• May 29, 2025

संपूर्ण भारतवर्ष का गौरव जगन्नाथपुरी रथ यात्रा एक विशेष आयोजन है, जहां सभी वर्गों के लोग मनभेद और मतभेद मिटाकर पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ शामिल होते हैं। विशाल जमावड़ा जो संकेत करता है कि ये कोई सामान्य रथ यात्रा नहीं अपितु विशाल अनुष्ठान हैं जिसमें हर कोई अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहता है, क्योंकि मान्यता है कि रथ को देखने और खींचने से जाने अन्जाने में किए गए पापों का क्षय होता है और पुण्यां का उदय होता है। आइए, वर्ष 2025 में होने वाली विशेष जगन्नाथ यात्रा महाउत्सव के बारें में आपको विस्तार से बताते हैं।

रथ यात्रा इतिहासः

भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा का यह विशेष अनुष्ठान बहुत प्राचीन परंपरा है जिसका वर्णन ब्रह्म पुराण, पद्मपुराण और स्कंद पुराणों में वर्णित है। स्कंद पुराण के अनुसार जो व्यक्ति रथ यात्रा में शामिल होकर श्री जगन्नाथ प्रभु का नाम लेते हुए गुंडीचा तक जाता है, जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। आषाढ शुक्ल पक्ष की द्वितीया से शुरू होने वाला यह त्योहार सात दिनों तक मनाये जाने वाला विशेष आयोजन होता है। जिसमें भक्त लाखों की संख्या में शामिल होकर रथ खींचते हैं। रथ की रस्सियों को खींचने का बहुत विशेष महत्व है। प्राचीन समय में स्वयं राजा रथ के चबूतरे को सोने की झाड़ू से साफ करता था, इसे ‘छेरा पन्हेरा’ प्रथा के नाम से जानते हैं, जो इंगित करता था कि भगवान जगन्नाथ के समक्ष सब एक बराबर हैं। रथ यात्रा का विशेष महत्व है कहा जाता है कि बड़े भाग्यशाली होते हैं वो लोग जो भगवान जगन्नाथ के रथों को अपने हाथों से खींचने का अवसर पाते हैं।

रथ यात्रा मनाये जाने का कारणः

इस पर अनुश्रुतियों की बात करें तो यह आयोजन रानी गुंडिचा के अनुनय पर शुरू हुआ था, जिनका उद्देश्य था कि अछूत और पापी लोग भी भगवान जगन्नाथ के दर्शनों से अभिभूत हो सकें। भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों के बीच आकर उनसे मिलते हैं उनके सुख दुख बांटते हैं। जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर गुंडीचा मंदिर तक जाने वाली यह रथ यात्रा लगभग 3 किलोमीटर लंबी होती है, गुंडीचा मंदिर को गुंडीचा बाड़ी भी कहते है, कहते हैं कि यह भगवान जगन्नाथ का जन्म स्थान है, पुराणों की बात करें तो इस जगह पर राजा इन्द्रद्युम अपने परिवार सहित रहते थे। सागर से एक विशालाकाय काष्ठ को देखकर उनके मन में भगवान विष्णु की मूर्ति बनाने का संकल्प हुआ, उसी समय वहां विश्वकर्मा जी वृद्ध बढ़ई का रूप बनाकर पधारे और मूर्ति बनाने को राजी हुए पर उनकी शर्त थी कि जब तक वह मूर्ति बनाएं, उस स्थान पर कोई न आए। कई दिन बीत जाने के बाद रानी के मन में स्वाभाविक चिंता हुई कि बढई कभी बाहर नहीं आता, पता नहीं जीवित भी है या नहीं, चिंतावश उस स्थान पर पहुंच गए, वहां पहुंचे तो कोई बढ़ई नहीं दिखा और बनी हुई अधूरी मूर्तियां मिलीं, उन्हें अपने वहां आने का दुख हुआ फिर आकाशवाणी हुई कि दुखी न हो, यह बनी हुई अधूरी मूर्तियां वर्तमान श्री जगन्नाथ मंदिर में इसी तरह स्थापित करवाएं। यह वही जगह थी जहां देवशिल्पकार भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी की प्रतिमाओं को बनाया था, और कुछ विद्वान इसकी तुलना मथुरा स्थान से करते हैं कि भगवान प्रतीकात्मक रूप से अपने जन्मस्थान मथुरा की यात्रा पर निकलते हैं। गुंडीचा मंदिर के पास ही मौसी मां का मंदिर है, रथ को वहां भी रोका जाता है, कहते हैं कि भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी से मिलने के लिए जाते हैं। गुंडीचा मंदिर में भगवान सात दिन तक अपने भाई बलदाऊ और अपनी बहन सुभद्रा के साथ रूकते हैं। उन सात दिनों में गुंडीचा मंदिर की महिमा अनंत गुना बढ़ जाती है, ऐसा माना जाता है कि जब जन्मों के पुण्यों का फल मिलता है तब सात दिनों तक गुंडीचा मंदिर में उनके दर्शन का सुअवसर मिल पाता है। सात दिनों बाद भगवान जगन्नाथ अपने धाम वापस आ जाते हैं।

