अर्थ द्वार बंग और फारसी भाषा में दर-ए-बंग। मिथिला संस्कृति को प्रदर्शित करता दरभंगा रामायण काल से ही चर्चित शहर है, यहां की प्रसिद्ध सुजनी और सिक्की क्रमशः कपड़ों की तह पर रंगीन धागों से डिजाइन और खर व घास से बनाई गई कलात्मक डिजाईन वाली उपयोगी वस्तु है, साथ ही लकड़ी पर नक्काशी का काम होता है। आप दरभंगा के लोकनृत्य सामा चकेवा व झिझिया का आनंद ले सकते हैं। कला, साहित्य और संस्कृति के धनी दरभंगा शहर पर्यटन की दृष्टि से बहुत अद्भुत है जहां ऐतिहासिक विरासतों की कमी हरगिज नहीं है।
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महाराजा लक्ष्मिश्वर सिंह संग्रहालय एवं चंद्रधारी संग्रहालय, दरभंगा राज परिसर व किला, होली रोजरी चर्च, श्यामा मंदिर, नवादा दुर्गा मंदिर, आनंद बाग पैलेस, मस्जिद एवं मकदूम बाबा की मजार, हजरत मखदूम भीखा शाह सैलानी का दरगाह, कुशेश्वरस्थान शिवमंदिर व पक्षी विहार, अहिल्या व गौतम स्थान, मनोरा, छपरार, देवकुली धाम, नेवारी, रामजानकी रामेश्वर नाथ महादेव मंदिर इत्यादि।
हवाई मार्गः निकटतम एयरपोर्ट दरभंगा है।
रेल मार्गः निकटतम रेलवे स्टेशन दरभंगा जंक्शन है।
भारतवर्ष में सबसे पहले जब आर्यों के रहने का जिक्र आता है तो मध्य भूमि का नाम पहले आता है, बिहार का यह क्षेत्र वही मध्य भूमि के नाम से जाना जाता है, जिसे महाभारत काल में मोद भूमि के नाम से पुकारा जाता था, यहां के बारें में शास्त्रों में लिखा है कि अंग के राजा कर्ण को भीम द्वारा हराने के बाद भीम ने उनके प्रमुख को युद्ध मेंं यही मार डाला था, बुद्ध के एक शिष्य मौदल्य के नाम पर भी इस स्थान को जाना जाता है। ब्रिटिशकाल और स्वतंत्रता संग्राम में इस शहर की भूमिका अद्वितीय रही यहां सैन्य वस्त्रों का डिपो होने के साथ सिपाहियों के लिए एक पागलखाना था। गंगा नदी के किनारे बसे इस शहर का कष्टहारिणी घाट में स्नान करने से सारे कष्ट दूर हो जाते है, जहां माता सीताचरण मंदिर भी स्थित है जहां जाने के लिए नाव ही माध्यम है।
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मुंगेर का किला, सीता कुंड, ऋषिकुण्ड, काली पहाड़, भगवती स्थान, मकबरा, पीर शाह नूफा का गुंबद, शाह शुजा का महल
राष्ट्रीय राजमार्ग 80, और राज्यमार्ग 333 पर स्थित यह क्षेत्र भागलपुर होते हुए उत्तरी बिहार और मध्य बिहार के क्षेत्रों से जुड़ा हुआ है।
हवाई मार्गः पटना एयरपोर्ट यहां से लगभग 183 किमी दूर है जहां से अन्य साधनों से मुंगेर आया जा सकता है।
रेल मार्गः निकटतम रेलवे स्टेशन मुंगेर और जमालपुर है, जमालपुर से गया और देश के प्रमुख शहरों के लिए रेल सेवाओं की बेहतर सुविधा उपलब्ध है।
बिहार की राजधानी और ऐतिहासिक शहर पाटलिपुत्र के रूप में प्रसिद्ध यह स्थान पुष्पपुरी और कुसुमपुर के नाम से भी जाना जाता है, यह अति प्राचीन शहरों में से एक है जिसकी वास्तविकता के सबंध में कोई सटीक जानकारी नहीं है लेकिन पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस शहर की सजीवता बहुत पुरातन काल से है। यह सिर्फ हिंदू धर्म ही नहीं बल्कि जैन, बौद्ध धर्मों के साथ ही सिक्खों के पवित्र शहर के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनके 10वें और अंतिम गुरू गोविंद सिंह का जन्म यहीं हुआ था। पटना और इसके आसपास कई ऐसी ऐतिहासिक और पांरपरिक विरासतें हैं जहां घूमकर अपने गौरवशाली इतिहास को अच्छे से समझा जा सकता है। शेरशाह सूरी ने इसका नाम पैठना रखा था जिसे हेमचंद्र विक्रमादित्य हिंदू सम्राट ने पटना में बदल दिया।
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अगम कुआँ, कुम्हरार, किला या जालान हाउस, तख्त श्रीहरंमंदिर साहब, महावीर मंदिर, गांधी मैदान, गांधी संग्रहालय, श्रीकृष्ण विज्ञान केंद्र, पटना संग्रहालय, ताराघर, सदाकत आश्रम, संजय गांधी जैविक उद्यान नवलखा भवन इत्यादि कई आकर्षण हैं।
हवाई व रेल मार्गः निकटतम एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन क्रमशः पटना एयरपोर्ट और पंटना जंक्शन है।
बिहार का यह स्थान पूर्वजों के पिंडदान करने के लिए सर्वोत्तम जगहों में से एक है जो विश्व भर में विख्यात है और हिंदू धर्म के लिए पितृपक्ष के दौरान विशेष लोकप्रिय और दर्शनीय जगहांं में से एक है जो फल्गु नदी के किनारे अवस्थित है। मान्यता है कि यहां प्रभुश्री राम माता जानकी और लक्ष्मण ने सबसे पहले दशरथ जी का पिंडदान किया था तब से यहां पिंडदान करने की अमूर्त पद्धति चली आ रही है। मान्यता है कि गयासुर नामक राक्षस का वध भगवान विष्णु ने किया था और उसे आशीर्वाद स्वरूप उसी के नाम से इस जगह को इतने पावन रूप में फलित कर दिया।
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विष्णुपद मंदिर, मंगला गौरी मंदिर, सीताकुण्ड, सुजाता स्तूप और रामशिला पहाड़ी इत्यादि
हवाई और रेल मार्गः घरेलू उड़ानों के लिए गया एयरपोर्ट है लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पटना एयरपोर्ट ही उचित है और निकटतम रेलवे स्टेशन गया जंक्शन है।
भारतीय संस्कृति को बारीकी से समझाता बिहार पर्यटकों को खूब लुभाता है, जिसे इतिहास का भी केंद्र माना जाता है। रोचक लोककथाएं और लोककलाएं बिहार को सिर्फ भारत में ही नहीं वरन् पूरे विश्व में विशेष पहचान दिलाती हैं, अगर आप भी भारत का विशेष अनछुआ पहलू जो आपको आत्मीयता का एहसास दिलाए महसूस करना चाहते हैं तो बिहार की धरती परफेक्ट है जहां प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक अपनेपन की भावना को संजोती लोक परंपराओं की विशेष झलक देखने को मिलती है।
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