दिव्य महिमा तीन रथ : तीन भावनाएं

नंदी घोषः लगभग 44 फीट ऊंचा और 16 पहियों वाला यह मुख्य रथ भगवान जगन्नाथ का होता है, जिसका रंग लाल और पीला होता है। इसे गरूड़ध्वज या कपिध्वज के नाम से भी जानते हैं। इसके सारथी दारूका और अभिभावक गरूड़ देवता होते हैं। रथ को हांकने वाले घोड़ों का रंग सफेद होता है, जिनका नाम शंखा, बलहाका, श्वेता, और हरिदाश्व रहता है। रथ पर ‘त्रैलोक्यामोहिनी’ ध्वज लहराता है। रथ की रस्सी का नाम शंखचूड़ नागिनी और द्वारपाल जय विजय होते हैं।

तालध्वजः भगवान बलभद्र, जो भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई के रूप में जाने जाते हैं, इस रथ में सवारी करते हैं। लगभग 43 फीट ऊंचे इस रथ में लगभग 17 पहिये होते हैं। ड्रम-फ्लैग कहे जाने वाले इस रथ का रंग लाल और हरा होता है। रथ के अभिभावक के रूप में वासुदेव और ध्वज का नाम ‘उन्नानी’ और द्वारपाल नंदा, सुनंदा होते हैं। इनके घोड़ों का रंग काला होता है, जिनके नाम बिबरा, घोरा, दिर्घाशर्मा और स्वर्णननवा और रथ की रस्सी का नाम बासुकी रखा जाता है।

देवदलनः भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा के रथ का नाम दर्पदलन या पद्मध्वज से भी जाना जाता है। जिसकी ऊंचाई लगभग 42 फीट और 12 पहिए होते हैं। इनके रथ का रंग लाल और काला होता है जो देवी से संबंधित है। इस रथ की अभिभावक जयदुर्गा और सारथी अर्जुन कहे जाते हैं। रथ के घोड़ों का रंग लाल होता है, जिनके नाम रोचिका, मोचिका, अफवह, और अपराजित होता है। रथ की रस्सी का नाम ‘स्वर्णचूड़ा नागिनी’ है।

रथ यात्रा विशेष तिथियां और अनुष्ठान पर्व

भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 की तैयारी कई दिनों पूर्व शुरू हो जाती है जो समग्र रूप से सात दिनों की यात्रा में समावेशित हो जाती है। इस साल यह रथ यात्रा 27 जून से शुरू होकर 8 जुलाई 2025 तक चलने वाली हैं। आइए विस्तार से जानते हैं रथ यात्रा विशेष तिथियों और उनमें होने वाले अनुष्ठानों के बारें में

 अक्षय तृतीया  30 अप्रैल, 2025
स्नान पूर्णिमा  11 जून, 2025
 अनवसर  13 जून-26 जून 2025
रथ यात्रा  27 जून, 2025
हेरा पंचमी  1 जुलाई 2025
संध्या दर्शन  3 जुलाई, 2025
बाहुदा यात्रा  5 जुलाई 2025
सुना बेशा  6 जुलाई 2025
अधारा पना   7 जुलाई, 2025
नीलाद्रि विजय  8 जुलाई, 2025

 
अक्षय तृतीया : शुभ दिन शुभ शुरूआत के साथ इस रथ यात्रा की तैयारी की जाती है। रथों के निर्माण का आगाज़ अक्षय तृतीया के दिन से अग्नि पूजा के साथ शुरू होता है। यह दिन रथ यात्रा की पारंपरिक शुरूआत है।

स्नान पूर्णिमाः यह उत्सव ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन होता है। देवताओं को तालाब के मध्य में बने एक छोटे से मंदिर में जल, चंदन, सुगंध और फूलों से भरे पत्थर के पात्र में स्नान कराया जाता है। इसे स्नान महोत्सव के नाम से संबोधित करते हैं। भगवान जगन्नाथ, बलदाऊ और सुभद्रा को शुभ संख्या 108 कलश के पानी से स्नान कराया जाता है।

अनवसरः धारणा करते हुए कि देवता स्नान के बाद कुछ थक गए होंगे, इसलिए लगभग 15 दिनों तक उनके आराम और स्वस्थ स्वास्थ्य की कामना हेतु उन्हें दर्शन देने से दूर रखते हुए एकांतवास दिया जाता है और उनके भोग में केवल जड़ें, पत्ते, जामुन और फल दिये जाते हैं।

रथ यात्राः विशाल रथयात्रा, जिसे बहुत बड़े अनुष्ठान के रूप में पुरी के श्रीमंदिर से शुरू करके गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है। रथ यात्रा में सबसे आगे तालध्वज पर श्री बलभद्र, उनके पीछे पद्मध्वज पर माता सुभद्रा व सुदर्शन चक्र और आखिर में गरूड़ ध्वज पर श्री जगन्नाथ महाराज सबसे पीछे चलते हैं।

हेरा पंचमीः यह अनुष्ठान रथ यात्रा के पांचवे दिन मनाया जाता है। ‘हेरा’ का अर्थ होता है तलाश करना या ढूंढना, कहते हैं कि इस दिन देवी लक्ष्मी अपने पति जगन्नाथ भगवान को खोजती हुई गुंडीचा मंदिर आती हैं। यह दिन ईश्वर रूपी पति पत्नी के बीच मानवीयता को दर्शाता है।

संध्या दर्शनः गुंडीचा मंदिर में शाम के समय भगवान जगन्नाथ के दर्शन की बहुत महत्ता है। भगवान जगन्नाथ के संध्या दर्शन का अनूठा अनुभव करने के लिए श्रद्धालु उमड़ते हैं।

बाहुदा यात्राः रथ यात्रा की वापसी को बाहुदा यात्रा के नाम से जानते हैं, इनके रथ लौटते समय मौसी मां के मंदिर में रूकते हैं, वहां उन्हें ‘पोड़ा पिठा’जो एक तरह का पैन केक होता है दिया जाता है।

सुना बेशाः बाहुदा यात्रा के अगले दिन, सुना बेशा त्योहार के अन्तर्गत भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को सोने के आभूषणों से तैयार किया जाता है। आकर्षक दृश्यों के साथ भगवान की यह छवियां बहुत अद्वितीय प्रतीत होती हैं।

अधारा पनाः विभिन्न तरह की सामग्री से मिट्टी के पात्र में तैयार करके मीठा पेय, इन तीनों रथ नंदीघोष, तालध्वज और देवदलन में चढाया जाता है, इसका उद्देश्य उस पराशक्ति के प्रति आभार जताने के लिए किया जाता है।

नीलाद्रि विजयः यह रथ यात्रा का आखिरी दिन का अनुष्ठान होता है जिसमें पुरी के श्रीमंदिर में पुनः देवताओं की स्थापना की जाती है, इसका अभिप्राय यह होता है कि भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और सुभद्रा के साथ मुख्य जगन्नाथ मंदिर में वापस लौट आएं हैं।

महाप्रसाद की महिमा

भगवान जगन्नाथ के प्रसाद की बड़ी महिमा है, अन्य तीर्थस्थलों के प्रसाद को अधिकतर प्रसाद ही कहा जाता है, लेकिन श्री जगन्नाथ के प्रसाद को महाप्रसाद के रूप में बताया गया है। किवंदतीं है कि यहां गुरू बल्लभाचार्य की भक्ति परीक्षा लेने के मकसद से एकादशी व्रत के दिन किसी ने उन्हें प्रसाद दे दिया, उन्होंने प्रसाद हाथ में लेकर स्तवन करते हुए पूरा दिन रात बिता दिया। अगले दिन द्वादशी तिथि को ध्यान आराधना समाप्त कर उन्होंने उस प्रसाद को ग्रहण किया और इस तरह से यहां का वह प्रसाद महाप्रसाद के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

रथ यात्रा 2025 में शामिल होने के लिए अपनी तैयारी कैसे करें

अगर आप भी पुरी रथ यात्रा 2025 का मनमोहक अनुभव लेना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको अपने स्वास्थ्य का विशेष ख़्याल रखना होगा, उचित देखभाल करते हुए अपने यात्रा साधन और ठहरने के विकल्पों का चयन समय से कर लीजिए ताकि ऐन मौके पर आपको असुविधा का सामना ना करना पड़े। अपना कोई भी पहचान पत्र हमेशा अपने साथ रखिए, कोई स्वास्थ्य संबंधी दवा यदि लेते हैं तो उसको याद से रखें। ध्यान रखें यह एक विशेष रथ यात्रा त्योहार है, इसमें भक्तों का हुजूम उमड़ना लाज़िमी है, ऐसे में किसी भी अफवाह पर ध्यान न दें और न ही दूसरों को भ्रमित करें, बस जो भी दिशा निर्देश सरकार या अधिकारियों द्वारा दिए जाएं उनका खासतौर से पालन करें।

विशेष टिपः मास्क और सेनिटाइजर का प्रयोग अवश्य करें।

निष्कर्ष

भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा एक पांरपरिक, आध्यात्मिक यात्रा है जो सदियों से अनवरत चलती आ रही है। भले ही यह महाउत्सव सिर्फ कुछ दिनों का ही चलता हो पर इसकी तैयारियां और इससे जुडे तथ्य पौराणिक काल से चले आ रहें हैं। उड़िया संस्कृति को बेहद खूबसूरती से बयां करता यह त्योहार स्थानीय लोककलाओं का जीवंत और सजीव चित्रण हैं, जो यहां के उज्ज्वल पक्ष को भली भांति उजागर करता है।

जगन्नाथ रथयात्रा 2025 के दौरान अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्नः रथ यात्रा क्या है?

उत्तरः पुरी ओडिशा में होने वाली जगन्नाथ रथयात्रा उत्सव है जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा को अति विशाल और सजे हुए रथों पर विराज कर दिव्य जुलूस के रूप में निकाला जाता है।

प्रश्नः मुख्य रथ यात्रा कितने दिनों तक चलने वाला उत्सव है?

उत्तरः मुख्य रथ यात्रा 27 जून 2025 से शुरू होकर नीलाद्रि विजय 8 जुलाई, 2025 तक चलने वाला लगभग 12 दिनों का उत्सव है।

प्रश्नः रथ यात्रा के दौरान मुख्य रथ का वजन कितना होता है?

उत्तरः लगभग 2500 किलोग्राम

प्रश्नः रथ यात्रा वर्ष में कितनी बार आयोजित की जाती है?

उत्तरः रथ यात्रा वर्ष में सिर्फ एक बार ही आयोजित की जाती है।

प्रश्नः रथ यात्रा किस महीने में आयोजित की जाती है?

उत्तरः रथ यात्रा जून-जुलाई (आषाढ़) महीने में आयोजित की जाती है।

प्रश्नः क्या मैं रथ यात्रा में भाग ले सकता/सकती हूं?

उत्तरः हां बिल्कुल, यह सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन है जहां भक्ति, श्रद्धा और समर्पण की भावना के साथ शामिल होना एक अनूठा अनुभव देने वाला हो सकता है।

प्रश्नः रथ यात्रा 2025 में शामिल होने के लिए अपनी तैयारी कैसे करें?

उत्तरः स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए बजट अनुसार आने-जाने की और पुरी में रूकने की व्यवस्था की विवेचना कर लें। मौसम की पूर्व जानकारी जरूर कर लें, किसी भी अफवाह पर ध्यान न दें, पहले पुष्टि कर लें। सरकार और स्थानीय अधिकारियों द्वारा जारी गाइडलाइन का पालन अवश्य करें।

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